आठवां वचन – Short Story in hindi

मानव एक कॉल सेंटर में जॉब के साथ अपना मैरिज ब्यूरो भी चलाता था जिसमें उसने बहुत सारे पसंद के लोगों को एक दूसरे से मिलवाया भी था। मानव की खुद उम्र ज्यादा नहीं थी वो खुद अभी तीस बत्तीस साल का ही था पर उसने खुद शादी नहीं की थी। 

वैसे भी एक शादी के लिए लड़के पक्ष और लड़की पक्ष की अजीब-अजीब शर्त उसे कई बार बहुत हैरान परेशान कर देती थी। इतने सारे रिश्तें करवाने के बाद उसने महसूस किया कि चाहे हम इक्कीसवी शताब्दी में पहुंच गए हों और चाहे लड़का-लड़की कितने भी पढ़े लिखे क्यों ना हो पर अभी भी भारतीय समाज में शादी दो परिवारों का मिलन होती है।

उसे ये भी लगा कि अब लड़कियां इतना पढ़ने लगी हैं और अपने पैरों पर खड़ी होने लगी है तब भी लड़के वाले एक परंपरागत दुल्हन की आस लगाए होते हैं। उनको लगता है कि वो घर को भी संभाले और नौकरी भी करे। इन सबको देखते हुए लड़कियां भी मुखर होने लगी हैं वो अपने सपनों के ससुराल के विषय में बहुत स्पष्ट राय रखने लगी हैं।

इसी तरह से सब चल रहा था।मानव अपने हाईटेक मैरिज ब्यूरो के द्वारा कई सारी शादी करा चुका था लेकिन सब यही पूछते थे कि उसका नंबर कब आएगा? वो मुस्कराकर रह जाता था। असल में शादी को लेकर लड़के-लड़की और उनके परिवारों की एक-दूसरे को लेकर जो अनगिनत अपेक्षाएं होती थी उसको देखकर अब वो इससे घबराने लगा था।

 वैसे भी उसको लगने लगा था कि अगर उसकी नियति में शादी लिखी होगी तो जरूर होगी नहीं तो इन झमेलों में पड़ने से अच्छा वो कंवारा ही भला है। यही सब उसके दिमाग में चलता रहता। एक दिन उसके मैरिज ब्यूरो में एक लड़की धानी का प्रोफाइल आया,प्रोफाइल के लिए जो फोटो उसका भेजा गया था उसमें उसकी मासूमियत और निश्चल सी आंखें किसी का भी ध्यान आकर्षित करने के लिए काफी थी।

वैसे तो मानव अधिकतर प्रोफाइल संबंधी सारे विवरण जांचने के लिए कई बार ब्यूरो के अन्य लोगों को दे देता था पर पता नहीं क्या कशिश थी उसकी तस्वीर में,जो मानव ने उस लड़की के शादी संबंधी सारी जानकारी एकत्रित करने की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ली।

 लड़की का विवरण देखने के बाद उसे पता चला कि लड़की विधवा है और उसके तीन साल की एक बेटी भी है हालांकि उसकी उम्र बहुत कम है। मुश्किल से छब्बीस-सत्ताइस साल की होगी। शादी के चार साल के बाद ही वो नियति के क्रूर हालात का शिकार बन गई थी। 

अब वो अपनी ससुराल में अपनी विधवा सास के साथ रहती थी और अनुकंपा के आधार पर पति के ऑफिस में जो उसकी शिक्षा के अनुसार नौकरी दी है वो करती है। पता नहीं क्यों,पर मानव को उसके साथ एक भावनात्मक जुड़ाव सा अनुभव हुआ। 

उसने उसका प्रोफाइल संपूर्ण विवरण के साथ अपनी मैरिज ब्यूरो की वेबसाइट पर डाल दिया। पहले भी उसके मैरिज ब्यूरो में विधवा और तलाकशुदा लड़के-लड़कियों के विवरण आए हैं और उनकी शादियां भी हुईं हैं।

 इस लड़की की तो उम्र भी काफ़ी कम थी इसलिए मानव को उसके प्रोफाइल अपलोड करने के बाद उसके लिए रिश्तों को लेकर जरा भी संशय नहीं था। रिश्ते आने शुरू भी हो गए थे पर जब मानव ने उन लोगों के प्रोफाइल खोल कर देखे तो अधिकतर पैंतालीस साल के ऊपर के लोग थे। 

