मातृत्व का अपमान – ऋचा उनियाल बोंठीयाल : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : बंद कमरे के अंदर से लगातार मार पीट और चीखने की आवाजें आ रही थी। शान्ति देवी लगातार बाहर से कमरे का दरवाज़ा पीट रहीं थीं। बहु का क्रंदन उनका कलेजा चीर रहा था।

” रवि बेटा भगवान के लिए, छोड़ दे बहू को , इतना मत मार उसे कि वो मर ही जाए। क्यों हैवान बनता जा रहा है तू लल्ला? ये मत भूल वो मां बनने वाली है बेटा, शांत होजा और बाहर आजा। मेरी बात मान ले बेटा।”

काफी देर तक दरवाज़ा पीटने पर भी जब रवि ने दरवाज़ा ना खोला तो शान्ति जी हार कर, सिर पकड़ कर , वहीं ज़मीन पर बैठ गईं।

कुछ देर बाद, दरवाज़ा खुला और रवि पैर पटकता हुआ सीधा घर से बाहर निकल गया। उसका पसीने से लतपथ ,खूंखार , गुस्से से लाल हुआ चेहरा देख शान्ति जी के मुंह से एक शब्द न निकला।

“इस हैवान ने मेरी ही कोख से जन्म लिया है?” सोचते हुए वो कमरे में दाखिल हुई। वहां का नज़ारा देख उनका कलेजा मुंह को आ गया । अंजली ( उनकी बहु) निढ़ाल सी ज़मीन पर पड़ी थी। उसके सर और नाक से बहुत खून बह रहा था। उसके शरीर पर पड़े चोटों के निशान देख शान्ति जी की रुलाई फूट पड़ी। उन्होंने अंजली का सिर अपनी गोद में लेकर उसे थोड़ा पानी पिलाया, लेकिन पानी भी उसके हलक से नीचे ही नहीं उतर रहा था।

शान्ति जी ने तुरंत फ़ोन कर जान पहचान के एक डॉक्टर को घर बुलाया।

बड़ी मुश्किल से अंजली को होश आया। शान्ति जी की जान में जान आई।

डॉक्टर,शान्ति जी के परिचित थे और रवि के व्यवहार से भी अच्छी तरह वाकिफ थे।

” शान्ति जी ,आपकी बहू शारीरिक रूप से बहुत कमज़ोर है। ऊपर से इसे इस तरह पीटा गया है कि इसके पेट में पल रहे बच्चे को भी खतरा हो सकता था। आप रवि को समझाती क्यों नहीं? वो तो हमारी पुरानी जान पहचान है, तो मैं आपकी विनती टाल नहीं सका और आपके घर आ गया। वर्ना ऐसे मामलों में पहले हम पुलिस से संपर्क करते हैं। तब इलाज होता है। आगे से ऐसा ना हो इस बात का पूरा ध्यान रखिएगा ,ये आखिरी बार है जो मैं आपकी मदद कर रहा हूं, याद रखियेगा।”

डॉक्टर खीज कर बोले।



अंजली की ड्रेसिंग कर और कुछ दवाइयां देकर डॉक्टर चले गए।

शान्ति जी ने अंजली को सीने से लगा लिया।

अंजली भी उनसे लिपट कर एक छोटे बच्चे की तरह फूट फूट कर रोने लगी।  “मां जी, मैं नहीं रह सकती रवि के साथ ,अब मुझसे और बर्दाश्त नहीं होता, जी चाहता है ज़हर खा कर अपनी जान दे दूं।”

“ऐसे नहीं कहते मेरी बच्ची, हौसला रख सब ठीक हो जाएगा, और सुन बेटा इस बारे में अपने ससुर जी से कुछ मत कहना ठीक है?

अभी वो बाज़ार गए हैं आते ही होंगे। तू तो जानती है न उनका गुस्सा? उन्हें पता चला तो, रवि को वो मार ही डालेंगे। घर में और कलेश नही होना चाहिए बेटा, तू समझ रही है न?”

