मेरी ममता बिकाऊ नहीं है  – गीता वाधवानी : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : आज सविता  अपने पति विनोद   को छोड़कर अलग एक छोटे से किराए के घर में रहने आ गई थी। उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसे जीवन में कभी विनोद   से अलग भी रहना पड़ सकता है। ‌

  उस छोटे से कमरे की सफाई करके, अपनी बेटी मानसी के साथ दही चावल खाए और वही फर्श पर दोनों मां बेटी लेट गई। लेटते ही सविता  को सात साल पीछे की यादों ने आ घेरा।

     सात साल पहले हंसता खेलता परिवार था सविता  का। सास ससुर, सविता  और विनोद  , उनकी दो वर्ष की बेटी मानसी।

     एक दिन सास ससुर मंदिर से वापस घर लौट रहे थे कि अचानक उनके ऑटो का एक्सीडेंट ट्रक के साथ टक्कर में हो गया। ऑटो पलट गया और ससुर जी की वहीं पर तत्काल मृत्यु हो गई। सविता  की सास को बहुत गहरी चोटें आई और उनकी रीढ़ की हड्डी भी क्षतिग्रस्त हो गई।

      उनके इलाज में सविता  ने कोई कसर नहीं छोड़ी। खर्चा बहुत हो रहा था। फिर कुछ दिनों बाद विनोद   का भी एक्सीडेंट हो गया। उसके दाएं हाथ और दाएं पैर में प्लास्टर चढ़ाया गया। ऐसा लग रहा था मानो बुरे दिनों की शुरुआत हो गई हो। विनोद   भी बिस्तर पर आ गया था वैसे तो वह टैक्सी चलाता था पर अब घर खर्च और अस्पताल का खर्च कैसे निकलता? सविता  बहुत परेशान थी। अस्पताल के चक्कर काटते काटते उसकी एक महिला डॉक्टर से जान पहचान हो गई थी। एक बार बातों बातों में, सविता  ने आर्थिक परेशानी वाली बात उन्हें बता दी। उस महिला डॉक्टर ने सविता  को अपनी जान पहचान वाले एक डॉक्टर के पास भेजा और कहा कि वह अवश्य ही तुम्हारी मदद करेगी।

   उस दूसरी डॉक्टर ने सविता  को एक दंपत्ति से मिलवाया और कहा -“इन्हें संतान की आवश्यकता है और वह संतान तुम पैदा करके दे सकती हो। इसके बदले में वह तुम्हें रकम भी देंगे, क्या तुम यह काम करना चाहोगी?”

    डॉक्टर-“सविता  तुम यह समझ लो कि तुम अपनी कोख किराए पर दे रही हो, वैसे इसे सरोगेसी कहते हैं। एक एग्रीमेंट बनाया जाएगा और तुम बच्चे के जन्म लेने के बाद, बच्चा इन्हें सौंप दोगी। तुम चाहो तो इस बारे में सोच सकती हो।”



    सविता  ने सोचा मैं तो 12वीं पास हूं मुझे कौन नौकरी देगा। इन पैसों से सासू मां का इलाज भी अच्छी तरह हो जाएगा। सविता  ने डॉक्टर से कहा-“मैं आपको सोच कर बताती हूं।”

     सविता  ने घर आकर कपड़े को पूरी बात बताई। विनोद   ने पहले थोड़ी ना नुकुर की, बाद में मान गया।

     उस दंपति ने सविता  से कहा-“हम पूरे दस महीने तक तुम्हारे खाने पीने का सब इंतजाम कर देंगे और जब तुम हमें बच्चा सौंप दोगी तब हम तुम्हें अच्छी रकम देंगे।”

   सविता  ने एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर कर दिए और उसके कुछ टैस्ट किए गए। अब सविता  3 महीने की गर्भवती थी। अचानक उसकी सास की तबीयत बहुत ज्यादा खराब हो गई और वह गुजर गई। धीरे-धीरे समय बिता गया।

  अब विनोद   भी पूरी तरह ठीक हो चुका था लेकिन इस दौरान वह बहुत आलसी हो गया था। अब वह पूरे सप्ताह में केवल एक या दो दिन टैक्सी चलाने जाता था।

    नौ महीने बाद सविता  ने गोल मटोल प्यारी सी बच्ची को जन्म दिया और उन दंपत्ति को सौंप दिया। उन्होंने सविता  को एक बड़ी रकम दी।

      अच्छी खासी रकम देखकर विनोद   के दिमाग में पैसों का खेल चल रहा था। वह थोड़े समय बाद सविता  से फिर से सरोगेसी के लिए कहने लगा।

    सविता  ने कहा-“अब इसकी क्या जरूरत है? तुम टैक्सी चलाकर जो कमाओगे उसमें हमारा गुजारा हो जाएगा और अब तो जो कर्ज लिया था वह भी उतर चुका है।”

   विनोद  -“मैं कौन सा अपने लिए कह रहा हूं। चार पैसे हाथ में होंगे तो हमारी मानसी बिटिया के काम आएंगे, इस बार मान जाओ, दोबारा नहीं कहूंगा। इस बार यह लोग उससे भी बड़ी रकम देने को तैयार है। यह वाले दंपत्ति बहुत अमीर है।”



    विनोद   मन ही मन सोच रहा था कि मैं टैक्सी चलाकर तो 1 साल में भी इतने रुपए नहीं कमा पाऊंगा।

सविता  मान गई। अब विनोद   हर साल सविता  से यही काम करवाने लगा। जिन लोगों को संतान की आस होती थी उनका वह पूरा फायदा उठाने की कोशिश करता था।

 

   सविता  4 बच्चे पैदा कर चुकी थी। उसके शरीर में अब जान नहीं थी। अब डॉक्टर ने भी उसे यही परामर्श दिया कि “तुम अपने शरीर की देखभाल करो। अपने पति के कहने पर मत चलो। अगर तुम्हें कुछ हो गया तो तुम्हारी बच्ची को कौन देखेगा?” 

  अबकी बार उसने विनोद   को साफ मना कर दिया। उसने विनोद   से कहा-“तुमने तो लोगों की मजबूरी का फायदा उठाकर इसे व्यापार ही बना दिया, मुझे तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी। मुझे पता नहीं था कि तुम इतने लालची हो जाओगे।”

  ‌‌ विनोद   ने इस बात पर सविता  को बहुत मारा और उसे अपने घर से निकल जाने को कहा।

    स्वाभिमानी सविता , अपनी बेटी मानसी को साथ लेकर घर से निकल पड़ी। वह फर्श पर लेटे-लेटे सोच रही थी कि अब मैं मानसी को कैसे पालूंगी, कैसे घर चलाऊंगी?”

अभी उसे याद आया कि उसने सबसे पहले जिस दंपत्ति को संतान दी थी, वे लोग बहुत ही भले थे। उन्होंने सविता  को एक कार्ड दिया था और कहा था कि *इस पर हमारा पता लिखा है यदि भविष्य में कभी भी तुम्हें कोई जरूरत पड़े तो निसंकोच हमारे पास आ जाना।”

     यह बात याद आते ही सविता  उठ कर खड़ी हो गई और अपने कपड़ों का बैग खोलकर उसमें से पर्स निकाला। पैसों के साथ कार्ड वहीं पर पड़ा था। अब सविता  की चिंता कुछ कम हो गई और वह अपनी बेटी मानसी के साथ लिपट कर सो गई।

मौलिक काल्पनिक

गीता वाधवानी दिल्ली

 

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