घर के ना घाट के : Short Stories in Hindi

#घर के ना घाट के” – कविता भड़ाना

नहीं रहना मुझे इन दोनों में से किसी के भी साथ जज साहब…जब मुझे अपने माता पिता की सबसे अधिक जरूरत थी, तब ये मेरे जन्मदाता, दोनों ने ही मेरी जिम्मेवारी लेने से इंकार कर दिया था क्योंकि इन दोनों हाईप्रोफाइल सैलिब्रिटी मॉम डैड को मैं उनकी राह में कांटे की तरह नजर आता था.. मॉम को तो मैं चाहिए ही नहीं था क्योंकि उनका कैरियर उस समय आसमां की ऊंचाईयों पर था और डैड उन्हें तो अधिकतर रात को नशे में धुत होकर ही आते देखा है हमेशा… सोचिए कितना बदनसीब बच्चा हूं मैं…

मां के आंचल और पिता के स्नेह से हमेशा दूर ही रहा..

महंगे खिलौने, कपड़े, आया और बॉडीगार्ड के साथ पूरा बचपन जी लिया लेकिन सबसे कीमती चीज…

“मां बाप का प्यार” से वंचित रहा… और अब जब दोनो ही अपनी उम्र और कैरियर की ढलान पर है तो इन्हे अपने इस बेटे की याद आई है और कई सालों से अलग रह रहे दोनो को अपना ये बेटा क्यों अपने साथ चाहिए, तो जज साहब मैं आपको बता देना चाहता हूं की मेरे दादा जी अरबों की जायदाद मेरे नाम कर गए है और उसी सब को पाने के लिए  ये सब हो रहा है… मुझ से प्यार तो इन्हे ना कल था और ना ही आज है…मेरी आप से विनती है की मुझे मेरी दादी के साथ ही रहने की इजाजत दी जाए, जिन्होंने अपने प्यार और स्नेह से मुझे सबल और मजबूत बनाया, इन दोनों के रात दिन के झगड़ों से दुःखी और परेशान होकर मैं शायद इस दुनियां को कब का अलविदा कह चुका होता अगर मेरे दादा दादी मुझे अपने साथ नही लाए होते…

और आज आ गए है दोनों अपना हक जमाने….

बेटे के रूप में दिख रही दौलत और शोहरत पाने की आस में उसके मॉम डैड ….

“ना घर के रहे और ना ही घाट के”…

स्वरचित, मौलिक रचना

#घर के ना घाट के”

कविता भड़ाना

अंधेरा   –  बालेश्वर गुप्ता

   देखो विक्की मैं दो वर्ष से तुमसे शादी का इंतजार कर रही हूं।तुम पर विश्वास कर तुम्हे मैंने अपना सबकुछ सौप दिया है।तुम्हारे बच्चे की माँ बनने वाली हूँ, अब तुम्हे समाज के सामने स्वीकार करना ही पड़ेगा।

       अरे अंजू,ये तो खुश खबरी है।मैं अगले रविवार को ही तुमसे आर्य समाज मे शादी कर लूंगा।तुम मुझ पर अविश्वास भला कैसे कर सकती हो?

    सुन कर अंजू विक्की के गले लग जाती है।विक्की के मन मे उथल पुथल छा जाती है।उधर गावँ में बैठी पत्नी मंजू और घर वालो को क्या उत्तर देगा।अंजू को दो वर्षों से तो टाल रहा था,पर अब तो शादी करनी ही पड़ेगी।विक्की ने योजना बना ली कि अंजू से शहर में ही शादी कर यही ऐसे ही रखेगा,गावँ में किसी को पता ही नही चलेगा।ऐसा सोच वह शादी की योजना बनाने लगा।

