समझौता – पुष्पा पाण्डेय 

कांता जीवन भर समझौता ही तो करती आई है। अब जीवन के इस मोड़ पर वह थक चुकी है। मानसिक थकान असहनीय हो चुकी है। बचपन से लेकर आज तक समझौता ही तो किया।——–

बचपन से डाॅक्टर बनने का सपना देखा था, पर पिता जी विज्ञान विषय से दूर रहने को कहा, क्योंकि उसके लिए ट्युशन और प्रति दिन संस्थान में उपस्थिति अनिवार्य हो जायेगी। कला विषय घर पर भी रहकर पढ़ा जा सकता है। पढ़ाई तो जारी रखनी ही थी। समझौता कर लिया। अब सपने बदल गये। डाॅक्टर की जगह व्याख्याता ने ले लिया और एक दिन सपना साकार भी हो गया। शादी हुई और एक फिर समझौता नामक यम आकर खड़ा हो गया।

नौकरी छोड़ ससुराल आ गयी फिर पति के कारण दक्षिण भारत में रहना पड़ा। अंग्रेजी तो आती नहीं थी, नौकरी करना भूल ही गयी। घर और बच्चों की परवरिश में ही मैं ने अपनी खुशी ढूँढ ली थी। बच्चे स्कूल जाने लगे। फिर मध्य भारत में स्थानांतरण हुआ। कुछ दिन बाद अचानक एक दिन स्कूल से शिक्षिका का प्रस्ताव आया, क्योंकि मेरे पास बी.एड की भी डिग्री थी और मैं इनकार न कर सकी। मुश्किल से दस दिन स्कूल गये होगें कि फिर समझौता आ धमका। पति का बिल्कुल सहयोग नहीं मिलने से बच्चों की खातिर नौकरी छोड़नी पड़ी। दुख तो बहुत हुआ, लेकिन दूसरा विकल्प मुझे नजर नहीं आया। कर लिया समझौता।

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 बच्चों की शादी हो गयी और एक दिन अचानक पति भी छोड़कर चले गये।

जिन्दगी से समझौता कर अपना घर छोड़, बच्चों के साथ विदेश चली गयी। 

यहाँ फिर समझौता? ये समझौता मुश्किल है। अब-तक के समझौते में आत्म सम्मान का हनन नहीं हुआ था, लेकिन यहाँ…….

बहू ने अपनी किटी पार्टी में अपना रूतबा दिखाने के लिए बच्चों की ‘आया’ के रूप में परिचय कराया?

इससे समझौता नहीं कर सकती। वापस अपने घर जाना ही है।———

“दिनेश बेटा! मेरा टिकट करा दो हमें घर जाना है।”

“अरे माँ, वहाँ अब क्या रखा है जो जाओगी? यदि तुम्हे थोड़ा बदलाव चाहिए तो भैया के पास जा सकती हो।”

मैं ने मन-ही-मन सोचा- अब कहीं नहीं, अपने पति के घर से ही अर्थी निकलेगी। अब कोई समझौता नहीं। 

“अभी तो मुझे अपने घर ही जाना है बेटा। घर की बहुत याद आ रही है।”

“ठीक है जाओ, पर कुछ दिन में वापस आ जाना। वहाँ अकेले रहना ठीक नहीं।”

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निर्णय कर आई थी कि अब मेरा घर ही स्थायी निवास है तो कुछ व्यव्स्था तो करनी ही होगी।

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दिमाग में रघु का नाम सबसे पहले आया। रघु- मेरे चाचा का बेटा। चौदह साल मुझसे छोटा। शादी भी बढती उम्र में हुई। कारण गरीबी थी। सात साल का एक बेटा था, उसकी पढ़ाई भी यहीं शहर में होगी और मुझे एक परिवार भी मिल जायेगा। उसकी पत्नी सिलाई का काम करती थी सो यहाँ भी कर सकती है और रघु जब ट्रैक्टर चलाता है तो कार भी चला सकता था। एक लाइसेंस की ही तो जरूरत थी।

अब यहाँ कोई समझौता नहीं।

बच्चे नाराज जरूर हुए, लेकिन इस बार समझौता नहीं करने को ठान लिया था।

 

स्वरचित

पुष्पा पाण्डेय 

राँची,झारखंड।

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