सगुना – रेनू शर्मा  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : सररररररर…….सरसराती सी सगुना कभी एक जगह नहीं टिकती है। दादी कहती “बेकार नाम रखा छोरी का , गुन तो एकहु ना है काहे की सगुना, सब मलंग छोरों वाली करतूतें “

साधारण माता पिता, एक बड़ी बहन पांच साल पहले ही ब्याही गई है। दोनों रुपवती,पर बड़ी बहन जहां धीर गंभीर ,वहीं सगुना हद की चंचल। कस्बे के इकलौते कालेज में बीए के तृतीय वर्ष में है।पढ़ाई में उतनी अच्छी नहीं, पर नाटकों, स्पोर्ट्स,‌नाच गाने, उधमबाजी में सबसे

अव्वल।

सगुना यहीं पड़ोस में अपनी सहेली की शादी में गई थी , वर पक्ष की ओर से बारात में आए दूल्हे के मित्र निशांत ने सजी धजी चपल सगुना को देखा तो प्रण कर बैठे कि फेरे लेंगे तो इसी के साथ। बिना ये जाने कि उनकी मां सावित्री जी तो जाने कब से अपनी सहेली की पुत्री लतिका को अपनी पुत्रवधू मान बैठी थीं।

सावित्री जी को शहर से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करके आए बेटे का मन टटोलना था। इसी लिए रूकी हुई थी।वैसे इशारों इशारों में वो अपनी इच्छा लतिका और उसकी मां पर कई बार प्रकट कर चुकी थीं।

निशांत ने जब अपने मन की बात मां को बताई तो उन्होंने काफी ना नुकुर की…”.अभी तेरी नौकरी कहां लगी है…उस लड़की की पढ़ाई पूरी होने दे…. यूं तो और भी सुंदर लड़कियां हैं ….., अपनी लतिका को ही देख सर्वगुण संपन्न है।” फिर दबे शब्दों में यह भी कह डाला…,”सुना है सगुना टिक कर नहीं बैठती… उसके पैर में ही चक्कर है, कालेज में ऊटपटांग खेल खेलती है।”

पर कहते हैं ना होई है वही जो राम रचित राखा , निशांत की नौकरी भी लग गई, सगुना पास भी हो गई और सावित्री जी को मन मसोस कर ही सही बेटे की ज़िद के आगे झुकना पड़ा। शुभ मूहूर्त निकाल कर दोनों का विवाह सम्पन्न हुआ। इकलौते बेटे की शादी में उन्होंने सारी रस्में की, खूब लेन देन किया, घर में कई दिनों तक उत्सव का माहौल रहा।पर उनके मन में टीस थी  कि काश सगुना की जगह लतिका होती ।

सगुना के आने से घर जगमगा गया था। उसकी मां ने समझा बुझाकर भेजा था “बिटिया ससुराल जा रही हो .. बड़े लोगन का घर है…नेक ख्याल रखना जादा धौल धप्पड ना करना,…टिक के रहना,कोनो सिकायत नहीं मिलइ चाहे।”

सगुना‌ ने मां की सीख गांठ बांध ली थी। निशांत के साथ वो खुश थी घर की भी सारी ज़िम्मेदारियां उसने उठा ली थी।अपने उड़ते मन पर भी उसने काफी हद तक काबू पा लिया था। पर जल्द ही उसे समझ आने लगा था कि सासू मां उससे खिंची खिंची रहती हैं।

उनके पास जाकर बैठती तो रामायण ले के बैठ जातीं, कुछ बतियाना चाहती तो आंखें मूंद सोने का अभिनय करने लगीं। एक दिन कहा कि अम्मा आपके बालों में तेल लगा दें तो बोलीं रहने दो हमें इससे बू आती है। सगुना अपना सा मुंह लेकर रह जाती।सोचती सासुजी तूने मेरी कदर ना जानी।

सगुना की दादी उसे सदा टोकती थी ” छोरी तू घोड़ी की ढाल चलै है , धरती फोड़ के ना चलैकर तनिक आराम से चलना सीख।” सुधरने के चक्कर में उसने नजाकत से चलना सीख लिया था। उसे अपने लंबे काले बाल खुले रखने का शौक था, वे भी बेचारे अब जूडे या चोटी में बंधे रहने की आदत डाल रहे थे। जिस स्कूटी से वह कालेज जाती थी उसे साथ तो ले आई थी  पर वो भी ना जाने कहां पड़ी धूल खा रही थी। मंदिर वह बस शिवरात्रि, जन्माष्टमी, या एग्जामस  के दिनों में ही जाती थी, पर अब दोनों टाइम दिया बत्ती करने लगी थी।

