अभिमान ही मेरा गहना है – के कामेश्वरी

सरस्वती भगवान के पास हाथ जोड़कर विनती कर रही है कि हे भगवान मुझे अपने पास बुलाना भूल गए हो क्या ? और कितने दिन मुझे यह सब सहना पड़ेगा । मैंने ऐसी कौनसी ग़लतियाँ की हैं जिसकी सज़ा मुझे मिल रही है । सरस्वती है कौन उसके साथ ऐसा क्या हो रहा है जिससे वह इतनी दुखी हो गई है । 

सरस्वती के तीन बेटे और एक बेटी है ।सबकी शादियाँ हो गई थीं । पति राजेश जी की कपड़े की दुकान भाई विशाल के साथ साझे में थी,दोनों भाइयों में प्यार बहुत था इसलिए अंत तक एक साथ ही रहते थे ।

विशाल की तीन लड़कियाँ और एक लड़का था। बच्चे सब एक ही जगह पल रहे थे । विशाल की पत्नी होशियार थी उसने अपने बच्चों को अच्छे से पढ़ाया लिखाया था ।सरस्वती बहुत ही भोली भाली थी, उसने बच्चों पर कभी सख़्ती नहीं बरती थी। इसलिए उनके तीनों बेटों ने सिर्फ़ डिग्री तक की पढ़ाई पूरी की थी । लड़की ने तो दसवीं के बाद पढ़ाई छोड़ दिया था तो उन्होंने उसकी शादी अठारह साल की उम्र में ही कर दी । 

बड़े बेटे ने बी.एड. किया और वहीं गाँव में टीचर बन गया था।उसकी शादी सुवर्णा से हुई। सुवर्णा बहुत ही अच्छी पढ़ी लिखी थी । वह भी संयुक्त परिवार में ख़ुशी से ढल गई थी ।

इस बीच घर में बहुत से बदलाव आए थे । देवरानी ने अपनी तीनों बेटियों की शादियाँ करा दी थी ।

सरस्वती के दो बेटे और एक बेटी की शादी हुई थी परंतु दूसरे बेटा केंसर से छोटी सी उम्र में ही माता-पिता को गम देकर चला गया था । उसके बच्चे नहीं थे तो उन्होंने ही बहू को दूसरी शादी के लिए प्रोत्साहित किया और उसकी शादी भी कराई थी ।

अब तीसरे बेटे की शादी करानी थी, बहुत से रिश्तों में से हैदराबाद की ही लड़की कल्पना से शादी तय किया था जो नौकरी भी कर रही थी ।

यहाँ तक ठीक चल रहा था कि एक दिन अचानक सरस्वती के पति घर में गिर गए।  सब लोग उन्हें अस्पताल ले गए थे परंतु तब तक उनकी मृत्यु हो गई थी । उन्होंने अपनी पत्नी को रोते बिलखते हुए छोड़ दिया था ।




एक दिन सरस्वती को देवर ने बताया था कि भाभी भैया ने घर, खेत,और बैंक बैलेंस सब आपके नाम कर दिया है शायद उन्हें पहले से ही आभास हो गया था कि वे कुछ दिनों के ही मेहमान हैं । आप सब सँभाल कर रख लीजिए कहते हुए काग़ज़ात सरस्वती को सौंप दिया था । 

सरस्वती की आँखों से आँसू बहने लगे थे कि उन्हें मेरी कितनी फ़िक्र थी। इसलिए पहले से ही सब मेरे नाम कर दिया है ।

सरस्वती को एक दिन देवरानी ने बताया था कि दीदी आपके देवर इस घर में अपने हिस्से को बेचना चाह रहे हैं। 

हमारे बेटा बहू काकीनाड़ा में रह रहे हैं आपको मालूम है ना हम भी वहीं घर ख़रीद लेंगे और बेटे बहू के पास रहेंगे तो आप अपने पोर्शन में शिफ़्ट हो जाइए।

सरस्वती अपने बेटे बहू और दो पोतों के साथ वहाँ अपने पोर्शन में शिफ़्ट हो गई । इतने सालों से साथ रहे देवर देवरानी घर बेचकर बेटे के पास काकीनाड़ा चले गए थे । 

