रिश्ते- अनुपमा

अक्सर हम सभी ने देखा ही होगा अपने आसपास के लोग , बड़े बुजुर्ग कहते है जो लड़कियां अपने मायके मैं हर बात साझा करती है उनके ससुराल मैं लड़ाइयां होती ही है , है ना ? वैसे तो हर इंसान का अपना नजरिया है लेकिन सिर्फ एक ही तरीके से हर वक्त देखना भी जायज नहीं है , है ना ??

मां बेटी शादी के बाद एक दूसरे के संपर्क मैं ज्यादा रहे हर छोटी से छोटी बातें एकदूसरे से बताते है तो ना सिर्फ ससुराल पर मायका भी तो प्रभावित होता है , नही ? वहां भी तो उसकी भाभियां होगी ही न ।

दूसरे नजरिए से देखें तो मां तो मां ही होती है , जिंदगी भर साथ रह रही बेटी को विदा कर देती है पर एक दिन मैं ही तो बेटी पति और ससुराल वालों को नही अपनाती न । और न ही ससुराल वाले । तो वो अपने मन की बात मां से न कहे तो किससे कहे ।

इस पूरे वाकए मैं मां की भूमिका बहुत ही जिम्मेदारी वाली हो जाती है । है ना दोस्तों 

चलो आज एक कहानी कहते है जिसमे मां बेटी की ही बात करते है 

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विभा जब शादी होकर अपने ससुराल आई तो सबकुछ अच्छा था , सास ससुर , पति और देवर और एक ननद जो की बहुत पहले ही शादी कर के अपने घर जा चुकी थी ।

विभा की ससुराल मैं आम परिवारों की तरह ही दिनचर्या थी , सुबह उठना , सबकी पसंद का नाश्ता , खाना बनाना , सभी को खाना परोस कर देना और घर के बाकी के सभी काम ।

विभा की सास ननद की शादी के बाद दस साल तक अकेले रही और ननद भी ससुराल मैं नही रहती थी तो मां बेटी पत्र के जरिए और जब फोन आए तो फोन के जरिए एक दूसरे से बात किया करती थी ।

विभा के आने के कुछ समय तक पत्रों का सिलसिला चालू रहा और फिर आए मोबाइल जिससे बातें करना और सुलभ हो गया ।

ननद रानी सुबह जीजा जी के जाने के बाद , दोपहर खाने के बाद और रात के खाने के पहले मतलब दिन के तीन से चार घंटे मां जी बात करती थी ।

अब जब इतनी देर बात करनी ही है तो कोई क्या ही बात करता होगा , तो नियम ये था की मां जी सुबह से लेकर रात तक की लाइव ब्रॉडकास्टिंग ननद जी को फोन पर कर दिया करती थी । विभा सब सुनती ही रहती थी । जब कोई जरूरी बात होती तो सासु मां जी कमरे का रुख कर लेती थी ।

इस तरह समय बीत रहा था , सासु मां , विभा , अपने बेटे , और बच्चों सभी की हर बात ननद रानी तक पहुंचाती और जिस बात पर उन्हे विभा का व्यवहार पसंद नही आता उसे विशेष रूप से उच्च स्वर मैं बोला जाता की हम तो सिर्फ समझा सकते है  इत्यादि ।

विभा की अपने पति से हुई छोटी मोटी खटपट , बच्चों की पढ़ाई , क्या खाया , क्या बोला , क्या बच्चों ने किया , बच्चों की पिटाई , कब कोई चीज नई आई या टूटी या खो गई … हर बात का आंखों देखा विवरण ननद जी तक पहुंच जाता था ।

इस वजह से ननद रानी से विभा कभी भी सहज नहीं हो पायी । ननद रानी जब भी आती , आदर सत्कार तो विभा करती पर बात नही कर पाती थी सहजता से , अच्छा ननद रानी को भी कहां फुर्सत थी मां जी से ।

हां जब वो जाती थी तब सीख जरूर देकर जाती थी … 😄


विभा की जिंदगी के सारे फैसले उसकी ननद ही लेती थी , कहां जाना , कब जाना , बच्चों को क्या पढ़ना , कब क्या मिलना और बाकी सभी क्योंकि सासु मां बिना अपनी बेटी से पूछे कुछ नही करती थी और संयुक्त परिवार मैं विभा को सभी कुछ पूछ कर ही करना होता था । यहां तक की विभा अपने मायके कब और कितने दिन के लिए जाए वो भी ।

एक दिन विभा के मायके से फोन आए की उसके पिता जी बहुत बीमार है और अस्पताल मैं भरती है । विभा अपने मायके जाना चाहती थी पर ससुराल मैं मां जी को भी बुखार था तो तय ये हुआ कि विभा तीन दिन बाद अपने मायके जा सकती है । 

विभा जानती थी की बिना उसकी ननद की मर्जी के यहां कुछ हो नही सकता है ।

अगले दिन विभा को पता चलता है की उसके पिता जी को हार्ट अटैक आया है और ऑपरेशन होना है , विभा अपने घर जाने के लिए व्याकुल हो जाती है । 

विभा अपना सामान पैक करती है और अपने पति से उसे उसके घर छोड़ कर आने को कहती है , उसके पति भी अपनी मां से पूछने जाते है तो पीछे पीछे विभा भी चली जाती है जैसे ही अमित मां जी को कहते है की विभा को छोड़ने जाना है तभी विभा भी पीछे से बोल देती है की मां जी को कहिए ननद रानी को बुला ले अगर उनकी तबीयत खराब है तो , मुझे आज ही जाना है और कह कर वो वहां से चली जाती है ।

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