रोली – चेतना

रोली, तुम्हें इनमें जो भी ड्रेस पसंद हो ले लो…” रोमिला ने अपनी भतीजी से कहा जो उसके साथ बाजार आई थी।

 

“क्या सच बुआ जी, मैं ये ड्रेस ले सकती हूँ…” बुआ की बात सुनते ही रोली के चेहरे पर चमक आ गई।

 

“हाँ, क्यों नहीं ले सकती। मैं तुम्हें इसीलिए तो अपने साथ बाजार लाई हूँ।” रोमिला ने उसे प्यार से कहा।

 

“लेकिन बुआ ये तो बहुत महंगी होगी ना…”

 

“तो तुझे इस बात से क्या लेना…”

 

“माँ गुस्सा करेगी… “रोली के आगे बढ़ते कदम पीछे हो गये।

 

“कोई कुछ नहीं कहेगा। ये मैं तुम्हें दिलवा रही हूँ। देखो ये पीली वाली ड्रेस बहुत प्यारी लग रही है। आजकल पीला रंग ट्रेंड में है। तुम यही पहनकर देख लो।” रोमिला बहुत प्यार से बोली।

 

रोमिला की शादी को दो साल हो गये थे, अभी तक उसको कोई बच्चा नहीं था। वो एक अच्छे पैसे वाले घर में ब्याही थी। रोली तो बचपन से उसकी जान थी। अब उसकी सूनी गोद रोली की तरफ और ज्यादा खींच जाती। रोमिला काे भाई का व्यापार बहुत अच्छा नहीं चल रहा था। महंगाई के इस जमाने में वो परिवार की जरूरतें पूरी कर ले, वही बहुत था… इतने महंगे और ब्रांडेड कपड़ों की तरफ तो देखना भी गुनाह था।

 

 

 


रोमिला अपने भाई की सहायता करना चाहती लेकिन भाई का आत्मसम्मान हमेशा आड़े आ जाता। इसलिए रोमिला बहाने से सबके लिए कभी कपड़े तो कभी कुछ और सामान ले आती। भाई-भाभी हमेशा उसको मना करते कि इतने महंगे गिफ्ट मत दिया कर। हम तो तुझे कुछ दे नहीं सकते , तेरा इतना खर्च कराना हमारे दिल को कचोटता है। लेकिन रोमिला हमेशा जिद करके सबको कुछ ना कुछ देकर जाती।

 

इस बार भी रोमिला जून महीने में गर्मी की छुट्टियों में भाये आई थी, जिससे भतीजा-भतीजी के साथ खलकर मस्ती कर सके। वरना सारे साल तो वो अपनी पढ़ाई में बिजी रहते हैं।

 

आज वो रोली को लेकर बाजार आई थी, घर पर उसने किसी को नहीं बताया कि वो उसके लिए कपड़े और उसकी पसंद का सामान लेने जा रही है, वरना कोई उसे जाने भी नहीं देता।

 

जब रोमिला अपनी नीली साड़ी पहनकर तैयार हुई तो वो बहुत प्यारी लग रही थी। रोली ने जब उसकी साड़ी की तारीफ की तो वो खुश होते हुए बोली, “तुम्हारे फूफा जी ने गिफ्ट की थी मेरे जन्मदिन पर…”

 

“फूफा जी बहुत अच्छे हैं ना बुआ जी…”

 

“हाँ और उन्होंने मुझसे ये भी कहा है कि रोली को भी सुन्दर सी ड्रेस दिला देना।”

 

“वाऊ, रोली भी बुआ के साथ बाजार जाने के लिए उत्सुक थी। उसे पता था कि बुआ उसको अच्छी-अच्छी चीजें दिलवाती है।

 

रोली ने बुआ की बताई ड्रेस देखी, सचमुच वो पीली ड्रेस बहुत सुंदर थी और रोली के ऊपर बहुत प्यारी लग रही थी। शाम को जब दोनों घर पहुँची तो समाना देखकर वेदिका(रोमिला की भाभी) बहुत गुस्सा हुई।

 

 

 

“दीदी, आप इतना सामन मत दिलवाया करो। बहुत बुरा लगता है। हम आपको कुछ नहीं दे पाते, और आप इतना सामान लाती हो। हम पर इतना एहसान मत चढ़ाओ दीदी!”

