रिश्ता – निभा राजीव

नीता सोफे पर बैठी टीवी देख रही थी। अचानक हाथ पर किसी का स्पर्श पाकर उसने मुड़कर देखा। उसकी ननद की 3 वर्षीय मूक बेटी रिया वहां बैठी थी, जिसे उसके पति ऋषि ननद की लम्बी बीमारी से मृत्यु के बाद अपने साथ ले आए थे। वह बोल नहीं सकती थी और उसका इलाज चल रहा था। नीता उसे बिल्कुल पसंद नहीं करती थी क्योंकि वह उस ननद की बेटी थी जिससे नीता की बिल्कुल नहीं पटती थी। उसने रिया को झिड़क कर वहां से जाने को कहा। सहम कर रिया वहां से उठ कर चली गई।…. नीता का व्यवहार हमेशा रिया से ऐसा ही रहता था। अपनी बेटी शुचि को वह खूब सारे खिलौने खरीद कर दिया करती थी, जिन्हे रिया लालसा भरी नजरों से देख कर रह जाती थी। उसे उन चीजों को हाथ लगाने की मनाही थी। जब भी वह शुचि से लाड़ करती, रिया दूर खड़ी उदास दृष्टि से उन्हे देखा करती थी।जब पति सामने होते थे तब नीता का व्यवहार कुछ और होता था। जिसकी वजह से उसके पति को उसके इस व्यवहार की कोई जानकारी नहीं थी।

        उस दिन रिया का डॉक्टर से अपॉइंटमेंट था। ऋषि को अचानक से कुछ काम आ गया तो उसने नीता को कहा कि वो रिया को लेकर डॉक्टर के पास चली जाए। यह सुनकर नीता जल भुन गई। ऊपरी मन से उसने स्वीकृति दे दी। ….ऋषि केऑफिस और शुचि के स्कूल जाने के बाद वह रिया को लेकर डॉक्टर के पास जाने को रवाना हुई।




सड़क पार करते समय रिया ने उसका हाथ पकड़ने का प्रयत्न किया, पर उसने झटके से अपना हाथ छुड़ा लिया और दो कदम आगे बढ़ गई। रिया उसके पीछे पीछे आने लगी। अचानक हॉर्न की आवाज सुनकर नीता पीछे मुड़ी तो देखा एक बस बड़ी तेजी से रिया की तरफ चली आ रही थी।….एक पल को तो उसे लगा कि चलो अच्छा है, पीछा छूटा।  तभी उसकी दृष्टि रिया के मासूम चेहरे पर गई। उसके आंखों की पुतलियाँ भय से फैल गईं थी। नन्हे से चेहरे पर पसीना चुहचुहा आया था। अचानक उसे लगा जैसे उसकी शुचि सामने खडी हो। वह तेज़ी से दौड़ी और रिया को अपनी तरफ खींच लिया। डगमगा कर दोनों सड़क के किनारे गिर पड़ीं। अचानक भयभीत रिया ने अपनी नन्ही बाँहें उसके गले में डाल दी और अस्फुट स्वर में उसके मुँह से निकला-” माँ ” ….उस एक शब्द से ही नीता के अंदर कितना कुछ पिघल गया….सारा दंभ, आक्रोश, मलिनता..सब कुछ। उसने भी रिया को भींच कर अपने सीने से लगा लिया…नीता की आंखों से आँसू बह रहे थे और आँसुओं के साथ ही मन का सारा मैल धुल कर निकल गया था।…. मूक रिया अब मूक नहीं रही, माँ की ममता ने उसके कंठ के सारे बंधन खोल दिये। नये सम्बंध की नई सुबह आ गई थी।

निभा राजीव

सिंदरी, धनबाद, झारखंड

स्वरचित और मौलिक रचना

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