प्यार की एक कहानी (भाग 3 )- नीलम सौरभ

थोड़ी देर तक मुकुल उसका सिर सहलाता रहा फिर अचानक क्या हुआ कि उसे छोड़, “बाद में मिलता हूँ यार तुमसे!” बोलता, दौड़ता हुआ घर लौट आया। आते ही माँ को ढूँढ़ा, जाकर उससे जोरों से लिपट गया।

“नहीं मारना मम्मा!…मुझे कुछ नहीं चाहिए…बस आप गुस्सा मत होना…चाहो तो स्टीकर्स भी मत दिलाना..पैसे भी नहीं देना!…आई लव यू मम्मा!….आप दुनिया की सबसे अच्छी मम्मा हो, सच्ची!!”

अब तक भीतर ही भीतर सुबक रही पायल का मन एकदम से भीग उठा। दोबारा से भर आ रही आँखों को पोंछ तुरन्त मुकुल को गोद में उठा लिया, उसे गले से लिपटा लिया, उसके गालों और माथे पर कई चुम्बन जड़ दिये।

“मेरा राजा बेटा!…तुम भी दुनिया के सबसे प्यारे बच्चे हो…मेरी आँखों के तारे हो तुम तो, मेरे जिगर का टुकड़ा हो!… अपनी जान से ज्यादा प्यार करती हूँ तुम्हें….आई लव यू टू डार्लिंग!”

थोड़ी देर बाद पायल ने उसे नीचे उतारा, अलमारी से अपना पर्स निकाला, उसमें से दस-दस के तीन-चार कड़क नोट लेकर मुकुल को थमा दिये।

“मेरा राजा बेटा, जाओ दोस्तों के साथ खेलना थोड़ी देर!…अपनी पसन्द के सभी स्टीकर्स ले लेना…मैं नाश्ता बनाती हूँ तब तक!”

अब वह रसोई की ओर भागी। फ्रिज से उबले आलू और ब्रेड निकाले। कुछ सब्ज़ियाँ निकालीं। झटपट कुन्दन के ‘ऑल टाइम फेवरेट’ ब्रेड-पकौड़े और ब्रेड-रोल बना डाले। मुकुल के लिए उसके पसन्दीदा मसाला-ओट्स बना दिये। साबूदाने और चावल के ढेर सारे पापड़ तल लिये। हरे धनिये, हरी मिर्च की तीखी और टमाटर की चटपटी, खट्टी-मीठी चटनी बना ली। आटा गूँध कर रख लिया। दलिया बनाने की भी पूरी तैयारी करके रख ली। यह सब करते हुए वह अपने-आप से बोलती जा रही थी, “बेचारे कुन्दन को रोज की हड़बड़ी में कहाँ पसन्द का कुछ मिल पाता है!…कुछ भी बना कर दे दो, चुपचाप खा लेता है..लंचबॉक्स के लिए भी कभी कोई नखरे नहीं करता!…हमारे लिए दिन भर दफ़्तर में अपना खून जलाता है…बॉस की जली-कटी भी सुनता है!…वहाँ से लौटकर भी घर-बाहर सभी जगह खटता है!…मुझे उसका ध्यान अपने से रखना चाहिए कि नहीं!…जबकि उसकी पसन्द-नापसन्द सब अच्छे से पता है मुझे!”

सब कुछ तैयार करने के बाद पायल ने झटपट एक कप स्पेशल मसाला चाय बनायी। ट्रे में सबकुछ करीने से सजाया। ले जाकर बिना कुछ बोले मुस्कुराते हुए कुन्दन के बाजू में खड़ी हो गयी। टाई की नॉट बाँधता हुआ कुन्दन खिड़की से बाहर देखते हुए ख़यालों में गुम था। तभी एक जानी-पहचानी सी मनमोहक ख़ुशबू उसके नथुनों से टकरायी तो वह तुरन्त पलटा। पायल के हाथों में थमे ट्रे को देख सुखद आश्चर्य से भर उठा। पायल के मुखड़े पर खिली मुस्कान में उसे निशात बाग़ का गुलाबों का बगीचा नज़र आने लगा। वह नहाते समय ख़ुद ही पछताता हुआ सोच रहा था कि नाहक ही पायल पर चिल्ला पड़ा। बेचारी दिन भर हम सब के लिए ही तो चकरघिन्नी बनी घूमती रहती है। कितना कुछ करती है। अपने लिए कब सोचती है वह। किसी चीज के लिए कभी कोई फ़ालतू की ज़िद नहीं करती। अभी भी उसकी पसन्द ही तो पूछ रही थी। कितने दिनों से ब्रेड-पकौड़े खाने का मन कर रहा है, ब्रेड रोल भी, धनिया पत्ती की तीखी चटनी के साथ। वही बनाने बोल देता।…अब कैंटीन के वही बासी, बेस्वाद, ‘मजबूरी का नाम महात्मा गांधी’ वाले समोसे या वड़ापाव झेलने पड़ेंगे! मसाला चाय भी नहीं…उफ्फ!!