इतने जतन कर डाले खुद को बदलने के लिए, पर सावित्री जी ने कभी उससे सीधे मुंह बात नहीं की।

सावित्री जी भी उसके प्रयासों से अनजान नहीं थी, पर मन में एक गांठ जैसी बंध गई थी । बेटे ने उनके मन की नहीं की इस अवज्ञा का दोष उनका मन सगुना को ही देता था।

निशांत को भी मां और पत्नी के बीच की खाई नजर आती थी पर उसे भरोसा था कि समय के साथ सब ठीक हो जाएगा।

जाने कब जिंदगी में कौन सा मोड़ आ जाए ये कोई नहीं जानता। सावित्री जी ने निशांत को गांव का पैतृक मकान और ज़मीन‌ बेचने भेज‌ दिया। घर में दोनों स्त्रियां अकेली थीं। निशांत उसी रात लौटने वाला था पर ज्यादा देर होने की वजह से पास के गांव में मौसी के यहां रूक गया।

तभी पौ फटे दो व्यक्ति दीवार फांद,हाथ में चाकू और फरसा लिए सावित्री जी के कमरे में घुस आए। शोर से उनकी नींद खुली तो मुंह पर कपड़ा बांधे , हथियार लिए बदमाशों को देख उनकी चीख निकल पड़ी।

” ओ बुढ़िया जमीन बेचकर जो पैसा आया है फटाफट निकाल … उनमें से जो विशालकाय था उसने फरसा चमकाते हुए कहा।

आंख के इशारे से उसने अपने साथी को साथ वाले कमरे में जा तलाशी लेने को कहा।

हड़बड़ी में दीवार फांद कर आते समय उनकी नज़र पीछे वाले कमरे पर नहीं पड़ी थी। जहां सगुना आहटें सुन चौकन्नी हो चुकी थी।

सावित्री जी का डर से बुरा हाल था। फरसा चमकाता बदमाश उनकी तरफ बढ़ा ही था कि दरवाज़े पर सगुना लंबी लाठी लिए प्रकट हुई, बिन आवाज़ किए आते हुए उसने साथ वाले कमरे का दरवाज़ा बाहर से बंद कर दिया था।

” पैसे अम्मा के नहीं हमारे पास हैं….अभी देते हैं “कहते हुए उसने लाठी ज़मीन पर टिका छलांग लगाई और दोनों पैर उसकी छाती पर दे मारे।

वो पीछे गिरा और उसका सिर दीवार पर जा लगा। हमला अप्रत्याशित था वो हैरान रह गया, उसकी हैरानी का फायदा उठा सगुना ने उसका गिरा हुआ फरसा उठा लिया और उस पर तान के खड़ी हो गई।

इस बीच सावित्री जी ने बाहर निकल कर हल्ला मचा दिया। जल्द ही भीड़ इकट्ठी हो गई, महिषासुर र्मदिनी का रूप लिए सगुना उस बदमाश की छाती पर सवार खड़ी थी। दूसरे कमरे में उसका साथी बाहर निकलने के लिए फड़फड़ा रहा था।

भीड़ ने दोनों बदमाशों की जी भर के पिटाई की , पुलिस

के आने पर ही वे रूके। बदमाशों ने पुलिस को बताया कि जिसने ज़मीन खरीदी थी उसी ने उन्हें निशांत के घर लूट करने भेजा था। वह रात में कहीं रूक जाएगा , उन्हें मालूम नहीं था। बची खुची कसर सगुना की बहादुरी ने पूरी कर दी थी।

हाई जंप की चैंपियन सगुना का कारनामा सब जगह तेजी से फैल रहा था।आज दादी भी सबको “देखा म्हारी  छोरी को ढेठ” कह कर उसकी बहादुरी का किस्सा सुना रही थी। बापू का सीना गर्व से चौड़ा था और मां ईश्वर को धन्यवाद दे रही थी कि उसकी बेटी व उसका परिवार सकुशल है।

निशांत ने घर आने पर देखा मां सगुना की नज़र उतार रही थीं । उनकी आंखों में ममता का सागर था और मन में अपनी बहू के लिए गर्व।

उच्छृंखल सगुना सबसे अपनी तारीफ सुन ज़िन्दगी में पहली बार शर्मा रही थी।उसका मन शांत और आनंदित था क्योंकि उसने आज अपनी रूठी हुई मां को सदा के लिए मना लिया था।

रेनू शर्मा

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