अपमान को भूलना आसान नही होता –  संगीता अग्रवाल : Moral stories in hindi

” सपना अब तो तेरे मजे है सास ससुर से अलग हो गई पीछा छूटा अब तो ससुराल की बंदिशों से !” सपना से मिलने आई उसकी बड़ी बहन काजल बोली।

” नही दीदी ऐसा नही है वहाँ सब थे तो समय का पता नही चलता था यहां समय काटना भारी हो जाता है !” सपना बोली।

” अरे तो अब अपने शौक पूरे कर किट्टी ज्वाइन कर जो चीज तू संयुक्त परिवार मे नही कर पा रही थी सब कर , वैसे भी वहाँ तेरी कद्र किसने की देखा है मैने कैसे परिवार की बड़ी बहु होने के कारण तुझ पर सारी जिम्मेदारियां थी और जरा सी गलती होने पर कैसे सुनाया जाता था तुझे !” काजल बोली।

” दीदी छोड़ो ना वो सब अब जहाँ चार बर्तन होते है वो बज ही जाते है और बड़ी बहु होने के नाते जिम्मेदारियाँ तो आती ही है हिस्से ! ” सपना बोली।

” कितनी भोली है तू। माना परिवार मे चार बर्तन खड़कते है पर  ये क्या बात हुई सारे चमचे मिलकर पतीले को चोट पहुँचाते रहो !” काजल गुस्से मे बोली।

” दीदी छोड़ो ना सबका अपना स्वभाव।  फिर मेरे पति तो मेरे साथ थे ना अब जब् देवरानी के आने बाद उन्होंने मेरे साथ पक्षपात होते देखा तो खुद ही अलग रहने का फैसला कर लिया और घर वालों ने भी चुप्पी लगा ली क्योकि शायद उन्हे भी कही ना कही लगा वो गलत है !” सपना बोली।

” तू महान है जो सब भूल अभी भी ससुराल वालों की तरफ है खैर मैं चलती हूँ बच्चे स्कूल से आते होंगे !” काजल उठते हुए बोली और दोनो बहने गले लग गई।



ये है दो बहने काजल और सपना । काजल जहाँ पति के साथ अलग रहती है वही सपना का विवाह संयुक्त परिवार मे हुआ और जैसा कि ज्यादातर परिवारों मे होता है सपना के ऊपर परिवार की सारी जिम्मेदारी थी और जरा ऊंच नीच होने पर वहाँ उसे सुनाया भी खूब जाता सुनाया क्या जाता एक किस्म से अपमान ही किया जाता पर संस्कारों मे पली सपना चूँ नही करती थी।

उसका पति सब देखता समझता वो अकेले मे सपना के दिल पर लगे जख्मो को सहलाता भी पर बड़ा बेटा होने के कारण अपने परिवार वालों को कुछ ना कहता । अभी छह महीने पहले उसके देवर कि शादी हुई और जब देवरानी के सामने भी सपना का अपमान होने लगा तब उसके पति तरुण ने अलग रहने का फैसला किया जिससे उसकी पत्नी का और अपमान ना हो। और वो पत्नी बच्चों सहित अपने घर से थोड़ी दूर किराये के घर मे आ गया।

कुछ दिन बाद …

” अरे सपना कहाँ हो आजकल फोन ही नही करती ना आती हो !” काजल ने सपना को फोन किया।

” वो दीदी दरअसल मेरी सास को लकवा मार गया तो मैं उनके साथ हूँ आपको तो पता है मेरी देवरानी को आठवा महीना लग रहा ऐसे मे मांजी की देखभाल को कोई तो चाहिए !” सपना बोली।

” पागल हो तुम जिन लोगों ने तुम्हारा इतना अपमान किया उन्ही की सेवा करने पहुँच गई …जब उस वक़्त देवरानी को सिर पर चढ़ाया था अब भी उसी से करवाते सेवा !” काजल गुस्से मे बोली ।

” दीदी इस वक़्त मेरा फर्ज यही था देवरानी अगर कर सकती तो शायद कर भी देती पर इस हालत मे वो कैसे करेगी सब बस यही सोच मैं यहाँ आई हूँ रही अपमान की बात वो उनके संस्कार थे रही मेरी सेवा करने की बात वो मेरे संस्कार है । फिर इंसानियत का भी यही तकाजा है कि देवरानी की हालत को देखते हुए मांजी की देखभाल मैं करुँ !” सपना बोली।

” तेरा दिमाग़ खराब हो गया है जो ऐसी बाते कर रही है इतने अपमान बाद भी सब उनके बुलाने पर उस घर मे चली गई ।” काजल गुस्से मे बोली।



“दीदी प्लीज बात को समझो अगर अपने उसी अपमान के चलते मैं इन लोगों को इनके हाल पर छोड़ दूँ तो क्या फर्क है इनमे और मुझमे इसलिए मैने अपने अपमान को ताक पर रख यहाँ खुद से आने का फैसला किया है इन्होने नही बुलाया मुझे और जैसे ही मांजी ठीक होती है मैं वापिस अपने घर आ जाउंगी पर अभी मैं इन लोगों को ऐसे नही छोड़ सकती !” ये बोल सपना ने फोन काट दिया।

इधर सपना के सास ससुर जब सपना की निस्वार्थ सेवा देख रहे तो उन्हे अपने किये पर पछतावा हो रहा था क्योकि आज के जमाने मे सब कर देते है लोग पर किसी की निस्वार्थ सेवा बहुत मुश्किल से करते है वो जो अपने  अपमान को भूल। धीरे धीरे सपना की सास ठीक हो रही थी इधर उसकी देवरानी ने तय समय पर एक बेटी को जन्म् दिया ।

” मांजी अब आपकी तबियत ठीक है छोटी की बेटी भी डेढ़ महीने की हो गई अब मुझे अपने घर चलना चाहिए !” कुछ दिनों बाद सपना सास से बोली।

” ये भी तो तुम्हारा घर है बहु मानते है हमसे गलती हुई तुम्हारी निस्वार्थ सेवा से हमें आत्मगलानि हो रही है हो सके तो हमें माफ़ कर दो और वापिस अपने घर आ जाओ !” सास सपना का हाथ पकड़ बोली।

” मांजी आपकी सेवा मेरा फर्ज था और आइंदा भी मैं उससे पीछे नही रहूंगी पर माफ़ कीजियेगा मैं इस घर मे नही रह सकती अब हां आती जाती रहूंगी पर मुझे यहाँ हमेशा को रहने को मत बोलियेगा !”  ये बोल सपना अपना सामान और बच्चों को ले वापस आपने घर आ गई।

आज सपना ने अपनी निस्वार्थ सेवा से ससुराल वालों का हृदय परिवर्तित कर दिया था पर उस घर मे ना रूककर अपने आत्मसम्मान की भी रक्षा की थी क्योकि अपमान को भूलना आसान नही होता।

दोस्तों हो सकता है आप मेरी कहानी से इत्तेफाक ना रखे पर मेरी सोच यही है सपना ने सब किया बिल्कुल ठीक किया अपमान को भूल सेवा करने का फैसला भी और अपमान को याद रख उस घर को छोड़ने का फैसला भी ।

आपकी दोस्त 

संगीता अग्रवाल 

V M

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