दिल का कारीगर – संजय मृदुल

एक देश के एक छोटे से शहर में एक दिल का कारीगर रहता था। बड़ा नाम था उसका। देश दुनिया के लोग आते उसके पास अपना टूटा, फूटा दिल मरम्मत कराने के लिये। वो हर प्रकार की मरम्मत में माहिर था। उसका बनाया हुआ दिल लगता ही नहीं था कि कभी टूटा होगा। उसके हाथों में ऐसा हुनर था कि दिल में की हुई तुरपाई भी नजर नहीं आती थी।

दूर-दूर से लोग आते उसके पास। कई दिन के इंतज़ार के बाद उससे मिल पाते। वो दिल साज इतना सज्जन और नेक बंदा था कि आने वालों को रहने के लिए अपना घर में जगह देता, खाने की व्यवस्था भी मुफ़्त में करता। उसके चेहरे पर हमेशा मुस्कान खिली होती। हर टूटे दिल वाले को जी भर के तसल्ली देता, उसके दिल की मरम्मत करता और बदले में जो मिल जाये उसी से खुश हो लेता।

दूर शहरों से लोग यात्रा कर उसके पास आते। कोई माँ बाप होते जिनके बच्चों ने बुढ़ापे में उनका तिरस्कार कर दिल दुखाया होता, तो कोई पति अपनी पत्नी के व्यवहार से टूटा हुआ आता। कोई औरत अपने पति के स्वभाव से या रंगरेलियों से परेशान टूटा हुआ दिल लेकर आती तो कोई बच्चा अपने पालकों के सपने पूरे न कर पाने के दर्द को दिल में छुपाए आता।

वो कारीगर हर सम्भव सबका इलाज करता। कुछ के दिल बातों के मरहम से ठीक हो जाते। किसी का दिल खोलकर मरम्मत करने की जरूरत पड़ती। तो किसी का दिल बदलना भी पड़ता।




उसके बनाये हुए दिल में कोई नुक्स न निकलता। जाने किन चीजों को मिलाकर बनाता वो ऐसे दिल जो बरसों बरस असली की तरह काम करते। उसकी बातें इतनी दिलकश और जादू वाली होती कि सुनने वाले का दर्द छू मंतर हो जाता।

उसके इलाज वाले कमरे में बने आले में किस्म किस्म के दिल रखे हुए होते। कोई सुर्ख लाल रंग का, कोई काला तो कोई बिना रँग का। मर्तबान में रखे दिलों की धड़कन दूर से दिखाई देती।

किसी का दिल इश्क़ में टूटा हो, या किसी का दिल घरवालों के व्यवहार से बिखरा हो, किसी का जीवन की नाकामी से चूर चूर हुआ हो या फिर किसी का सेहत की वजह से कमजोर हो गया हो। हर तरह के दिल के मरम्मत में माहिर था वो।

समय के साथ वो कारीगर बूढ़ा होता गया। उसके आगे पीछे कोई न था जो उसके हुनर को सीख पाता, न कोई परिवार था उसका न कोई दोस्त न ही कोई शिष्य। उसका हुनर उसके साथ ही चले जाने वाला था।

एक सुबह जब उसके कमरे में कोई हलचल न हुई। उसका दरवाजा न खुला तो लोगों में खुसफुसाहट फैली। किसी तरह दरवाजा खोला गया तो भीतर बिस्तर पर कारीगर का शरीर निश्चल पड़ा था।

राजा तक खबर पहुंची। राजा ने कहा जिसने जीवन भर सब की सेवा की, सबके दिलों की मरम्मत की, कितने ही लोगों को जीवन दिया उसका दिल निकाल कर रखा जाए और कारीगर की याद में एक भव्य स्मारक बनाया जाये जहां उसके दिल को एक खूबसूरत शीशे के बने मर्तबान में रखा जाये जिसे सब देखें और उससे सीख लें।

राज्य के हकीमों ने ऐतिहात से उसका सीना खोला। उन सबके चेहरे हैरत में पड़ गए।

कारीगर के सीने में दिल ही नहीं था।

©संजय मृदुल

साथिया

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