   उधर गावँ में मंजू को विक्की के हावभाव संदिग्ध लग रहे थे कि उसे अंजू का एक पत्र विक्की के कपड़ो से मिला।उसे पढ़कर सारी स्थिति पता चल गयी।अंजू अपने पिता और विक्की के माता पिता को सारी स्थिति से अवगत करा उनके साथ शहर पहुंच गयी।विक्की के दफ्तर से उसका पता लेकर सब उसके फ्लेट पर पहुंचे जहां विक्की अंजू के साथ शादी की तैयारी में व्यस्त था।अपने माता पिता,ससुर के साथ मंजू को देख वो हक्का बक्का रह गया।बहाने बाजी की कोई गुंजाइश थी ही नही।मंजू ने तो उसे दुत्कार ही दिया और अपने पिता के साथ वापस जाने का निर्णय सुना दिया और साफ कह दिया कि उसे ऐसे धोखेबाज के साथ रहना ही नही है।अंजू को भी अभी पता चलता है कि विक्की तो शादीशुदा है।ऐसे व्यक्ति का क्या भरोसा कि वह भविष्य में किसी अन्य को अपने जाल में नही फ़सायेगा।अंजू ने भी  सोच लिया कि वह गर्भपात करा, नई जिंदगी प्रारम्भ करेगी,ऐसे व्यक्ति के साथ नही रहेगी।

    एक झटके में विक्की के पत्नी,प्रेयसी, और माता पिता सभी से संबंध विच्छेद हो गये थे।

विक्की की आंखों के आगे अंधेरा छा गया था,पर आज वो नितांत अकेला था।

         बालेश्वर गुप्ता, नोयडा

स्वरचित, अप्रकाशित।

#घर का न घाट का

लालच बुरी बला” – हेमलता गुप्ता

विशाल सीए बनकर अभी एक कंपनी में लगा था! विशाल शुरू से ही बहुत होशियार था और उसके सपने भी बहुत बड़े थे! विशाल अपने बचपन की दोस्त सुहानी से प्रेम करता था! विशाल और सुहानी ने साथ जिंदगी बिताने के अनगिनत सपने देखे थे! आज विशाल बहुत खुश था! वह सुहानी से अपने रिश्ते की बात करने जैसे ही घर पहुंचा देखा …उसके मम्मी पापा आज बहुत खुश नजर आ रहे हैं! विशाल ने उनसे इतना खुश होने की वजह पूछी तो विशाल के पापा ने कहा– बेटा आज मैं बहुत खुश हूं ,आज विक्रम जी स्वयं अपनी बेटी के लिए तेरा रिश्ता मांगने आए थे! विक्रम जी बहुत बड़े उद्योगपति हैं !वह एक फ्लैट गाड़ी गहने और नगद तो अभी देंगे ही, बाद में अपना सारा कारोबार तुझे सौंप देंगे; ईशा इनकी इकलौती बेटी है! सोच कर देख तेरे सारे सपने इतनी जल्दी पूरे होने जा रहे हैं !  पर पापा .….आपको तो पता है मैं सुहानी को चाहता हूं और उसी शादी भी करना चाहता हूं! मैं उससे बहुत प्यार करता हूं !   अरे प्यार व्यार सब बकवास बातें हैं; और सोच कर देख तेरा खुद का बंगला गाड़ी तेरा भविष्य ..क्या होगा ,इस तरह उन्होंने विशाल को सब्जबाग दिखाने शुरू किए और विशाल भी उनके दिखाएं सब्जबाग में फस गया !उसे लगा सुहानी से अलग होकर थोड़ा दुख जरूर होगा ;किंतु आगे मेरा भविष्य कितना उज्जवल होगा! अगले ही दिन वह ईशा से मिलने उसके घर गया! वहां जाकर उसे पता चला कि ईशा मंदबुद्धि है! इसीलिए विक्रम जी अपने पैसों के दम पर विशाल को खरीदना चाहते थे! विशाल ने इस रिश्ते से मना कर दिया– कहा कि वह पैसों की खातिर ईशा से शादी करके अपनी जिंदगी बर्बाद नहीं कर सकता !वह तुरंत सुहानी के पास पहुंचा, किंतु सुहानी ने यह कहकर विशाल से रिश्ता तोड़ लिया कि वह ऐसे लालची व्यक्ति से आगे कोई भी संबंध नहीं रखना चाहती! थोड़े से लालच की वजह से आज विशाल ना “घर का रहा ना घाट का” उसने लालच की वजह से सुहानी को भी खो दिया!

