ये लो ये दो पतले से बच्चे के सोने के कड़े यही भेजा है मीरा ने पैसे के बदले मां गायत्री के सामने बेटे विकास ने पोटली फेंक दी। आपके कहने पर दो लाख रूपए मैंने मीरा के पास भेज दिए हैं । नहीं देना था मीरा को जेवर तो न देती मैं तो पैसे भेज ही रहा था। लेकिन जो कहा था कि मैं कुछ जेवर भइया के पास रखना दे रही हूं उसके बदले में मुझको पैसे दे दें,तो देख लो ये जेवर भेजे हैं । छोटे बच्चे के कडे है और वो भी उसमें पतली सी होने की परत चढ़ी है बस अंदर लाख है ।
मां मीरा हमेशा से यही करती आ रही है कहती कुछ है और करती कुछ है ।हर समय उनको पैसों की जरूरत पड़ी रहती है आपके कहने पर मैं उनकी मदद कर देता हूं । गहने भेज रही थी तो ठीक ठाक भेज देती । छोटी बहन के गहने क्या मैं रख लेता बाद में वापस कर देता लेकिन जो कहा था उसका मान भी रखना चाहिए था। लेकिन अम्मा अब मैं आपको बताऊं दे रहा हूं अब मैं आखिरी बार पैसा दे रहा हूं ।अब किसी तरह का समझौता आगे नहीं करूंगा।
अरे आगे हमारे ऊपर भी खर्चे है अभी दो छोटी बहनें और है शादी को और मेरे खुद के बच्चों की पढ़ाई लिखाई है । आखिर कबतक मीरा के लिए ही करता रहूंगा । गायत्री जी सब चुपचाप सुन रही थी कुछ बोल नहीं रही थी ।
मीरा गायत्री और प्रकाश नारायण की बेटी थी ।दो बहनें और थी छोटी और दो बड़े भाई थे। मीरा की शादी अभी दो साल पहले ही हुई थी सतीश जी से । सतीश जी ने वैसे तो वकील की पढ़ाई की थी लेकिन गांव में रहकर उनकी वकालत चलती नही थी। उसके लिए शहर में जाकर प्रेक्टिस करने की जरूरत थी किसी बड़े वकील के अंडर में रहकर। गांव छोड़ कर शहर जाने की हालत सतीश जी की थी नहीं उसके लिए पैसा चाहिए और वो सतीश जी के पास था नहीं।
सतीश जी के एक छोटा भाई था और एक बड़ी बहन थी ।बहन की शादी हो चुकी थी सतीश की मां अपने दोनों बेटों के साथ गांव के घर में रहती थी । गांव में एक बड़ा मकान था जिसमें परिवार के अन्य लोग भी रहते थे। जिसमें सबके पास दो दो कमरे आंगन और रसोई मिला हुआ था। सतीश की शादी होनी थी और छोटे भाई की शादी ननिहाल में किसी रिश्तेदार की लड़की से तय थी । इंतजार सतीश के शादी का हो रहा था। सतीश के पास कोई काम नहीं था लेकिन छोटा भाई बीड़ी पत्ते की कारखाने में काम करता था।
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ऐसे कामों में सतीश का मन नहीं लगता था। क्योंकि वो पढ़ें लिखे थे।। फिर किसी तरह सतीश को एक ट्रैवल एजेंसी में काम मिल गया ।तो सतीश की बड़ी बहन आशा के ससुराल से मीरा के घर वाले से परिचय था तो कोशिश करके आशा ने मीरा की शादी सतीश से करवा दी थी ।
मीरा के मायके में बिजनेस होता था। पैसा ठीक ठीक था लेकिन परिवार बड़ा था जिम्मेदारी यां बहुत थी। अभी दो छोटी बहनें भी थी शादी के लिए । मीरा की शादी तो हो गई थी और मीरा के ससुराल को पता था कि मीरा के मायके में पैसा ठीक ठीक है। मीरा की सास बेटे सतीश को भड़काती रहती थी कि मीरा से कहकर उसके मायके से पैसा मंगवाओ। कोई न कोई बहाना बनाकर पैसे लाने को मजबूर करते रहते थे मीरा को। मीरा भी मजबूर थी क्या करें।
अब मीरा को बच्चा होने वाला था तो अस्पताल में भर्ती कराया तो वहीं से खबर कर दी कि मीरा अस्पताल में भर्ती हैं कुछ पैसे भेज दें । गायत्री जी ने बेटे विकास से कहकर पैसे भेजे ।अब डिलीवरी हो गई बेटा हुआ था तो सवा महीने बाद मीरा की सास कहने लगी कि हमारे यहां पोते का दसटोन नाना के घर से होता है ,अब परम्परा है या पैसे बचाने के तरीके हैं ।अब गायत्री जी के पति ने सारी जिम्मेदारी दोनों बेटों को ही सौंप दी थी फिर बेटों ने ये भी काम निपटाया।
अब कुछ दिन बाद मीरा घर आई और मां से कहने लगी कि अब सतीश शहर जाकर प्रेक्टिस करना चाहते हैं तो उसकी तैयारी के लिए कुछ पैसे चाहिए। कुछ किताबें ख़रीदनी है, नया स्कूटर लेना है जो शादी में स्कूटर मिला था वो छोटा भाई चलाता है तो उससे कैसे लेंगे इसलिए दूसरा लेना है , वकील का कोट वगैरह बनवाना है फिर दिए गए पैसे।इस रोज़ रोज़ के मांग से तंग आ गए थे गायत्री जी के बेटे।
अब पोते का मुंडन कराना है तो उसमें खूब सारा सामान आएगा सोने चांदी के भी सामान होंगे पहला पहला पोता है हमारा अच्छे से सब होना चाहिए ।इस तरह की मांग उनकी चलती रहती थी।अब उनकी मांग से गायत्री जी और दोनों बेटे परेशान हो गए थे।
