प्रेतात्मा का प्रतिशोध  (भाग-4) – गणेश पुरोहित 

राम प्रकाश देर तक कागजों में और लेपटॉप से कम्पनी के संबंध में कई तरह की जानकारियां ढूंढता रहा। अलसुबह सोया और दोपहर बाद उठा। कमरे से बाहर देखा तो उसे पूरे घर में अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ दिखाई दिया। शायद घर के सारे नौकर डर के मारे भाग गये थे। मालकिन भी धर से लापता थी। उसने रसोई में आ कर स्वयं चाय बना कर पी और  फिर पूरे घर का मुआयना करने लगा। अचानक उसकी नज़र आज के अखबार पर पड़ी। कौने में छपे अक्षरों पर निगाहे पड़ते ही वह मुस्करा दिया। समाचार था- उद्योगपति मल्होत्रा,  लापता नहीं, उनका मर्डर हुआ है, हत्यारे उनके अपने ही। पुलिस ने भारी भरकम रिश्वत ले कर मामले को दबा दिया।

     बंगले के गेट पर पत्रकार केमरो के साथ आ जुटे हुऐ थे और वे सिक्युरिटी गार्ड़ से सवालों की बौछार कर रहे थे। गार्ड़ उन्हें बता रहा था, ‘ ‘मालकिन घर में नहीं है। जब वह आये तब उनसे सवाल पूछना। ……मुझे कुछ नहीं मालूम । ‘

     एक पत्रकार कह रहा था, ‘ पुलिस थाने से जिस आदमी ने एक अखबार के दफ्तर को सूचना दी, वह इसी घर में रह रहा है। हम उससे मिलना चाहते हैं। ‘   इस पर गार्ड़ ने अनभिज्ञता जाहिर की और बोला, ‘ मैं इस बारें में कुछ नहीं जानता- सिर्फ इतना जानता हूं कि मालकिन घर में नहीं है। “

    तभी पत्रकारों को मिसेज मल्होत्रा की कार दिखाई दी। कार रुकने के पहले ही वे कार के नज़दीक पहुंच गये। कार का फाटक खोल कर जैसे ही वे बाहर आई, यकायक कई तरह के प्रश्न दागे जाने लगे। वह थकी थकी सी उदास लग रही थी। सिर झुकाये अंदर जाते हुए बोली, ‘ देखों, मेरे खिलाप न्यायालय में कोई  केस एंट्री होता है, तो मेरा वकील इस संबंध में जवाब देगा। फिलहाल ऐसा कोई कैस एंट्री नहीं हुआ है और कोई व्यक्ति यदि बकवास करता है, उसे प्रेस सच मान रही है, तो आप जो चाहे कयास लगा सकते हैं। बाल की खाल निकाल कर इस प्रकरण में जो मर्जी आये ढूंढे , मैं आपको नहीं रोकूंगी। आपके सभी सवालों का मेरा यही जवाब है। ” कह कर वह बंगले के भीतर चली गई। उसके उदास और मायूस चेहरे को कई कैमरों ने कैद कर लिया। 




     पत्रकारों के जाने के थोड़ी ही देर बाद पुलिस की गाड़ी बंगले में दाखिल हुई। पुलिसकर्मी वे नहीं थे, जो एक दिन पहले आये थे, परन्तु वे डरे  और सहमे हुए थे। बंगले की मालकिन भीतर नहीं गई और पुलिस के आने तक बाहर बरामदे में ही बैठी रही। पुलिसकर्मियों के साथ वह भी सहमी हुई अंदर दाखिल हुई। रामप्रकाश को सारा माजरा समझ में आ गया। वह स्वयं ही ड्राइंग रुम में आ कर सोफे पर बैठ गया।

    पुलिस इंस्पेक्टर रामप्रकाश की ओर मुखातिब हो कर बोला, ‘ तुम्हारे खिलाप एफआईआर दर्ज हुई है। तुम एक घर में जबरन घुस कर रह रहे हो। घर वालों के साथ तुम ने मारपीट की है और घर के सामान की चोरी कर रहे हो। ” इंस्पेक्टर के मुंह से निकली आवाज में न तो कडकपन था और न ही रौब। वह बहुत धीमी मरियल सी आवाज में बोल रहा था। स्पष्ट है वह अपनी ड्यूटी बजा रहा था, किन्तु अन्दर ही अन्दर बहुत डरा हुआ था।

    ‘ रामप्रकाश मुस्कराता हुआ उठा ओर अपने दोनो हाथ इंस्पेक्टर की ओर कर बोला, ‘ सचमुच आरोप बहुत संगीन है। मुझे अरेस्ट कर थाने ले जाईये, मैं तैयार हूं। ” जब किसी पुलिसकर्मी ने आगे बढ़ कर उसका हाथ नहीं पकड़ा तो वह स्वयं ही बाहर निकल गया। पुलिसकर्मी उसके पीछे-पीछे बाहर आ गये। घर की मालकिन ने ललाट पर उभर आई पसीने की बूंदों को पौंछा और नि:श्वास लेते हुए सोफे पर पसर गई।

     पुलिस जीप में रामप्रकाश को पीछे बिठाया गया। कोई भी उसके पास बैठने के लिए तैयार नहीं था। अचरज की बात यह थी कि कोई  उसके चेहरे की ओर देखने की भी हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। पुलिसकर्मियों को इस बात पर संतोष था कि वह बिना कुछ हरकत किये उनके साथ चलने को तैयार हो गया था। जीप थोड़ी ही चली थी कि अचानक हादसा हो गया। जीप एक डिवाइडर से टकराई। ड्राइवर संतुलन खो बैठा और जीप पलट गई। घायल पुलिसकर्मी दर्द से छटपटा रहे थे, पर रामप्रकाश को कहीं खरोंच तक नहीं आई। वह इत्मीनान से घायलों के  बीच में से से उठा। उसके चेहरे पर न भय था, न घबराहट। शांत चेहरे पर हल्की सी मुस्कराहट बिखरी हुई थी। घायलों की सहायता करने के लिए उमड़ी भीड़  उसे
से देख  रही थी। वह धीमे कदमों से सड़क के एक ओर चलने लगा।