हेमलता गुप्ता

स्वरचित

#घर का न घाट का – के कामेश्वरी

रामेश्वर अपने घर में सबसे बड़े बेटे थे । उनसे छोटे दो भाई और एक बहन थी । बहन रुक्मिणी कीशादी हो गई थी । दोनों भाई पढ़ रहे थे ।

रामेश्वर जब बारहवीं की परीक्षा दे रहे थे तभी उनके पिता की मौत हो गई थी । उनके पिता कॉलेज मेंलेक्चरर थे उनका सब सम्मान करते थे क्योंकि वे गोल्ड मेडलिस्ट थे  बहुत ही होशियार थे ।

चाचा जी रामाराव उसी कॉलेज में गणित के लेक्चरर थे । उन्होंने अपनी भाभी से कहा कि जब तकआपके बड़े बेटे को नौकरी नहीं मिल जाती मैं आपके परिवार की देखभाल करूँगा ।

अपने वादे के मुताबिक़ रामेश्वर को बी एस सी तक पढ़ाया । रामेश्वर खुद भी बहुत होशियार थेइसलिए बिना सिफ़ारिश के ही उन्हें उसी कॉलेज में केमिस्ट्री के लेक्चरर के ओहदे पर नौकरी मिल गईथी ।

रामाराव ने रामेश्वर के लिए लड़की भी ढूँढकर रामेश्वर की शादी करा दी थी और भाभी से कहा भाभीआपका बड़ा बेटा नौकरी करने लगा है बहू भी आ गई है दोनों छोटों की परीक्षा ख़त्म होते ही नौकरीलग जाएगी अब अपने परिवार की ज़िम्मेदारी आप ले लीजिए । 

रामेश्वर की पत्नी सुशीला  बहुत बड़े घर की बेटी थी। उसके मामा कलेक्टर थे। उन्होंने रामेश्वर सेकहा कि इस छोटे से गाँव में लेक्चरर की नौकरी करते हुए कितने दिन बिताओगे मेरे पास आओ मैंनागपुर में नौकरी दिलवा दूँगा ।

रामेश्वर की आँखों में बड़ी नौकरी बड़े सपने थे । उन्होंने वहाँ जाकर दूसरी नौकरी करने की सोची बसकॉलेज में नौकरी से इस्तीफ़ा देना था । चाचा ने माँ ने भाइयों ने सबने मिलकर कहा कि गर्मी कीछुट्टियों हैं इस्तीफ़ा देने की ज़रूरत नहीं है पहले वहाँ जाकर नौकरी कैसी है देखकर थोड़े दिन कर लेअच्छा लगा तो वापस आकर इस्तीफ़ा दे देना । रामेश्वर की आँखों पर तो बड़े शहर और मोटीतनख़्वाह का चश्मा लगा हुआ था इसलिए कॉलेज में इस्तीफ़ा दे दिया ।

बहुत सारे रंगीन सपनों के साथ नागपुर में उतरे और कलेक्टर जी के साथ एक सरकारी ऑफिस गएऔर वहाँ उनकी क्लर्क की नौकरी लग गई थी ।

रामेश्वर ने घर में सबको खुश खबरी सुना दी । सुशीला भी खुश थी कि पति के साथ अलग घर बसानेको मिलेगा ।

इधर रामेश्वर को गए एक महीना हुआ कि नहीं रोज फ़ोन करते थे कि माँ मुझे यहाँ का खाना पसंदनहीं आ रहा है । मैं बहुत थक जा रहा हूँ । यहाँ काम बहुत ज़्यादा है । माँ क्या करती उसे समझाती थीकि बेटा तेरे तनख़्वाह से ही घर चल रहा है कोई गलत कदम नहीं उठाना । एक महीने बाद तेरी पत्नीको भेज दूँगी । एक दिन सुबह सवेरे रामेश्वर अपनी अटैची लेकर आ गए । सब लोग उन्हें देख करअचंभे में खड़े थे समझ नहीं आ रहा था क्या कहें क्योंकि उन्होंने वहाँ भी इस्तीफ़ा दे दिया था ।

कॉलेज तो खुले नहीं थे बहुत हाथ पैर मारे परंतु कुछ नहीं हो सका । बिना नौकरी के वे घर में बैठ गएथे । उनकी हालत घर का ना घाट के समान हो गई थी ।

बाद में दोनों भाइयों को चेन्नई में नौकरी मिली और सब इनके परिवार को भी लेकर चेन्नई चले गए थे। एक छोटी सी गलती के कारण अपने परिवार के साथ छोटे भाइयों पर बोझ बन गए थे ।

