साधना – मधु शुक्ला

आठ वर्ष के इंतजार के बाद मनीषा को मातृत्व सुख प्राप्त होने वाला था। परिवार में सभी बहुत खुश थे। मनीषा के पति शिवम उसका विशेष ध्यान रखते थे। सही समय पर मनीषा जुड़वां बच्चियों की माँ बनी लेकिन उनको पालने के लिए जीवित न रही, वह डिलीवरी के दूसरे ही दिन स्वर्ग सिधार गई। बच्चियों को अशुभ मानकर पिता ने मुँह फेर लिया तो उनके पालन पोषण की समस्या पैदा हो गई। ऐसे मुश्किल वक़्त में मनीषा की जेठानी की बहन ने एक बेटी को गोद ले लिया। क्योंकि उनके बेटी नहीं थी दो बेटे ही थे। शिवम के पड़ोस में रहने वाले  निःसन्तान दम्पत्ति ने दूसरी बेटी को ले लिया। इस तरह शिवम ने अपनी बच्चियों से मुक्ति पा ली।

समय के साथ दोनों बेटियाँ बड़ीं हो गईं। पड़ोसियों के घर में पली बेटी साधना डाक्टर बन गई। और रिश्तेदार के यहाँ पली बेटी कुमुद पर्याप्त प्रेम और देखभाल न मिलने के कारण गुस्सैल और स्वार्थी तबियत की हो गई। कुमुद रिश्तेदारों के यहाँ रहती थी। इसलिए परिवार में आती जाती रहती थी। जब से उसने अपनी सच्चाई जानी थी, तब से वह शिवम से नफरत करने लगी थी। इसलिये वह उनका हमेशा अपमान किया करती थी। इसके अलावा उनसे पैसे माँगती रहती थी। इसी तरह दिन गुजर रहे थे। अचानक एक दिन शिवम को हार्ट अटैक आ गया। कुमुद और उसके परिवार ने सेवा करने और पैसा खर्च होने के डर से शिवम से दूरी बना ली। पड़ोसियों ने उन्हें अस्पताल  पहुँचाया और साधना के परिवार को सूचित किया। वे लोग  साधना को लेने के बाद दूसरे शहर में रहने लगे थे। साधना को जब पिता की जानकारी हुई तो वह उन्हें अपने साथ ले गई। अपनी देख रेख में उन्हें रखा। उसको मिले उत्तम संस्कारों ने यह जानने के बाद भी ” कि उसके पिता ने उसे अशुभ समझ त्याग दिया था।” अपने कर्तव्यों के प्रति उदासीन नहीं होने दिया। उसने पूरे मनोयोग से उनकी सेवा की। और स्वस्थ्य होने पर उन्हें अपने  साथ रहने के लिए राजी कर लिया। इसके अलावा उनकी सम्पत्ति लेने से इंकार कर के, कुमुद को भी अपने साथ जोड़ कर सही राह पर चलना सिखाया ।

#संस्कार 

स्वरचित – मधु शुक्ला .

सतना, मध्यप्रदेश .

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