अचानक, बिना बोले, बिना बताये परोसे गये मनपसन्द करारे पकौड़े और ब्रेड-रोल! साथ में इतना सबकुछ!!…आहा!!!  देखते ही कुन्दन की बाँछें खिल गयीं, दिल में कुछ-कुछ होने लगा। पायल के हाथों से ट्रे लेकर सोफे के सामने तिपाई पर रख दिया। हाथ खींचकर उसे पास ही बिठा लिया और प्यार से पहला कौर उसके मुँह में ही ठूँस दिया।

“लव यू यार!… मुझे यूँ चिल्लाना नहीं चाहिए था तुम पर….सच में बहुत बुरा हूँ मैं, माफ़ कर दोगी न?…दिल पर मत लेना यार, दिल से नहीं बोला था कुछ भी!”

पायल की मुस्कान और गहरी हो उठी। उसकी माँ अक़्सर कहा करती हैं, ‘पतियों के दिल का रास्ता, उनके पेट से होकर गुज़रता है लाड़ो!’….”कितना सही कहती हो माँ!” पायल फिर से मान गयी माँ को।

वह हँसती-खिलखिलाती हुई कुछ याद आने पर वापस रसोई की ओर दौड़ पड़ी। कड़ाही अभी तक आँच पर चढ़ी हुई जो थी। उसे अम्माँजी के लिए दूध-दलिया और बब्बाजी के लिए सादी रोटियाँ भी बनानी थी अभी। ज्यादा तली-भुनी चीजें वे पसन्द नहीं करते न!

कुन्दन ने पकौड़ों वाली प्लेट में माँ का पसन्दीदा टोमैटो कैचप ढेर सारा डाला, ट्रे उठायी और माँ के कमरे की ओर चल पड़ा।

अम्माँजी तुलसी-माला हाथ में लिये, उदास चेहरे के साथ कहीं खोयी हुई थीं। कुन्दन ने सबकुछ वहीं रखे एक मूढ़े पर धर दिया और माँ के सामने ज़मीन पर ही बैठ गया। अम्माँजी ने टेढ़ी नज़र से देखा उसे तो हँसते हुए अपने कान पकड़ लिये उसने। माँ का ममता से लबरेज़ दिल झट से पिघल गया। गले से लगा लिया बेटे को।

कुछ देर बाद ही दोनों माँ-बेटे मंद-मंद मुस्कान के साथ चहकते हुए कमरे से निकल बब्बाजी की ओर चले, बरामदे में जमे उनके सिंहासन की तरफ़।

बब्बाजी अभी तक खार खाये ही बैठे हुए थे। अम्माँजी को आती देख कर अपना मुँह दूसरी ओर फेर लिया। “आज तो बिल्कुल न बोलेंगे किसी से, सबके भाव चढ़े हुए हैं… हमसे कहते देर हुई नहीं कि दफ़ा हो जाओ…छूटते ही निकल लीं वहाँ से…दुबारा से पूछा तक नहीं कि काहे परेशान हो, बताओ!”

अम्माँजी ने कोने से टी-टेबल खींच कर उनके सामने रखा, अपनी साड़ी के पल्लू से थोड़ा साफ़ किया और ख़ुद भी कुर्सी लेकर सामने बैठ गयीं। कुन्दन ने प्लेट और ट्रे टेबल पर रख दी और बब्बाजी के पीछे खड़े होकर उनके कन्धे हल्के हाथों से दबाने लगा। अक़्सर ही बब्बाजी कन्धों में दर्द की शिक़ायत करते थे आजकल और कुन्दन और मुकुल से बोलकर हाथों से मालिश करवाया करते थे। कई बार ज्यादा तकलीफ़ बढ़ जाने पर जब घर में वे बताते थे, तब पायल गर्म पानी के बैग से उनके कन्धों की सिंकाई कर देती थी। लेकिन आज बिना बोले ही कुन्दन ने उनके दर्द को भाँप लिया था, यह बात उन्हें भाव-विभोर कर गयी थी। उन्होंने सुकून से आँखें मूँद लीं और बेटे के हाथों की ऊष्मा से राहत का अनुभव करने लगे।

