रईस खानदान की बहू  – Moral Story In Hindi

विपिन एक बहुत बड़े कारोबारी का बेटा था और मैं एक प्राइवेट शिक्षक की बेटी। पापा के नहीं रहने के बाद मांँ ने पापा की जगह ले ली। छोटी मोटी नौकरी करके उन्होंने हम चारों भाई बहनों को अच्छी शिक्षा दी। मैं नौकरी करना चाहती थी क्योंकि मैं अब अपनी थकी हुई मांँ को आराम देना चाहती थी। राहुल,पूजा और पिंकी सब छोटे ही थे मुझसे।

मेरी मांँ ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थी। इस कारण उनको कभी अच्छी नौकरी नहीं मिल पाई।इसलिए मैं खुद भी पढ़ना चाहती थी और अपने भाई बहनों को खूब पढ़ाना चाहती थी। 12वीं के बाद मैंने ट्यूशन लेना शुरू किया। मांँ को भी थोड़ा आराम मिलने लगा। घर में कुछ पैसे आने लगे।

मैंने अपना स्नातक पूरा करके शिक्षक की नौकरी के लिए अप्लाई किया और संयोग से मुझे एक अच्छे स्कूल में शिक्षिका की नौकरी मिल गई। विपिन के पिताजी उसी स्कूल के ट्रस्टी थे।उन्होंने एक कार्यक्रम में मुझे देखा। मेरा शांत स्वभाव और मेरी कार्यकुशलता ने उन्हें बहुत प्रभावित कर दिया और वे अपने एकलौते बेटे के लिए मेरा हाथ मांगने मेरे घर चले आए।

मैं शादी नहीं करना चाहती थी, परंतु माँ इतना अच्छा रिश्ता ठुकराना नहीं चाहती थीं और मेरी विपिन के साथ शादी कर दी गई। मैं शादी के बाद उनकी हवेली में चली आई। मैंने 1 सप्ताह की छुट्टी ले रखी थी। मेरी छुट्टी के खत्म होने के बाद मैंने स्कूल फिर से ज्वाइन करने की बात अपने ससुराल में छेड़ी। मेरी सासू मांँ ने कहा कि “अब तुम उस भिखारी मांँ की बेटी नहीं, एक रईस खानदान की बहू हो,यह छोटी-मोटी नौकरी करना तुम्हें शोभा नहीं देता।”

मैंने उन्हें कोई जवाब नहीं दिया। फिर मैंने विपिन से बात की तो विपिन ने कहा कि “ठीक है तुम नौकरी करो लेकिन मेरी मांँ को दिक्कत नहीं होनी चाहिए।” मैं जानती थी कि मेरा नौकरी करना कितना आवश्यक है,मेरे मायके वालों के लिए। कुछ दिन तो सब ठीक-ठाक चलता रहा लेकिन कुछ दिनों के बाद मेरी सासू मांँ ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया। उनका कहना था कि मैं किटी पार्टी जॉइन करूं, बड़े-बड़े पार्टियों में जाऊं और अपने मायके की चिंता छोड़ दूंँ।



वह चाहती थी कि मैं अपनी नौकरी छोड़ दूँ। विपिन भी उनका ही साथ देकर मेरे साथ मारपीट पर उतर आए थे। विपिन ने कहा कि “इस छोटी सी नौकरी के लिए क्यों मार खा रही हो, तुम नौकरी छोड़ क्यों नहीं देती।” फिर मैंने ससुर जी को कहा कि “आपने कहा था कि मैं शादी के बाद अपनी नौकरी जारी रखूंँगी और अपने कमाए सारे पैसे में मांँ को दूंगी,

इसी शर्त पर मैंने यह शादी की है।” मेरे ससुर जी ने मेरा साथ देने की भरपूर कोशिश की परंतु सासू मांँ और विपिन के आगे उनकी एक न चली। 1 दिन विपिन और मेरी सासू मांँ ने मेरे मायके में जाकर मेरी मांँ और मेरे भाई बहनों को बहुत खरी-खोटी सुनाई उनको कहा कि “आप लोग कितने बेशर्म लोग हैं जो अपनी शादीशुदा बेटी की कमाई खाने के लिए तैयार रहते हैं।” 

मेरी मांँ को यह बात बहुत बुरी लगी। जब मैं अपना वेतन लेकर उनको देने पहुंँची तो उन्होंने पैसे लेने साफ मना कर दिया। मेरे कारण पूछा तो भी उन्होंने कुछ नहीं बताया, लेकिन मेरी छोटी बहन पिंकी ने मुझे सारी बातें बताई। मुझे बहुत दुख हुआ मैंने जाकर विपिन से और सासू मांँ से कहा कि मैं उस  नौकरी करके उस घर में तब तक पैसा दूंँगी,

जब तक मेरा भाई अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो जाता। अगर आपको मंजूर है,तो मैं यहांँ रहूंँगी, नहीं तो मैं विपिन से तलाक लेने के लिए भी तैयार हूंँ। मेरे इस फैसले से मेरी सासू मांँ को बहुत दुख हुआ। उन्होंने मुझे समझाने की कोशिश की कि “हमारे समाज में ऐसा नहीं होता कि लड़कियांँ शादी के बाद कमाती रहें और अपने माता पिता की सेवा और उन का भरण पोषण करती रहें।”

उन्होंने मुझसे कहा कि तुम्हें जितना पैसा चाहिए तुम मुझसे या विपिन से ले लो और अपनी मांँ को दे आओ उनकी गरीबी दूर हो जाएगी। मैं इस बात की सख्त खिलाफ थी और मेरी मांँ भी इस तरह से पैसे नहीं लेती यह मैं जानती थी। मैंने अपनी सासू मांँ को समझाया कि “समाज हम से ही बनता है,

किसी ना किसी को तो पहल करनी होगी इस बात की, तो मैं ही क्यों ना इसकी पहल करूं। मैं प्रण लेती हूंँ कि जब तक मेरा भाई अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो जाएगा मेरी दोनों बहनों की अच्छे घर में शादी नहीं हो जाती, मैं ना नौकरी छोडूंगी ना अपने मायके को छोड़ूँगी। इतना कहकर मैं अपने कमरे में चली गई विपिन और सासू मांँ ने भी थक हारकर मेरी इस बात को स्वीकार कर लिया। 

धीरे-धीरे घर का माहौल हंसी खुशी में बदल गया।
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स्वरचित कथा
अभिलाषा आभा

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