समर्पण – पुष्पा पाण्डेय  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi: जिन्दगी कब कैसा रंग दिखायेगी, कोई कह नहीं सकता है। बेटी की शादी और भागमभाग में सीढ़ियों से ऐसी गिरी सुशीला कि सदा के लिए ह्विलचेयर की मोहताज हो गयी।

सुशीला अस्पताल में ही रही और बेटी ससुराल  बिदा हो गयी। कुल्हे का ऑपरेशन हुआ,लेकिन अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो सकी। बेटे- बहू भी कुछ दिन बाद अपनी कर्मभूमि दोहा चले गये। अब छोटी बेटी नंदिनी और पति जनार्दन जी के हाथों में सुशीला जी के साथ घर की बागडोर भी आ गयी। माँ की देख-भाल के साथ नन्दनी अपनी काॅलेज की पढ़ाई पूरी करने में लग गयी। अंतिम वर्ष था। जनार्दन जी नौकरी से निवृत हो चुके थे। अतः पिता का भरपूर सहयोग पाकर नन्दिनी परीक्षा में सफल रही। नन्दिनी घर से ही कई तरह के प्रशिक्षण ली, लेकिन अब माँ को छोड़कर बाहर जा नहीं सकती थी। माँ की लाचारी और पिता की बढ़ती उम्र अब धीरे-धीरे

लाचार कर रही थी। इधर नन्दिनी की शादी की चिन्ता भी पिता को सता रही थी। 

         एक माता- पिता का सबसे बड़ा सपना अपने बच्चों की शादी कर उसका घर बसा देने का होता है। जनार्दन जी बेटा और एक बेटी की शादी तो कर चुके थे अब नन्दिनी की शादी कर जिम्मेवारियों से मुक्त होना चाहते थे। उसके बाद ही बेटे- बहू के साथ रहने जायेंगे। यदि बेटा  भारत नहीं आता है तो इन्हें दोहा  जाना पड़ेगा। अपाहिज पत्नी के साथ वृद्धावस्था में अकेले कैसे रह सकते थे?

       नन्दिनी के लिए एक रिश्ता जँचा था, लेकिन युवा नजर से भी परखना चाहते थे।अतः बेटे बहू को बुला लिए थे।

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अभी हप्ता भर पहले आए थे। एक दिन नन्दिनी शाम की चाय लेकर उनके कमरे में ही देने गयी।आज नन्दिनी को अपने मन की बात भी भाई- भाभी को बतानी थी। दरवाजे पर वृद्धाश्रम का नाम सुन ठिठक गयी।

भाभी की आवाज आ रही थी-

” मैंने हरिद्वार में एक ऐसे आश्रम का पता किया है जहाँ वी.आई.पी. व्यवस्था है।  लगभग दो कमरे का फ्लैट है। हर जरूरतमंद के लिए एक- एक नर्स की व्यवस्था है। खाना- पीना, मेडिकल साफ- सफाई सबकी व्यवस्था है। थोड़ा महंगा है, लेकिन पापा के पेंशन में सब निपट जायेगा। पाँच लाख कौशल मनी के तौर पर जमा करना होगा और महीने का पचास हजार है। तुम कहो तो बात करूँ।”

” लेकिन लोग क्या कहेंगे?।”

“लोगों का क्या है? देखने तो आयेंगे नहीं?”

 “ठीक है।”

इतना सुनते ही नन्दिनी के पाँव काँपने लगे और वह वापस लौट गयी। चाय रसोई घर में रखने के बाद अपने कमरे में जाकर रोने लगी। वह जान चुकी थी कि उसकी शादी के बाद माँ- पापा को वृद्धाश्रम में रहना पड़ेगा। भले ही वह वी.आई.पी.हो। 

नन्दिनी को उम्मीद थी कि दीदी कुछ रास्ता निकाल सकती है । अतः उसने दीदी को फोन किया और सारी बातों से अवगत करायी। दीदी का जवाब सुनकर वह दंग रह गयी।

” देख छोटी, अब भैया को जो करना है वो करने दो। हमलोग तो अपना घर छोड़कर नहीं आ सकते न?”

अब सिर्फ अकेले नन्दिनी को सोचना था। रात भर उसे नींद नहीं आई। वह सोचती रही, सोचती रही फिर चिड़ियों की चहचहाहट के साथ एक निर्णय ले भोर में ही दरवाजा खोल लाॅन में टहलने लगी।

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नाश्ते के टेबुल पर सभी को नाश्ता देने के बाद अपने पापा को अपना निर्णय सुना दिया।

“पापा, मैं शादी नहीं करूँगी और ये मेरा आखिरी फैसला है।”

माँ-पापा के तो होश ही उड़ गये।

“ये क्या कह रही हो? आखिर क्यों?

