प्रीत का दामन छूटे ना – गुंजन आनंद गोगिया

उत्तराखंड की पहाड़ियों में होने वाली बरसात का तो कोई मुकाबला ही नहीं है। ये बात उन दिनों की है जब मोबाइल फोन का चलन शुरुआती दौर में था। जिसके कारण हर इंसान ना तो महंगे मोबाइल खरीद सकता था और ना हर जगह उसके सिग्नल मौजूद थे। आम आदमी टेलीफोन पर ही निर्भर था।आज रमन और उसकी पत्नी लतिका चमोली से होते हुए नैनीताल की तरफ जा रहे थे, जहां रमन काम करता था। सफर क्योंकि ससुराल तक था तो सब के लाड़ प्यार में समय कैसे बीता, उन्हें पता ही ना चला। बरसाती मौसम में पहाड़ों पर रास्ता तय करने की मुश्किल झेलना तो बिल्कुल तय था। दोनों हंसते बतियाते अपने छोटे बच्चों के साथ वापस अपने घर लौट रहे थे। पहाड़ी रास्तों पर बरसाती फिसलन के कारण जगह-जगह पत्थर बिखरे पड़े थे,जिसके कारण उनकी गाड़ी पंचर हो गई अब ऐसे रास्ते पर पंचर वाला ढूंढना बहुत मुश्किल था। बमुश्किल अपनी गाड़ी सड़क के कोने पर लगा कर अपने गाड़ी के टायर को निकाल रमन दूसरी गाड़ी का इंतजार करने लगा, ताकि 3 किलोमीटर आगे बैठे पंचर वाले की दुकान तक जा पाए। लेकिन रास्ते में बरसात के कारण इतना जाम था कि इस पूरे काम में उसको दोपहर से शाम हो गई। लिफ्ट ली और वहां पहुंचकर बहुत मान मुन्नवल के बाद उसने किसी तरह पंचर वाले से अपना टायर ठीक कराया क्योंकि उसके दुकान बढ़ाने का वक्त हो चला था। अब वापसी जाने को, लिफ्ट के लिए वह सड़क पर खड़ा था। उसका मन बहुत विचलित था क्योंकि उसके बच्चे और पत्नी उस से ३ किलोमीटर पीछे अकेले गाड़ी में थे।

तकरीबन आधे घंटे के बाद वापसी की तरफ उसे एक गाड़ी दिखी। जिसको उसने हाथ देकर रोका। उसमें एक व्यक्ति बैठा था। उसने बोला “भाई आप इस वक्त संध्या समय अकेले क्यों खड़े हैं ?”

“बरसात का मौसम है,ऐसी जगह खड़े होना भी खतरनाक है। कहीं ऊपर से कोई पहाड़ का टुकड़ा दरक कर गिर गया तो पता भी नहीं लगेगा कि आप कहां खाई में गए!”

अपनी मुश्किल बताते हुए रमन ने बताया “भाई साहब मैं अपने ससुराल से वापसी आ रहा था,कि मेरी गाड़ी का टायर पंचर हुआ और मुझे अपने बीवी बच्चों को गाड़ी में अकेला छोड़ कर पंचर बनवाने आगे आना पड़ा। मुझे अपनी चिंता नहीं है लेकिन अपने बीवी बच्चों की फिक्र खाए जा रही है।” कृपया मुझे जल्दी से उनके पास पहुंचा दीजिए।” उस व्यक्ति ने उसे अपनी गाड़ी में बिठा लिया।

दिन में मन मोह लेने वाली यह पहाड़ी घुमावदार सड़कें रात को वैसे ही बहुत डरावनी लगती है और भारी बारिश इस डर को और भी बढ़ा देती है। अंधेरे फिसलन भरे घूमावदार रास्तों पर वह गाड़ी वाला अपनी गाड़ी को संभालते हुए बहुत धीरे पर चला रहा था, और मन ही मन रमन की किस्मत पर हैरान था जो इस सुनसान सड़क पर ऐसे वक्त में परिवार सहित फसा था।

उसने पूछा “भैया क्या आप भूत प्रेत पर विश्वास करते हैं?”