दोस्तों सही समय पर निर्णय लेना चाहिए वरना घर का ना घाट का हो जाना पड़ता है।

स्वरचित

के कामेश्वरी

#घर का ना घाट का – रश्मि सिंह

शांति-सुशीला अब तो बहू ले आ, कब तक करेगी काम। पृथ्वी की सरकारी नौकरी लगे 4 साल हो गये है, अब तो घर बसा दे उसका।

सुशीला-अरे शांति तू तो जानती है मेरा पृथ्वी सरकारी कॉलेज में लेक्चरर है, वेतन गैजेटेड ऑफिसर का है, तो उसके हिसाब से ही शादी करूँगी। कोई रिश्ता सटीक बैठ ही नहीं रहा।

शांति (मन ही मन) कहती है कि दहेज अच्छा नहीं मिल रहा तभी रिश्ता सटीक नहीं बैठ रहा।

मोहन (सुशीला का पति)-सुनो कल मिश्रा जी आ रहे है, उनकी लड़की बहुत सभ्य और सुशील है पूरे घर को अच्छे से सम्भाल लेगी, उनके यहाँ रिश्ता करते है अपने पृथ्वी का।

सुशीला-एक बात कान खोलकर सुन लो, पहले ही पूछ लो एक बड़ी गाड़ी और दहेज अच्छे से दे पायेंगे, तभी बुलाना। ऐसे ही मैं किसी ऐरे गेरे नथु गेरो की आवभगत नहीं करूँगी।

मोहन-ऐसे ही दहेज के लालच में पृथ्वी को 30 का कर दिया है, उसकी भी कुछ ख्वाहिशें है, समय पर घर परिवार बस जाए।

सुशीला-मेरा पृथ्वी तो कुछ नहीं कहता, तुमको ज़्यादा पड़ी है उसकी शादी की।

सुशीला जी के लालच की वजह से आज पृथ्वी 34 का हो गया है और अब उसे ढंग की लड़की नहीं मिल रही है। पृथ्वी भी अब कहने लगा है कि माँ आपकी वजह से “ना मैं घर का रहा, ना घाट का।”

स्वरचित एवं अप्रकाशित।

रश्मि सिंह

लखनऊ।

#घर का ना घाट का। – अंजना ठाकुर

श्याम जी और ललिता जी ने अपने बेटे के विदेश जाने के बाद अपने देवर के बेटे बिरजू को अपने पास रख लिया इतनी बड़ी कोठी मैं अकेले रहना उन्हे सता रहा था विदेश से बेटा हाल चाल पूछता रहता बिरजू के आने से वो भी खुश था उसकी चिंता कम हो गई की मां बाबूजी अकेले है बिरजू पूरे दिल से दोनों की सेवा करता जल्दी ही उसने उनके दिल मै अपनी जगह बना ली दो तीन साल बाद श्यामजी ने सेवा देखकर निर्णय लिया की अपना घर बिरजू के नाम ही कर देंगे कल को शादी हुई तो उसकी पत्नी भी आराम से रहेगी अपने बेटे से भी बात कर ली वो भी राजी था

इधर बिरजू को  जायदाद का लालच आ गया तो उसने ताऊजी की धमकी दी की अगर घर उसके नाम नही किया तो दोनों को मार देगा और जायदाद पर हस्ताक्षर करने की कहने लगा जैसे तैसे दोनो ने भागकर खुद को कमरे मै बंद किया और पुलिस को फोन किया

बाद मैं पता चला की घर उसके नाम ही करने वाले तो उसे पछतावा हुआ अब वो ना घर का रहा ना घाट का

घर तो मिला नही साथ मैं जेल की हवा खानी पड़ रही है

#घर का ना घाट का

अंजना ठाकुर

#घर का न घाट का – सरोज माहेश्वरी

लालच धन का न छोड़े घर का न घाट का

           धन का लालच जब रिश्तों पर भारी पड़ जाता है तब लालची व्यक्ति न तो घर का रहता है और न ही घाट का ……

