रिश्तों की धुरी: प्यारी सास – डा. शुभ्रा वार्ष्णेय : Moral Stories in Hindi

विमला देवी एक साधारण गृहिणी थीं, जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी अपने परिवार के लिए समर्पित कर दी थी। पति के देहांत के बाद, उन्होंने अपने दोनों बेटों अमित और मनीष को न केवल पाला

, बल्कि उन्हें अच्छे संस्कार भी दिए। अमित की शादी को तीन साल हो चुके थे, लेकिन उनकी पत्नी रिया अक्सर उदास और चुप-चुप सी रहती थी। विमला देवी को यह बात खटकती थी, लेकिन उन्होंने कभी सीधे हस्तक्षेप नहीं किया।

एक दिन उन्होंने रिया को किचन में रोते हुए देखा। यही घटना उनकी आंखें खोलने वाली साबित हुई और उन्होंने निश्चय किया कि वे अपनी बहू के जीवन को खुशहाल बनाएंगी।

विमला देवी ने रिया से जब उसके आंसुओं की वजह पूछी, तो रिया ने शुरुआत में टालने की कोशिश की। लेकिन जब विमला देवी ने स्नेहपूर्ण स्वर में उसे समझाया, तो रिया की चुप्पी टूट गई।

“मम्मीजी, मुझे ऐसा लगता है कि मैं इस घर में अपनी जगह नहीं बना पाई हूं। अमित मुझसे बात नहीं करते, और अगर मैं कुछ कहूं, तो वे नाराज हो जाते हैं। मैं कोशिश करती हूं कि सब ठीक करूं, लेकिन कुछ न कुछ गलत हो ही जाता है।”

यह सुनकर विमला देवी ने रिया का हाथ थामा और कहा, “बेटा, यह घर तुम्हारा भी है। कभी-कभी वक्त लगता है रिश्तों को मजबूत होने में। लेकिन याद रखो, हर समस्या का समाधान होता है।”

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अगले दिन, विमला देवी ने अमित को अपने पास बुलाया।

“अमित, तुम्हारे पास रिया के लिए कितना समय है?”

अमित ने थोड़ा चौंककर कहा, “मां, मैं ऑफिस के काम में इतना व्यस्त रहता हूं कि समय ही नहीं मिलता। लेकिन रिया से मेरी कोई शिकायत नहीं है।”

“बेटा, शिकायत तुम्हें नहीं है, लेकिन शायद रिया के पास शिकायतें हों। वह तुम्हारे साथ समय बिताना चाहती है। उसे तुम्हारे साथ की जरूरत है, न कि महंगे गहनों या कपड़ों की।”

अमित ने सिर झुका लिया। “मां, मुझे समझ में आ रहा है। मैं अपनी गलती सुधारने की कोशिश करूंगा।”

रिश्तों में मिठास लाने के लिए विमला देवी ने घर में एक छोटा सा उत्सव आयोजित करने का निश्चय किया। यह उनका बहाना था ताकि परिवार के सदस्य खुलकर हंसी-खुशी के पल बिता सकें।

उन्होंने अपने छोटे बेटे मनीष को भी बुलाया, जो शहर से बाहर नौकरी करता था। साथ ही उन्होंने रिया से कहा, “बेटा, इस उत्सव की तैयारी तुम संभालो। मैं चाहती हूं कि तुम हर चीज अपनी पसंद से तय करो।”

रिया ने मुस्कुराते हुए कहा, “मम्मीजी, क्या मैं सच में सबकुछ तय कर सकती हूं?”

