धर्मपाल और अनीश्वर एक ही मोहल्ले में रहते थे। दोनों पड़ोसी थे। दोनों के मकान पास पास ही थे। दोनों दो विभाग में सर्विस करते थे। अंतर सिर्फ इतना था कि अनीश्वर अपने दफ्तर का बॉस था, जबकि धर्मपाल अपने ऑफिस का बड़ा बाबू था। कभी- कभार किसी फंक्शन या पर्व त्यौहार के मौकों पर उनके परिवारों का एक दूसरे के यहां आना जाना होता था।
अनीश्वर का पुत्र एमबीबीएस कर रहा था और उसकी पुत्री स्नातक करने के बाद बी. एड. कर रही थी। धर्मपाल का पुत्र इंजीनियरिंग कर रहा था। उसको दो पुत्री थी। बड़ी कॉलेज के फाइनल ईयर में पढ़ रही थी और छोटी बेटी इंटर में पढ़ रही थी।
अनीश्वर सादा जीवन और उच्च विचार का अनुपालन करता था जबकि धर्मपाल और उसके परिवार के सदस्यों का विचार उसके विचार से थोड़ा हटकर था। ये लोग खाओ-पीओ-मौज करो की विचारधारा के पक्षधर थे।
अनीश्वर की पत्नी शगुन धर्मपाल के परिवार के हाई लेवल के जीवन स्तर को देखकर अपने पति के सामने अपनी भड़ास यदा-कदा निकालती रहती थी कि उसके उच्च पदस्थ होते हुए भी वह वैसी सुख- सुविधाओं का उपभोग नहीं करती है जबकि धर्मपाल के बड़ा बाबू होते हुए भी उसके परिवार का रहन-सहन हम लोगों से बेहतर है।
उसकी पत्नी, पुत्र और पुत्री के लिबास काफी महंगे और आधुनिक होते हैं कि उसके परिवार के प्रत्येक सदस्यों के पास फाइव-जी मोबाइल होता है, जो हर वक्त उनके कानों के पास चिपके रहते हैं जबकि उसके परिवार में मात्र साहब के पास मोबाइल है और एक मोबाइल घर में है जिसको आवश्यकता अनुसार लोग इस्तेमाल करते हैं ।
शगुन जब-जब धर्मपाल के परिवार से अपने परिवार की तुलना करती इस बाबत तो वह दुख के सागर में डूब जाती। उसके ठाठ-बाट व सुख-सुविधाओं के संसाधनों के आगे वह कहीं नहीं ठहरती थी। वह अपने मन में ही बुदबुदाती कि उसका पति बड़े पद पर है ही तो किस काम का, इस मामले में तो धर्मपाल ही अधिक चालाक और चुस्त है।
उसका परिवार कितना साधन संपन्न और खुशहाल है। किसी चीज की कमी नहीं है। उसके परिवार में किसी वस्तु की जरूरत होती है तो उसके लिए कोई समस्या खड़ी नहीं होती है। मुंह खोलने भर की देर है। कुछ घंटों के अंदर ही वह प्राप्त हो जाता है ।यहां तो आवश्यक चीजों के लिए भी गिड़गिड़ाना पड़ता है तब साहब उपलब्ध करवाते हैं।
यह कैसी विडंबना है जबकि बड़े बाबू का वेतन उसके वेतन से काफी कम है लेकिन जब इस युग में कोई सत्य हरिश्चन्द्र का नाती बनेगा तो उसके परिवार को तो दुर्दिन देखना ही पड़ेगा।
कैसे धर्मपाल की पत्नी कनिका गरूर में मुंह ऐंठते हुए बोलती है, लगता है कि उसका मुंह नोच लें ।घमंड में चूर होकर आसमान को हाथ पर उठाने लगती है, लेकिन उसे पता नहीं है कि उस आसमान से बिजली भी गिरती है, वज्राघात भी होता है, जिसकी भयंकर मारक क्षमता मनुष्य को विनाश के कगार पर पहुंचा देता है या परलोक की यात्रा करने के लिए भी विवश कर देता है।