        आज आलोकनाथ के घर मुम्बई से रामप्रसाद जी उनकी पत्नी और बेटा सौरभ आलोक नाथ जी की बेटी सौम्या को देखने आए थे। मेहमानों का स्वागत किया गय़ा। सौरभ और सौम्या आधुनिक और खुले विचारों के बच्चे थे। दोनों ने आपसी सहमति से जीवन साथी बनने का निर्णय अपने माता पिता को सुना दिया। सौरभ ने एक शर्त रखी कि वे पहले छः महीने आपस में फोन पर बात करके एकदूसरे की पसंद नापसंद को जान लेगें फिर शादी करेंगे। दोनों रोज फोन पर बात करते।

                     कुछ दिनों में सौरभ को सौम्या के व्यवहार में कुछ परिवर्तन नज़र आया। वह अक्सर फोन पर अपने दोस्त से बात करती और सौरभ को अनदेखा करती। एक दिन सौरभ ने फोन किया तो सौम्या के कमरे से किसी पुरुष की जोर जोर से चिल्लाने की आवाज़ें आ रहीं थीं सौम्या ने फोन मेज पर रख दिया और गलती से बंद करना भूल गई। लड़का कह रहा था सौम्या तुम ऐसा नहीं कर सकतीं, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ मेरे प्यार को पैसे से मत तोलो…मैं धनवान तो नहीं पर मैं तुम्हें सदा खुश रखूँगा। सौम्या बोली…दीपक! तुम समझते क्यों नहीं? बिना पैसे के जिन्दगी नहीं चलती है। मैं तुमसे अलग नहीं हो रही।  मेरी एक योजना है। अभी मैं सौरभ से शादी कर लेती हूं कुछ महीनें बाद दहेज और प्रताड़ना का आरोप लगाकर उससे तलाक ले लूँगी पैसा भी खूब मिल जाएगा उसके धनाढ्य मां बाप अपनी इज्ज़त बचाने के लिए मुंह मांगी रकम दे देगें…एक और निशाना है। मेरा भाई विदेश में रहता है वह मांबाप की खबर भी नहीं लेता है मेरे माँ बाप पर भी अच्छी खासी दौलत है मैं बहला फुसलाकर  उनसे भी सारी जायदाद अपने नाम करा लूंगी । दीपक!फिर हमारी तुम्हारी जिन्दगी चैन से कटेगी। सौरभ ने बड़ी चतुराई से सौम्या की बातें रिकॉर्ड कर ली जब सौम्या के मातापिता को रिकार्डिंग सुनाई तो उनके पैरों तले ज़मीन खिसक गई।

                                 दूसरी ओर दीपक ने भी प्यार का रिश्ता तोड़ दिया जो लड़की  अपने माता पिता की नहीं हो सकती वह अपने प्रेमी से कैसे वफादार हो सकती है? सौरभ ने तो पहले ही शादी के लिए इंकार कर दिया। सौम्या के मातापिता ने भी ऐसी निकृष्ट औलाद से नाता तोड़कर अपनी सारी सम्पति अपनी मृत्यु के उपरांत अनाथालय के नाम करदी ।अधिक धन के लालच में सौम्या को न प्यार मिला न अच्छा घरबार मिला और न हीं माँ बाप की दौलत…. वह न घर की रही न घाट की…

स्व रचित मौलिक रचना

सरोज माहेश्वरी पुणे (महाराष्ट्र)

#घर का न घाट का I

#घर के ना घाट का – स्नेह ज्योति

मध्यम वर्ग में पला बड़ा हुआ अंशुल बहुत ही मेहनती था । लेकिन उसे सब काम अपने तरीक़े से करना पसंद था ।पढ़ाई में हमेशा अच्छे नम्बर लाकर भी उसे नौकरी नही मिल रही थी । ऊपर से घर वालो को रोज जवाब देते-देते थक गया था ।

एक दिन नौकरी ना मिलने की वजह से हताश

अंशुल अपने ही सोच में लीन चला जा रहा था । तभी पीछे से आवाज़ आयी और मुड़ के देखा तो अंशुल को अपना पुराना दोस्त राजीव मिला । वो एक सरकारी नौकरी में कार्यरत था ।जब उसे अंशुल की दयनीय स्थिति का पता चला तो, उसने उसे आश्वासन दिया की वो कुछ करता है। ये जान अंशुल को राहत मिली क्योंकि वो कई बार साक्षात्कार कर चुका था लेकिन कोई अच्छा परिणाम नही मिला ।