रमन ने उसकी तरफ हैरानी भरी निगाहों से देखा। 

उसने फिर पूछा “क्या आपकी गाड़ी में आपके इष्ट की कोई फोटो या बच्चों के पास कोई ताबीज या लॉकेट है?” रमन ने घबराते हुए उससे पूछा “क्यों भाई साहब आप ऐसा क्यों बोल रहे हैं?आखिर ऐसी क्या बात है?”

वह बोला “भाई साहब! तकरीबन 7 साल पुरानी बात है यहां एक लड़की अपने प्रेमी के धोखे से दुखी होकर पहाड़ से कूद गई थी।”


“कहते हैं तब से उसकी अतृप्त आत्मा लाल जोड़े में रात को इसी सड़क पर दिखाई देती है। उसके हाथों में सुहाग का चूड़ा और माथे पर बिंदिया है, लेकिन उसका लहंगा नीचे से बिल्कुल फट गया है और उसके माथे पर चोट का निशान है। वह कई बार बड़े हादसों का कारण भी बनी है।”

 

“सब बकवास है,बिल्कुल अंधविश्वास है ! मैं इन सब बेकार की बातों में बिल्कुल यकीन नहीं करता।” रमन ने गुस्से भरी आवाज से कहा।

“देखिए मैं आपको डराना नहीं चाहता लेकिन गांव वालों का और ड्राइवरों का तो यही कहना है। कई लोगों ने उसको बहुत बार देखा है। आपको परिवार को अकेला नहीं छोड़ना चाहिए था।”

“अगर आपको लिफ्ट चाहिए थी तो उनको भी साथ लाना चाहिए था या गाड़ी में एक और टायर रखना चाहिए था, कहीं यह लापरवाही आपको महंगी ना पड़ जाए।” वह व्यक्ति बोला।

 

“ये क्या कह रहे हैं आप?”

“आप मुझे डरा रहे हैं ऐसी बातें करके। मैं पहले ही अपने परिवार की चिंता में घुला जा रहा हूं कि भगवान ना करें उनके साथ कोई अनिष्ट हो और आप हैं कि मुझे हिम्मत देने की बजाय मेरे डर को और बढ़ा रहे हैं। भगवान के लिए ऐसा मत बोलिए।”अब रमन की आवाज में घबराहट भरी हुई थी।

“चिंता मत कीजिए भगवान का नाम लीजिए क्या पता आपकी पत्नी के पास कोई भला मानस या भला परिवार मदद के लिए खड़ा हुआ हो। भगवान पर विश्वास रखिए सब ठीक होगा।” वह व्यक्ति बोला।

समय बड़ी मुश्किल से कट रहा था। तकरीबन ढाई घंटे का वक्त लगा रमन को अपनी गाड़ी तक पहुंचने में। दूर से ही वह अपनी गाड़ी के अंदर देखने की कोशिश कर रहा था की पत्नी और बच्चे महफूज हैं।

 

उसकी गाड़ी से कुछ दूर ही उस व्यक्ति ने उसे 

उतार दिया और बोला “देखो अपने कर्मों की सजा तो जरूर मिलती है इसलिए अच्छे कर्म करो।” कह कर वह  चलने लगा। रमन ने उसको रोकने की कोशिश की लेकिन उस आदमी ने अपनी गाड़ी सरपट दौड़ा दी।

रमन अपनी गाड़ी की तरफ बहुत तेजी से अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ा। उसको अपनी गाड़ी के अंदर से बहुत जोर जोर से हंसने की आवाज आ रही थी। उसका मन अपने परिवार की आवाज को सुनकर शांत हो गया। लेकिन जैसे ही वह गाड़ी के दरवाजे की तरफ पहुंचा तो देख कर हैरान हो गया कि उसके दोनों बच्चे पीछे की सीट पर सोए पड़े थे और उसकी पत्नी अपने आगे बैठी ड्राइवर की सीट की तरफ देखकर बातें कर रही थी जहां कोई भी नहीं बैठा था। 

उसने अपनी पत्नी को बड़ी जोर से पुकारा “लतिका”!  “यह तुम क्या कर रही हो किससे बातें कर रही हो ?”