वैसे तो मैरिज ब्यूरो वाले सिर्फ प्रोफाइल ही अपलोड करते हैं फिर वहां से शादी के इच्छुक लड़के-लड़कियां विवरण और फोटो के आधार पर खुद या परिवार के द्वारा एक दूसरे की जांच-पड़ताल करते हैं। यहां पर पता नहीं क्यों,मानव ने खुद ही धानी की तरफ खींचा जा रहा था। उसने दो-तीन तलाकशुदा और कम उम्र के ऐसे लड़के जिनकी पत्नी की मृत्यु किसी कारणवश हो गई थी और उनके खुद के भी छोटे बच्चे थे उनसे धानी के प्रोफाइल को दिखाकर बात करनी चाही। सब जगह से उसको निराशा ही हाथ लगी। 

जब उसको सबके मना करने का कारण पता लगा तो वो काफ़ी हद तक हैरान रह गया। कई लड़के चाहे वो खुद तलाकशुदा या पत्नी की मृत्यु के बाद अकेले थे और खुद भी एक या दो बच्चों के पिता थे उनका कहना था कि वो विधवा होने के साथ-साथ एक बेटी की मां है। 

अगर बेटा होता तो वो फिर भी शादी कर लेते, किसी दूसरे की बेटी की जिम्मेदारी पूरी ज़िंदगी भर के लिए लेना फिर कल को उसकी शादी भी करना ये बहुत मुश्किल काम है। वो अगर धानी को अपनाते भी हैं तो फिर धानी की बेटी को नहीं अपनाएंगे। 

मानव के लिए ये बात बहुत आश्चर्य वाली थी। इधर धानी रहती अपनी सास के साथ थी पर मायके में उसके माता-पिता और भैया-भाभी थे सभी चाहते थे कि धानी का दोबारा घर बस जाए। 

जब मानव ने उनको लड़के वालों की इस तरह की मांग के विषय में बताया तो उसके माता-पिता अपनी नातिन को अपने पास रखने को तैयार थे बस वो किसी तरह दोबारा धानी की दुनिया बसते देखना चाहते थे।ये सब बातें चल ही रही थी,उन लोगों ने मानव को एक बार धानी से बात करने के लिए उसकी ससुराल बुलाया था। 

वैसे तो मानव कभी किसी रिश्ते के संबंध में इतना आगे नहीं बढ़ा था पर वो दिल से धानी और उसकी बेटी की खुशी चाहता था। वो धानी से मिलने पहुंचा जब उसने उसकी दूसरी शादी और लड़कें वालों की इस तरह की इच्छाओं के विषय में बताया तो धानी ने बहुत ही शांत शब्दों में कहा कि मैं अपनी बेटी को बिल्कुल नहीं छोड़ूंगी। 

क्या शादी करने से ही ज़िंदगी का उद्धार हो सकता है? कल का किसी को भी नहीं पता। अगर ऐसा है तो मेरे पति राघव ही मुझको छोड़ कर क्यों चले जाते। मैं तो उनकी यादों के साथ खुश हूं। शायद नियति ने मेरे लिए यही सोचा था। रही बात मेरी दूसरी शादी के बाद मेरी बेटी की ज़िम्मेदारी निभाने की तो जब मैं दूसरे घर की लड़की होकर उनके पहली शादी के बच्चों को अपना सकती हूं तो वो मेरी बेटी को क्यों नही अपना सकते।

 जब अभी से इतना दोयम व्यवहार है तो आगे की स्थिति तो इससे भी खराब होगी।मेरे को जो भी मिला उसमें खुश हूं,/अपनी बेटी को किसी और के पास छोड़कर मैं अपनी जिंदगी की खुशियां नहीं खरीद सकती।

 मानव उसकी बातों से बहुत प्रभावित था। धानी तो प्यारी थी ही साथ में उसकी तीन साल की बेटी नव्या भी बहुत समझदार और मासूम थी। 

मानव के दिल में धानी के लिए कुछ भावनाएं जगह बना रही थी। उसने मन ही मन सोच लिया था कि वो घर जाकर अपनी मां से बात करेगा और धानी से ही शादी करेगा। मानव घर पहुंचा और उसने अपनी मां से स्पष्ट शब्दों में कहा कि उसको एक लड़की पसंद आ गई है और वो उससे शादी करना चाहता है। 

मानव की मां समझती थी कि अगर मानव किसी लड़की से शादी के लिए तैयार हुआ है तो वो कोई साधारण लड़की नहीं होगी, उन्हें अपनी परवरिश पर पूरा भरोसा था।

अब जब मानव ने अपनी मां को धानी के विषय में सब कुछ बताया और ये भी कहा कि वो विधवा है और एक तीन साल की बच्ची की मां है,तब मां कुछ सोचते हुए मानव का चेहरा देखने लगी। उसकी मां एक विधवा लड़की का दर्द अच्छी तरह समझ सकती थी, 

उन्होंने खुद मानव के पिता को बहुत कम उम्र में खोया था पर उनका परिवार बहुत रूढ़िवादी था तो किसी ने उनके दूसरे विवाह की तरफ सोचा भी नहीं था।उनको सोच में पड़ा देख मानव ने कहा आप कुछ जवाब क्यों नहीं दे रही हो मां?

