संचिता रोरोकर बेहाल हुई जा रही है। सचिन को तो जैसे काटो तो खून नही। समझ नही आया कि कौन सा निर्णय गलत था?? पीछे मुड़कर देखते, सोचते विचरते तो लगता सब करने के पीछे नीयत तो गलत नही थी फिर गड़बड़ी कहाँ हुई??
बैंगलोर में दोनों नौकरी कर रहे थे। जब संचिता गर्भवती हुई तो सासू माँ और मम्मी ने आकर आखिरी महीनों व साँची के जन्म के बाद भी उनकी पूरी देखरेख की।
कुछ समय बाद ही जब लॉकडाउन की घोषणा के साथ वर्क फ्रॉम होम की सुविधा मिली तो संचिता ने सोचा की घर चलते हैं। नौकरी करते हुए, कुछ दिन ससुराल और मायके रहने का अवसर फिर जाने कब मिले। सो परिवार सहित वे पटना आ गए। समय पंख लगा कर उड़ने लगा।
वर्क फ्रॉम होम में घर के सभी कामों की जिम्मेदारी बढ़ती ही गई। जिसके चलते नौकरी के बीच घर परिवार सँभालते, जो नही होना चाहिए वही हुआ। जिस तरह की देखरेख बच्ची को मिलनी चाहिए, नही मिली। सभी परिवार जन, जब अपने अपने काम से फुर्सत पाते तो ही साँची को देख पाते।
पतिपत्नी संचिता और सचिन, नौ बजते ही लैपटॉप पर बैठ जाते और साँची के हाथ में या तो फोन थमा दिया जाता या फिर टीवी लगा दी जाती।
उसके साथ ना कोई खेलता, बुलाता बात करता, ना कहीं घूमना आना जाना होता। समय समय पर बस एक बड़ा सा छेद बना बोतल मुँह से लगा दिया जाता। जिसमें पतला सा (सेरलेक) बना बनाया बाजार का छोटे बच्चों का खाद्य पदार्थ होता।
साँची का पालनपोषण उसके नानानानी, दादादादी की देखरेख में हो जाएगा और एक अच्छा समय भी उनके साथ बीत जायेगा। ऐसा सोचकर जो निर्णय संचिता और सचिन ने लिया उसका हश्र विपरीत हुआ। ऐसा फल भुगतना पड़ा कि जिसका कोई हल भी नही।
साँची या तो एकतरफ देखती या फिर जड़वत हो प्रक्रिया ही नही देती। ढाई साल की गुड़िया जैसी सुंदर, हृष्टपुष्ट बच्ची केवल शून्य में तकती। ना कुछ सुनती, ना समझती, ना ही कोई जवाब देती।
शुरू में तो लोकल डॉक्टर भी नही समझ पाए कि माज़रा क्या है?? क्योंकि उसकी रिपोर्ट्स में कोई खराबी नही थी। बस यही कहते कुछ दिन में सब ठीक हो जाएगा। दोनों की चिंता तब बढ़ती गई जब वे वापस पूना आ गए और साँची का वही हाल रहा। बुलाने पर वो ना बोलती, ना जवाब देती।
एक दोस्त का सगा भाई NIMHANS, बंगलोर में डॉक्टर था। उसने ही मिलने की राय दी। प्राइमरी रिपोर्ट में ही पता चल गया कि साँची के साथ ज़रूरी समय पर पालनपोषण और बोलचाल देखरेख की कमी के हुई और इसके असर से उसकी ब्रेन सेल्स अब ठीक से रिस्पांड नही करतीं। वह ऑटिस्टिक हो गई है।
मौलिक और स्वरचित
कंचन शुक्ला- अहमदाबाद
अत्यंत गंभीर समस्या
हमे सचेत रहना चाहिए