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हर डेढ़ दो महीने में मीरा मायके आ जाती और पीछे से सतीश भी आ जाते । महीने दो महीने रहती । पता नहीं सतीश जी का कुछ काम धंधा चल भी रहा था कि नहीं।और मायके से जाते वक्त उनके टिकट से लेकर घर गृहस्थी का बहुत सारा सामान मां से कहकर खरीद कर ले जाती ।मन ही मन सब लोग परेशान होने लगे थे कोई कुछ बोलता न था कि बेटी का ससुराल है ।इस बार तो गायत्री जी ने मीरा से कह दिया कि बेटा ये रोज रोज का किसी न किसी बहाने से मांग रखना ठीक नहीं है।भाई भाभी को खराब लगता है ।विकास नाराज़ हो रहा था।
अब कुछ समय तो शांति रही फिर मीरा ने मां से कहा मां मुझे भाई से कहकर एक स्वेटर बुनने की मशीन दिलवा दो उसके बदले में मैं अपना कुछ जेवर रख दूंगी भइया के पास ।इनका काम कुछ ठीक से चल नहीं रहा है तो मैं भी कुछ काम करूंगी। फिर से गायत्री जी ने बेटे से कहा तो उसने कहा चलो देख लेते हैं मशीन कोई बहुत महंगी नहीं आती पांच छै हजार की आती है । फिर जेवर की जगह दो पतली सी अंगुठी मीरा ने भेज दी। अंगुठी देखकर भाई को गुस्सा आ गया पर मन मसोस कर रह गए ।
कुछ समय तो शांति रही सतीश जी की वकालत न चलती थी उन्होंने फिर कोई जुगाड सोचा मीरा से कहने लगे भाई से कहो कुछ मदद करें इस बार मीरा को मां की बात याद आ गई और उसने मना कर दिया कि अब मैं नहीं कहूंगी तुम्हें कहना है तो कहो इस तरह तुम्हारे और मांजी के चक्कर में बार बार हमें अपमानित होना पड़ता है । सतीश जी थोड़े बेशर्म से इंसान थे अबकी बार मीरा ने मना कर दिया तो खुद ही साले साहब की लल्लो चप्पो करने लगे ।बोले क्या करूं भइया वकालत नहीं चल रही है ,हमारा एक दोस्त गाड़ी चलवाता है
किराए से अच्छा चलता है उसका काम मैंने भी सोचा मैं भी गाड़ी ले लेता हूं चलवाने को पर कहां से लेगे सतीश जी अरे भइया बस ये आखिरी बार मदद कर दें आगे से फिर न कहूंगा कभी ।बार बार रिक्वेस्ट करने पर विकास ने मां गायत्री जी से राय मशवरा किया ।और बताया कि थोड़े ज़ेवर भी रखने की बात कर रहे हैं लेकिन उनकी बातों पर भरोसा नहीं है ।बेटी है बेटा क्या करूं परेशानी नहीं देखी जाती । लेकिन मां इसबार आखिर बार होगा इसके आगे फिर नहीं । ठीक है बेटा ।
फिर दो लाख रूपए दे दिए विकास ने इसबार रकम ज्यादा थी । फिर वहां से जेवर भेजा तो वहीं बच्चे के दो पतले से कड़े जिसपर सिर्फ पत्ती चढ़ी हुई थी ।उसे ही देखकर विकास नाराज़ हो रहा था ।मां अब किसी भी तरह का समझौता नहीं करूंगा मैं बहुत हो गया।मुझ पर भरोसा नहीं है अपने चार चूड़ियों की बात हुई थी और भेजा क्या है।ये वही कड़े है जो आपने उसके बच्चे को दसटोन पर दिए थे। मुझसे अब कोई उम्मीद न रखें अब मैं नहीं कर पाऊंगा । इसी बात को लेकर बहन मीरा और सतीश जी से विकास की तना तनी रहने लगी बात नहीं होती अब ।
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लेकिन मीरा बेटी थी गायत्री जी की तो उनसे बात तो होती थी । इसी तनातनी में पांच साल निकल गए ।एक दिन विकास ने देखा मां कुछ पोटली में रखकर छिपाकर लेकर बाजार जा रही थी तो विकास की नज़र पड़ गई ये क्या मां तुम कहां जा रही है और ये क्या छुपा रखा है ,
कुछ नहीं बेटा नहीं बताओ न क्या बात है । गायत्री जी बोली वो बेटा मीरा बहुत परेशान हैं बीमार है वो उसके गर्भाशय में गांठ हो गई है उसका आपरेशन कराना है तो कुछ पैसे चाहिए थे तुमसे कह नहीं सकते तो मैंने सोचा कुछ जेवर बेंच कर पैसे दे दूं जिससे उसका आपरेशन हो जाए क्या करूं बेटा बेटी है कैसे तकलीफ़ में देख सकती हूं । तुमसे अब कह नहीं सकती । अच्छा मां इतना किया हर मौके पर उनका साथ दिया और अब इस मुश्किल घड़ी में साथ नहीं दूंगा ये कैसे सोच लिया आपने । गहने घर में रख दें मैं देखता हूं।
फिर भाई विकास मां के गहने घर में रखवाए और पैसे लेकर मीरा के घर गये और उनका आपरेशन कराया । बाकी सब समझौते तो मीरा ने सतीश के और सास के दबाव में किए थे। लेकिन बहना जब अपने लिए कुछ करना था तो मुंह बंद किए रही ।बहन तुम ठीक हो जाओ बस यही सबसे बड़ा समझौता है ।और दोनों भाई-बहन गले लग गए ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
7 मई