जीवन-साथी का चयन – मुकुन्द लाल

जब ललिता के घर पर उसके  छोटे पुत्र अंकित की शादी के बाबत अगुआ पहुंँचा तो उसने उसकी आवभगत और स्वागत-सत्कार की औपचारिकता के बाद लड़के की मांँ ने लड़की के संबंध में जानकारी लेनी चाही तो अगुआ ने लड़की की सुन्दरता, शिष्टता, स्वभाव व आचरण संबंधी जानकारी देने के क्रम में उसकी प्रशंसा करते हुए जैसे ही उसने कहा कि लड़की एम. ए. है और सरकारी नौकरी कर रही है तब ललिता ने साफ शब्दों में कहा, “मुझे नौकरी करने वाली लड़की नहीं चाहिए, बड़े पुत्र की शादी  सर्विस करने वाली लड़की से  करके पछता रही हूंँ।.. आये दिन मेरे बेटे को तलाक ले लेने की बात कहती रहती है। उसका वैवाहिक जीवन अवसादग्रस्त हो गया है। उनके दाम्पत्य जीवन में उमंग-उत्साह का घोर अभाव है। वह हमेशा उसको ब्लैकमेल करते रहती है।.. मैं ज्यादा उस सबंध में बोलना भी नहीं चाहती हूंँ, मेरे घर की बातें है,माफ करें यह रिश्ता मुझे मंजूर नहीं है। “

 अंकित की मांँ का अप्रत्याशित जवाब सुनकर अगुआ भौचक्का रह गया।

 कुछ पल तक सन्नाटा छाया रहा, जिसको ललिता ने भंग करते हुए पुनः कहा,” मुझे सर्विस करने वाली बहू नहीं घर संभालने वाली गृहणी चाहिए जो परिवार के साथ रहे, सुख-दुख में साथ निभाये।.. कौन खतरा मोल लेता है, नौकरी वाली के साथ शादी करके, साथ वह नहीं रहेगी यह तो तय है, अगर रिलेशनशिप वाली निकल गई तो दौड़ो कोर्ट-कचहरी, बेटे की जिन्दगी बर्बाद अलग से होगी, मैं रिश्क नहीं ले सकती भाईजी।

 ललिता के छोटे पुत्र अंकित की शादी की बातें महीनों से चल रही थी। वह भी स्नातक करने के बाद एक कंपनी में जाॅब कर रहा था। कई अगुआ व कई लड़की के माता-पिता भी आ चुके थे उसके घर पर लेकिन बात नहीं बन रही थी। कहीं लड़की नहीं जंँची, तो कहीं खर-खांदान व घर-द्वार, कहीं लड़की का अधिक शिक्षित होना कारण बन गया तो कहीं कम शिक्षित होना, कहीं लड़की की कद-काठी आड़े आ गई तो कहीं रंग-रूप, यानी ललिता को अपने मनमुताबिक काम नहीं मिलने के कारण उसके पुत्र की शादी पक्की नहीं हो रही थी।




 ललिता चिन्तित भी थी। उसकी उम्र भी हो गई थी। उसके पति सेवानिवृत्त होने के बाद हमेशा अस्वस्थ चल रहे थे। उसको ऐसा लगता था कि अंकित के पापा और वह भी स्वयं अगर स्वर्ग सिधार गये तो उसके बेटे की शादी भाई-भौजाई करेंगे या यों ही भटकने के लिए छोड़ देंगे कौन जानता है।

 उसकी बड़े बेटे और बहू दोनों नौकरी करते थे और दोनों हजारों किलोमीटर की दूरी पर रहते थे। न शादी का सुख नसीब हुआ, न बाल-बच्चों का। साल-दो साल के अंतराल पर मिल पाते थे। साथ रहने की नीयत से अपने पति के कहने के बावजूद भी बदली करवाने में  उसने कभी सहयोग प्रदान नहीं किया और न अपनी कभी रुचि दिखलाई। उसके बड़े बेटे ने अपनी पत्नी को कितनी बार नौकरी छोड़कर साथ रहने की फरियाद की थी तो उसने ऐसे हर मौके पर जवाब दिया था कि उसको अगर असुविधा महसूस होती है तो वह तलाक ले सकता है उसे कोई एतराज नहीं है। यही स्थिति थी उसकी।

 ललिता अपने बड़े बेटे की परिस्थितियों का आकलन करते हुए फूंक-फूंककर कदम रख रही थी। वह छोटे पुत्र की शादी का निर्णय बहुत सोच-समझकर लेना चाहती थी।

 अगुआ ने ललिता की सारी दलीलें धैर्यपूर्वक सुनी।

 पल-भर के लिए वातावरण में सन्नाटा छा गया था। अगुआ के चेहरे पर निराशा के भाव उभर आये थे।

 अन्त में उसने कहा, “आपकी सारी बातों को मैंने गंभीरतापूर्वक सुनी, आपके तर्कसंगत विचार से मैं सहमत हूँ, किन्तु लड़की से जिस लड़के की शादी की बातें चल रही है, उससे भी तो राय ले लीजिए। जमाना बदल गया है। अब पहले वाला युग नहीं है देवीजी!.. रिश्ते कायम करते वक्त लड़की और लड़का से राय लेना अतिआवश्यक है। यह समय की मांग है। “




 अंकित बगल वाले कमरे में बैठा हुआ चल रही बात-चीत को सुन रहा था।

 अपनी माँ के कहने पर वह तुरंत कमरे से बाहर आया। अगुआ का उसने चरणस्पर्श किया। अगुआ के अनुरोध करने पर उसने अपना पूरा परिचय विस्तार से दिया।

 अगुआ को लड़का हर तरह से पसंद था। उसके आचरण और शिष्टता से भी वह संतुष्ट था।

  उसने आपसी संवाद के क्रम में ललिता की सहमति से लड़के और उसकी मांँ को मोबाइल पर लड़की का फोटो दिखाया, उसके साथ लड़की से संबंधित सारे ब्योरे भी दर्ज थे।

 अंकित के अनुरोध पर उसने लड़की के फोटोग्राफ्स ब्योरे सहित उसके व्हाट्सऐप पर भेज दिया।

 ललिता और अगुआ ने चुप्पी साध ली थी। अब गेंद अंकित के पाले में था।

 अंकित गंभीरता से लड़की के फोटोग्राफ्स को देखने, उसकी हाइट, शिक्षा-दीक्षा, नौकरी, हौबी.. आदि और पारिवारिक पृष्ठभूमि की जानकारियों से अवगत होने के बाद उसने कहा,

“मांँ!.. वैसे तो आपकी इच्छा सर्वोपरि है लेकिन इस लड़की से शादी करने में मुझे कोई दिक्कत नहीं है। मुझे हर तरह से यह काम पसंद है।.. हर लड़की की तुलना भाभी से मत कीजिए। हाथ की पांँचों उंगुलियांँ बराबर नहीं होती है। न तो सभी लड़कियाँ ब्लैकमेल करने वाली होती है और न सभी लड़के भी व्यवहार-कुशल शिष्ट और योग्य होते हैं। “

 ललिता अपने पुत्र का जवाब सुनकर एक-टक अपने पुत्र के चेहरे को देखते रह गई।

 उसके मुंँह से अनायास ही निकल गया,” ठीक है बेटा!.. तुम्हारी राय से हम सहमत हैं, जैसा तुम चाहो, वैसा ही होगा।

 स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित

               मुकुन्द लाल

                हजारीबाग(झारखंड)

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