लतिका अपने पति की आवाज सुनकर बहुत खुश हुई और खाली सीट की तरफ फिर देख कर बोली “देखा वन्दना, मैं कहती थी ना यह मुझे और बच्चों को बहुत प्यार करते हैं, हमें कभी नहीं छोड़ सकते। देखो, आ गए !”

“तुम पागल हो गई हो क्या? कौन बैठा है यहां, जिस से बातें कर रही हो ?”

“कौन वंदना ? मुझे तो यहां कोई नहीं दिख रहा ?” रमन ने बिफरते हुए कहा।

 

“क्या कह रहे हैं आप? मेरे साथ तो बैठी है। देखिए कितनी सुंदर दुल्हन लग रही है लाल जोड़े में।”

“इसके साथ एक हादसा हो गया है यह बहुत देर से अपने प्रेमी का इंतजार कर रही है जो नैनीताल गया हुआ है, नौकरी की तलाश में।इससे शादी का वादा करके और अब तक नहीं आया और यह  गिर गई।” 

 “देखो इसको माथे पर चोट भी लगी है और इसका नया लहंगा फट गया है। यह तो खुद बहुत परेशान है पर फिर भी जब मैं अकेली थी यह मेरे पास आई। इसके पास कुछ बिस्कुट और दूध का पैकेट था, जो इसने हमारे भूख से रोते बिलखते बच्चों को दिया और थके बच्चे पेट भरकर सो गए। तब से बस यह मेरे साथ बैठी है और मेरा साथ दे रही है।”

“क्या हम इसको इसके घर या आगे बस स्टैंड तक नहीं छोड़ सकते ? देखो तो हैरानी की बात इसके प्रेमी ने भी बच्चों का नाम मेहुल और चुनमुन चुना था बिल्कुल हमारी तरह।” लतिका बिना रुके रमन को यह सब बोलती रही। 

रमन हैरान सब सुनता रहा, अचानक उसने अपने हाथ जोड़कर  कहा “मैं तुम्हें पहचान गया वन्दना। तुम मेरे भाई सुलभ की प्रेमिका हो। वंदना हमें और हमारे परिवार को माफ कर दो। अपनी मृत्यु की सजा मेरे परिवार को मत दो,बख्श दो हमें।अब मुझे समझ आया की तुमने दुखी होकर आत्महत्या की थी।”

 

अचानक वंदना जो उसको नहीं दिख रही थी उसके सामने गाड़ी के बाहर प्रकट हो गई और बोली “रमन तुम्हारे भाई ने ज्यादा दहेज की खातिर अपने बचपन के प्यार को त्याग कर किसी और से शादी की। मुझे झूठ बोलकर नैनीताल चला गया कि वह अगले महीने की 7 तारिख को मुझसे प्रेमविवाह करने आएगा क्योंकि हमारा परिवार अंतर्जातीय प्यार को स्वीकार नहीं कर रहा।” उसका स्वर बहुत दर्द और निराशा

 भरा था।

“मैं सारा दिन उसका इंतजार करती रही क्योंकि मैं घर से भाग चुकी थी। पूरी रात पहाड़ी वाले शिव मंदिर पर मैं अकेली बैठी थी। पर जब सुलभ नही आया और मुझे ढूंढते ढूंढते मेरे माता-पिता के साथ हमारे गांव वाले भी आए जिन्होंने मुझे वहां खूब मारा और गुस्से में मुझे पहाड़ी से धक्का दे दिया,जहां नीचे खाई में गिरकर मेरी तुरंत मौत हो गई। तब से मैं भटक रही हूं सबसे अपनी मौत का लेने के लिए।” वह कर्कश स्वर में बोली।

“नहीं नहीं ! “तुम्हें बहुत बड़ी गलतफहमी है।” एकदम कराहकर रमन बोला। “सुलभ ने तुम्हें कोई धोखा नहीं दिया वह बेचारा तो खुद नैनीताल में जाकर बहुत बड़े एक्सीडेंट का शिकार हुआ, जिससे उसकी हालत बहुत खराब है। वह अपाहिज हो गया है, 3 साल तक कोमा में था। तुम्हें गलतफहमी हुई है कि उसने तुम्हें छोड़कर किसी और से शादी नही की बल्कि वह तो आजीवन बिस्तर से जकड़ गया है। उसकी हालत पर डॉक्टर जवाब दे चुके हैं। उसके ठीक होने को लेकर हम सब नाउम्मीद है। ना ठीक होता है ना मौत आती है। जब भी कुछ बोल पाता है तो फटी जबान से तुम्हारा नाम ही लेता है। उसकी हालत से तो मेरे माता-पिता भी बौरा से गए हैं।” रमन का रोना छूट गया।