कई दिन ऐसे ही बीत गए घर वाले उसे रोज टोकते बेटा ऐसे ख़ाली बैठने से कुछ हासिल नहीं होगा । जाओं जाकर नौकरी धुंडो घर बैठें कुछ नहीं मिलता ।

अंशुल हंसते हुए क्या पापा आप भी कौन सी दुनिया में रह रहे हैं। आज कल खाना भी घर बैठें मंगाते हैं , ऑफ़िस का काम भी अब घर बैठें हो जाता है तो नौकरी भी मिल ही जाएगी ।

एक सुबह राजीव का फ़ोन आया और अंशुल का मुँह लटक गया । अंशुल को ऐसे देख उसकी माँ ने पूछा-“क्या हुआ अंशुल “?? कुछ नही माँ बस आज के युग में इतना पढ़ा-लिखा होने के बाद भी नौकरी नहीं मिल रही है ।

क्या हुआ बताओ तो …..

माँ ! राजीव कह रहा है नौकरी पाने के लिए कुछ रुपए लगेंगे और नौकरी मिल जाएगी । मनोहर जी ने उसे समझाया कि बेटा ये ठीक नहीं है !हमेशा सीधा रास्ता चुनना चाहिए । अब तक सीधे रास्ते पर ही चल रहा था , क्या हासिल हुआ ?? बच्चे चाहें अपने माँ-बाप की ना सोचें पर, माँ-बाप हमेशा उनके लिए ही जीतें हैं ।

अंशुल के पापा ने उसके लिए अपनी फ़िक्स डिपॉज़िट की आधी रक़म वक्त से पहले तोड़ दी । जिसकी वजह से उन्हें थोड़ा नुक़सान उठाना पड़ा ।अगले दिन अपने पापा के साथ जाकर वो राजीव और उस आदमी से मिले जो इंटरव्यू लेता है ।

अंशुल ने सारे पैसे उसे दे दिए , तभी मनोहर जी बोले “बेटा नौकरी मिल जाएगी ना , मेरे जीवन की निधि है ये जो मैं तुम्हें दे रहा हूँ “….

राजीव – “आप बिलकुल निश्चिंत रहिए अंकल नौकरी पक्की हैं “।

मनोहर जी मुस्कुरा के अपना डर छुपा गए , क्या करे बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए सब करना पड़ता है ।

आख़िर कार वो दिन आ ही गया जब अंशुल का साक्षात्कार होना था । सुबह उठ माँ-पापा का आशीर्वाद ले वो निकल गया । अब सब अच्छा हो जाए बोल भगवान के आगे नारियल भी फोड़ दिया। तभी राजीव का फोन आया कहाँ हों ??? भागता घबराता हुआ अंशुल ऑफ़िस पहुँचा , तो पता चला कि जिसने इंटरव्यू लेना था , उसका तबादला हो गया हैं । ये सुन ! अंशुल कुछ ना कह पाया । राजीव उसे हिला-हिला के बोल रहा था ,पर अंशुल बेजान सी मूर्त बन गया।

अब क्या होगा पापा की कमाई भी लगा दी और कुछ हासिल भी नही हुआ । मैं पापा को क्या बोलूँगा ???

राजीव – यार मुझे पता ही नही चला और उसका तबादला अचानक से हो गया । अगर मुझे पता होता तो मैं तुझे इस जोखिम में ना डालता । तभी मेरा नाम अंदर बुलाया गया !आप अंदर जाइए …..

जब मैं अंदर गया तो अपने आप को लुटा हुआ महसूस कर रहा था । अब क्या जवाब दूँ ? क्या कहूँ खामोशी से बाहर आ गया ।

शाम को घर जा कर पापा के कदमों में गिर कर माफ़ी माँगी । आप सही कहते थे पापा ! हमेशा सही और सीधा रास्ता चुना चाहिए, शॉर्ट कट से ना घर के रहे ना घाट के ……

#घर के ना घाट का

स्वरचित रचना

स्नेह ज्योति

#घर के ना घाट का – संगीता अग्रवाल 

” क्या कह रही है आप डॉक्टर मैं ओर माँ.. नही नही मैं अभी बच्चा नही चाहती मेरी कम्पनी अपने ऑफिस की सबसे होनहार एम्प्लाई को विदेश भेजेगी और मेरा स्कोर ऑफिस मे सबसे अच्छा है !” दिशा बोली।

