समझदारी – पूनम भारद्वाज : Moral Stories in Hindi

आज रावी ऑफिस में बहुत थक गई थी। वह अपने कमरे में आकर निढाल पड़ गई।तभी रोहित भी आ गया। थोड़ी देर में सुधा जी उन दोनों के लिए कमरें में चाय ले आई।

रावी ,रोहित लो बेटा चाय पी लो। रावी ,सुधा जी से चाय लेते हुए बोली ,” मां आपको क्या पता कि आज मेरी चाय बनाने की भी हिम्मत नही।

  अगर होती तो अब तक तुम चाय बना लेती। खैर कोई बात नही तुम चाय पियो और थोड़ी देर आराम करो, सुधा जी ने कहा।

सुधा जी ने रात के खाने की तैयारी भी कर दी, जब तक रावी किचन में आई ।

   डिनर करते हुए सुधा जी ने रावी से कहा,” बेटा। कल हम मॉर्निंग वॉक वाली सहेलियों ने सारा दिन एक साथ बिताने का निर्णय लिया है ।एक साथ खाना, मॉल में जाना और फिर फिल्म देखना।खाने के लिए हम सब अपने अपने घर से कुछ खाना बना ले जाएंगी, मिसेज कोठरी के घर  सब मिल कर खाना खाएंगे फिर मॉल घूमने जायेगे और बाद में हम सब फिल्म देखने जाएंगे। क्या कल तुम हमारे  लिए कुछ बना दोगी?

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                       रोहित ने जैसे ही सुना, वह बोला ,” मां ये क्या बचपना है ? क्या पागलपन है? इस उम्र में दोस्तों संग पार्टी फिल्म देखने जाना। क्या इस उम्र में ये सब शोभा देता है आपको ?और एक ही तो छुट्टी होती है हमारी, उसमें भी हमें आराम नही।

                                 नही आप सबको मना कर दो।आप नही जाओगे। तभी रावी बोली,” नही मां। मना मत करना ,,आप जाइए । मैं कल घर संभाल लूंगी ।रोहित बोला,” अरे रावी ।तुम आज वैसे ही थकावट महसूस कर रही हो।दोनो बच्चें उस पर घर का काम कपड़े धोना हफ्ते भर की तैयारी करना।नही मां कल कहीं नही जाएगी,” रोहित ने एक दम सख्त लहजे में कहा ।

                रावी ने रोहित को शांत करते हुए कहा।मैं आपसे बाद में बात करूंगी।  मां आप निश्चिंत जाइए और मुझे बता दीजिए आपको क्या लेकर जाना है  मैं आपके लिए वही बना दूंगी।

   मां ने कहा ज्यादा कुछ नहीं बस दही बड़े बना देना।मैं कह दूंगी सबसे कि तुम ठीक नहीं थी इसलिए मैं ये ही ला पाई। कोई बात नही मां ।आप अब आराम करिए। सुधा जी ने दोनों बच्चों (पोतों)राघव और माधव को कहानी और लोरी सुना कर सुला दिया।

    रावी जैसे ही कमरे में गई। रोहित ने नाराज होते हुए रावी से कहा,” तुमने मां को जाने को हां क्यों कही?

रावी ने कहा,” देखो रोहित।

मां का भी अपना दिल है उनका भी कभी मन करता होगा कुछ रिलैक्स होने का। हमारे दोनों बच्चों को स्कूल भेजने से लेकर रात को सुलाने तक की जिम्मेदारी मां की है। मां की वजह से ही हम आराम से नौकरी कर पा रहे हैं बच्चों की , घर की हमें कोई चिंता नहीं। सोचो रोहित मां ने कब कब हमसे कहा कि उन्हें अपने लिए जीना है। नही रोहित इतने स्वार्थी मत बनो।

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                       मां ने मुझसे कभी बहू की तरह व्यवहार नही किया हमेशा बेटी सा रखा। हल्की सी थकावट पर भी मां ने बिना पूछे चाय बना दी ।क्या हम मां के लिए एक दिन अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभा सकते?

  अगली सुबह सुधा जी उठी तो देखा रावी ने सब कपड़े धो रखे थे। और वह किचन में उनकी पार्टी के हिसाब से खाना तैयार कर रही थी।

   10 बजे सुधा जी के जाने तक रावी ने दही बड़े के साथ उनकी पसंद के इमली वाले काले चने और दम आलू बना दिए थे। सुधा जी रावी के इस प्रेम पर अविभूत हो गई थी। उन्होंने स्नेह से भीगी आंखों से रावी को ढेरों आशीष दे दी। रावी ने सुधा जी की आंखें पोंछते हुए कहा,” मां आपने सदा मां सा स्नेह दिया तो क्या ये बेटी अपनी मां के लिए इतना भी नही कर सकती थी। सुधा जी ने रावी को गले से लगा लिया।

                 पार्टी में सुधा जी सबके आगे रावी की समझदारी की तारीफ कर रही थी।वही उनकी सब सहेलियां भी  उसके बनाए चनों की, दम आलू और दही बड़े की स्वाद की प्रशंसा कर रही थी साथ ही सास और बहू की समझदारी की दाद दे रही थी।

 

        घरों में ,परिवार में अगर सब यूं एक दूसरे के प्रति समर्पण रखे एक दूसरे की जरूरतें समझे तो घर स्वर्ग से भी सुंदर बन जाएं।

 

पूनम भारद्वाज

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