उन सबके जाते ही सरस्वती के बच्चों ने माँ को सताना शुरू कर दिया था कि जायदाद हमारे नाम कर दो । सरस्वती बहुत भोली थी । इसका फ़ायदा बेटे उठा रहे थे। उन्हें भावनात्मक रूप से धमकी देने लगे थे कि अगर जायदाद हमारे नाम नहीं करोगी तो हम दोनों तुम्हारी देखभाल नहीं करेंगे ।

चाचा जी को बिना बताए अपने किसी दूसरे रिश्तेदारों को मध्यस्थ की भूमिका देकर सारी जायदाद और माँ का गोल्ड सब आपस में दोनों बाँटने लगे तो दूसरी बहू को जैसे ही यह बात पता चली उसने भी पुलिस की धमकी दी और अपना हिस्सा ले गई थी ।

बेटी और माँ को कुछ नहीं दिया था।अब माँ की देखभाल की बारी आई तो दोनों भाइयों ने सबके सामने यह फ़ैसला कर लिया था कि माँ छह महीने एक भाई और छह महीने तक एक भाई के घर में रहेंगी।




चाची को जैसे ही पता चला भागते हुए आई और कहा कि माँ का बँटवारा मत कीजिए उसे जितने दिन जहाँ रहना है वह रह लेंगी ।

बच्चों ने उनकी बातें नहीं सुनी और माँ को बाँट लिया । बड़ा बेटा जगन्नाथ एक दिन ज़्यादा नहीं रखता उसकी देखा देखी छोटा मोक्ष भी वही करता था ।

अब बात यहाँ तक ठीक है फिर क्यों हम उनकी बात कर रहे हैं ।

चलिए मैं आपको बता देती हूँ कि बात क्या है?

सरस्वती अपने दोनों बेटों को एक ही जैसे प्यार करती थी।  लेकिन बहुओं ने उनके साथ भेदभाव करना शुरू किया था।  बड़ी बहू सुवर्णा अच्छी थी सास की अच्छी देखभाल करती थी समय पर खाना पीना उनके कपड़े धोना रहने के लिए उनको एक कमरा भी दिया।

पूरी प्रॉब्लम की जड़ छोटी बहू कल्पना थी । वह खुद कोई काम नहीं करती थी । उसका पति ही खाना बनाता था और उसके कपड़े मशीन में डाल दिया करता था । यहाँ तक बात ठीक है नौकरी करती है तो इतने नखरे तो करेगी ही । 

सरस्वती यहाँ जब भी आती है, कल्पना हमेशा गाली-गलौज करती है और खाना भी ठीक से नहीं देती है। मोक्ष उसे कुछ नहीं कहता है । सुवर्णा जब फ़ोन करके पूछती है कि आप हैदराबाद में अच्छे से हैं तो सरस्वती कहती हैं कि हाँ मैं खुश हूँ क्योंकि फोन मोक्ष का है और वह वहीं बैठा रहता है । 

 हैदराबाद में रहने वाले रिश्तेदारों को जब पता चला कि उनकी हालत नाज़ुक है तो उन्होंने जगन्नाथ को बताया कि तुम्हारी माँ की हालत अच्छी नहीं है। इस बीच चाची ने और उनके कई रिश्तेदारों ने उनसे कहा कि हमारे घर में रहिए हम सब मिलकर आपकी अच्छे से देखभाल करेंगे परंतु सरस्वती अभिमानी थी वह उस ज़माने में ही दसवीं पास थी । उनके पिताजी स्कूल के प्रिंसिपल थे । उन्होंने अपनी लड़कियों को भी पढ़ाया था इसलिए उसमें अभिमान कूटकर भरा हुआ था । कल्पना और मोक्ष उसे ठीक से खाना नहीं देते हैं तो वह कमजोर हो गई है फिर भी किसी को अपने दिल की बात नहीं बताती थी । चाची ने बड़ी बहू से कहा तू तो अपनी सास को जानती है ना हमारे बुलाने पर हमारे घर नहीं आएगी तू ही उन्हें अपने पास रख लेना पैसे चाहे तो मैं भेज दूँगी परंतु उसके अंतकाल में उसे ख़ुशियाँ दे देना ।सुवर्णा अच्छी थी पर उसकी  पति को लगता है कि भाई को बच्चे भी नहीं है जायदाद में हिस्सा भी लिया है तो माँ की ज़िम्मेदारी से भागेगा कैसे इसलिए माँ को तकलीफ़ हो रही है फिर भी वहाँ भेजता था । 