     पैदल चलता हुआ रामप्रकाश फिर उसी बंगले के सामने खड़ा था।  गार्ड उसे रोकने का साहस नहीं कर पाया। दरवाजा खुला था। वह स्त्री अब भी सोफे पर बैठी थी। जब उसने रामप्रकाश को इतनी जल्दी कमरे में प्रवेश करते देखा, तो भयभीत हो गई । वह उठी और दूसरे कमरे में जाने के लिए भागने लगी। रामप्रकाश ने आगे बढ़ कर उसे उठा लिया और दरवाजे के बाहर फैंकता हुआ बोला, ‘ कुतिया ! अब कभी इस घर  में घुसी तो नौंच दूंगा। “- कहते हुए उसने दरवाजा जोर से बंद कर दिया।

      वह दर्द से छटपटा उठी। रोते हुए बरामदे में पड़ी रही। उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें ? देर तक वह बरामदे में पड़ी-पड़ी कराहती रही, पर कोई उसकी पीड़ा जानने और उसके आंसू पौंछने नहीं आया। जब मनुष्य के दिन फिर जाते हैं, तब सब कुछ उलटा ही उलटा होता है। उसने स्वपन में भी ऐसा नहीं सोचा था कि जिस घर की वह मालकिन है, उसी घर से कोई अनजान शख्स उसे उठा कर बाहर पटक देगा। जब कि उसकी हैसियत बहुत तगड़ी थी। उसके एक इशारे पर कई लोग दौड़े आते थे, पर आज वह एक घायल पक्षी की तरह पड़ी -पड़ी तड़फ रही है, पर उसकी ओर देखने वाला भी कोई नहीं है। 

    बंगले में वकील साहब के प्रवेश करते ही उसे थोड़ी राहत महसूस हुई, किन्तु वह अपने भीतर उमड़ रहे ज्वार को रोक नहीं पाई और उन्हें देखते ही फफक कर रो पड़ी। वह बहुत कुछ कहना चाहती थी, किन्तु उसकी आवाज भर्रा गई। रुंघे गले से वह सिर्फ इतना ही कह पाई, ‘ मुझे बचा लीजिये, वकील साहब……..मैं ऐसे नहीं जी सकती…. मेरे पास हारकर आत्महत्या करने के अलावा कोईचारा नहीं रहेगा। “

    अपने ही घर में धनी महिला की ऐसी दयनीय हालत देख कर वकील साहब को आश्चर्य हुआ। वे उनके पास आये और समझाते हुए बोले, ‘  आप थोड़ी हिम्मत रखिये, इस तरह नर्वस हो जायेगी, तो वह व्यक्ति और अधिक हावी हो जायेगा। …… आप भीतर चलिये, इस तरह यहां बैठा रहना ठीक नहीं। “

    ‘ कैसे भीतर जाऊं ? -उस लफंगे ने मुझे उठा कर बाहर पटक दिया और दरवाजा बंद कर अंदर घुसा बैठा है। “

     ‘ क्या पुलिस नहीं आई.थी ? “

  ‘ आयी थी। इसे ले कर गई.और यह आधे घंटे में फिर आ गया।…….मुझे तो इस आदमी की पहेली समझ नहीं आ रही है। यह भी समझ में नहीं आता कि आखिर यह चाहता क्या है ? …..यदि इसे पैसा एंठना है, तो मैं जितना चाहे उतना पैसा देने को तैयार हूं। इस कम्बख्त के हाथों में ताकत भी इतनी है कि जिसे चाहे उसे उठा कर फेक देता है। …मुझे अभी-अभी उसने उठा कर बाहर फेका हैं…..मेरे हाथ पेर दर्द कर रहे हैं, इसीलिए…………..’




     एसपी की गाड़ी बंगले के फाटक के पास रुकी, दोनो सहम गये और उनके ऊपर आने का इंतजार करने लगे। जैसे ही वे उनके सामने आये वकील साहब बोले, ‘ सर यह क्या माजरा है। पुलिस इस आदमी को ले भी गईर्और यह वापिस कैसे आ गया ? “

 ‘ पुलिस की जीप पलट गई …. सारे पुलिसकर्मी जख्मी हो कर अस्पताल पड़े हैं और यह महाशय उठ कर पुन: यहां चले आये।…..मैं उसी पहेली को सुलझाने आया हूं। …..वह हैं, कहां ? “

 ‘ घर की मालकिन को बाहर पटक, वह अंदर घुसा बैठा है।  “

    तभी रामप्रकाश दरवाजा खोल बाहर आ गया और वकील साहब की ओर मुखातिब हो कर बोला, ‘ मैं बाहर आ गया हूं।- बोलिये अब कहां चलना है ? “

     एसपी ने उसकी ओर कड़ी नज़रों से देखा, फिर अंदर जाते हुए बोला, ‘ अंदर आओ, पहले बैठ कर बात करते हैं । “

    तीनो भीतर आ गये। -’ तुम्हें धर की मालकिन को बाहर निकालने का क्या अधिकार है ? ‘ यह वकील का प्रश्न था, जो उन्होंने सोफे पर बैठते हुए पूछा।

 ‘ क्योंकि यह इस घर की मालकिन नहीं है। इसने घर पर जबरन कब्जा कर रखा है। ‘

 ‘  क्या मतलब है तुम्हारा ? – यह मिसेज मल्होत्रा है, स्वर्गीय मदन मल्होत्रा साहब की धर्मपत्नी । “

 ‘ श्रीमान, जो पत्नी अपने पति का मर्डर करवा देती है, वह धर्म पत्नी कैसे हुई ? ” कुछ देर वह चुप रहा, फिर धीरे से बोला, ‘वकील साहब, जो मुजरिम पूरी योजना से किसी व्यक्ति की हत्या करने का षड़यंत्र रचता है और उसमें सफल रहता है, उसकी जगह जेल होती है, घर नहीं। और उस पति का तो कतई नहीं, जिसे उसने अपने पतिव्रता धर्म का उल्लघंन कर हत्या करवाई हो। “