 क्या आपको भी धानी के विधवा और साथ में एक बच्ची की मां होने पर एतराज़ है? तब मानव की मां कहती हैं,बेटा मुझे किसी बात से कोई समस्या नहीं है,बस मैं ये सोच रही हूं कि तू आज तो धानी को उसकी बेटी के साथ अपनाकर शादी करना चाहता है पर कल को जब तेरे खुद के बच्चे होंगे तो तू धानी की बेटी के साथ न्याय तो कर पाएगा ना?

 उसके साथ कोई भेदभाव तो नहीं रखेगा? कई बार,शुरू में हो सकता है कि धानी को अपनी बेटी का ख्याल रखना पड़े और वो तेरे को इतना समय ना दे पाए तो इस बात पर उसके साथ सामंजस्य तो बैठा पायेगा ना,क्योंकि शादी कोई गुड्डे-गुड़िया का खेल नहीं है।

अपनी मां के ऐसी बात सुनकर मानव ने कहा,आपकी परवरिश ने मेरे को स्त्री के हर रूप की पूजा करना सिखाया है। मैंने मैरिज ब्यूरो में धानी के लिए आए कई रिश्तों में देखा कि वो धानी को तो अपनाने को तैयार थे पर उसकी बेटी को नहीं,कोई किसी मां को उसकी बेटी से अलग करने की सोच भी सकता है बस यही सब देखकर मैं धानी के परिवार से मिला। 

जब परिवार से मिलने के बाद मैं धानी और उसकी प्यारी सी बेटी नव्या से मिला तो मेरे को लगा शायद नियति ने इसलिए ही मेरे को अब तक अविवाहित रखा था। मेरा भविष्य तो शायद धानी और नव्या के साथ पहले ही जुड़ चुका था। 

रही बात आगे आने वाले समय की तो मैं इस रिश्ते को अपना सौ प्रतिशत दूंगा और विवाह के सात वचन के साथ आठवां वचन नव्या की ज़िम्मेदारी भी पूरी ईमानदारी और सहनशीलता से निभाने की लूंगा। मानव की ऐसी बातों से मां पूरी तरह निश्चित हो गई थी वो समझ गई थी कि उनका बेटा भावनात्मक रूप से धानी और नव्या से जुड़ चुका है। 

अपने बेटे की शहनाई की कल्पनामात्र से ही वो इतनी खुश थी कि धानी का हाथ मानव के लिए मांगने में वो अब एक पल की भी देरी नहीं करना चाहती थी। उन्होंने मानव को छेड़ते हुए कि अच्छा हुआ जो तूने मैरिज ब्यूरो का काम भी शुरू किया नहीं तो मैंने तो इस जन्म में सास बनने की आस ही छोड़ चुकी थी। अब वो दोनों धानी के घर की तरफ इस प्यारे से रिश्तें की शुरुआत करने के लिए निकल पड़े।

 दोनों का रिश्ता तय हो गया।

तिलक की रस्म पर मौजूद मानव के दोस्तों ने माहौल को हल्का बनाते हुए और मानव को चिढ़ाते हुए कहा कि दूसरों की शादी कराते कराते शिकारी आज खुद शिकार हो गया। ऐसा सुनकर सब लोग ही बिना हंसे ना रह सके। इतने हंसी खुशी के माहौल के बीच भी मानव आठवें वचन की बात नहीं भूला था। उसने सबके सामने बोला कि शादी के सात वचन के साथ वो आठवां वचन धानी के साथ नव्या की पूरी ज़िम्मेदारी और पिता का पूरा प्यार लेने की लेगा। 

आज धानी,नव्या और मानव की नियति एक डोर में बंध गई थी।

दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी,अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। मानव की ये पहल पूरे समाज के लिए एक उदहारण थी जो अपने लड़के के दूसरे शादी होने के कारण किसी तरह से विधवा लड़की को तो अपनाने के लिए तैयार हो जाते हैं पर उसके पहली शादी के बच्चे विशेषतयः अगर वो लड़की हो तो उसको अपनाने को तैयार नहीं होते। कहने को हम आधुनिक हो रहे हैं पर अभी भी कदम कदम पर इतनी विषमता हैं,जिनको हम लोगों को बदलना ही होगा।

(नोट:ये कहानी पूरी तरह काल्पनिक है बस समाज में प्रचलित अवधारणा की तरफ ध्यान दिलाने के लिए इसको लिखा गया है। )

#नियति 

डॉ पारुल अग्रवाल

नोएडा

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