ससुराल के चार दिन ( भाग -3)- माता प्रसाद दुबे : hindi Stories

hindi Stories : “ऐसा कुछ नहीं होगा मम्मी!वह बहुत अच्छी है,वह कभी भी अपने बेटे से दूर मुझे गांव में रहने के लिए नहीं कहेंगी,वह बहुत ही समझदार है” उर्वशी कौशल्या देवी की बातों को अनसुना करते हुए बोली। “और मैं बेवकूफ हूं,जो तू एक बार मिलने से ही अपनी सास के गुण गा रही है, मैं तेरी मां हूं, तेरे सुख दुख की मुझसे ज्यादा किसे चिंता होगी ” कौशल्या देवी झुंझलाते हुए बोली। “तुम परेशान मत हो मम्मी! आखिर मैं तुम्हारी ही बेटी हूं, मैं सब कुछ मैनेज कर लूंगी, और मैं हमेशा यही लखनऊ में तुम्हारे करीब ही रहूंगी ” उर्वशी कौशल्या देवी से लिपटकर चहकते हुए बोली।

“ठीक है बेटी! तुम अपने पापा से कुछ मत कहना वह तो जब से रवि के गांव जाकर आए बस उन्हीं की तारीफ का लट्टू नचा रहे है ” कौशल्या देवी मुंह सिकोड़ते हुए बोली।”ठीक है मम्मी! तुम अपनी बेटी पर विश्वास रक्खो और निश्चिंत हो जाओ ” कहते हुए उर्वशी कमरे से बाहर निकल गई।

एक महीने बाद रवि और उर्वशी की शादी धूमधाम से हो गई। उर्वशी लखनऊ में अपने मायके से विदा होकर रवि के गांव वाले घर पर पहुंच चुकी थी। शांति देवी के घर पर गांव की सैकड़ों महिलाएं एकत्रित होकर उर्वशी के स्वागत की तैयारी कर रही थी।पूरे घर में खुशियां छलक रही थी, उर्वशी के ग्रह प्रवेश की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई।

गांव की महिलाएं उर्वशी को देखकर प्रफुल्लित हो रही थी। सभी लोग उसकी एक झलक पाने के लिए बेचैन लग रहें थे,सभी रीतियों का पालन करते हुए नाच गाकर खुशियां मनाकर धूमधाम से उर्वशी का नये घर में स्वागत हुआ, गांव की बुजुर्ग महिलाएं उर्वशी के हाथ में कुछ न कुछ रखकर उसे दुलारते हुए अखंड सौभाग्यवती रहने का आशीर्वाद देकर दुलार रही थी।

उर्वशी के लिए यह सब एक सपने जैसा था,उन बुजुर्ग महिलाओं का स्नेह देखकर उसने भी सभी माताओं का चरण स्पर्श करके उनका आशीर्वाद लिया सभी महिलाओं के चेहरे खुशियों से परिपूर्ण लग रहें थे। उर्वशी शांति देवी की ही नहीं पूरे गांव की बहू बन गई थी। बुजुर्ग महिलाओं के बाद पायल और उसकी सहेलियों ने अपनी उर्वशी भाभी को घेर लिया सभी उससे बात करती हंसती और उर्वशी को भी हंसने के लिए बाध्य कर रही थी।

उर्वशी को यकीन ही नहीं हो रहा था कि इस तरह गांव में उसे आदर सम्मान और सत्कार मिलेगा,शहर में वह अनगिनत शादियों में शामिल हुई थीं मगर जो दृश्य उसके सामने था,वह उसने पहले कभी नहीं देखा था। सभी लोग उर्वशी को अपनी पलकों पर बैठा लेना चाहते थे। राजेश को उर्वशी के पास आता देखकर पायल उसे रोकते हुए बोली। “राजेश भैया!भाभी से मिलने का समय अभी हम लोगों का हैं” राजेश पायल की बात सुनकर रूक गया।

“पायल हमारी भाभी से मिलने के लिए मुझे कोई नहीं रोक सकता,बड़ी भाभी मेरी मां के जैसी उससे मिलने से भला मुझे कौन रोक सकता है” राजेश उर्वशी के चरणों को स्पर्श करते हुए बोला। “हमेशा खुश रहो भैया ” उर्वशी राजेश को आशीर्वाद देते हुए बोली। चंद घंटों में ही उर्वशी के ह्रदय में परिवर्तन साफ नजर आ रहा था।

“भाभी! रवि भैया के अन्य छोटे भाई और मेरे मित्र भी आपका आशीर्वाद लेना चाहते है” राजेश उर्वशी से आज्ञा मांगता हुआ बोला। उर्वशी ने हामी भरते हुए सिर हिला दिया, राजेश के सभी मित्र बारी-बारी से उर्वशी के चरण छूकर अपना परिचय देने लगे। उर्वशी मन ही मन आनंदित हो रही थी,वह कभी सोच भी नहीं सकती थी कि ससुराल में कदम रखते ही उसे इस तरह लोगों का प्यार सम्मान प्राप्त होगा,वह अपने को बहुत ही खुशनसीब महसूस कर रही थी।

“चलों अच्छा अब तुम सब लोग मेरी बहूरिया को छोड़ो उसे आराम करने दो बहुत दूर से सफर करके आई है,या तुम लोग उसे परेशान करते रहोगे” शांति देवी सभी लोगों को निर्देश देते हुए बोली। जिसकी कोई भी अनसुनी नहीं कर सकता था,पायल उर्वशी को अपने साथ लेकर कमरे के अंदर चली गई।

दो दिन बीत चुके थे, रवि को पूछने वाला कोई नहीं था,सभी लोग उर्वशी का ही गुणगान करने में व्यस्त थे,पायल अपनी सहेलियों के साथ उर्वशी को लेकर बाग खेत की सैर कराने निकल पड़ी, उन्हें जो भी मिलता वह उर्वशी को दुलारते हुए निहारता जैसे कि गांव में उर्वशी के रूप में कोई अप्सरा उतर आई हो, शांति देवी,पायल,राजेश,सभी उर्वशी को अपनी पलकों पर बैठाकर रखने का भरसक प्रयास कर रहे थे। उर्वशी उन सभी का प्रेम देखकर अभिभूत थी। उसे खुद पर यकीन ही नही हो रहा था, जैसे कि वह भीड़ भाड़ से निकलकर सपनों की दुनिया में आ चुकी थी। जहां उसे सिर्फ प्रेम आदर सम्मान ही मिल रहा था।

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ससुराल के चार दिन ( भाग -2)

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माता प्रसाद दुबे

मौलिक स्वरचित अप्रकाशित कहानी लखनऊ

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