ऋणी हूं मैं – डॉक्टर संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

ओह!इतना अंधेरा क्यों है आज घर में?वरुण ने कमरे की लाइट जलाते हुए कहा,देखा! चांदनी गुस्से में फूली

अपने बिस्तर पर लेटी थी,उसकी घनी केश राशि उसके चेहरे को आधा ढके थी।

क्या हुआ डियर?ये पूनम का चांद आज क्यों घटाओं में घिरा उदास है?उसने प्यार से चांदनी के चेहरे से उसके

बाल हटाते कहा,जरा चांद का दीदार तो करने दो!

हटो!ये चिकनी चुपड़ी बातें कर के कब तक फुसलाओगे मुझे…चांदनी ने बेरुखी से उसके हाथ झटकते कहा।

अब क्या हुआ, बता भी दो…मां बाऊ जी ने कुछ कहा?

सिर्फ वो ही हों तो गुजारा कर लूं मैं,यहां तो पूरा खानदान है…अब तुम्हारी बड़ी दीदी,जीजाजी अपने बाल

गोपालों संग पधार रहे हैं,साथ ही चाचीजी के भैया भाभी भी आ रहे हैं।गया अगला हफ्ता मेरा…कितने दिनों

से मंसूबे बनाए बैठी थी कि अगली वेकेशंस में आपके साथ घूमने जाऊंगी पर इस संयुक्त परिवार के जंजाल

से मैं कभी निकल ही नहीं पाऊंगी कभी!!

वरुण के पिता दीनदयाल सर्राफ थे,उनके दो भाई एक छोटा और एक बड़ा संग ही रहते थे,वरुण दो भाई ,एक

बहिन थे,कहने को सबकी शादियां हो गई थीं लेकिन चाचा ताऊ के बच्चे अक्सर छुट्टियों में इकठ्ठे होते तो यहीं

अपने पुश्तैनी मकान में आते।सब खूब एंजॉय करते पर एकाकी परिवार में पली बढ़ी चांदनी को ये सब फूटी

आंख न सुहाता।

हालांकि वरुण उसे बहुत प्यार करता, उसके सास,ससुर,बाकी घरवाले उसकी हर छोटी बड़ी जरूरत का

ख्याल रखते लेकिन वो वरुण के साथ कुछ देर अकेले होना चाहती जो उस घर में नसीब नहीं था।रात को

बिस्तर पर जब वो दोनो अकेले होते भी तो वरुण काफी थका होता और वो चांदनी के होंठों पर अपने प्यार

की मुहर लगा कर उसे चुप करा देता…इतनी हसीन रात शिकवे शिकायतो में मत निकालो यार! ये कहकर

और चांदनी की बातें दिल में ही घुट जाती।

संयुक्त परिवार – अमित रत्ता : Moral Stories in Hindi

आज फिर ये शिकायत सुनकर वो खिलखिला कर हंसा…तुम्हारी सुई हमेशा अकेले घूमने पर क्यों टिकी रहती

है चांदनी?असली मज़ा तो सबके साथ ही आता है,फिर दीदी जीजाजी से मिले कितने दिन हो गए..खूब

एंजॉय करेंगे…

और हम दोनो ने जो मसूरी में कमरा बुक किया था,उसका क्या?

अरे! एक कमरा और बुक कर देंगे…दीदी जीजाजी के लिए..फिक्र क्यों करती हो? वरुण मस्ती से बोला और

चांदनी कुढ़ के रह गई।

वरुण समझ गया था उसके मन के भाव,चांदनी डियर! तुम समझती क्यों नहीं, जहां संग रहने में थोड़ी बंदिशे हैं

वहां फायदे भी कितने हैं, पिछले महीने जब तुम अकेली थीं और चक्कर आ गए थे तुम्हें, बड़े पापा के बेटे

आयुष ने ही संभाला था न तुम्हें? भूल गई उस दिन को? वो न होते तो क्या होता?

