सदा सुखी रहो – प्रीति आनंद

आज इंदू के विवाह की पच्चीसवीं वर्षगाँठ थी… क्या कहते हैं इसे … सिल्वर जुबली!

“तो मैडम कैसे मनाना है ये दिन?” जतिन ने प्यार से ठुड्डी उठाते हुए उसके नयनों की गहराइयों में झाँकते हुए कहा, “पार्टी दें दोस्तों को?”

“न-न बस हम-तुम और बच्चे ही साथ में मनाएँगे, किसी और की क्या ज़रूरत?”

“दीदी की भी नहीं?”

दीदी!

“वो तो मेरे लिए देवी स्वरूप हैं। वो नहीं होतीं तो……”

दीदी का नाम आते ही बीती ज़िंदगी के पन्ने खुद-ब-खुद खुलने लगे।

“पापा, हम इंदू के लिए रिश्ता लेकर आए हैं। डैड ने चाचाजी के बेटे प्रखर के लिए उसका हाथ मांगा है।” सुमिर ने अपने श्वसुर, विश्वनाथ जी से कहा। विश्वनाथ जी फूले नहीं समाए।

बड़ी बेटी शुभ्रा की एक वर्ष पूर्व शहर के नामचीन धनाढ्य परिवार में शादी हुई थी। सुमिर के पिता ने कॉलेज में शुभ्रा का गाना सुनकर उसे पसंद कर लिया था।

गौरवर्ण, ख़ूबसूरत शुभ्रा हर चीज़ में होशियार थी। विश्वनाथ जी निम्न मध्य वर्ग के होने के कारण इस रिश्ते से बहुत खुश थे। शुभ्रा को भी अपनी किस्मत से रश्क हो गया था। रिक्शे से सफर करने वाली शुभ्रा विवाह के बाद मर्सेडीज़ में घूमने लगी व ब्रांडेड कपड़ों के अलावा कुछ पहनती नहीं थी।

सुमिर द्वारा लाए गए रिश्ते के लिए इंदू के मातापिता ने तुरंत अपनी सहमति दे दी थी। शुभ्रा की रईस परिवार में विवाह होने से उन पर इंदू के लिए भी बराबरी का रिश्ता ढूंढ़ने का दबाव था। वे नहीं चाहते थे कि भविष्य में दोनों बहनों के बीच ईष्या जैसी कोई भावना पनपे!



इन्दु अपने ही दफ्तर में काम करने वाले जतिन से प्यार करती थी, परन्तु निम्न-मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाला जतिन उसके पिता को बिल्कुल पसंद नहीं आया था। दुःखी हुई थी इंदू पर पिता से विद्रोह करने की हिम्मत नहीं थी उसमें। आज जो रिश्ता आया था उससे वह न खुश हुई न उदास!

सुमिर वापस जाने के लिए उठा तो शुभ्रा कुछ देर बाद आने की बात कह कर रुक गई। सुमिर के जाने के बाद वह इंदू के कमरे में उसके पास बैठ गई।

सुमिर के जाने के बाद शुभ्रा इंदू के कमरे में उसके पास बैठ गई।

“तुम इस शादी के लिए मना कर दो।”

“ये क्या कह रही हो आप दीदी?”

“वो लोग सही नहीं हैं।”

“अच्छा! आप स्वयं तो करोड़पति बन गईं हैं, मर्सेडीज़ में घूमती हैं, गहनों से लदी-फदी रहती हैं और मेरी बारी आने पर वे बुरे हो गए? आप चाहती हैं कि मैं…… ये क्या …. दरवाज़ा क्यों बंद कर रही हैं आप?”

शुभ्रा दरवाज़े की कुंडी लगाकर अपने ब्लाउज़ के हुक खोलने लगी।

“ये क्या कर रही हो आप……. दीदी!! ये…ये…ये सब क्या है?” पीठ पर लाल-नीले निशान देख इंदू चौंक गई।

“गहने ही हैं …. मर्सेडीज़ वाले करोड़पति ने दिया है!”



इंदू को चुप देख शुभ्रा बोलने लगी, “उस घर में सब ऐसे ही हैं इंदू। प्रखर का पता नहीं पर सुमिर, पापाजी, चाचाजी सब एक जैसे ही हैं। घर के औरतों का वजूद गूँगे नौकरों जैसा है जिनकी क़िस्मत में सिर्फ़ दुःख लिखा है। मैं तुझे उस अंधे कुएँ में नहीं गिरने दे सकती।”

“आप ये सब क्यों झेल रही हैं दी? छोड़ दीजिए उस घर को! पापा को बताया आपने?”

“अभी नहीं, पहले अपने लिए ज़मीन तलाश लूँ! फिर…..” शुभ्रा ने इंदू का हाथ अपने पेट पर रखते हुए कहा, “इसके लिए भी सोचना होगा।”

पल भर को इंदू के चेहरे पर मुस्कान खेल गई, “सच दी! पर इस ख़ुशी के अवसर पर हम ख़ुश भी नहीं हो पा रहे! आप क्या करोगे?”

“अपने लिए नौकरी तलाश रही हूँ, मिलने पर ही मैं कोई कदम उठाऊँगी। पापा पर अतिरिक्त भार नहीं डाल सकती …… छोड़ो ये सब! तुम जतिन से प्यार करती हो न। मैंने पता किया है… बेहद संजीदा लड़का है। तुम्हें सदा ख़ुश रखेगा। शादी उसी से करना। पापा को मैं राज़ी कर लूँगी।” शुभ्रा ने उठते हुए कहा।

रिश्ते के लिए इंदू के इनकार के बाद शुभ्रा पर जुल्म बढ़ गए पर उसे इस बात का कोई अफ़सोस न था।

राशि के पैदा होने के कुछ महीने बाद शुभ्रा जो मायके आई तो लौट कर वापस ससुराल नहीं गई। बहुत हंगामा हुआ पर वो टस से मस नहीं हुई। बिटिया का पालन-पोषण स्वयं किया, बिना किसी के मदद के। दोबारा विवाह भी नहीं किया। आज राशि मेडिकल की पढ़ाई पूरी कर ऐम्स में नौकरी कर रही है।

“अरे कहाँ खो गईं? देखो तो कौन आया है?”

“दीदी आप…. आप कब आईं? मुझे तो किसी ने बताया ही नहीं कि आप आने वाली हैं?”

“बता देते तो ये सर्प्राइज़ फ़ीका न पड़ जाता? मुझे तो तुम्हारे रजत जयंती पर आशीर्वाद देने आना ही था…. चाहे तुम बुलातीं या न बुलातीं!”

“ये आपका ही घर है दीदी और ये ज़िंदगी भी आप ही की दी हुई है। नहीं तो मैं वहीं….”

शुभ्रा ने आगे बढ़ कर उसे गले लगा लिया,

“सदा सुखी रहो…. कोई कष्ट तुम्हें छू भी न पाए!”

स्वरचित

प्रीति आनंद

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