समझ आई गलती – डॉक्टर संगीता अग्रवाल Moral Stories in Hindi

“आ गए घूम के?”सरला जी ने पूछा तो विभोर और रिचा चौंक गए।

“अम्मा!घूमने नहीं गए थे,रिचा को डॉक्टर के पास रूटीन चेक अप के लिए ले जाना था,वहीं से ला रहा हूं।”

विभोर ने कहा।

“हर महीने चल देंगे चेक अप कराने…हमारे क्या औलाद नहीं हुई तब तो ये चोंचले नहीं थे,घर पर ही दाई बुला

लेते थे और बच्चे हो जावे थे,अब देखो!इन लोगों ने क्या क्या ड्रामेबाजी कर रखी है।” वो बड़बड़ाई।

“क्या कह रही हो अम्मा?तेज बोलो तभी समझ आएगा”,विभोर गुस्से से बोला।

“कहेंगी क्या,बस अपने जमाने का राग अलाप रही होंगी ,और क्या?”रिचा मुंह बनाते बोली।

रिचा की पहली संतान जन्म लेने जा रही थी और उसे डर था कि सब कुछ कैसे होगा,उसकी सास उसे कुछ

समझाने से तो रहीं और सारे दिन गुस्सा होती रहती थीं।

पिछले ही महीने की बात है जब उसे बहुत उल्टियां हो रही थीं,वो कुछ खा पर नहीं पा रही थी,वो डॉक्टर के पास

गए,उन्होंने कुछ मेडिसिन दे दी थीं उसे और उसकी सास ने अपने समय का हवाला दे देकर उसके सिरदर्द कर

दिया था…

ये कितने नखरे करती है रिचा,हमारे तो आठ बच्चे हुए,कभी डॉक्टर से दवाई नहीं लाए तेरे ससुर,हमारी सास

तो हमें खाने को मेवे,फल भी नहीं देती थीं,दोगना काम लेती थीं ऊपर से और मजाल है कभी कोई परेशानी

आई हो?आजकल के तो चोंचले ही समझ नहीं आते।बेड रेस्ट,चेक अप और दवाइयां…बच्चा न जनेगी जैसे

कोई किला फतह करना हो!!

“अम्मा!तुम क्या सारे दिन गड़े मुर्दे उखाड़ती रहती हो?विभोर झुंझला जाता,अब समय बदल गया है,नई नई

तकनीक आ गई हैं हर काम में,तो तौर तरीके बदले हैं..बस।”

 

“तो अब क्या औरतों की जगह मर्द बच्चे पैदा करने लगेंगे आज?”अम्मा व्यंग से कहती और विभोर जरा सा

मुंह ले कर रह जाता।

रिचा ने सोचा कि एक बार अम्मा को सही बात समझानी ही पड़ेगी,ऐसे तो ये अपनी बात को ही सच मानती

रहेंगी और पुरानी बातें खोद खोद कर सबको दुखी करती रहेंगी। माना कि पुराने समय में सुविधा कम थीं

अब ज्यादा हैं पर परेशानी और तकलीफ भी तो बढ़ी हैं।

उस दिन रिचा,रसोई में खाना बना रही थी और अम्मा ने आकर उसे टोका, “बहू! दाल को कुकर में क्यों बना

रही है,इससे तो गैस बन जायेगी,झाग निकाला तूने इसका?”

फिर कैसे बनाऊं अम्मा?रिचा ने झुंझला के पूछा।

भगोने में बना और ऊपर का जहरीला झाग निकल,वो बोलीं

बात उनकी गलत नहीं थी,रिचा जानती थी लेकिन आजकल की भागम भाग की जिंदगी में इतने टंटे कौन

करे?उसने सोचा लेकिन अम्मा का लेक्चर रुकने का नाम नहीं ले रहा था,फिर गड़े मुर्दे उखड़ने शुरू हो गए

थे,फिर दौड़ोगी डॉक्टर पास गैस बनने की समस्या लेकर,वो कह रही थीं।

अम्मा!तो आप चाहती हैं अब से गैस न इस्तेमाल करूं या कुकर बुरा है?रिचा ने पूछा।

चलिए!इन दोनो को हो टाटा कह देते हैं आज से,अंगीठी जलाएंगे आज से।और हां!आप मोबाइल को भी

पसंद नहीं करती,उसे भी हटा देते हैं अपने घर से अब।

अम्मा भौंचक्का होकर रिचा को देख रही थीं,जितनी डींगे मार रही है देखूंगी,क्या क्या करेगी?

अगले ही दिन से सब चीजे घर से गायब हो गई,अम्मा ने राहत की सांस ली,अब अंगीठी पर खाना बनने लगा

था, सुबह के वक्त बहुत आपाधापी रहती,धीरे धीरे नाश्ता बनता,कभी विभोर एक परांठा खा पाता तो कभी

उसके बाऊजी को भूखा रह जाना पड़ता,अम्मा की आंखें लाल हो जाती अंगीठी फूंकते लेकिन वो चुप रह

जाती।

अगले दिन,उनकी बेटी आशा आई,क्या अम्मा!फोन क्यों नहीं उठाती?कल पूरा दिन आपको कॉल करती

रही , न भाभी ने उठाया ,न ही आपने,मेरा कितना नुकसान हो गया…. हां नहीं तो,वो गुस्सा होते बोली।

 

जब उसे पता चला,अम्मा की बकवास की वजह से ये सब कारनामे हुए हैं उसने लंबी डांट सुनाई अपनी मां

को।

ये भैया भाभी सीधे मिल गए हैं तुमको इसलिए गड़े मुर्दे उखाड़ती रहती हो सारा दिन,क्यों अम्मा!ऐसा कहीं

देखा है क्या?ठीक है पहले चीजे ज्यादा फायदा करती थीं,तब समय अलग था लेकिन परिवर्तन हमेशा होता

रहता है और उसे खुले दिल से स्वीकार भी करना चाहिए।हमेशा पुरानी बातें सही और नई गलत नहीं होती

अम्मा।

तू ठीक कह रही है आशा!ये मैंने भी महसूस किया पिछले दिनों में,मुझे अपनी गलती समझ आ गई है,मां सूर्य

झुकाते बोली।

मुझसे नहीं भैया भाभी से कहो ये…आशा हंसते हुए बोली।

मां ने रिचा को देखा तो वो मुस्करा दी,”अम्मा!आप गुस्सा होते हुए बहुत क्यूट लगती हो ,वो ही करो,ये सब

नहीं…” तो सब खिलखिला दिए।

डॉक्टर संगीता अग्रवाल

# गड़े मुर्दे उखाड़ना

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