हम्मम..चांदनी ने बुझे मन से कहा..वो न होते तो कोई पड़ोसी कर देता, ऐसा भी कोई एहसान नहीं किया…

क्या कहा? वरुण चौंका…

“कुछ नहीं…” चांदनी वहां से जाने को हुई,जानती थी वरुण से बहस करनी बेकार है वो नहीं मानेगा।

इसी तरह की छोटी मोटी नोक झोंक में दिन कट रहे थे।

एक दिन वरुण अपने और चांदनी के लिए एक हफ्ते के श्रीनगर के टिकट लाया,चांदनी कब से पीछे लगी ही

थी कि मैंने कश्मीर नहीं देखा।बड़ी हसरत थी उसकी वहां की खूबसूरत वादियों में सिर्फ वरुण के साथ वो कुछ

सुंदर रील बनाए अपने दोनों की।

जब वरुण ने उसके हाथों में टिकट दिए तो चांदनी का मन मयूर नृत्य कर उठा।देख लेना!इस बार हम अपना

प्रोग्राम टालेंगे नहीं चाहे कुछ हो जाए!कोई भी आना हो?

ठीक है बाबा! अब जल्दी से जाने की तैयारी शुरू करो!वरुण मुस्कराया और मन में बोला…बिल्कुल छोटी बच्ची

जैसी है ये!

नियति का खेल – रश्मि सिंह

आखिरकार वो शुभ दिन आ पहुंचा,उनकी रात की दस बजे की ट्रेन थी।उस दिन चांदनी ने सबके लिए डिनर

बड़े मन से बनवाया था।

सब मुस्करा रहे थे…आज जाने की खुशी में खूब सेवा हो रही है हमारी…खैर वो लोग एंजॉय करें वो भी चाहते

थे।चांदनी तो गुलमर्ग,पहलगाम, डल लेक,शिकारों,आम सेव के बागानों के नाम सोचकर ही आनंदित हो रही

थी।

तभी अचानक वरुण के पिता के दिल में दर्द उठा और घर में हड़कंप मच गया।

शुरू में उन्हें लगा गैस का दर्द है…उनकी भाभी हींग पीस लाई और देवर के पैरों हाथों के नाखून पर लगाने

लगीं,वरुण की मां ने अदरक का रस निकाल कर दिया,सब अपनी समझ के अनुसार कुछ न कुछ कर रहे थे

लेकिन उनकी हालत ठीक नहीं हुई ,तभी वरुण ने डॉक्टर को फोन कर दिया।

उसके चाचा ने कहा..बेटा!तुम लोग निकलो…तुम्हारी ट्रेन का वक्त हो गया,कहीं छूट न जाए!

नहीं पापा को ऐसी हालत में छोड़कर मैं नहीं जाऊंगा…वरुण अड़ गया,भले ही चांदनी खुश नहीं थी उसके इस

निर्णय से…आखिर इतने लोग हैं तो घर में..फिर संयुक्त परिवार का फायदा ही क्या हुआ?उसने सोचा लेकिन

मन मसोस के चुप रही,जानती थी वरुण उसकी एक नहीं सुनेगा और वो बुरी बन जाएगी।

वो भी सिर दर्द का बहाना बना कर अपने कमरे में जा लेटी।उसे बहुत गुस्सा चढ़ा था…इस घर के कैद खाने से

वो कभी नहीं छूटेगी,वरुण का यही रवैया रहा तो उसे सेपरेट होना पड़ेगा उससे..वो सोच रही थी।

तभी उसकी फ्रेंड दिव्या का फोन आया…चांदनी!तुम लोग आ नहीं रहे क्या?ट्रेन छूटने में दस मिनट रह गए हैं

बाकी।

नहीं…चांदनी बुझे स्वर में बोली,आज ससुर के दिल में दर्द उठा है,कल को मैं ही उठ जाएंगी यहां से…वो

बड़बड़ाई।

क्या हुआ चांदनी! उसकी सास उसके कमरे में आते बोली..