 

“भाभी, इसमें एहसान की कोई बात नहीं। आपने मुझे हमेशा इतना मान दिया, बचपन में भी रोली की तरह बेटी समझकर मेरे साथ व्यवहार किया, तो आपके प्यार और मान-सम्मान का बदला तो मैं नहीं उतार सकती, लेकिन मेरे और मेरे भतीजा-भतीजी के बीच आप नहीं बोलोगी। अब आप जल्दी से अपनी और मेरी चाय ले आओ, फिर हम मिलकर खाना बनाते हैं।” कहकर रोमिला कपड़े बदलने चल दी।


 

जिसे ही रोमिला कमरे में पहुँची, पीछे-पीछे उसकी माँ गायत्री जी भी कमरे में आ गई।

 

“रोमिला, बेटी तू इतना खर्च क्यों करती है। तेरा कितना खर्च हो जाता है यहाँ आकर… तेरा भाई तो तुझे कुछ देता नहीं.. मुझे बहुत बुरा लगता है।” गायत्री जी बोली।

 

“माँ, कैसी बातें कर रही हो आप… अगर मेरे पास सामर्थ्य है तभी तो मैं कुछ कर पा रही हूँ। भैया के पास नहीं सै लेकिन उनके दिल में तो कमी नहीं है। और अपने भतीजे-भतीजी को गिफ्ट देना किस बुआ को अच्छा नहीं लगता।”

 

“नहीं बेटा, तू नहीं समझती। अरे अपने लिए भी तो खर्च करते हैं दोनों, तुझे देने के नाम पर उनके पास कुछ नहीं होता। बहू को समझ नहीं आता कि ननद से इतना ना लिया करा। अपने ऊपर कितना एहसान चढ़ायेगा वो।”

 

तभी वेदिका चाय लेकर कमरे में आ गई। उसने सारी बात सुन ली थी। “ननद रानी, मैंने पहले ही कहा था हम पर इतना एहसान मत चढ़ाओ। हम ये एहसान कभी उतार नहीं पायेंगे। आप प्लीज ये सब वापस कर दो। हमारे पास जैसा है, वैसा ही हम अपने बच्चों को पहनाकर खुश हैं। लेकिन अपने आत्मसम्मान के साथ समझौता पसंद नहीं..” कहकर वो रोली को आवाज लगाने लगी।

 

 

 

“भाभी, कैसी बात कर रही हो आप। मैंने आपसे कब कहा कि मैं आप पर एहसान कर रही हूँ। मैं तो बस आपके प्यार और मान-सम्मान का छोटा सा मान रख रही हूँ।मुझे भी इन बच्चों के साथ खेलना और घूमना-फिरना अच्छा लगता  है। भगवान ने अभी तक मेरी गोद सूनी रखी  क्या इन बच्चों पर मेरा कोई हक नहीं…” कहते हुए रोमिला रो पड़ी।

 

“ननद रानी, ऐसे क्यों बोल रही हो। ये बच्चे भी तो आपके ही हैं। मैंने कभी आप में और इश बच्चों में कोई फर्क नहीं किया।” वेदिका ने रोमिला को गले लगा लिया। उसकी आँखे भी नम थी।

 

“तो मेरी शादी होने के बाद ये फर्क क्यों आ गया भाभी।” रोमिला सुबकते हुए बोली। “अगर आपको मेरा प्यार एहसान लगता है तो ठीक है मैं फिर कभी यहाँ नहीं आऊँगी।”

 


“कैसी बात कर रही है तू।” गायत्री जी एकदम बोली।

 

“हाँ माँ, यही ठीक रहेगा। भाभी के किये का तो आपने आज तक एहसान नहीं माना, मेरे पैसों का आपने एकदम एहसान रख दिया। क्या एहसान सिर्फ पैसों का होता है, दिल के एहसासों का कोई एहसान नहीं होता… माँ अगर आज के बाद आप भाभी और मेरे बीच आई तो मैं मायके आना बंद कर दूँगी।”

 

रोमिला की बात सुनकर गायत्री जी बड़बड़ाते हुए बाहर चली गई, “मुझे क्या, तुम दोनों जानो… कल को कोई मुझे मत कहना कि मैं इतना देती हूँ और मुझे मिलता कुछ नहीं…”

 

“माँ, हम आपसे कुछ नहीं कहेंगे। लेकिन चाय पीने तो आ जाओ।” रोमिला हँसते हुए बोली।

 

 

 

गायत्री जी कुढ़ते हुए चाय पी रही थी। रोमिला मस्त थी और वेदिका सोच रही थी ननद रानी सही कह रही है। सबको पैसे का एहसान दिखता है दिल के एहसासों का कोई एहसान नहीं दिखता।

 

दोस्तों ये सिर्फ एक कहानी नहीं। मेरे दिल के जज्बात हैं। आपको कैसी लगी मेरी कहानी, लाइक और कमेन्ट करके बताइए।

 

धन्यवाद

 

चेतना अग्रवाल

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