   तीनो उसका उत्तर सुन कर आवाक रह गये। थोड़ी चुप्पी के बाद एसपी बोले, ‘ तुम कैसे कहते हो, इन्होंने अपने पति का खून करवाया है ? “

  ‘ इसका जवाब तो यही कुलटा देगी। ”  कहते हुए वह फुर्ती से उठा और उसे दोनो बाजुओं से ऊपर उठाता हुआ कड़क और रोबदार आवाज़ में बोला, ‘ बता, मेरी बात में सच्चाई है या नहीं ? ” कहते हुए उसे झकझोरा और सोफे पर पटक दिया। वह दहाड़ मार कर रोने लगी। रोते रोते ही बोली, ‘ मैं सच कह रही हूं, मैंने जांच रुकवाने के लिए पुलिस को रिश्वत दी थी, पर मैंने अपने पति का खून नहीं करवाया ……’ उसकी आवाज रुंधा गयी और यकायक बैसुध हो गई।

    घटनाक्रम इतनी तेजी से घटा कि वकील और एसपी न कुछ कर पाये और न ही कुछ समझ पाये। राम प्रकाश एसपी के सामने आया और आंखों में आंखें डालता हुआ बोला, ‘ अब बाजी आपके हाथ में हैं, केस की निष्पक्ष जांच करवाईये, आपको मेरी बात का जवाब मिल जायेगा।…… फिर वकील की ओर मुखातिब हो कर बोला, ‘ आप इसे बचाने के लिए पूरी तैयारी कीजिये। पैसा इस औरत के पास बहुत है। पैसे के बल पर इसने अपना अपराध छुपा लिया है, पर अब यह उजागर होगा।  ….. हां, आप अपनी कोशिश जारी रखिये। मोटी मुर्गी है-मालामाल कर देगी।’  रामप्रकाश की बातें सुन कर दोनो सन्न रह गये। वह उन दोनों को विचारमग्न छोड़ बाहर आ गया।

    लम्बी पुलिस सेवाओं में एसपी साहब ने कई अपराधियों को पकड़ा हैं और उनके द्वारा किये गये अपराध का गहन अध्ययन, विश्लेषण कर रखा  हैं, किन्तु उन्हें अब तक कोई ऐसा अपराध का. नहीं मिला, जो उनकी नाक के नीचे अपराध कर रहा है और वे लाचार खड़े खड़े देखते रह गये और कुछ नहीं कर पाये।  इस व्यक्ति को पकड़ने के लिए थाने के सभी पुलिसकर्मी आनाकानी कर रहे थे और वे भयभीत दिखाई दे रहे थे। जबकि वह एक दुबला पतला शख्स है और उसके पास कोई घातक हथियार नहीं है। उन्होंने अपने मस्तिष्क पर जोर दे कर इस घटना को समझने की कोशिश की, किन्तु उन्हें कुछ भी समझ नहीं आ रहा है।  यह बात भी गले नहीं उतरती कि कैसे सपाट सड़क पर पुलिस जीप अचानक पलट गई ? सभी पुलिसकर्मियों को चोट लगी थी, पर इस व्यक्ति के खरोंच तक क्यों नहीं आई ? कैसे उस व्यक्ति ने उनके सामने ही उस महिला से अपना अपराध कबूल करवा दिया ? जबकि  वह महिला एसपी और अपने वकील के साथ खड़ी थी और उसे अपना अपराध स्वीकार करने की कोई आवश्यकता नहीं थी।




     वकील साहब ने भी अदालतों में कई केस लड़े, लम्बी-लम्बी जिरह की और उन अपराधियों को सजा होने से बचा लिया, जो वास्तव में अपराधी थे। पर इस केस में उन्हें कुछ भी समझ नहीं आ रहा है। एक फटिचर व्यक्ति एक धनी और प्रतिष्ठित परिवार के धर में घुस जाता है। मालिक के साथ मार पीट करता है। पुलिस लाचार हो कर देखती रह जाती है और उसके खिलाप  कार्यवाही नहीं कर पाती। यह कैसे सम्भव है कि एसपी और वकील की मौजूदगी में वह व्यक्ति उस महिला के साथ मार पीट कर उस सच उगलवा देता है, जो उसे फांसी के फंदे तक पहुंचा सकता है।  उन्हें जब ऐसे मुकदमे की पैरवी करनी पड़ेगी, जिसमें उस गवाह से सवाल जवाब करने पडेंगे जो प्रत्यक्षदर्शी गवाह नहीं है, किन्तु उसके पास  हत्या के बारें में सटीक व प्रमाणिक जानकारी है। यह प्रकरण जैसे ही अदालत में जायेगा, मीडिया में खूब उछलेगा। यदि वे मुकदमा हार जायेंगे, तो उनकी विश्वसनीयता पर एक गहरा दाग लग जायेगा।

     रामप्रकाश ने पूरे अधिकार से गैरेज से कार निकाली और जैसे ही कार गेट पर पहुंची, गार्ड़ ने आगे बढ़ कर गेट खोल दिया। गार्ड़ भयभीत दिखाई दे रहा था और सिर झुकाये खड़ा था। रामप्रकाश ने हाथ से इशारा करते हुए उसे पास बुलाया और स्नेहिल स्वर में कहा, ‘ देखो, मेरे साथ तुम्हारी कोई दुश्मनी नहीं है, मैं अपना काम कर रहा हूं- तुम अपना काम करो। मैं तुम्हें और घर के किसी नौकर को कोई हानि नहीं पहुंचाऊंगा।  सभी को काम पर बुला लो और निश्चिंत हो कर काम करो।’ कहते हुए रामप्रकाश ने कार का शीशा चढ़ा दिया और गार्ड़  की ओर एक हल्की सी मुस्कराहट फैंक गाड़ी आगे बढ़ा दी।

