रूपजीवनी – जयश्री बिरमी : Moral Stories in Hindi

 Moral Stories in Hindi : दीक्षा छुटपन से ही बहुत चंचल थी,स्कूल ,कॉलेज में और दोस्तों के बीच बहुत ही पसंद की जाती थी।सुंदर तो थी ही उपर से थोड़ी स्मार्ट और पढ़ाई में लायक इन सब बातें उसका आत्म विश्वास को बनाएं रखती था।  पढ़ाई के साथ साथ उसने छोटे मोटे काफी क्लासेज कर खाना बनाना,ब्यूटीपार्लर का और ऐसी कुछ चीजें सिख रखी थी।

जैसे ही कॉलेज पास कर ली तो उसके पापा ने उसकी शादी उनके दोस्त के बेटे से करदी।अपने ससुराल में बहुत खुश थी।सास भी बड़े लाड़ प्यार से रखती थी।पति भी बहुत खयाल रखता था।शादी के तीन साल कैसे और कब बीत गए पता ही नहीं लगा।एक दिन ऑफिस से उसके पति की जगह उसका शव आया तो पूरे घर में कोहराम मच गया।अकस्मात  हुआ था उनका,बहुत ही घायल हए थे वह और  घावों की वजह से खून ज्यादा बह जानें से मृत्यु हो गई थी।

      पागल सी हो गई थी दीक्षा जब पति की अर्थी को घर से बाहर ले जाया जा रहा था।फिर तो चौथा,बारहवां,मरीना और बरसी की क्रियाओं में साल निकल गया लेकिन तब वह समझ चुकी थी कि आगे क्या होने वाला था।

घर में अब वह एक काम करने वाली मशीन बन के रह गई थी,सब के नाश्ते से ले कर रात के खाने का इंतजाम करना,बाजार से किराना लाना,फल सब्जी,दूध लाना बस पूरे घर की हर अवश्यता का जवाब दीक्षा ही थी।ऐसे ही दो साल और बीत गए ।छोटे देवर के लिए लड़की देखी गई और उसका विवाह भी तय हो गया घर मेहमानों से भर गया था और सारे मेहमानों में मामाजी के बेटे ने घर में रौनक लगाई हुई थी और उसे भी अच्छा लगा उसके चुटकुले सुन वह भी हंस देती थी।

घर के सारे काम निपटा के जब रात को वह सोने के लिए अपने कमरे में जाने रसोई घर से निकली तो देखा मामाजी का वही बेटा सामने आया और कुटिल मुस्कान के साथ उसका हाथ पकड़ कर उसे अपने आगोश में लेने की कोशिश की तो उसने जटके से उसे दूर कर दौड़ कर अपने कमरे में जा दरवाजा अंदर से बंद कर हाफतें हुए अपने बिस्तर पर लेट गई।रोते हुए कब नींद आई उसे पता ही नहीं चला।सुबह उठी और अपने दैनिक कार्यों से निपट कर वह रसोई में पहुंची और रात वाली बात भूलने की कोशिश करती कामों में ध्यान लगाने की कोशिश करती रही।

   अब पति के मृत्यु से लगे  अघात  को सहने के अलावा कोई चारा नहीं था दीक्षा के पास।धीरे धीरे घरवालों का उसकी और से बरताव बदलने लगे ।उसी को बदकिस्मत और उसके पति के मृत्यु में उसीकेे नसीब का दोष समझ उसे ही समाज लिया गया।अब वह समझ चुकी थी कि इस घर से उसके दाना पानी खत्म हो चुका था।

उसने उसके पापा से बात की और उनके घर चली गई।वहां भी घर बैठे उकता गई तो उसके पापा ने उस से कहा कि वह कहीं नौकरी करके तो मन लगा रहेगा।और एक दफ्तर में उसे कंप्यूटर ऑपरेटर की जगह खाली थी तो उसने वहां अर्जी भेजी और उसका चयन हो गया।और उसने दफ्तर जाना शुरू कर दिया।

खुश थी बहुत किंतु एक दिन सच्चाई का सामना करना पड़ा तो दंग रह गई।उसके बॉस ने उसे बुलाया और बोला,“दीक्षा,हम ने तुम्हे नौकरी दी हैं तो आप हमें क्या दे सकती हो? आप बहुत खूबसूरत और जवान भी हैं।“ काटो तो खून नहीं निकले ऐसी हालत दीक्षा की हो गई।चेहरे का रंग उड़ गया और हाथ पैर में एक सिहरन सी महसूस होने लगी।उसे लगा की वह गिर पड़ेगी लेकिन अपने आप को संभाला और वहां से अपनी जगह पर आके बैठ गई।बेसुध सी वह बहुत ही अपमानित महसूस कर रही थी।शाम को घर पहुंची और बिना खाएं पिएं सो गई।



दूसरे दिन उठी तो थोड़ा ठीक महसूस कर रही थी,चाय पी और तय किया कि वह दफ्तर नहीं जाएगी,नौकरी छोड़ देने की सोच ली।घरवालों हैरान थे कि उसने नौकरी क्यों छोड़ दी।