उस दिन जब दोपहर को अनीश्वर खाना खाने के लिए दफ्तर से घर पहुंचा तो उसकी क्षुब्ध पत्नी बेरुखी से इस बाबत बात करने लगी तब अनीश्वर ने विनम्रता से कहा, ” जिस कारनामों को धर्मपाल अंजाम देता है वैसा निम्न स्तरीय कार्य वह कभी नहीं कर सकता है। सरकार के पास जो फंड है वह गरीब, फटेहाल और जरूरतमंद लोगों के उत्थान और देश के विकास के लिए है।…
झूठ व गलत बिल बनाकर कोई सबमिट करेगा तो लोभ-लालच में आकर मैं किसी भी कीमत पर उसे पास नहीं कर सकता हूं… बेबस और लाचार के हक पर मैं डाका नहीं डाल सकता हूं। मेरा जमीर ऐसा करने की इजाजत नहीं देगा, मुझे भले ही सूखी रोटी पर अपना जीवन यापन करना पड़े, मैं जिऊंगा तो ईमानदारी से ही… यही मेरे जीवन की शक्ति है…
और यह समझ लो शगुन की जो गलत करता है उसको एक न एक दिन उसका फल भुगतना ही पड़ता है।… मुझे उसके बारे में कोई बात नहीं सुननी है। मुझे जो सैलरी मिलती है उसमें मैं संतुष्ट हूं… ईश्वर मेरे बाल- बच्चों को भी ऐसा ही संस्कार दे कि वे भी कभी अपनी जिंदगी में कोई गलत रास्ता अख्तियार नहीं करें।”
वातावरण में सन्नाटा पसर गया था। शगुन भी मौन हो गई थी पल भर बाद ही उसने पुनः कहा,” नाजायज खर्च की कोई सीमा नहीं होती है। कभी-कभी लाखों रुपए भी उसके लिए कम पड़ जाते हैं, जबकि जीवन जीने के लिए जरूरी और वास्तविक खर्च सरकार द्वारा दिए जाते हैं वेतन के रूप में, जिससे आसानी से खर्च पूरा हो जाता है। सरकार मुझे भी इतनी सैलरी देती है, जिससे बिना हाथ गंदा किए हुए पवित्रता के साथ मैं अपने और अपने बाल बच्चों की परवरिश कर सकता हूं।”
” यह सब कहने की बातें हैं… नाजायज कमाई के रुपयों के भी बाजार में उतने ही मूल्य है जितने ईमानदारी से प्राप्त रुपयों के।उनमें कोई अंतर नहीं होता है।”
” देखो मेरा दिमाग मत खराब करो… तुमको समझाना अपने ही सिर पर हथौड़ा मारने जैसा है।… बोलो क्या चाहिए तुम्हें!… कपड़े, जेवर, रुपये या और कुछ… मैं अपने विभाग से कर्ज लेकर जल्द से जल्द तुम्हारी जरूरत को पूरा कर दूंगा।”
” यही अंतर है साहब!… किसी को घरेलू वस्तुओं की खरीद के लिए कर्ज लेने की नौबत आ जाती है, किंतु धर्मपाल एक झटके से अपने पॉकेट से नोटों की गड्डियां निकाल कर पटक देता है अपने परिवार के सामने ऐसे मौकों पर ।”
” समझ गया।… तुम उससे मेरी तुलना कर रही हो… एक दफ्तर के बड़े बाबू से, जो मेरे सामने चैंबर में बिना परमिशन के जिसको चेयर पर बैठने की हिम्मत नहीं है… “
” आपके सामने चैंबर में बैठने की भले ही हिम्मत नहीं है किंतु जैसी सुख सुविधाओं को वह अपने परिवार के लिए मुहैय्या करता है, वह क्षमता आप में भी नहीं है ।”
” बकवास मत करो!… चुप रहो! ” गुस्से से अनीश्वर ने कहा और तेज गति से दफ्तर के लिए घर से बाहर निकल गया।
