सबसे बड़ी भूल (भाग – 3) – माता प्रसाद दुबे  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi: एक हफ्ते से ज्यादा समय तक रमादेवी कस्बे वाले घर में रहने के बाद भंडारे और पूजा पाठ को विधि पूर्वक सम्पन्न कराकर शहर वाले घर में वापस आ चुकी थी, रमादेवी के स्वास्थ्य में लगातार गिरावट आ रही थी,वह हमेशा उदास रहने लगी थी, प्रशांत आकाश उनकी पत्नियां सभी एक नजर रमादेवी को देखने के सिवा उनकी गिरते हुए स्वास्थ्य की तरफ देखने की कोशिश ही नहीं करते थे,

सब अपनी दुनिया में खोये हुए थे।”मम्मी तुम कस्बे वाला घर और मन्दिर का कब तक चक्कर मारती रहोगी,अब हम रहते भी नहीं,तुम बेकार में परेशान होती हों” प्रशांत रमादेवी के कमरे में आते हुए बोला। प्रशांत की बात सुनकर रमादेवी कुछ नहीं बोली। “मम्मी भैया ठीक कह रहे हैं,हमे वहा अब नहीं जाना है” आकाश कमरे में प्रवेश करते हुए प्रशांत की बातों का समर्थन करते हुए बोला।

उर्वशी और पूजा भी उनके पीछे-पीछे रमादेवी के कमरे में पहुंच चुकी थी,” मम्मी!आप क्यूं नहीं मन्दिर की सम्पत्ति और कस्बे के घर को बेच देती हैं, बेकार में खुद परेशान होती है और हमे भी परेशान करती है” उर्वशी रमादेवी को समझाते हुए बोली। पूजा उर्वशी की बातों में हां में हां मिला रही थी। रमादेवी उन लोगों से बिना कुछ बोले चुपचाप उनकी बातें सुन रही थी,वह पहले से ही जान चुकी थी कि उसके बच्चों की मंशा क्या है। तुम लोगों को और कुछ कहना है ” रमादेवी उन लोगों को हैरानी से देखते हुए बोली। कुछ देर तक सभी वहां पर खड़े रमादेवी के फैसले का इंतजार करते रहे फिर चुपचाप वहा से चलें गये।

रमादेवी के मन में उथल-पुथल हो रही थी,जिन बच्चों के लिए उसने अपना जीवन धन दौलत अपनी खुशियां सब कुछ समर्पण कर दिया उन्हें तो उसकी कोई परवाह ही नहीं थी, उन्हें तो बस पैसा चाहिए मां नहीं बच्चों के लिए खुद को भूल जाना उनकी हर इच्छा पूर्ण करना, शाय़द उसके जीवन की सबसे बडी भूल थी,वह भी ऐसी भूल जिसका कोई हल नहीं था,

उसका दिल जोरों से धड़क रहा था,वह बेचैन हो रही थी,वह अपने जीवन की सबसे बड़ी भूल को चाहकर भी नही भुला सकती थी,जिसके परिणामस्वरूप उसे आज उसे उस स्थिति से गुजरना पड़ रहा था कि उसके बच्चे उसकी और अपने पिता की पहचान तक को मिटा देना चाहते थे,इस दुख को रमादेवी सहन नहीं कर सकी और पास पड़े सोफे पर धम्म से गिर पड़ी और सदा के लिए खामोश हो गई।

सुबह के दस बज रहे थे रमादेवी के कमरे में कोई हलचल नहीं थी।”मम्मी!अभी सो रही हो क्या” रमादेवी के फैसले की आस लिए उर्वशी उसके कमरे में प्रवेश करते हुए बोली। सामने सोफे पर रमादेवी अचेत पड़ी हुई थी, उर्वशी उन्हें देखकर जोर-जोर से चीखने लगी। सभी लोग रमादेवी के मृत शरीर को पकड़कर दहाड़े मारते हुए एक दूसरे को देख रहे थे, क्योंकि अपनी मां की मां की असमय मृत्यु के जिम्मेदार थे वे लोग सिर्फ दिखावे के आंसू छलकाकर सभी पाखंडी अपनी मां के जाने का दुख प्रदर्शित कर रहे थे।

कस्बे में रमादेवी की मृत्यु की खबर फैलते ही आधे कस्बे के लोग शहर में रमादेवी के घर पर पहुंच चुकें थे,उनकी आंखों में रमादेवी के प्रति सहानुभूति और दर्द साफ छलक रहा था, पंडित दीनानाथ अपनी मुंह बोली दीदी को खोकर फूट-फूट कर रो रहें थे, प्रशांत आकाश उर्वशी पूजा सभी कस्बे वालों की भीड़ देखकर भयभीत हो रहें थे,

और रमादेवी से लिपटकर रोने का नाटक करने का प्रयास कर रहे थे, लेकिन पंडित दीनानाथ जी को उन लोगों के बारे में सब कुछ रमादेवी ने बताया था वह घृणित नजरों से उन लोगों को देख रहे थे, प्रशांत आकाश और उनकी पत्नियां पंडित दीनानाथ जी के सामने से दूरी बनाने का प्रयास कर रहे थे।

उसी समय रमादेवी जी के वकील वहा आते हुए प्रशांत से बोले। पंडित दीनानाथ जी को बुलाइए ” वकील प्रशांत को घूरकर देखते हुए बोले। “जी मैं यही मौजूद हूं,बताइए ” पंडित दीनानाथ अपनी आंखों से आंसू पोंछते हुए बोले। “स्वर्गीय रमादेवी जी ने जो वसीयत बनाई है, उसके हिसाब से अब आप कस्बे के उनके घर व मन्दिर की सम्पत्ति पर आपको पूरी तरह अधिकारी बनाया है उनके किसी भी बेटा बेटी बहू का उसमें कोई भी हिस्सा नहीं है,

उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार उनके मृत शरीर के सारे संस्कार कस्बे में ही किए जाए, और उनके पुश्तैनी मन्दिर के पास उनके पति रामनिवास की समाधि के बगल में उनकी समाधि का निर्माण किया जाए,यह सारी जिम्मेदारी उन्होंने अपने धर्म भाई पंडित दीनानाथ जी के ही द्वारा सम्पन्न होगे ” वकील पंडित दीनानाथ जी को रमादेवी जी की वसीयतनामे को सुनाते हुए बोले।

पंडित दीनानाथ जी रमा दीदी को याद करके फूट-फूट कर रोते हुए उनकी औलादों को कोस रहे थे, जिनके लालच ने आज उनकी रमा दीदी को उनसे छीन लिया था। प्रशांत आकाश उर्वशी पूजा मुजरिम की तरह सिर झुकाए चुपचाप खड़े हुए थे।

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सबसे बड़ी भूल (भाग -2)

सबसे बड़ी भूल (भाग – 2) – माता प्रसाद दुबे  : Moral stories in hindi

माता प्रसाद दुबे

मौलिक स्वरचित अप्रकाशित कहानी लखनऊ

#समर्पण

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