कुछ दिन घर में उदास सी रहने लगी तो उसने अपनी ब्यूटीशियन की कला याद आ गई तो अपनी दोस्त से मिली तो उसने सुझाया कि क्यों न वह होम सर्विस दें ताकि कोई समय का बंधन ही नहीं कोई दुकान की भी जरूरत नहीं।अब उसी ने उसे दो तीन क्लाइंट्स के फोन नंबर दिए तो वह उनके घर जाके फेशियल आदि करने लगी।

वह व्यस्त भी रहने लगी और थोड़ी कमाई भी होने लगी।कुछ महीने ऐसे ही चला लेकिन एकदीन किसी का कॉल आया और वह वहां गई तो किसी आदमी ने दरवाजा खोला तो उसने पूछा कि आज उसे बुलाया गया  था।तो उसने बोला,आप अंदर आइएं मेरी पत्नी बाथरूम में हैं।“ वह थोड़ी जिजक के साथ आगे बढ़ी और सोफे पर बैठ गई।काफी देर तक कोई आया नहीं तो वह उठी और बाहर की और जाने लगी तो वह आदमी जिसने दरवाजा खोला था वह आया और उससे थोड़ा और इंतजार करने के लिए

बोल कर चला गया।कुछ देर बाद फिर आया और उसे बोला कि वह उसे बेडरूम में बुला रहीं थी,तो वह उठ कर बेडरूम मेंचली गई क्योंकि ज्यादातर लोग शयनकक्ष में ही फेशियल आदि करवाते थे।जैसे ही वह अंदर गईं दरवाजा बंद कर वही आदमी वहां खड़ा था जिसके मुंह पर काम और मक्कारी हंस हंस कर उसकी और देख रही थी।

वह आगे बढ़ा तो उसने उसे जोर से धक्का मारा और वह बेड और गिर गया और अपना बैग भी वहीं छोड़ दरवाजा खोल भाग खड़ी हुई।उसने बैग के साथ साथ अपने उस काम को भी छोड़ दिया।फिर कुछ दिन घर में बैठ गई।फिर एक दिन उसकी दोस्त ने उसे बोला की एक परिवार में बच्चे को पढाना और संभाल ने का काम हैं तो उसे अच्छा लगा बच्चे के साथ समय अच्छा जायेगा ऐसा सोच उसने हामी भरदी।और दूसरे दिन पहुंच गई,बच्चा बड़ा ही प्यारा था, उसको पढ़ाती और जब वह स्कूल जाता तब वह कुछ पढ़ती या घर और रसोई भी संभाल लेती थी क्योंकि उसके माता पिता दोनों नौकरी पर चले जाते थे।



   एक दिन जब वह रसोई में थी,कुछ नाश्ता बनाके रखने की सोची कि बच्चा आयेगा तो खुश हो जायेगा।उसके सुने जीवन में बच्चे का प्यार ही था जिससे उसे शांति मिलती थी।तब दरवाजे पर

 घंटी बजी तो वह हैरान थी कि दुपहर के दो बजे कोई नहीं आता पता नहीं कौन होगा।ऐसा सोचती सोचती वह दरवाजा खोलने गई और सामने बच्चे के पापा को देख हैरान रह गई।उन्होंने कहा,” दफ्तर के काम से यहां से निकल रहा था तो सोचा घर भी होता चलूं।” और अंदर आके बेडरूम में चले गए।

लेकिन दीक्षा को कुछ अच्छा नहीं लग रहा था किंतु वह कुछ कह सके ऐसे हालात ही नहीं थे तो वह रसोई में जा अपना काम करने लगी।थोड़ी देर बाद उसे एहसास हुआ की कोई उसके पीछे खड़ा हुआ था तो पलट के देखा तो घर का मालिक घर के कपड़ों में खड़ा था,बनियान और छोटे से हाफ पैंट में।उसे कुछ अच्छा  नहीं लगा किंतु अनदेखा कर उसके काम में व्यस्त हो गई।तब उसने उसकी गर्म सांसे अपनी गरदन पर महसूस की तो पलट के देखा और वह कोई गंदी हरकत करे उससे पहले उसके बढ़ते हाथों को धक्का मार रसोई और फिर घरसे बाहर निकल गई।

घर पहुंच कर उसने सोचा कि दुनिया में सब ओर अगर स्त्री का शारीरिक शोषण ही होना था तो क्यों न अपनी मर्जी से ही उसे स्वीकार कर लिया जाएं।दफ्तर में बॉस,ब्यूटीशियन बनी तो क्लाइंट का पति,गवर्नेस बनी तो बच्चे का बाप अगर उन सबसे बचती नहीं तो आज वह पाक साफ थोड़ी बनी रहती।

उसने अपनी एक दोस्त को बात की तो उसने भी यही बात बताई और बोली कि वह भी इन्ही हालतों से गुजरी थी तब से वह कॉल गर्ल बन गई थी। उसने कहा,”दूसरें कामों के परदे में अगर यही काम करना पड़े उससे तो हम उसे व्यवसाय ही क्यों नहीं बना लें,कम से कम दूसरे व्यवसाय  पाकसाफ तो बने रहेंगे।” इतना सुन वह सुबक सुबक के रोने लगी और अपना स्त्री होने के अभिशाप से मुक्त होने की प्रार्थना करने लगी।

जयश्री बिरमी

 

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