मुझे मम्मी- पापा के साथ ही रहना है। “

 भाभी तो खामोश ही रही, लेकिन भाई ने कहा-

“ये कोई बात हुई? शादी के बाद भी तो मिल सकती हो।”

“मिलने में और साथ रहने में बहुत फर्क है भैया।”

वातावरण बोझिल हो गया। अपने तर्क से सबको खामोश करती रही और अपना निर्णय सुनाकर कमरे में चली गयी। माँ दुखी थी। आँखों से आँसू बह निकले। पिता चिन्तित हो चिन्तन करने लगे। पता नहीं भाई-भाभी की क्या सोच थी?

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शेखर को मेसेज किया-

शेखर मुझे माफ करना। मेरा रूप बदल चुका। मैं किसी अन्य उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपने को समर्पित कर चुकी हूँ। मेरा यह समर्पण का संकल्प तुम्हारे सहयोग के बिना पूर्ण नहीं हो सकता है। यदि तुम मुझे प्यार करते हो तो सदा के लिए मेरी जिन्दगी से दूर चले जाओ। तुझे मेरी कसम,  कभी मुझसे सम्पर्क करने की कोशिश मत करना।”

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शेखर अनुनय करता रहा, हर निर्णय में उसके साथ रहने का वादा करता रहा, लेकिन नन्दिनी अपने निर्णय पर अटल रही। माँ रोती रही, पिता समझाते रहे, लेकिन नन्दिनी का संकल्प अटल था। भाई-भाभी के बीच हुई बात की भनक दीदी के सिवा किसी और को नहीं हुई। दीदी को भी इसे राज रखने की हिदायत दी चुकी थी। भाई निश्चिंत हो अपने कर्म पथ पर निकल गया। बहन पति और बच्चों के साथ कनाडा में रह रही थी।

अब नन्दिनी अपनी तपस्या में लीन हो गयी। माँ को नन्दिनी का निर्णय अन्दर तक कचोटता रहा। अपनी लाचारी को कोसती रही और परतंत्र जिन्दगी से तंग हो चुकी थी। पाँच साल बाद ही उसकी जीवन यात्रा समाप्त हो गयी। पिता के अकेलापन की एकलौती साधन थी। पिता के कहने पर एक स्कूल में अध्यापिका का पद सम्भाल लिया। जिन्दगी अपनी रफ्तार से चल रही थी। एक दिन काल चक्र पिता को भी अपने साथ ले गया। ———-

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” मौसी, मुझे भारत देखना है। मम्मी तो हमेशा टाल देती है। मैं अपने दोस्त के साथ आ रही हूँ। आप के ही पास रहूँगी।”

रिया का मेसेज पढ़कर बहुत खुश हुई नन्दिनी।

रिया आई और पन्द्रह दिन कैसे निकल गये पता ही नहीं चला।

भारत की यादें लेकर रिया कनाडा लौट गयी। मौसी के साथ खींची तस्वीरें सोसल मिडिया पर छा गयी। नन्दिनी के मना करने पर भी वह हँस कर टालती रही और भारत की यादों को ताजा करती रही।———–

कुछ दिनों बाद एक पार्सल आया। नन्दिनी ने उसे खोला और देखकर आँखें नम हो गयी।

हरी चूड़ियों के साथ एक चिट्ठी भी थी।

     

नन्दिनी,

 आज सोशल मीडिया पर तुम्हारी तस्वीर तुम्हारी भांजी के साथ देखकर पता चला कि तुम्हारा यज्ञ सम्पन्न हो गया। वहाँ सम्पर्क करने पर तुम्हारी दीदी से बात हुई और सबकुछ…..

ये हरी चूड़ियाँ तुम्हारी अमानत है। जब तुमने काँलेज के सलाने समारोह में एक लोक गीत ” हौले से पकड़ो कलाई, चूड़ी टूट न जाए…” पर नृत्य किया था तभी एक तमन्ना ने जन्म लिया था कि हरी चूड़ियाँ मैं तुम्हें सगाई में पहनाऊँगा। अब निर्णय तुम्हारे हाथ में है।

               तुम्हारे इंतजार में…..

          शेखर।

नन्दिनी हिफाजत से रखी गई उन चूड़ियों को छाती से लगा लिया। 

मन-ही-मन बुदबुदायी-तो क्या इतनों सालों तक शेखर मेरा इंतजार करता रहा।

पुष्पा पाण्डेय 

राँची,झारखंड।

#समर्पण

 

 

 

 

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