    रामप्रकाश ऐसे शानदार बंगले में रह रहा था, जिसके भीतर घुसने की उसकी औकात नहीं थी। वह ऐसे मकानों को बाहर खड़ा रह कर दूर से केवल देखने की ही हैसियत रखता था।  इसे समय की विडम्बना ही कह सकते हैं कि एक अति निर्धन और सीधा सादा ग्रामीण युवक ऐसे बंगले में रहने का लुत्फ उठा रहा है। वह अपने खपरेलु मकान के ढालिये में पड़ा रहता था। पास में ही पिता की खाट लगती थी। कुछ दिनो से स्थिति ऐसी बन गई थी कि दोनो एक दूसरे की ओर न देखते थे और न ही उनके बीच कोई बातचित होती थी। उसका अधिकांश समय खेतो पर ऐसे ही धूमने में बीतता या गांव के किसी चबुतरे पर बैठ कर दोस्तों के किस्से सुनने का मजा लेता। गांव के कुछ लड़के मम्बई में मजदूरी करते थे। जब कभी गांव आते तब बम्बई के बारे में बतियाते हुए शेखी बघारा करते थे। मायानगरी को देखने की उसकी भी इच्छा थी, किन्तु जो शख्स अपनी छोटी-छोटी इच्छाओं को पूरा नहीं कर पा रहा था, उसके लिए ऐसा सोचना भी पाप था। कभी सोचा, इन लड़को के साथ मैं भी बम्बई चला जाऊं। वहां काम की तो कोई  कमी नहीं है। अपनी इच्छा से जिंदगी तो जी लूंगा। पर लड़को ने उसे हतोत्साहित कर दिया। उसे कहते- ‘ तुम्हारे जैसे ढीले आदमी को बम्बई  में कोई काम नहीं देगा। यदि तुम्हें काम मिल भी गया, तो रहने की जगह नहीं मिलेगी। सड़कों पर ही सो कर रात गुजारनी होगी। बरसात के दिनो में तो बहुत बुरी हालत हो जाती है। किसी छत के नीचे दुबक कर बैठे बैठे ही रात बीतानी पड़ती है। ‘

     रामप्रकाश को भूख लग रही थी। प्रेत महाशय को इस बात का अहसास था, इसलिए वे उसे एक रेस्टोरेंट में ले आये। रेस्टरां का हाल खचाखच भरा हुआ था। कई तरह के खाद्य पदार्थों की गंध बिखरी हुई थी। ऐसे ऐसे व्यंजन परोसे जा रहे थे, जिन्हें उसने जिंदगी में न तो कभी देखा था और न ही चखा था। रामप्रकाश भी एक टेबल पर बैठ गया और खाने का आर्डर दे दिया। थोड़ी ही देर में कई प्लेटे उसकी टेबल पर सज गई । बैरा बहुत विनम्रता से खाना परोस रहा था और आग्रहपूर्वक उसके आदेश की पालना कर रहा था। सहसा उसे गांव का वह दृश्य याद आया जब वह खाने के लिए एक निश्चित जगह बैठ जाता। भाभी उसकी ओर उपेक्षा की दृष्टि से देखती। बहुत देर बैठे रहने के बाद उसके सामने खाने की थाली आती, जिसमें मक्का की रोटी होती। साथ में पतली दाल या  तरकारी। कभी सिर्फ मिर्च की चटनी ही परोस दी जाती। वह अन्यमन्यस्क भाव से खाना गटकता। यदि कोर गले में फंस जाता तो पानी के घुटक से उसे नीचे उतारता। रोटी की मनुहार नहीं की जाती। खाली थाली लिये बैठा रहता तो थोड़ी देर बाद एक रोटी ओर आ जाती। जब वह उठ जाता तो यह नहीं पूछा जाता कि कुछ ओर चाहिये ?

    पूरानी यादों में खोये हुए रामप्रकाश ने खूब डट कर खाना खाया। तृप्त हो कर जब उठा,  तो उसे अहसास हुआ- जिंदगी में आज पहली बार पेट भर कर खाना खाया है। खूब स्वादिष्ट व्यंजन थे, जिसका उसे नाम तक याद नहीं था।  पे्रतात्मा की कृपा से वह विलासितापूर्ण जीवन जीने का मजा ले रहा है, वरना उसकी किस्मत ऐसा सब कुछ कहां था। जो कभी नहीं सोचा, वह घटित हो रहा था।

 प्रेतात्मा उसे ले कर बम्बई शहर के पत्थरों के जंगल में भटकते रही। ऊंची-ऊंची इमारतों के नीचे जाते और उन्हें एकटक देखते रहते। इस मायाजाल से उन्हें अब भी इतना मोह क्यों है, इस रहस्य को वह समझ नहीं पाया। जबकि सच यह है कि इंसान की जब आंख खुली रहती और सांस चलती रहती है, तब तक सब उसका है। जब आंख बंद हो जाती है और सांस टूट जाती है, फिर उसका कुछ नहीं रहता। जब वे संसार में ही नहीं। अब इस संसार में आयेंगे ही नहीं, फिर संसार से उन्हें इतना मोह क्यों है ?

    जब रामप्रकाश घर लौटा तब अंधेरा हो गया था। कार को जैसे ही उसने फाटक के भीतर ली, लॉन में खड़े हुए कई गुंड़े दिखाई  दिये, जिन्हें सम्भवत: उसे घर से बाहर निकालने के लिए बुलाया गया था।  उसे सारा माजरा समझ में आ गया। वह कार गैरेज में खड़ी कर जैसे ही उनके सामने से गुजरा, उनमें से एक बोला, ‘अबे, ऐ, कुत्ते ! ….. कहां घुसा जा रहा है ?’ उसने उसकी बात का  जवाब नहीं दिया और उन लोगों की ओर देखे बिना आगे बढ़ने लगा। तभी एक अन्य व्यक्ति जिसके हाथ में लट्ठ था, उसे मारने के लिए झपटा। किन्तु उस पर प्रहार करें, उसके पहले ही लट्ठ टूट गया और वह आश्चर्य चकित हो उसे देखता रह गया। तभी एक अन्य गुंड़ा, जिसके हाथ में खुरपी थी, चिल्लाता हुआ उसकी ओर बढ़ा। किन्तु अचानक उसे क्या हुआ, जो वह रुक गया और हाथ में पकड़ी खुरपी को जोर जोर से सिर के ऊपर घुमाया और दूर फैंक दिया।

