इंसाफ – पुष्पा ठाकुर : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : सुबह के करीब पांच बज रहे थे,हल्का उजाला धरती को नींद की चादर से बाहर खींचने लगा था ।कोई था जिसे आज पूरी रात इस पल की प्रतीक्षा थी।

  ‘दीनू …. पानी पिला दे बेटा…’

  अत्यंत ही कंपती हुई एक बूढ़ी हो चुकी आवाज रातभर पानी के लिए पुकारती रही थी ।कंठ इतना सूख चुका था कि आंखों के आंसू पीकर किसी तरह ये आखिरी आवाज दी हो उस वृद्धा ने .

  सारी रात वो प्यास से तड़पती रही थी,बेटे बहू आज सिरहाने पानी रखना ही भूल गए थे शायद उनकी भी नींद गहरी लग गई थी आज ,तभी तो इतनी आवाजें भी उन तक न पहुंच पाईं थीं।

  वृद्ध मां पूरी तरह बेजान देह का बोझ इस उम्र में ढो रही थी।न उठ ही पाती थी और न ही खुद कुछ कर पाती थी।ईश्वर ने औलाद तो पांच और छः दी पर सभी लड़कियां होती और एक एक कर नदी में बहा दी जातीं …

  पुत्र मोह और संसार के भय ने उसकी देह से जनी सारी बेटियों का जीवन, दिन उगने से पहले ही अस्त कर दिया था।

  आज मृत्यु शैय्या सी चुभती उस खाट में पड़ी पड़ी वो अपनी जवानी के दिन याद करती , कितनी हट्टी कट्टी और फुर्तीली हुआ करती थी वो …

  सारा गांव उसकी खूबसूरती की तारीफें करता,पति कमाता और सब थमा देता …एक बेटा दिया भगवान ने,नाम रखा … दिनेश ,अब कोई कमी नहीं रही थी। सारी जिंदगी सुख से काटी और बुढ़ापा आने से पहले बहू आ गई।

  लगातार तीन बेटियां कोख में ही मार चुकी थी बहू ,तब जाकर कहीं एक बेटा हुआ था ,बस उसी से लाड़ लगाए रहती ,सारा दिन उसकी फ़िक्र में वो भी पचास की होने आई थी ,अब उससे इस उम्र में सास की सेवा न होती ।दीनू अकेला ही अपने साथ अपनी मां को संभालता।

    दीनू…. पानी दे दे बेटा…

अचानक किवाड़ खुलने की आवाज सुनाई पड़ी । वृद्धा की रात भर से अटकी सांसें जैसे चलने लगीं।बेटा दीनू आज जाग गया था …

‘पूरी नींद हराम कर रखी है तूने,काहे रात भर चिल्ला रही थी, जिंदगी ख़त्म हो गई पर तेरे नखरे नहीं …सुबह के करीब पांच बज रहे थे,हल्का उजाला धरती को नींद की चादर से बाहर खींचने लगा था ।कोई था जिसे आज पूरी रात इस पल की प्रतीक्षा थी।

  ‘दीनू …. पानी पिला दे बेटा…’

  अत्यंत ही कंपती हुई एक बूढ़ी हो चुकी आवाज रातभर पानी के लिए पुकारती रही थी ।कंठ इतना सूख चुका था कि आंखों के आंसू पीकर किसी तरह ये आखिरी आवाज दी हो उस वृद्धा ने .

  सारी रात वो प्यास से तड़पती रही थी,बेटे बहू आज सिरहाने पानी रखना ही भूल गए थे शायद उनकी भी नींद गहरी लग गई थी आज ,तभी तो इतनी आवाजें भी उन तक न पहुंच पाईं थीं।

  वृद्ध मां पूरी तरह बेजान देह का बोझ इस उम्र में ढो रही थी।न उठ ही पाती थी और न ही खुद कुछ कर पाती थी।ईश्वर ने औलाद तो पांच और छः दी पर सभी लड़कियां होती और एक एक कर नदी में बहा दी जातीं …

  पुत्र मोह और संसार के भय ने उसकी देह से जनी सारी बेटियों का जीवन, दिन उगने से पहले ही अस्त कर दिया था।

  आज मृत्यु शैय्या सी चुभती उस खाट में पड़ी पड़ी वो अपनी जवानी के दिन याद करती , कितनी हट्टी कट्टी और फुर्तीली हुआ करती थी वो …

  सारा गांव उसकी खूबसूरती की तारीफें करता,पति कमाता और सब थमा देता …एक बेटा दिया भगवान ने,नाम रखा … दिनेश ,अब कोई कमी नहीं रही थी। सारी जिंदगी सुख से काटी और बुढ़ापा आने से पहले बहू आ गई।

  लगातार तीन बेटियां कोख में ही मार चुकी थी बहू ,तब जाकर कहीं एक बेटा हुआ था ,बस उसी से लाड़ लगाए रहती ,सारा दिन उसकी फ़िक्र में वो भी पचास की होने आई थी ,अब उससे इस उम्र में सास की सेवा न होती ।दीनू अकेला ही अपने साथ अपनी मां को संभालता।

    दीनू…. पानी दे दे बेटा…

अचानक किवाड़ खुलने की आवाज सुनाई पड़ी । वृद्धा की रात भर से अटकी सांसें जैसे चलने लगीं।बेटा दीनू आज जाग गया था …

‘पूरी नींद हराम कर रखी है तूने,काहे रात भर चिल्ला रही थी, जिंदगी ख़त्म हो गई पर तेरे नखरे नहीं …

चल आज तुझे पानी पिलाऊं, बहुत प्यास लगी है न माताराम ….चल ….’

बड़बड़ करता हुआ, मां को गोद में उठाए घर से निकला, अपनी आटो में लिटाया और चल पड़ा मां को पानी पिलाने।

वृद्धा की अथक देह में प्यास की तड़प इतनी थी कि वो बस बेहोशी की निद्रा में जाने को थी।

अचानक एक बड़ी सी नदी के पास दीनू ने आटो रोक दी।दूर तक सन्नाटा था।

अलसाई भोर में सिवाय पक्षियों के उस वृद्धा को देखने सुनने वाला कोई न था।

दीनू ने मां को गोद में उठाया और बढ़ चला,नदी के घाट की ओर… ‘मां,प्यासी है न तू…अब पी ले पानी …’

कहते हुए उसने वृद्ध मां को नदी के गहरे पानी में फेंक दिया।

कुछ देर लहरों ने बहुत शोर मचाया पर कोई सुनने वाला न था।

उसकी छटपटाहट के वो क्षण चीख चीख कर कह रहे थे,

स्वर्ग और नर्क ….सब यहीं है …. यहीं है…..

अपने कर्मों का हिसाब हमें ही करना है,कोई नहीं आएगा, हिसाब किताब करने ….

इंसाफ ….करने…

     एक सत्य घटना पर आधारित मेरी ये रचना उन सभी माताओं को समर्पित,जो अपनी आंखों के सामने अपनी ही कोख में बेटियों को जन्म से पहले ही या दुनिया में आते ही तिल तिल कर मरने के लिए तड़पता छोड़ देती हैं।

पुष्पा ठाकुर

छिंदवाड़ा

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