सेविंग – मीनाक्षी चौहान

दोनों बच्चे और उनकी माँ के मुँह बने हुए हैं मना जो कर दिया मैनें इस बार मॉल से शॉपिंग करने के लिये। दो महीने हो गए मॉल से घर का सामान लाते हुए। अच्छा भला अब तक बड़े बाज़ार के लाला की दुकान से सामान आया करता था लेकिन उस दिन मैडम ने अखबार में देख लिया……इसके साथ वो फ़्री, उस पर इतने परसेन्ट की छूट। बस दिमाग घूम गया उसका और मेरा भी घुमा दिया …..सेविंग के नाम पर और चले गये हम दोनों मॉल से  शॉपिंग करने। जरुरत से ज्यादा गैर जरूरी चीजें भरीं जा रही थी फ्री और सस्ते के चक्कर में। खचाखच भरी ट्रोली ने मेरी जेब खाली करा दी। आठ हज़ार का परचा फटा राशन के नाम का।

सबक लेती हुए मैडम पिछले महीने बोली, ” लिस्ट बना कर ले जायेंगे। कुछ फालतू लेंगे ही नहीं।” इस बार बच्चे भी साथ हो लिये। नूडल्स, दसियों तरह की सॉस,मेयो, कुकीज़, चॉकलेट और ना जाने क्या अटरम-शटरम भर लिया, ना सिर्फ उन दोनों ने, उनकी माँ ने भी। लिस्ट की कसम जो घर से खा कर चली थी उसे वो यहाँ आते ही हजम कर गई। काऊंटर पर खड़ा बारह हजार का अमाउंट पे कर रहा था। बच्चे साथ गए थे उन्हें झूले भी झूलने हैं, कार रेसिंग गेम भी चलानी है और बर्गर भी खाना है अब मना थोड़े ना किया जाता है बच्चे ही तो हैं। अपनी मैडम को भी कहाँ मना किया जब उसने बड़े प्यार से मुझसे कहा, ” रात होने वाली है कब घर पहुंचेंगे? कब खाना बनेगा? कब खायेंगे? एक काम करतें हैं यहीं फूड कोर्ट से खाना खा कर चलते हैं।” खा लिया खाना। ये सब हुआ सेविंग के नाम पर।



सामान आया सो आया अब उसे ऐडजस्ट करने की आफत। जब सारी जगह फुल हो गई तब बारी आई मेरी किताबों की अल्मारी की। जो आज तक ना हुआ वो अब हो रहा था। बेचारी मेरी किताबों को टूथपेस्ट, चाय के पैकेट, साबुन,बिस्किट के साथ ऐडजस्ट करना पड़ रहा था। चलो जी, ठूँस-ठास कर जैसे-तैसे सामान भर दिया गया यहाँ तक तो ठीक था पर अगले दिन जो हुआ……. घर पधारी अपनी सहेली से हमारी मैडम मॉल में शॉपिंग के फायदे गिनाते-गिनाते अचानक क्या बोलती है, “ओ! तू मत खरीदना मेरे पास एक्स्ट्रा रखा है।” और ओट्स का एक पैकेट उसे दानवीर बन कर दे दिया। अब कोई मुझे बताये ये एक्स्ट्रा कैसे हुआ? कब हुआ? खुद ने ही तो खरीदा था। एक के साथ एक फ़्री बोल कर। पहले बेमतलब का खरीदो फिर एक-एक को दान करो। ये क्या बात हुई भला?

बस बहुत हुआ। इसलिये इस महीने घर का सामान लाने के लिए मॉल जाने से मैनें साफ़ मना कर दिया।……लिस्ट, थैला उठाया और स्कूटर लेकर निकल पड़ा बड़े बाज़ार वाली लाला की दुकान की तरफ। छ: हजार में सारा सामान आ गया। लौटते हुए तीनों के लटके चेहरे याद आ गए। स्कूटर रोका बच्चों के लिए रेड वेल्वेट पेस्ट्री और उनकी माँ के लिए बटर स्कॉच आइसक्रीम लेकर चल दिया घर की ओर।

कैसे तीनों के मुरझाए चेहरे खिल उठे अपनी फ़ेवरिट चीजें देखकर। जहाँ बच्चे अपनी पेस्ट्री और मैडम अपनी आइसक्रीम का मज़ा ले रही थी वहीं मैं लुत्फ उठा रहा था अपनी सेविंग का।

मीनाक्षी चौहान

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