भोली अंजली ने, एक छोटे बच्चे की तरह हां में सर हिलाया,और फिर से शन्ति जी से लिपट गई।

शान्ति जी अंजली का सिर अपनी गोद में रख सहलाने लगी। दवाई के असर से कुछ ही देर में अंजली की आंख लग गई।

उसी समय शान्ति जी के पति दिवाकर जी भी बाज़ार से घर लौट आए।

“अरे शान्ति,ये क्या हो गया हमारी बहु को” अंजली की हालत देख दिवाकर जी लगभग चीखते हुए बोले।

” वो …वो..  कुछ नहीं जी,  बहु का पैर फिसल गया तो वो गिर पड़ी। देखो ना कितनी चोट लगी है इसे।” शान्ति जी ने अपने बेटे की करतूत को छुपाने का पूर्ण प्रयास किया।

ये जवाब सुन दिवाकर जी की आंखों में खून उतर आया।

वो लगभग चीखते हुए बोले

“ईश्वर से डरो शान्ति , झूठ बोलने की भी एक सीमा होती है, इस बच्ची की हालत देख कर कोई अंधा भी बता देगा कि इसे बेरहमी से पीटा गया है, और मैं जानता हूं कि ये हमारे कपूत की ही हरकत है। कहां है ये रवि? आज मैं इसे पुलिस के हवाले कर के ही दम लूंगा।”

क्रोध से दिवाकर जी का पूरा

शरीर कांप रहा था।



” कैसी बातें करते हो जी? अपने इकलौते बेटे को पुलिस के हवाले करोगे? दिमाग तो नहीं खराब हो गया है आपका?”

शान्ति जी भी थोड़ा ताव दिखाते हुए बोली।

“बेटा…….? बेटा नहीं हैवान है वो हैवान, ऐसे कौन से ऐब हैं जो उसमें नहीं हैं ? नशाखोरी , सट्टेबाजी, लड़की बाज़ी बस यही ज़िंदगी है उसकी , ऐसी औलाद से तो हम बेऔलाद ही अच्छे थे शान्ति।” बोलते बोलते दिवाकर जी का गला रूंध गया।

“कुछ भी अनाप शनाप मत बकिए। जानते हैं ना आप कितनी मन्नतों के बाद मेरी गोद हरी हुई थी और रवि हमारे जीवन में आया था । सुधर जायेगा हमारा बेटा, थोड़ा समय दीजिए उसे। “

शान्ति जी बेटे का पक्ष लेते हुऐ बोली।

” सुधर जायेगा…..? पिछले दस

सालों से मैं यही सुनता आया हूं। तुमने बचपन से लेकर आज तक उसकी हर गलत हरक़त पर पर्दा डाला हैं शान्ति। तुम्हारे लाड़ और अंधे प्यार का ही नतीजा है कि आज रवि इस कदर हैवान बन गया है। चलो मान लो, मैं और तुम तो उसकी ये हरकतें झेल भी लें क्योंकि वो हमारी जनि औलाद है। लेकीन इस मासूम, बिन मां बाप  की बच्ची का क्या कसूर? ये रवि की प्रतारणा क्यों झेले ? सिर्फ़ इस लिए कि ये उसकी ब्याहता है? मैं तो पहले भी रवि की शादी के पक्ष में नहीं था। पर तुम्हारी, “रवि की शादी कर देते है। ज़िम्मेदारी आएगी तो अपने आप सुधर जाएगा।”, जैसी बिना सिर पैर की दलील के आगे मैं  न जाने कैसे झुक गया?

अंजली के लिए मुझे बेहद दुख होता है शान्ति। हमारी वजह से इस बिन मां बाप की बच्ची की ज़िंदगी नर्क बन गई है। तीन महीने हुए दोनो की शादी हुए और देखो रवि ने इसकी क्या गति कर दी है!

अंजलि भी हमारी बेटी  ही है। हमारे इलावा इसका कोई नहीं। इसकी सुरक्षा भी हमारा दायित्व है ।  मैं जा रहा हूं पुलिस के पास, रवि की  रिपोर्ट लिखाने।”

दिवाकर जी दृढ़ता के साथ बोले।

” नहीं मैं आपको कहीं नहीं जानें दूंगी। मैं अपने बेटे को जेल जाते हुए नहीं देख सकती।”

ये कहते हुए शान्ति जी ने दिवाकर जी का हाथ,कस कर पकड़ लिया।

“मैंने आज तक तुम्हारी हर बात मानी है शान्ति ,आज तुम मुझे मत रोको। एक मां का फर्ज होता है अपनी औलाद को सही राह दिखाना ना कि उसकी हर गलती पर पर्दा डालना। याद रखो माता ही अपने बच्चों की पहली गुरु होती है, उसकी गलतियों को सुधार कर उसे सही राह दिखाना ही मां का फ़र्ज़ है। अगर आज भी रवि की हरकत पर तुमने पर्दा डाला तो ये मातृत्व का अपमान होगा शान्ति।”

” मातृत्व का अपमान ”  ये शब्द सुनते ही शान्ति जी की पकड़ दिवाकर जी के हाथ पर, ढीली पड़ गई और दिवाकर जी के पैर तेज़ी से पुलिस स्टेशन की ओर बढ़ गए।

स्वरचित:

ऋचा उनियाल बोंठीयाल

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