 उसकी इस हरकत से एक मोटे तगड़े मुस्टडें को गुस्सा आ गया, जो शायद उनका गैंग लीड़र था। उसने क्रोध से बिफरते हुए अपने साथी के गाल पर जोर से थप्पड़ मारा और लगभग चीखते हुए, बोला, ‘ अबे, क्या पागल हो गया है। ‘

  रामप्रकाश खड़ा हो गया और उनकी ओर देख कर मुस्कराने लगा। उसकी मुस्कराहट से चिढ़ कर गैंग लीड़र ने उसके गाल पर कस कर घूंसा मारा, किन्तु  रामप्रकाश पर उस घूंसे का कोई प्रभाव नहीं पड़ा, अलबता घूंसा मारने वाला  असहनीय दर्द से छटपटाता हुआ नीचे बैठ गया। तेज दर्द से उसका हाथ फटा जा रहा था, पर हिम्मत कर उठा और उस पर गोली चलाने के लिए रिवाल्वर निकाल ली। रामप्रकाश अविचलित भाव से उसके सामने खड़ा रहा। थोड़ी देर तक वह उसे ध्यान से देखता रहा, फिर बोला, घर से बाहर निकल वरना………..’

   रामप्रकाश ने फुर्ती से आगे बढ़ कर उसके हाथ से रिवाल्वर छीन ली और उन सभी को एक लाइन में खड़े होने का आदेश दिया। वे कुल पांच थे। भयभीत हो उसके सामने खड़े हो गये। रामप्रकाश ने उनके पांवों के पास गोली दाग कर यह जता दिया कि उसे रिवाल्वर चलाना आता है।  अब  उनकी ओर रिवाल्वर कर कड़क आवाज में बोला, ‘ आप सभी को तुरन्त अपने सारे कपड़े उतारने होगे। जिसने सारे कपड़े पहले उतार दिये, वह बच जायेगा, परन्तु जो आदमी कपड़े नही उतार पायेगा, वह इस गोली से मारा जायेगा।




     वे सभी अजीब से आदेश से सकपका गये। उन्हें आशा नहीं थी कि ऐसा भी हो सकता है।  थोड़ी देर तक अन्यमन्यस्क खड़े रहे, किन्तु जब उसने फिर ललकारा तो फटाफट कपड़े खोल कर पूर्णतया नंगे हो गये। – उसने आदेश दिया,  ‘अब भागो ! पर यदि अपनी वेन में बैठोगे तो खतरा है।’ वे सभी भयभीत हो, भागते हुए बंगले से बाहर आ गये और मना करने के बावजूद बाहर खड़ी वेन में बैठ गये। जैसे ही वेन स्टार्ट की, उसमें आग लग गई और वह धू-धू कर जलने लगी। वे जलती वेन से बाहर निकले। शरीर पर कपड़े तो थे नहीं, पर बालों ने आग पकड़ ली। वे एक साथ जमीन पर लेट कर आग बुझाने लगे। फिर उठे  और बिना देरी किये नंगधडंग सड़क पर दौड़ने लगे। धुंए से उनकी पूरी देह काली हो गई थी। सभी अच्छे खासे मोटे तगड़े थे और दैत्य जैसे लग रहे थे। सड़क पर इस तरह दैत्यों को भागते हुए देख कर वाहन चालक मजा लेने लगे। उन्हें ऐसी मैराथन दौड़ का मंजर समझ नहीं आया था। कुछ लोग धड़ाघड इस विचित्र रेस को अपने मोबार्इल केमरों में उतारने लगे।

      तेज हवा चलने लगी थी। जलती हुई वेन की लपटे यकायक भभक उठी। ऊंचा उठता हुआ धुंआ चारों ओर दिखाई दे रहा था। पॉस कॉलोनी थी। आस-पास के घरों की खिड़किया तो खुली, किन्तु किसी ने यह जानने की कोशिश नहीं की कि आग क्यों जल रही है ? हॉं, कुछ राहगीर जलती हुए वाहन के पास आये थे। वाहन में आग क्यों लगी, उसे जानने की उनके मने में जिज्ञासा थी, किन्तु जिज्ञासा शांत नहीं हुई, क्योंकि कोई भी उन्हें घटना के बारें में विस्तार से बताने के लिए तैयार नहीं हुआ।  

     बंगले के भीतर अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ था। घर में काम करने वाले नौकर जो एक बार डर कर काम छोड़ चले गये थे, किन्तु आज की घटना से भयभीत हो फिर भागने की फिराक में थे। बंगले की मालकिन, जिसने छुप कर सारा नाटक देखा था, वह अंदर से हिल गई.थी। उसके पूरे शरीर में कंपकंपी छूट रही थी। दरअसल वह अत्यधिक भयभीत हो गई थी और उसे लग रहा था- यह आदमी कभी भी उसका गला दबा कर उसे मार सकता है। उसने कमरा भीतर से बंद कर दिया। कुछ देर यूं ही खड़ी रही, फिर सिर को दीवार पर जोर जोर से मार कर दहाड़ मार कर रोने लगी। वह उस अदने से आदमी से जीती हुई बाजी हार गई थी। उसकी सारे चाले और चालाकिया निष्फल हो गई थी।