“हां, बेटा। ये घर तुम्हारा है, और मैं चाहती हूं कि तुम इसे अपना महसूस करो।”

इस आयोजन के दौरान, रिया ने न केवल अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई, बल्कि उसने पहली बार पूरे परिवार के साथ खुलकर हंसी-मजाक किया। अमित ने भी रिया की मेहनत को सराहा।

“रिया, तुमने सबकुछ कितना सुंदर बनाया है। मुझे तुम पर गर्व है,” अमित ने कहा।

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यह सुनकर रिया की आंखों में खुशी के आंसू आ गए।

उत्सव के कुछ दिन बाद, विमला देवी ने महसूस किया कि मनीष की शादी के लिए भी बात करनी चाहिए। एक दिन उन्होंने रिया से कहा, “बेटा, मैं चाहती हूं कि तुम मनीष के लिए लड़की ढूंढने में मेरी मदद करो।”

रिया ने चौंककर कहा, “मैं? मम्मीजी, आप मुझ पर इतना भरोसा करती हैं?”

“बेटा, क्यों नहीं? तुम्हारी पसंद अच्छी है, और मुझे पता है कि तुम एक अच्छी बहू के गुणों को समझती हो।”

इसके बाद, रिया ने मनीष के लिए कुछ लड़कियों के बारे में जानकारी जुटाई। जब मनीष से यह बात की गई, तो वह भी इस प्रक्रिया में शामिल हुआ। मनीष को इस बात से खुशी हुई कि उसकी भाभी को भी उसकी शादी में इतना महत्व दिया जा रहा है।

एक दिन विमला देवी की पड़ोसन, सीमा, उनसे मिलने आई। वह अपनी बहू के व्यवहार से परेशान थी।

“भाभीजी, मेरी बहू मेरे हर काम में गलतियां निकालती है। मुझे समझ नहीं आता कि मैं क्या करूं,” सीमा ने शिकायत की।

विमला देवी ने उसे समझाते हुए कहा, “सीमा, कभी-कभी हमें खुद को अपनी बहू की जगह रखकर सोचना चाहिए। अगर वह गलती करती है, तो उसे डांटने के बजाय प्यार से समझाओ। हर लड़की को नए घर में एडजस्ट करने में समय लगता है।”

सीमा ने सोचा और कहा, “शायद आप सही कह रही हैं। मैं कोशिश करूंगी।”

अमित ने धीरे-धीरे रिया के साथ ज्यादा समय बिताना शुरू कर दिया। वह उसे रात को टहलने ले जाने लगा, और दोनों ने एक साथ फिल्म देखने का भी प्लान बनाया।

एक रात, जब दोनों छत पर बैठे थे, तो अमित ने कहा, “रिया, मैं समझता हूं कि मैं तुम्हें पहले नजरअंदाज करता था। लेकिन अब मैं वादा करता हूं कि मैं ऐसा नहीं करूंगा। तुम मेरे लिए सबसे खास हो।”

रिया ने भावुक होकर कहा, “अमित, मैं बस इतना चाहती हूं कि आप मेरे साथ रहें। आपके बिना यह घर अधूरा लगता है।”

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एक दिन रिया ने विमला देवी से कहा, “मम्मीजी, आपने मेरे जीवन को बदल दिया। आपने मुझे न केवल इस घर में जगह दी, बल्कि मेरी आत्मा को भी सुकून दिया।”

विमला देवी ने मुस्कुराते हुए कहा, “बेटा, सास का धर्म यही है कि वह अपने परिवार को जोड़कर रखे। अगर हर सास अपनी बहू को बेटी की तरह समझे, तो हर घर खुशहाल हो सकता है।”

विमला देवी की समझदारी और प्रेम ने उनके घर को एक आदर्श परिवार बना दिया। उनके प्रयासों से न केवल अमित और रिया का रिश्ता मजबूत हुआ, बल्कि मनीष और पड़ोस की सीमा को भी सीख मिली। विमला देवी समाज के लिए एक समझदार सास की क्या हो गया टूट गई पेंसिल मिसाल बन गई।

काश, ऐसी समझने वाली सास हर घर में हो!

प्रस्तुतकर्ता 

डा. शुभ्रा वार्ष्णेय 

# काश ऐसी समझने वाली सास हर घर में हो

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