 

“आई तो मैं आज तुम्हारी भी जान लेने थी, लेकिन तुम्हारे नन्हे-मुन्ने बच्चों को देखकर और उनके नाम सुनकर, जो हमने साथ अपने बच्चों के चुने थे, मेरा मन पिघल गया। उस प्रीत की डोरी ने मुझे फिर 

वापस खींच लिया।मेरी ममता जाग उठी।” वन्दना

 ने कहा।

“भैया शुरू से इन नामों को लेकर बहुत बोलते थे की वह हमेशा अपने बच्चों का यही नाम रखेंगे, तो उनकी इच्छा हम दोनों ने अपने बच्चों को यही नाम देकर पूरी की ।” रमन ने कहा।

“मुझे बहुत पश्चाताप महसूस हो रहा है कि मैंने उसे गलत समझा। मैं यहीं इसी सड़क पर भटकती रही और उसका इंतजार करती रही की कभी तो वापस आएगा,कभी तो उसे देख पाऊंगी और वह वहां तड़पता रहा। उसे तो पता भी नहीं होगा जीवित भी नहीं हूं।” वंदना तड़पते स्वर से बोली।


 

“इस बात का हम में से किसी को नहीं पता क्योंकि हमें यह बताया गया था कि आपकी शादी विदेश में करवा दी गई और आप हमेशा के लिए चली गई हो।”

 “एक्सीडेंट होने के बाद जब भैया ने होश आते ही गांव में अपने दोस्तों से पता किया तब उन्हें यह पता लगा जिससे उनकी जीने की चाह खत्म हो गई और वह कोमा में चले गए।” रमन भरे गले से बोला।

“मैं, मैं उसके पास जा रही हूं उसको अपने साथ ले जाने, ताकि हम दोनों यह तड़पती हुई प्रीत की कहानी एक सुखद अंत हो और आखिर में ही सही हम दोनों साथ हों।”वन्दना ने तड़पते हुए कहा।

 

यह वार्तालाप सुनकर लतिका के पैरों के नीचे की जमीन निकल गई। घबरा कर उसके मुंह से हल्की चीख निकल गई कि जिसको इतनी देर से वह हमदर्द समझकर बात कर रही थी, वह तो एक भटकती आत्मा थी जो उसके बीमार जेठ के साथ जुड़ी थी।

हाथ जोड़ते हुए उसने भी उसके साथ हुए अन्याय की माफी मांगी और उसकी मुक्ति के लिए पूजा कर्म हवन करवाने का वादा किया और कहा “आप शांत हो जाएं, आपकी प्रीत को मैं सार्थक करूंगी।”

“मैं आपको हमेशा अपनी जेठानी के रूप में स्थान के रूप में स्थान दूंगी।आप हमारे बच्चों की भी मां की तरह मानी जाएंगी।”

लतिका के मुंह से यह बात सुनकर,वंदना मन बहुत शांत हुआ और वह अपने प्यार को मिलने और प्रेत योनि से मुक्त होने को उस बरसात की घनी काली रात में अचानक गुम हो गई। मौसम अचानक साफ होना शुरू हो गया था रमन ने टायर बदल कर अपना वापसी का सफर शुरू किया पूरे रास्ते लतिका और नमन चुपचाप अपने साथ हुई इस घटना पर विचार करते रहे।

जैसे ही घर पहुंचे तो घर के आंगन से चीखने चिल्लाने की आवाज आ रही थी। भागकर अंदर पहुंच पहुंचे तो देखा। सुलभ भैया की निष्प्राण देह जमीन पर रखी हुई थी और माता पिता और जोर-जोर से रो रहे थे लेकिन भैया के चेहरे पर असीम शांति थी। शायद वह दोनों अपने अमर प्रेम को पा चुके थे।

#बरसात

लेखिका 

गुंजन आनंद गोगिया

 

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