     रामप्रकाश ने जैसे ही कमरे में प्रवेश किया- अस्तव्यस्त कमरे को देख कर उसने जोर से आवाज दी- ‘लक्ष्मी !’  उसकी आवाज सुन कर एक अधेड़ सी औरत भागी हुई आई। वह हांप रही थी। उसके पांव कांप रहे थे। वह लड़खड़ाती आवाज में सिर्फ इतना कह पाई-जी ! रामप्रकाश ने आत्मीयता से उसकी ओर देखा और धीरे से बोला, ‘ देखो लक्ष्मी, मेरी जिससे दुश्मनी है, उन्हें परेशान कर रहा हूं। घर के सारे नौकर मेरे अपने हैं- आप सभी को मुझ से डरने की  आवश्यकता नहीं है। …… थोड़ी देर मौन रहने के बाद उसने कहा, मेरा कमरा ठीक कर दो। एक गिलास दूध और पानी का जग कमरे में रख दो…..बस। कहता वह कमरे से बाहर निकल गया। लक्ष्मी की जान में जान आई, उसका सारा भय काफूर हो गया था।

     वह ड्राइंग रुम में आ गया। टेबल पर पड़े आज के अखबार को हाथ में ले वह उसके पृष्ठ पलटने लगा। भीतरी पृष्ठों पर खबर थी- उद्योगपति मदन मल्हौत्रा की मौत पर अब भी ससपेंस  कायम। पुलिस की रहस्यमय चुप्पी। मिसेज मल्होत्रा ने उन पर लगे आरोपों से पल्ला झाड़ा। पुलिस उस व्यक्ति के बारें में कुछ भी कहने से इंकार कर रही है, जिसने एक अखबार के ऑफिस में फोन कर मल्होत्रा के मर्डर के बारे में जानकारी दी थी। समाचार पढ़ने के बाद रामप्रकाश के होंठो पर मुस्कान बिखर गई। वह कुछ देर यू हीं आंख बंद कर सोफे पर बैठा रहा।

     वह पुन: अपने उस कमरे में आ गया, जिस पर उसने जबरन कब्जा जमा रखा था। कमरे में रखे हुए अस्तव्यस्त सामान को व्यवस्थित कर दिया गया था। उसके आदेश की पालना करते हुए लक्ष्मी ने दूध का गिलास व पानी का जग भर रख दिया था। रामप्रकाश ने आज उस शानदार कमरे को जी भर कर देखा, जिसमें वह डेरा जमााये हुए था। बहुत बड़ा कमरा था। फर्श पर बिछी  मखमली कालिन, बड़ी बड़ी खिड़कियों पर लगे हुए सुन्दर पर्दे, कमरे के बीच में रखे हुए सोफे और कीमती फर्निचर। सचमुच अद्भुत था। रामप्रकाश को अहसास हुआ- यह घर नहीं किसी राजा के महल का शयनगृह हैं।

     रामप्रकाश पलंग पर अलथी-पलथी मार कर बैठ गया और जी भर कर कमरे के ऐश्वर्य को निहारने लगा। उसे सुखद अनुभूति हो रही थी, क्योंकि कमरे में रखी  प्रत्येक वस्तु बहुत सुन्दर थी। उसके भीतर बैठे हुए प्रेतात्मा शांत हो गये थे। जब उग्र होते हैं, तब हरकते करते हैं, जिसे रोकना रामप्रकाश के बस में नहीं रहता, पर जब वे शांत हो जाते हैं तब खुल कर लुत्फ उठा पाता है। उसके मस्तिष्क में विचारों का वेग बहने लगता है। कल्पना के घोड़े दौड़ने लगते हैं। वह सोचने लगा- जब प्रेतात्मा शरीर छोड़ देंगे, तब उनसे विनती करुंगा- मेरे जीवन का भी अंत कर दें, ताकि मेरा पुर्नजन्म हो सके और मैं किसी धनी व्यक्ति के घर में पैदा हो कर ऐसा ऐश्वर्य भोग सकूं। क्योंकि यदि जीवन बच गया तो चार दिन की चांदनी बीतते ही फिर गरीबी और अभावों की अंधेरी रात आ जायेगी। अब उसे गरीबी से नफरत होने लगी थी। उसे वैसा जीवन दुबारा नहीं चाहिये।

    प्रेतात्मा की हरकतों से रामप्रकाश को यह तो अहसास हो गया था कि उसके भीतर बैठी हुई  प्रेतात्मा ही मदन मल्हौत्रा है, जिसका मर्डर उनकी पत्नी और मित्र ने उनकी सम्पति हड़पने के लिए कर दिया था। पर सब कुछ कैसे घटित हुआ, उसका रहस्य उसे नहीं मालूम पड़ा था। हां, वह इतना जानता था कि दोनो उसकी सम्पति पर ऐश कर रहे थे और उन्हें स्वपन में भी आशा नहीं थीं कि मदन मल्हौत्रा की आत्मा इस रुप में प्रकट हो कर उनसे बदला लेगी। इसी उधेड़ बुन में वह कुछ देर बैठा रहा फिर सो गया। अचानक उसकी नींद उड़ गई, क्योंकि प्रेत महाशय हरकत में आ गये थे। रामप्रकाश कमरे से बाहर आ, सी​िढ़या चढ़ कर ऊपरी मंजिल पर आ गया।

     टेरेस से उसने समुद्र किनारे बसी ह  मायानगरी का नज़ारा  दिखाई दे रहा था। जहां तक निगाहें दौड़ाओं अनगिनित ऊंची इमारतों की श्रृंखला दिखाई दे रही थी। समुद्र के किनारे सर्पिणी  सड़क पर वाहनों के रेले बह रहे थे। दूर से ऐसा लग रहा था जैसे जलते हुए पीण्ड़ तेजी से भाग रहे हैं। लगता है यह शहर रात भर जागता है- कभी सोता ही नहीं। रात के एक दो बजे होंगे, किन्तु शहर पूरी तरह जाग रहा था। रामप्रकाश बम्बई नगरी की चकाचौंध को मुग्ध हो कर देख रहा था, पर प्रेत महाशय को कहां चैन था। वे उसे उस कमरे में ले गये जहां प्रेतात्मा द्वारा प्रता​िड़त स्त्री सिसक रही थी। उसकी सिसकियों में स्पष्टत: उसके भीतर का दर्द छलक रहा था।