एक दिन मामा का फ़ोन आया था कि हैदराबाद में भाई के घर में तुम्हारी माँ चक्कर खाकर गिर गई है साथ ही उसने अपने भतीजे को रोते हुए बताया था कि मुझे जीने की इच्छा नहीं है मैं सुसाइड कर लेना चाहती हूँ । 




इन बातों को सुनकर जगन्नाथ और सुवर्णा हैदराबाद पहुँचे तो देखा सरस्वती एक दम कमजोर अवस्था में  पलंग पर पड़ी हुई है ।  मोक्ष और कल्पना अपने कमरे पकोड़े खाते हुए मूवी देख रहे थे । बड़े भाई भाभी को अचानक देखते ही दोनों चकरा गए थे । 

सुवर्णा ने सास को इस हाल में कभी नहीं देखा था । सरस्वती हमेशा हँसमुख थी । कल्पना अपनी दलीलें दे रही थी कि वह बहुत ख़राब है मुझे बहुत सताती है । 

सुवर्णा और जगन्नाथ ने उन्हें कुछ नहीं कहा और न उनसे बातें की माँ को लेकर शाम को ट्रेन के लिए रवाना हो गए। 

उन्होंने सोचा था कि कल्पना और मोक्ष इस तरह से उनके आने और माँ को अपने साथ ले जाने से शर्मिंदगी महसूस होगी और उनके पीछे आकर माफ़ी माँगेंगे कुछ तो सीखेंगे।  लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ कल्पना ने तो तुरंत अपने पिता को फ़ोन किया और कहा कि मेरी सास चली गई है आप कल यहाँ आकर हमारे साथ रहिए । 

उसके पिता बहुत अच्छे थे उनको बहुत सारी बातें नहीं मालूम थी।  कल्पना का सास के साथ व्यवहार उन्होंने कभी देखा नहीं था । उन्हें लगता था कि कल्पना उसकी सास की अच्छी देखभाल करती होगी। कल्पना के घर में रहने के लिए जब आए तब उन्हें उनके पड़ोसियों से पता चला कि वह सास को गालियाँ देती थी और उन्हें खाना भी नहीं खिलाती थी। यह तो अच्छा हुआ कि बड़ा बेटा और बहू आकर उन्हें अपने घर ले गए नहीं तो वह यहाँ रहती तो मर ही जाती थी । 

उन्होंने कल्पना से कहा कि बेटा मैं भी तुम्हारे पति के लिए वैसा ही हूँ जैसे तुम्हारे लिए तुम्हारी सास । जहाँ उनकी इज़्ज़त नहीं वहाँ मैं नहीं रह सकता हूँ । भगवान ने मुझे बेटे नहीं दिए अच्छा हुआ नहीं तो मेरी हालत भी तुम्हारी सास के समान ही होती थी । वह अभिमानी थी इसलिए आज तक मुझे भी नहीं बताया था । जिस घर में बुजुर्गों का सम्मान नहीं वहाँ मैं क़तई नहीं रह सकता हूँ । कहते हुए उल्टे पाँव वापस चले गए। 

दोस्तों हम बहुओं को दोषी ठहराते हैं कि वे अपने सास ससुर की देखभाल नहीं करती हैं लेकिन उनके खुद के नालायक बेटों के लिए क्या कहें जिन्हें अपनी माँ नहीं उसकी जायदाद से प्यार है । 

स्वरचित

के कामेश्वरी 

साप्ताहिक विषय— #अभिमान

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