” दिशा बेटा तरक्की तो होती रहेगी पर बच्चे तो भगवान का प्रसाद है उसे क्यो ठुकराना !” सास ने समझाया।

” मम्मी जी आप तो रहने दीजिये आप नही समझती ऐसे मौको के लिए तो मैं कुछ भी ठुकरा सकती हूँ रही बच्चे की बात वो कुछ साल बाद भी हुआ तो कौन सी आफत आ जाएगी !” दिशा बोली।

दिशा के पति ने भी उसे समझाया कि शादी को चार साल हो चुके है अब बच्चा हो जाने दो विदेश जाने के मौक़े फिर आएंगे। यहाँ तक की दिशा की मम्मी ने भी समझाने की बहुत कोशिश की पर उसने किसी की ना सुनी और चुपचाप गर्भपात करा आई। जब घर मे सबको पता लगा तो बहुत हंगामा भी हुआ पर दिशा को कोई परवाह नही थी। वो तो विदेश जाने के सपने देख रही थी।

जब कम्पनी की तरफ से विदेश भेजने की बात हुई तो उसकी जगह किसी ओर को भेज दिया गया ये बोल कि जो  प्रोजेक्ट वो हैंडल कर रही है उन्हे जल्द से जल्द पूरा करना जरूरी है। दिशा मन मसोस कर रह गई। उसके बाद उसने कितनी कोशिश कि पर ना वो माँ बन पाई ना ही विदेश जा पाई। शादी के सात साल बाद तक भी जब वो दुबारा माँ नही बनी तो उसने अपनी जांच करवाई तब पता लगा जल्दबाज़ी मे नौसिखिया डॉक्टर से गर्भ गिरवाने से उसके गर्भाशय को क्षति पहुंची है और वो अब कभी माँ नही बन पायेगी। अब दिशा पछता रही है क्योकि वो ना ” घर की रही ना घाट की” । जिस तरक्की के लिए उसने एक मासूम की हत्या उसके पैदा होने से पहले ही करवा दी थी वो तरक्की भी नही मिली और जिंदगी भर को माँ बनने के एहसास से भी वंचित रह गई।

संगीता अग्रवाल ( स्वरचित )

#घर का  ना घाट का

#देस-परदेस – गुरविंदर टूटेजा

#घर का ना घाट का

अप्रकाशित

 अनय मैं अभी भी बोल रहा हूँ तुम ये यू एस ए जाकर पैसे कमाने का विचार बदल दो बेटा यहाँ भी बहुत कुछ है करने को…रीता आप अपने बेटे को  समझाइये…!!!!

  वो कुछ बोलती उससे पहले अनय ने कहा कि मम्मी आप रहने दो और पापा  मैं तो जाऊँगा कल मुझे निकलना है और आज ये बातें लेकर बैठ गये हैं…!!!!

 ठीक है तो फिर कुछ भी हो तो हमें मत बोलना तुम जानो तुम्हारा काम जाने…संजीव गुस्से में अंदर चले गये…!!!!

  अगले दिन अनय चला गया व वहाँ पहुँचकर एक दोस्त जिसने बुलाया था उसके यहाँ रूका फिर उसने उसे समझाया कि तू यहाँ की लड़की से शादी कर से तो तुझे यहाँ की सिटिजनशिप मिल जाएगी फिर तू आराम से बिना टेन्शन के रह सकता है…!!!!

 उसको कोई मनपंसद का काम भी नहीं मिला ना कोई लड़की अब उसका वीजा भी एक्सपायर होने वाला था अब उसे पापा की बात समझ आ रही थी कि वो कैसे फँस गया है घर का रहा ना घाट का….!!!!

 पर कहते है ना माँ-बाप ही होते है जो  कितने भी नाराज हो जाये साथ भी वही देते है…आज वो वापस आकर पापा के गले लगकर बहुत रोया और सबको यही समझा रहा था कि अपने देश सा अपनापन कही नहीं…!!!!

मौलिक व स्वरचित©®

गुरविंदर टूटेजा

उज्जैन (म.प्र.)

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