    वह कुर्सी पर बैठी सामने रखे हुए टेबल पर सिर रख कर रो रही थी। उसके बाल खुले हुए थे। टेबल पर आधी भरी  शराब की बोतल और पास में एक खाली गिलास रखा हुआ था। कदमों की आहट सुन, उसने सिर उठाया और रामप्रकाश को सामने खड़ा देख भयभीत हो जोर से चिल्लाई- मुझे मारना है, तो मार दो, सारा खेल खत्म हो जायेगा……’ कहते-कहते वह सुबकने लगी। उसकी आंखों से अविरल अश्रु बह रहे थे।

   ‘ तो यह कमरा तुम्हारी अय्याशी का अड्डा है, जहां तुम आन्नद के साथ लीव इन रिलेशन में रहती हो। तुमने अपने पति को मरवा दिया और आनन्द ने अपने परिवार को भगवान के भरोसे छोड़ दिया। अपने सुख चेन और मौज मस्ती के लिए तुम लोगों ने कितनी जिंदगिया तबाह की है  ? …….कहते कहते वह थोड़ा रुक गया और उसके नज़दीक आ, उसके बालों को कस कर पकड़ कर उसे खींच कर उठा दिया। वह दर्द से छटपटा उठी- ‘ आखिर तुम चाहते क्या हो, यह तो बताओ ?……. मेरा गला घोंट कर मुझे मार डालो और फिर चले जाओ यहां से… तिल तिल कर मरने से तो अच्छा है, मर जायें…..!




     उसके प्रश्नों के जवाब में राम प्रकाश ने उसे बालों से पकड़ थोड़ा और ऊपर उठाया और फिर फर्श पर पटकते हुए बोला, ‘ तुम्हारी बर्बादी की यह शुरुआत है…….आगे देखती जाओं, होता क्या है। …. तुम क्या समझती हो, पैसे से सब कुछ खरीदा जा सकता है। …..पर अब तो तुम्हें मालूम हो गया है कि पैसा सब कुछ नहीं है। …… तुमने पैसे की ताकत से मुझे घर से बाहर निकालने के लिए लाख कोशिश कर ली, पर तुम सफल नहीं हो पाई इसलिए शराब पी कर रो रही हो। पर एक बात याद रखो- नशे में सब कुछ भुलाया नहीं जाता…. नशा अपने गुनाहों को याद दिला देता है। ’

     वह उठी। खाली गिलास में शराब उड़ेली और गटक गई। फिर हिम्मत कर आगे बढ़ी और उसका कालर पकड़ कर बोली, ‘ मुझे आज़ाद करने की क्या कीमत लोगे- एक करोड, दो करोड़……..दस करोड़……….’

     उसने एक झटके से अपना कालर छुड़ाया और खिल खिलाते हुए बोला,  ‘ माल हडप्पा है एक लाख करोड़ का और दे रही हो बस दस करोड……..’  कहते हुए उसने खाली गिलास में शराब उड़ेली और उसके होंठों पर लगाते हुए बोला- ‘ तुम पीओ ! खूब पीओ !! …….रात भर रोती रहो और शराब पीती रहो…..पर याद रखो, मैं तूझे छोड़ूंगा नही…….तूझे पाई पाई के लिए मोहताज कर दूंगा……भीखारी बना दूंगा…..!

     सुनते ही वह घम्म से नीचे बैठ गई। उसने अपना सिर घूटनों के बीच छिपा लिया और दहाड़ मार कर रो पड़ी।

     वह भी उसके पास जमीन पर बैठ गया और एक बार उसे फिर जलती  आंखों से देखा। आंखों की पुतलिया यकायक बड़ी हो गई थी। उसकी आंखों में फिर वही आकृति उभरी जिसे देख कर उसने आंखें बंद कर ली और जोर से चिल्लाई-  नही..ऽ ऽ..’ उसने अपना मुहं पुन: घुटनों में छुपा दिया और बैसुध हो कर फर्श पर लुढ़क गई। रामप्रकाश उठा और एक टक उसकी हालत देखता रहा। फिर धृणा से उसे एक ठोकर मारी और कमरे से बाहर हो गया।

     करीब दो घंटे तक वह बैसुध फर्श पर ही पड़ी रही। जब उसकी तन्द्रा टूटी तो उसका सर फटा जा रहा था। उसने लड़खड़ाते हुए उठने की कोशिश की पर फिर फर्श पर गिर पड़ी। सर को दोनों हाथों से दबाते हुए रोने लगी। अब उसे अपनी करनी पर पछतावा हो रहा था। पर वह कर ही क्या सकती है। उसे आभास हो गया-  वह आदमी जो उसके घर में घुस कर बैठा है, कोई साधारण आदमी नहीं है। उसके भीतर मदन बैठा है, जो उनसे बदला लेने आया है। थोड़ी देर बाद  वह फिर साहस कर उठी और कुर्सी पर बैठ गई। बोतल में बची शराब गिलास में उड़ेल कर पीने लगी। जब बोतल पूरी खाली हो गई तब उसने नशे में बेकाबू हो कर बोतल को फर्श पर जोर से दे मारा। ज्यादा शराब पीने से उसका जी मिचलाने लगा।  वह कुर्सी से उठी और  लड़खड़ाते कदमों से पलंग की ओर बढ़ने लगी, पर दो कदम ही चल पाई और फिर फर्श पर गिर पड़ी। नीचे पड़े पड़े ही उसने उल्टी कर दी। उसके सारे कपड़े उल्टी से तर बतर हो गये। उसने फिर उठने की कोशिश की, पर अपने आपको सम्भाल नहीं पाई और गंदगी पर ही गिर कर सो गई।

