प्रेमरूप – वीणा

 

बलचनवा गरदन में गमछा लपेटते हुए फगुनिया से बोला,

” फगुनिया तुम अभी तक नाराज हो..

गोइठा पाथती फगुनिया कुछ नही बोलती, हाँ गोइठा पाथते समय फगुनिया की कलाई की चूड़ियां खनखना रही थी, लेकिन फगुनिया का उदास चेहरा छुप नही रहा था।

बालचन फिर बोला…

तुम ससुराल से आई हो कुछ खाजा टिकरी ही खिला देती,

“अरे ई तोहार उँगली में अंगूठी तो सूरजकुण्ड मेला से दस रुपईया में खरीद के लाये थे वही है न…

आखिर बलचनवा की बक बक फगुनिया कब तक सुनती और चुप रहती..

जब अपनी नजर बलचनवा की तरफ उठाई तो आँखें भर आईं  उसकी.

” हाँ  ई वही अंगूठी ह तोहार प्रेम के निशानी..

कितना पत्थर दिल हो बालचन, अगर हम जानती कि प्रेम में एगो प्रेमिका के दशा अईसन हो जाता है कि न हँस सकती है ना जी भर रो सकती है तो..

” तो क्या फगुनिया..

 तुमको का लग रहा है की हम तुमसे प्रेम नही करते,

 हम तुमसे बहुत प्रेम करते है

और तब से करते है जब तोहार अम्मा तोहार नाक छेदवाय रही थी , हम दुआरे से देख रहे थे 

सच्ची फगुनिया..तुमको रोता देख हमरे आँख से भी आँसू निकल आया था

ऊहे दिन से तुम हमरे दिल में बस गयी थी

तो काहे नहीं बोले..हमरे बाबूजी से

हम तो औरत जात हैं , मुँह सिल दिया जाता है हम सबका

का पसंद है ,का नहीं..कुछ नहीं कह सकते हम ,पर तुम तो मरद थे बालचन..काहे नहीं आगे बढ़ कर माँग लिए हमरे बाबूजी से हमरा हाथ..

न न फगुनिया..ई कईसन बात कहती हो 

बाबूजी ने हमार जइसन अनाथ पर अपना एतना प्रेम दिया , एतना विश्वास किया..कैसे तोड़ देते हम उस विश्वास को


जानती हो फगुनिया..ऊ दिन , जब हमदोनों पहिला बार स्कूल जा रहे थे तो बाबूजी ने का कहा था..बालचन बेटा , फगुनिया का ध्यान रखना..नासमझ है अभी ई

पर प्रेम के अंकुर को तो हम खत्म नहीं कर सकते न , पनपते रहा ई हमार दिल में..

तोहार बियाह में आँख में आँसू भरके हम सब काम करते रहे… तुमको विदा होते देखते रहे..फटता रहा कलेजा हमरा

पर अब एक बात कहूँ फगुनिया..तुम अपने घर ,  अपने पति में मन रमाओ..प्रेम यही कहता है , और सच्चा प्रेम भी यही है फगुनी

हाँ ..जिंनगी के जऊन मोड़ पर तुम हमको पुकारेगी , हम वहाँ मिलेंगे..हर पल , हर क्षण

बस ई हमार छोटी सी प्रार्थना है फगुनिया..अपनी आँख में कभी आँसू न आने देना , बाबूजी के विश्वास को बनाये रखना हम दोनों के ही जिम्मे है

गोइठा पाथती फगुनिया के हाथ रूक गये.. काँपते होठों से बोली..तुम सच कहते हो बालचन , अब हम दिल में तुम्हारा प्रेम भरकर अपने पति , अपने घर में मन रमायेंगे ,पर भूल न सकेंगे तुम्हें

आँखों में नमी अऊर होठों पर हँसी हर समय होगी हमार चेहरे पर , यही सच्चा प्रेम होगा हमरा तुम्हारे लिए….

 

वीणा (स्वरचित)

झुमरी तिलैया 

झारखण्ड

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