अनचाही पत्नी –  मुकुन्द लाल 

   जम्मू जंक्शन से गाड़ी खुल गई थी। राजेश सात वर्षों के बाद जम्मू-कश्मीर की सीमा से अवकाश लेकर अकेले ही घर लौट रहा था। क्योंकि विशेष परिस्थिति में उसकी पत्नी को छुट्टी नहीं मिली। वह सीट पर बैठा बाहर के घूमते हुए पेङों, पहाड़ों, खेतों को देख रहा था। ज्यों-ज्यों गाड़ी कश्मीर के इलाकों से दूर जा रही थी त्यों-त्यों अतीत के चित्र उसके दिमागी पटल पर उभरने लगे।

  एक लम्बी अवधि के बाद वह उसी वातावरण में लौट रहा था जहाँ से भागकर वह फौज में भर्ती हो गया था। 

  उस दिन उसके मन मे सुनहली कल्पनाओं का अम्बार लगा था। जब वह शादी के बाद पहली बार अपनी धर्मपत्नी से मिलने के लिए धड़कते दिल से कमरे में पहुंँचा था, तब दुलहन कछुए की भांति अपने अंगों में सिमटती जा रही थी।

  उसने कहा था, “मेरे दिल की रानी!.. जरा मुखड़ा तो दिखाओ। मैंने सुना है कि तुम बहुत सुन्दर हो, अरे हाँ, परसों ही तो भाभी बड़ाई कर रही थी, लेकिन विनीता छटक कर पीछे हट गयी थी, तो उसने विनीता का घूंँघट सरका दिया था, तब दुलहन ने अपना मुखड़ा अपनी हथेलियों में छिपा लिया था। जब उसने पूरी शक्ति से उसकी हथेलियों को हटाकर देखा तो यह क्या? उसकी आँखें फटी की फटी रह गई। उसका चेहरा स्याह सर्द पड़ गया।

  काली-कलूटी, उस पर चेचक का गहरा दाग। भद्दी सूरत। राजेश का सिर चकराने लगा था। उसे लगता था जोरों से चीख पड़ें। वह उठा और दरवाजा को ठेलकर आवेश में तेजी से बाहर निकल गया, फिर बरामदे में तख्त पर लेट गया। किन्तु नींद नहीं आ रही थी। वह सोच रहा था कि मेरे साथ धोखा हुआ, भयंकर धोखा। उसका शरीर अंगारों की तरह जल रहा था। सांँस जोरों से चल रही थी, उसे लगता था चिल्ला पड़ेगा। 

  उसके मन में सवाल उठ रहे थे, “उसके साथ ऐसा क्यों हुआ? मुझे ऐसा धोखा क्यों दिया गया? मेरे अरमानों को क्यों कुचला गया? 

  सुबह राजेश ने अपनी भाभी का हाथ पकड़ कर जबर्दस्ती खीचता हुआ कमरे में पहुंचकर विनीता का घूंँघट उलट दिया। भाभी ने देखा तो उसकी दुनिया ही उलट गई थी। वह पसोपेश में पड़ गई। यह क्या? लड़की बदल दी गई थी। राजेश ने चिल्ला कर कहा, “यह क्या है भाभी? क्या मैं यही करिश्मा देखने के लिए नौशे(दूल्हा) बना था।” 



  ” नहीं राजेश!… अब क्या हो सकता है? धैर्य से काम लो। यह कोई हाट की वस्तु नहीं है जो पसंद नहीं पड़ने पर फिरता किया जा सके, मेरी मानों!…” 

  “क्या मानें?” 

  “विनीता के संस्कार, स्वभाव और आचरण सभी अच्छे हैं। वह सर्वगुण संपन्न लड़की मालूम पड़ती है, सिर्फ रंग थोड़ा गहरा श्याम वर्ण है। शादी भी तो एक तरह से समझौता ही होता है, आप भी समझौता कर लीजिए इस लड़की के साथ आगे चलकर सब ठीक हो जाएगा। बाल-बच्चे होंगे तो आपका जो भ्रम है वह टूट जाएगा। 

  उसके माता-पिता और घर के अन्य लोगों ने उसकी भाभी की बातों का जोरदार समर्थन किया था। 

  “ठीक है, ठीक है। जब तक यह घर में रहेगी, मैं घर में नहीं रहूंँगा, इसे माइके जाना ही है।” 

  विनीता कटे हुए वृक्ष की तरह गिरी और सिसक-सिसक कर रोने लगी। घर में कोहराम मच गया, अगल-बगल के लोग घर में जमा हो गये। लोगों ने राजेश को समझाया, सांत्वना दी लेकिन राजेश नहीं माना। उसके सपने के मोती की लड़ियांँ बिखर चुकी थी। मन की मुराद मन में ही मुर्दा बन गई थी। उस दिन राजेश रात में अलग कमरे में सोया, अचानक रात में उसकी नींद दरवाजा खुलने की आवाज से टूट गई। राजेश ने देखा, वह खडी थी। विनीता को देखकर राजेश के चेहरे पर घृणा की लकीरें उभर आई। उसने फटकारना चाहा था पर कुछ नहीं कह सका था। 

  “यहांँ क्यों आई?” 

