सती-कहानी रिश्तों के तिरस्कार की – डॉ. पारुल अग्रवाल : Moral stories in hindi

शालिनी अपने ही ख्यालों में गुम थी कि तभी टीवी पर सती की कथा करके एक पौराणिक कथा कार्यक्रम का प्रसारण शुरू हुआ। कथा में राजा दक्ष जो की सती के पिता थे और वे सती के पति मतलब शंकर जी को उनकी वेशभूषा और रहन सहन की वजह से बिल्कुल पसंद नहीं करते थे।

वो अपने महल में एक बड़ा आयोजन करते हैं पर सती को नहीं बुलाते।आयोजन पर सती, शंकर भगवान के बहुत मना करने पर भी बिन बुलाए पहुंच जाती हैं। वहां पर राजा दक्ष सभी लोगों के समक्ष सती और उनके पति का बहुत अपमान करते हैं, अपना अपमान तो सती फिर भी सहन कर लेती पर अपने पति के अपमान को सहन नहीं कर पाती और दुखी होकर अपने प्राण दे देती हैं।

शालिनी को ऐसा लगता है कि ऐसा ही कुछ-कुछ तो उसके साथ भी होता आया है।उसने तो सती की तरह अपनी पसंद से विवाह भी नहीं किया था पर तब भी उसके मायके में उसके साथ शादी के बाद परायों जैसा व्यवहार होता था।

उसके माता-पिता को भी लगता था कि कही हम शालिनी को कुछ देते लेते हैं तो उसके दोनों भैया और भाभी को बुरा ना लग जाए।

कई बार शालिनी को कुछ बुरा भी लगता, वो अपने माता-पिता से कहना भी चाहती पर फिर माता-पिता अपनी बढ़ती उम्र की मजबूरी दिखा उसको चुप करा देते। इसी तरह जिंदगी चल रही थी शालिनी ने भी ये सोचकर कि बस उसका मायका बना रहे, घर पर सब ठीक रहें खुद को इन सबसे दूर कर लिया था।

जब कुछ आयोजन होता तो उसे बुलाया तो जाता पर उचित सम्मान और अपनापन ना दिया जाता। तो इसलिए वो भी मायके में बस थोड़ी देर के लिए दुनियादारी निभाने हो आती। मन में कसक तो थी, पर पति बहुत अच्छे थे,खुद भी उसकी ज़िंदगी काफी व्यस्त रहती थी इसलिए कहीं ना कहीं सामंजस्य बैठा रही थी।

जब तक पापा रहे तब तक मायके से कम से कम इस तरह का नाता तो रहा। पर पापा के जाने के बाद वसीयत को लेकर बहुत कुछ बदल गया।

उसने कभी अपने मायके से प्यार और सम्मान के अलावा किसी पैसे की चाहत नहीं की थी। पर भाई और भाभी के द्वारा बात-बात पर पापा की वसीयत और लेने-देने को लेकर किया अपमान उसका दिल दुखा रहा था।

बड़े भैया जो कि उम्र में उससे काफी बड़े थे, वसीयत को लेकर इस कदर स्वार्थी हो गए थे कि उसके ही घर में बैठकर उसके साथ-साथ उसके पति को भी भला-बुरा कह रहे थे। शालिनी अब तक सब सहन कर रही थी पर भाई द्वारा अपने पति का अपमान पर वो चुप ना रह सकी।

उसने उम्र में बड़े अपने भैया को साफ-साफ शब्दों में अपने पति का अपमान न करने की चेतावनी दी और मन ही मन मायके से सारे रिश्तें खत्म करने में ही भलाई समझी।

आज उसे ऐसा लगा कि सती की ये कथा उसको नई सीख देने के लिए ही शायद प्रसारित की गई थी। बस युग बदला था, पर कोई भी स्त्री आज भी पति का अपमान सहन नहीं कर सकती। चाहे,अपमान भी सती जितना बड़ा नहीं था पर भाई-बहन के रिश्ते पर कुठाराघात करने के लिए काफी था।आज उसे अपने भाई के साथ रिश्ते खत्म करने का कोई दुख नहीं था।

दोस्तों कई बार अपमान का बोझ इतना बड़ा होता है कि वो सारे रिश्तों को भी लील देता है।अगर रिश्तों में अपनापन बनाए रखना है तो एक दूसरे को पूरा सम्मान देना होगा।

#अपमान 

डॉ. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

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