और थोड़ी ही देर बाद ज़िन्दगी गुलज़ार हो उठी थी वहाँ पर। ढेर सारी खिलखिलाहटों के बीच मधुर शोर उठ रहा था, चिड़ियों की मीठी कलरव सा। मुकुल भी उछलता-कूदता, चहकता हुआ लौट आया था अपने स्टीकर्स लेकर। दादा-दादी को दिखाता हुआ उससे जुड़ी ढेरों बातें बताता जा रहा था। वे रस लेकर उसकी भोली बातें सुन-सुन कर मुस्कुरा रहे थे। दादी बार-बार उसकी बलाएँ ले रही थीं।

“पायलsss! अरे किधर हो भई! और लाओ जल्दी सेsss…बड़े ही यम्मी बने हैं यार करारे ब्रेड पकौड़े आज…रोल्स का भी जवाब नहीं! चाय तो तुमसे बेहतर कोई बना ही नहीं सकता!!” कुन्दन बड़े प्यार से पुकार रहा था।

“हमारे लिए अलग से कुछ भी नहीं बनाना बिटिया!…यही सब हम-दोनों भी खा लेंगे… बड़े ही स्वादिष्ट बने हैं, चटनियाँ भी एकदम लाज़वाब!” बब्बाजी की आवाज़ पायल को हुलसा गयी थी।

“मम्मा, आप अपनी प्लेट भी लेती आओ ना sss!…हम सब एक साथ ब्रेकफास्ट करेंगे!” मुकुल भी चिल्ला रहा था।


पायल जो थोड़ी देर पहले अपनी क़िस्मत को कोसती रो रही थी, अब जल्दी-जल्दी हाथ चलाती हुई मुस्कुरा रही थी रसोई में। अपने आप से कह रही थी, “ये मेरा घर-संसार ही तो असली स्वर्ग है मेरा, इससे बाहर और कहाँ कुछ है!…इन सब से बिछड़ कर तो दो दिन में ही मर जाऊँगी मैं!…कौन होगा मुझ सा भाग्यवान, कितना प्यार करते हैं सब मुझसे!…भगवान, नज़र न लगे मेरे सुखी संसार को!!”

हाथ धोकर उसने इस बार एक बड़ा सा ट्रे लिया। कई प्लेटें-कटोरियाँ लीं, पानी का जग भरा। सब कुछ लेकर रसोई से निकल पाती, इससे पहले ही अम्माँजी ख़ुद आ गयीं वहीं, “लाओ बेटी, तुम्हारी मदद करवा देती हूँ….तुम भी साथ ही खा लिया करो न सबके, अकेली देर तक भूखी न रहा करो…हमें अच्छा नहीं लगता बिल्कुल! हाँ!!”

उनके पीछे-पीछे मुकुल भी चला आया था। पायल से मनुहार करता हुआ बोल रहा था,

“मम्मा, दो-तीन पकौड़े मुझे एक्स्ट्रा दे सकतीं क्या?….मेरे बेस्ट फ्रेंड रॉनी के लिए!…पता है आपको, वह बहुत अच्छा है, बहुत ही अच्छा!”

“दो-तीन नहीं, जितनी मर्ज़ी ले लेना राजा बेटा, अपने बेस्ट फ्रेंड के लिए!” पायल हँसती हुई बोली और अम्माँजी के साथ सबकुछ लेकर बाहर को चली।

प्रेम, भावना, आत्मीयता, और एक-दूसरे की परवाह!…कितना कुछ चहक उठा था उस छोटे से दायरे में, जहाँ प्रीत की डोर में बँधा एक परिवार हँसते-खिलखिलाते खिला रहा था एक-दूजे को नेह भरे कौर और ख़ुद भी तन-मन दोनों से पूर्णतः तृप्त हुआ जा रहा था।

 

____________________________________________

(स्वरचित, मौलिक)

नीलम सौरभ

रायपुर, छत्तीसगढ़

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!