     जैसे ही सुबुह उसकी आंख खुली अपनी हालत देख सकपका कर उठ बैठी। उसके कपड़े गंदगी से लथ -पथ थे। बाल भी गंदगी से भींगे हुए थे। एसी चलने से पूरा कमरा दुर्गन्ध मार रहा था। वह तपाक से उठ कर खड़ी हो गई। एसी बंद किया। खिड़किया खोली। फर्श पर बिखरे हुए काच के टूकड़ो को उठा कर डस्टबीन में डाला। पहने हुए टीशर्ट को खोल कर कालीन और फर्श पर फैली  गंदगी साफ की। उसे अपने आप से घिन्न आने लगी। आज उसे कैसा गंदा काम करना पड़ रहा है। नौकरों से करवाती तो वे बतंगड़ कर देते। वैसे भी दिन आज कल कहां अच्छा चल रहे हैं-हर काम उल्टा ही हो रहा है। वह अपने आप पर खीझ उठी-पता नहीं क्या सोच कर जिंदगी में मैंने ऐसी आफत मोल ली। अपनी योजना की सफलता से वह गदगद थी। वह रातो रात अरबपति बन गई थी। समाज में उसका रुतबा बढ़ गया था। वह पैसे की खुमूारी में पीती थी। शराब पीना अमीर लोगों का शगल बन गया था, इसलिए पीती थी। पर दो दिनो वह खूब पी रही थी। वह भीतर ही भीतर बहुत डर गई थी। अत्यधिक तनाव में थी। उसे लग रहा था यह आदमी मदन की मौत का बदला लेने आया है। एक अदना सा फटिचर आदमी, जिसकी औकात दो कोड़ी की भी नहीं है- उसे तिल तिल कर मरने के लिए मजबूर कर रहा है। सही है-पैसे से सब कुछ नहीं खरीदा जा सकता, खोया हुआ सुख चैन पैसे की ताकत से पुन: लौट कर नहीं आता।

      बाथ रुम में जा कर उसने अपने सारे कपड़े धोये। देर तक नहाती रही, पर रोम रोम में दुर्गन्ध समाई  थी, वह लाख कोशिश करने के बाद भी दूर नहीं हो रही थी।  उसे अपने आप से वितृष्णा होने लगी। जिंदगी की गाड़ी को उसने जानबूझ कर ऐसे गड्ढ़े में धकेल दिया था, जहां सिवाय दुख भोगने के अलावा अब कुछ नहीं मिलने वाला है। वह अपनी पहाड़ सी गलती पर पश्चाताप करने लगी। पर अब हो भी क्या सकता है ? परन्तु यह कैसे सम्भव है कि जिस व्यक्ति को मरे हुए दो वर्ष हो गये, वह इस आदमी के शरीर में घुस कर मेरे पास आ गया। नहीं, यह सम्भव नहीं है। …..

.हो सकता है यह इस आदमी की कोई चाल हों ……परन्तु इस मरियल से आदमी के पास इतनी ताकत कहां से आ गई ? … सच यह है कि जो कुछ घटित हो रहा है, उसे कोई भी लाख माथा पच्ची करने के बाद समझ नहीं पा रही है। अनिष्ट की आशंका से वह कांप उठी। ….अब वह क्या करे, जिससे इस समस्या से निज़ात मिल सके, इसका समाधान वह ढूंढ नहीं पा रही थी। उसे बहुत तेज भूख लग रही थी, क्योंकि रात जो कुछ खाया था, वह निकल गया था।

   तैयार हो कर वह नीचे उतरी। डाइनिंग हॉल में रामप्रकाश को बैठे ब्रेकफास्ट करते देख वह आगबबूला हो गई । वह ठिठक कर दरवाजे पर ही खड़ी हो गई और जलती नज़रों से उसे देखने लगी। रामप्रकाश सिर झुकाये खाता रहा, पर उसे उसके आने का आभास हो गया था। वह खाते-खाते ही शांत स्वर में बोला, ‘ शायद तुम्हें पसन्द नहीं है कि मैं यहां क्यों बैठा हूं ? पर यह तुम्हारा आत्माभिमान है। …..मुझे तुम घर से नहीं निकाल पाई और न ही निकाल पाओगी…..हॉं, मेरा काम खत्म होने पर स्वंय इस घर से चला जाऊंगा। ‘

 ‘  तुम्हारा काम कब खत्म होगा और तुम कब जाओगे ? ‘

    वह खिलखिला दिया। कुछ देर चुप रहने के बाद बोला, मनीषा ! मेरा काम खत्म होते ही तुम्हारी जिंदगी खत्म हो जायेगी….इसलिए जब तक मैं इस घर में हूं, तुम जिंदा हो……अन्यथा………’

    ‘तुम मेरा नाम कैसे जानते हो………किसने बताया तुम्हें मेरा नाम…..? कहते-कहते वह हांपने लगी थी। …..उसे सभी मैम, मैड़म, मालकिन या मिसेज मल्होत्रा  कह कर संबोधित करते हैं, किन्तु यह मरदूद मुझे नाम से बुला रहा है….बदतमीज ! …यकायक उसका आत्माभिमान चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया। वह क्रोध से कांपने लगी।

  ‘ मुझे दुख हो रहा है कि तुम्हें अपनी औकात याद नहीं रही।…….तुम्हारे पांच बहिने थी और एक भाई । तुम्हारे पिताजी एक स्कूल में टीचर थे। तुम्हारा छोटा सा परिवार किराये के एक घर में रहता था। क्या तुम्हें गरीबी और तंगहाली के वो दिन याद नहीं रहे, जब तुम्हारा परिवार पैसे पैसे के लिए मोहताज रहता  था।  …..तुम्हें फर्श से उठा कर अर्श पर मदन ने बिठाया और उसी आदमी का तुमने……….’    वह आगे सुन नहीं पाई। उसकी रुलाई फूट पड़ी। अपने मुंह पर हाथ रख  वह आंसूओं को रोकने की कोशिश करते हुए भाग कर कमरे में चली गई और पलंग पर गिर कर फूट-फूट कर रोने लगी। जो कुछ उसने सुना वह सही था। पर जिस आदमी ने यह बात इतने बेबाक ढंग से कह दी, उसे सुन कर वह छटपटा उठी। उसे अब अहसास हो गया कि अब उसका अंत नज़दीक है। …… अब वह बच नहीं सकती। …..इस आदमी के भीतर बैठी प्रेतात्मा उसका प्रतिशोध ले कर ही यहां से जायेगी।      

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