जी..कुछ नहीं…वो बेरुखी से बोली,तभी वरुण आया और कहने लगा….डॉक्टर ने बताया कि मिनी हार्ट अटैक

ही था पापा को…समय पर मेडिसिन दे दी तो वो बच गए…जल्दी ही ऑपरेशन को भी कह रहे हैं।

फूटा आक्रोश ,चूर हुआ मां का दंभ

अच्छा! वरुण की मां चौंकी…आज तुम लोग थे तो सब ठीक से मैनेज हो गया बेटा!अगर निकल गए होते तो?

मां! भगवान जो भी करते हैं अच्छे के लिए ही करते हैं..वरुण बोला और चांदनी ने सोचा…फिर ठीक है..कल मैं

अपने मम्मी पापा के पास जाकर रहूंगी कुछ महीने…इन सबके दिमाग ठिकाने लगेंगे…ये भी तो भगवान ही

करेंगे।

अगला दिन पापा की टेस्टिंग में निकल गया…काफी बिजी रहे वो सब,तीन दिन बाद पापा का ऑपरेशन भी

होना था।चांदनी फिलहाल अपने मायके न जा सकी।

तभी अगले दिन टीवी खोलते ही न्यूज में सुना उन्होंने कि पिछले दिन पहलगाम में आतंकी हमला हो

गया,पच्चीस टूरिस्ट की निर्मम हत्या हो गई।चांदनी स्तब्ध थी जब उसे पता चला कि दिव्या के पति भी उस

हादसे का शिकार बन गए हैं,दिव्या का रोता हुआ चेहरा और उजड़ी मांग देखकर चांदनी सिहर उठी।

न्यूज देखते हुए चांदनी झट अपनी सास के पैर पकड़ कर रोने लगी…मम्मी जी मुझे माफ कर दें,हमारी ये

जिंदगी आपकी ही देन है, हम दोनो आपके ऋणी हो गए।

ऐसे नहीं कहते बेटा! उसकी सास प्यार से उसे उठाते हुए बोली,जरूरी नहीं तुम लोग जाते तो तुम्हारे साथ कुछ

हो ही जाता, फिर जिनके साथ बुरा हुआ,उनकी कोई गलती ही हो ये भी जरूरी नहीं लेकिन एक बात तय है

कि मनुष्य को हर काम वो ही करना चाहिए जो नैतिक हो और जिसके लिए उसकी आत्मा कहे।अपने स्वार्थ

और आनंद के लिए अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ना,उसे ठुकराना गलत होता है,जो लोग ऐसा नहीं करते

उनका भगवान भी ख्याल रखते हैं।वरुण ने अपना कर्तव्य समझ कर उस दिन पापा की देखभाल की और

भगवान ने उसे ये प्रतिफल दिया।

मैं भी धन्य हूं जो मुझे तुम लोग जैसे बहू बेटे मिले हैं,हमारे जेठ,देवर और उनके परिवार सभी एक हाथ की

उंगलियों समान हैं,सब मिलजुल कर सहयोग से एक मुठ्ठी बनकर रहते हैं जिसे कोई भी तोड़ नहीं सकता

अगर हम प्यार से मिलजुलकर रहें…यही संयुक्त परिवार की सबसे बड़ी ताकत है,यहां छोटी छोटी बातों का

हिसाब नहीं रखा जाता, वो तो भगवान खुद ही दे देते हैं जब सब प्रेम से मिलजुल कर रहते हैं।

 

चांदनी की समझ में आज संयुक्त परिवार की महत्ता अच्छे से आ गई थी।वो झट ठाकुर जी के सामने दिया

जलाने उठ गई अपनी भूल का प्रायश्चित करने हेतु और उन्हें धन्यवाद देने हेतु।

समाप्त

डॉक्टर संगीता अग्रवाल

वैशाली ,गाजियाबाद

#संयुक्त परिवार

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!