अनीश्वर वास्तव में एक ईमानदार अफसर था। उसके पिताजी एक शिक्षक थे। उसने बचपन में ही उसकी सोच और चरित्र को ऐसा गढ़ा था कि उसने ईमान को अपना सर्वस्व मान लिया था। उसके पिताजी ने उसको ऐसे संस्कार दिए थे की ईमानदारी उसके रोम रोम में व्याप्त था। उसने बहुत संघर्ष किया था इस मुकाम को हासिल करने के लिए। वह बिना लोभ-लालच के फाइलों व संचिकाओं की जांच- पड़ताल अच्छी तरह से करने के बाद ही कार्य का निष्पादन करता था। इसलिए ठेकेदार और उस विभाग से कार्य करवाने वाले लोग भी उससे प्रायः नाराज ही रहते थे। इसका खामियाजा उसे बार-बार ट्रांसफर के रूप में भुगतना पड़ता था। भले ही स्थानांतरण के कारण कई तरह के तरदुद झेलना पड़ता था पर कभी उसने इससे राहत पाने की मंशा से किसी तरह का समझौता नहीं किया।
जबकि धर्मपाल ऐसे मसलों को नाजायज रास्ते अपनाकर चुटकी में हल कर लेने की क्षमता रखता था।उसकी नजर में तो वेतन का कोई महत्व ही नहीं था। रिश्वत के पैसों से खरीदी गई मिठाइयों में उसको जो मिठास मिलती थी वह वेतन के रूपों से संभव नहीं थी। ऊपरी आय से खरीदे गए आधुनिक लिबास, सौंदर्य प्रसाधन से उसके और उसके परिवार के सदस्यों के व्यक्तित्व में जो निखार आ जाता था, वह मासिक सैलरी के पैसे से संभव नहीं था।
रिश्वत की कमाई पर धर्मपाल और उसका परिवार ऐश-मौज कर रहे थे, गुलछर्रे उड़ा रहे थे। उनके रहन-सहन का स्तर भी काफी ऊंचा हो गया था।
उसकी सतरंगी गतिविधियों को देखकर शगुन हमेशा हैरान और परेशान रहती थी उसके दिमाग की कमजोरी थी कि अनीश्वर के लाख समझाने के बाद भी उसको स्वयं से उसकी तुलना करने की आदत समाप्त नहीं हुई थी।
धर्मपाल और उसकी पत्नी भगवान से यही प्रार्थना हमेशा करते रहते थे कि कभी भी बदली होकर उनका बाॅस ड्राई ऑनेस्ट नहीं आवे ।
लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था।
एक दिन एंटी करप्शन डिपार्टमेंट के पदाधिकारियों के द्वारा धर्मपाल घूस लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया उस वक्त उसके ऑफिस के बॉस ने भी उसका साथ नहीं दिया। उसका सिर शर्म से नीचे सरेआम झुक गया उसका दमकता चेहरा निस्तेज हो गया।
देखते देखते यह खबर फोटो सहित सोशल मीडिया और टीवी के माध्यम से जंगल की आग की तरह चतुर्दिक फैल गई ।
धर्मपाल ने लाख अनुनय-विनय किया, गिड़गिड़ाया, अपनी पत्नी और बाल बच्चों के भरण पोषण का वास्ता दिया किंतु उस विभाग के पदाधिकारियों पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। उन्होंने उसे गिरफ्तार कर लिया आवश्यक कानूनी कार्रवाई के निमित।
इस खबर के प्रसारित होने पर अनीश्वर ने अपनी पत्नी से कहा, ” अपनी ड्यूटी करने के एवज में सम्मान से सूखी रोटी भी नसीब हो जाए तो संतोष पूर्वक इस पर जीवन गुजर-बसर करना चाहिए।
संतोष और संयम जीवन के संबल होते हैं
स्वरचित, मौलिक और अप्रकाशित
मुकुन्द लाल
हजारीबाग(झारखंड)
17- 05-2025
बेटियाँ कहानी प्रतियोगिता
विषय :- # सम्मान की सूखी रोटी