  “अपने देवता से मिलने, देवता की पूजा करने, अराधना करने” उसने अपनी भावना व्यक्त की की। 

  “तुम्हारे देवता को तम्हारी पूजा की जरूरत नहीं है।” 

  “नहीं! नहीं!… ऐसा नहीं कहिये मेरे देवता, पूजा के अधिकार से वंचित न करें, मैं कुछ नहीं चाहती हूँ देव, सिर्फ आपके चरणों की रज। ” उसकी आंँखों से अविरल अश्रुधार बहने लगी। 

  “यहांँ से चली जाओ!… तुझे मेरे अरमानों को, मेरे सपनों को तोड़ने में शर्म नहीं आई?… मैं कहता हूँ चली जाओ, मैं तुम्हारी यह सूरत नहीं देखना चाहता” राजेश चीख पड़ा। 

 ” नहीं ऐसा मत कहिए। “

  वह वहीं सिसकती, अपनी आंँखों को आंँचल से पोंछती खड़ी रही। राजेश तेजी से उठा, उसे धक्का देकर तेज गति से बाहर निकल गया, वह धङाम सी गिरी। 

  उसी रात वह घर छोड़कर कोलकाता चला आया। यहांँ आकर वह फौज में भर्ती हो गया। 

  विनीता भी मायके चली गई। उसके पिताजी परिस्थिति की गंभीरता को भांपते हुए उसका नामांकन नर्स के प्रशिक्षण के लिए एक संस्थान में करवा दिया। 



      फौज में भर्ती होने के कुछ वर्षों के बाद पड़ोसी मुल्क ने देश की सीमा पर हमला कर दिया। जवानों के खून उस मुल्क की हरकतों से उबल पड़े।  सरहद के इलाके धांय-धांय की आवाजों से प्रकंपित थे। बहुत भयंकर स्थिति थी। सैनिक अस्पताल घायलों से भरा था। कोई दर्द से चिल्ला रहा था तो कोई रक्ताभाव में मृत्यु की घड़ियांँ गिन रहा था। 

  राजेश भी बेड पर घायल अवस्था में बेहोश पड़ा था। एक नर्स तत्परता से उसके उपचार में लगी हुई थी। उस नर्स की विशेष सेवा-शुश्रुषा देख-भाल और डॉक्टरों के इलाज की बदौलत वह कई दिनों के बाद होश में आ गया।किन्तु उसके शरीर में बहुत पीड़ा थी। नर्स हर संभव प्रयास कर रही थी पीड़ा से निजात दिलवाने के लिए। इसी क्रम में जब वह उसका सिर सहला रही थी। राजेश ने सिर घुमाकर देखा तो पाया कि वह नर्स विनीता है। 

  विनता झट अपना मुखड़ा राजेश की छाती में छिपाकर बच्चों की तरह फूट-फूटकर रोने लगी। राजेश का हृदय सहानुभूति से भर गया, वह भी रो पड़ा, उसकी आंँखों से आंँसू बहने लगे। उसने विनीता को अपने वक्ष में भींच लिया। 

  “नहीं! नहीं! विनीता, मैं गलत रास्ते पर था, तू देवी है विनीता… काश मैं समझ पाता कि सौंदर्य ही स्त्री का वास्तविक रूप नहीं है, उसका व्यवहार, हृदय की भावनाएं ही उसके असली रूप का परिचायक है। औरत और मर्द के पवित्र रिश्ते को सौंदर्य के पैमाने से मापना कितनी भयंकर भूल है “उसने अपना उदगार व्यक्त किया। 

  राजेश का गला भर आया, उसने रूंँधे हुए गले से कहा,” मनुष्य के कुरूप होने से हृदय कुरूप नहीं होता है “

  विनीता को पाकर वह आनन्द विभोर हो उठा।

  राजेश सैनिक था और वह फौजी हौस्पीटल में नर्स थी। 

#समझौता

   स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित 

                मुकुन्द लाल 

                हजारीबाग (झारखंड) 

 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!