ससुराल के चार दिन ( भाग -1)- माता प्रसाद दुबे : hindi Stories

hindi Stories : रवि की रेलवे में नौकरी लगने के बाद वह लखनऊ शहर में रेलवे कालोनी में अकेले ही रहता था, कुछ दिन तक उसके पास उसकी मां शांति देवी,बहन पायल,व भाई राजेश,बारी-बारी से उसके पास आकर रहते थे,और वापस गांव अपने घर चले जाते थे, रवि का मन भी गांव में ही रमा रहता था,वह महीने में दो तीन दिन अपने गांव में अपने परिवार के साथ ही बिताता था।

रवि के पिता रेलवे कर्मचारी थे,उनकी असमय मृत्यु हो जाने के कारण रवि को उनकी जगह रेलवे में नौकरी प्राप्त हुई थी,रवि उच्च शिक्षा प्राप्त कर चुका था,वह एक सम्मानित पद पर कार्यरत था।

लखनऊ में रवि की मुलाकात उसकी कालोनी से कुछ दूर पर रहने वाली उर्वशी से हुई, धीरे-धीरे उन दोनों की नजदीकियां बढ़ने लगी और वे एक दूसरे से प्रेम करने लगे। उर्वशी शहर में पली बढ़ी थी,उसका रहन-सहन जिन्दगी जीने का अंदाज आम लड़कियों से अलग था। जबकि रवि गांव की धरती खेत खलिहान खुली हवा में रहना पसंद करता था, कुछ चीजों में उन दोनों के विचार मेल नहीं खाते थे, फिर भी वे एक दूसरे को प्रेम करते थे, और शादी करना चाहते थे।

शाम के सात बज रहे थे,उर्वशी रेस्टोरेंट की सीट पर बैठी रवि के आने का इंतजार कर रही थी। कुछ ही देर बाद रवि वहा पहुंच चुका था,वह कुछ चिन्तित नजर आ रहा था। “क्या हुआ रवि कुछ परेशान लग रहें हों, क्या बात है?”उर्वशी रवि की ओर देखकर मुस्कुराती हुई बोली। “कोई बात नहीं है उर्वशी!आज अम्मा! आई हुई है,मुझे जल्दी घर पहुंचना है” रवि उर्वशी को समझाते हुए बोला।

“अच्छा तो मम्मी जी आई है,यह तो बहुत अच्छी बात है, मुझे कब मिलवाएंगे मम्मी जी से?” उर्वशी प्रश्न उठाते हुए रवि से बोली। “कल ही मिलवा देता हूं, मैंने अम्मा को तुम्हारे बारे में बताया था,वैसे भी मैं अपनी अम्मा से कोई बात नहीं छुपा सकता हूं ” रवि उर्वशी की ओर देखते हुए बोला। “तुम अपनी मम्मी को अम्मा क्यूं कहते हो?” उर्वशी हैरान होते हुए बोली।

“मैं क्या घर में मेरे भाई बहन सभी उन्हें अम्मा ही कहते हैं बचपन से अब तक और हमेशा अम्मा ही कहेंगे, मुझे अम्मा मां ही कहना अच्छा लगता है,मम्मी नहीं” रवि उर्वशी को समझाते हुए बोला। “ठीक है तुम कुछ भी कहो,मैं तो उन्हें मम्मी ही कहूंगी” उर्वशी मुंह सिकोड़ते हुए बोली। “ठीक है तुम्हारी मर्जी तुम अम्मा कहों या मम्मी दोनों मां है” रवि मुस्कुराते हुए बोला। दोनों एक दूसरे की आंखों में झांकते हुए मुस्कुराने लगे।

शाम हो चुकी थी,रविवार का दिन था शान्ति देवी बेसब्री से रवि के आने का इंतजार कर रही थी। रवि उर्वशी को साथ लेकर रेलवे कालोनी स्थित अपने घर पर पहुंच चुका था। “अम्मा!यह उर्वशी है” रवि शांति देवी के चरण स्पर्श करते हुए और उर्वशी को उनके चरण स्पर्श करने का इशारा करते हुए बोला। शांति देवी रवि और उर्वशी को आषीश देते हुए उन दोनों की जोड़ी देखकर काफी प्रशन्न नजर आ रही थी।

” आ मेरे पास बैठ बेटी! शांति देवी उर्वशी को दुलारते हुए बोली। उर्वशी चुपचाप उनके पास बैठ गई, शांति देवी ने उर्वशी से कुछ भी नहीं पूछा वह तो अपनी होने वाली सुंदर बहू को देखकर खुशी से फूली नहीं समा रही थी। काफी देर तक वह उर्वशी साथ बात करती रही मगर उसने उर्वशी से उसके घर के बारे या कोई अन्य बात उर्वशी से नहीं पूछी क्योंकि उसे रवि ने सब कुछ पहले ही बता दिया था। उर्वशी भी कुछ ही देर में शांति देवी के स्नेह को देखकर उनसे घुल मिल गई थी।

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ससुराल के चार दिन ( भाग -2)

ससुराल के चार दिन ( भाग -2)- माता प्रसाद दुबे : hindi Stories

#ससुराल

माता प्रसाद दुबे

मौलिक स्वरचित अप्रकाशित कहानी लखनऊ

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