“प्रायश्चित” – प्रीती श्रीवास्तवा : Moral Stories in Hindi

‘पलक ‘दरवाजे पर खड़ी होकर के अपने (पति) ‘रोमन’ से; चहकते हुए बड़े उत्साह के साथ, अपने बगल में एक बुजुर्ग महिला की तरफ इशारा करते हुए बोलती है ,’रोमन’ देखो कौन आया है ….,उन बुजुर्ग महिला को देखते ही रोमन भड़क उठता है। और बोलता है आप यहाँ !क्यों आईं हैं ,अभी तुरंत यहाँ से चली जाइए आपको किसने बुलाया ,

आपकी हिम्मत कैसे हुई मेरी दरवाजे पर आने की, रोमन के ऐसे शब्दों को सुनकर मानो पलक के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई हो , वह मूर्ति बनी रोमन की तरफ देखती रही, रोमन के द्वारा ऐसे शब्दों को सुनकर, उसे बहुत ही आश्चर्य हुआ। रोमन के शब्दों से पलक को बहुत गहरा धक्का लगा,उसे रोमन से ऐसी उम्मीद बिल्कुल भी नहीं थी ।

क्योंकि रोमन बहुत ही सीधा-साधा तथा साधारण लड़का था । उसके द्वारा ऐसे शब्दों को सुनकर के पलक ने कांपते हुए होठों से बोला ,रोमन तुम ऐसा व्यवहार कैसे कर सकते हो वह मेरी म…… माँ है । पलक की आँखें आंसुओं से भर आई।

‘रोमन ‘ने आँखें बड़ी करते हुए तुरंत जवाब दिया, मैंने क्या कहा?तुमने सुना नहीं!; अपनी माँ से बोल दो कि चुपचाप यहाँ से चली जाएं, इन्हें किसने बुलाया यहाँ पर ?जो मुंह उठा कर चली आईं ।           

    पलक चिल्ला उठी,’ बोली रोमन यह घर सिर्फ तुम्हारा ही नहीं है ‘ मेरा भी है, इसलिए मेरी माँ कहीं नहीं जाएगी ।

प्यार की बारिश – लता उप्रेती

रोमन बोला, अगर तुम्हारी माँ कहीं नहीं जाएगी तो तुम भी अपना सामान पैक करो और अपनी माँ के साथ निकल लो ।क्योंकि मैं तुम दोनों को एक मिनट भी यहाँ पर बर्दाश्त नहीं कर सकता ।

पलक की माँ को भी रोमन के ऐसे व्यवहार से बड़ा ही आश्चर्य हुआ, रोमन के द्वारा ऐसी बात सुन करके बोली, दामाद जी आप तो ऐसे नहीं है ……क्या बात है ?आप ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे हैं। हमसे कौन सी ऐसी गलती हुई है। तभी रोमन के आंखों में आँसू आ गए और वह बहुत ही भावुक होकर के बोला , माँ जी मैं आपका दिल नहीं दुखाना चाहता था,

लेकिन अभी कुछ ही दिनों की बात है, गाँव से मेरे पिताजी आए थे, वह हमारे पास कुछ दिन रहना चाहते थे, मैं अपने पिताजी को बाहर के कमरे में बिठाकर के पलक के पास गया और बोला पलक मेरे पिताजी आए हैं, वह हमारे साथ कुछ दिन रहना चाहते हैं ।

पलक बोली , तुम्हारे पिताजी आए हैं तो उसमें मैं क्या करूं , और क्या कहा तुमने ?हमारे साथ रहना चाहते हैं! तुम्हें पता नहीं है यह घर हमारा है, यहाँ पर हम और तुम बस हम दोनो रह सकते हैं ।तुम्हारे पिताजी क्यों चले आए हैं हमारे साथ रहने के लिए, हमें डिस्टर्ब करने के लिए, जब देखो तब चले आते हैं मुँह उठा करके, उन्हें और कोई काम नहीं है क्या ।

मैंने बहुत समझाने की कोशिश की ,…….. वह हमारे पिताजी हैं हमें पाल पोसकर के बड़ा किया है उन्होंने, आज मैं जो कुछ भी हूँ उन्हीं की बदौलत हूँ ,हमारा भी उनके प्रति कुछ कर्तव्य बनता है , यह घर भी उन्हीं का है, अगर वह आए हैं तो हमें अच्छे से उनका स्वागत करना चाहिए, और उनको किसी भी चीज की कमी नहीं होने देनी चाहिए,

उनकी सेवा करनी चाहिए ।लेकिन पलक हमारी एक न सुनी उसने बोला मेरा दिमाग मत खराब करो, यह सब काम कराने के लिए तुमने मुझसे शादी की थी !मैं तुम्हारे गंवार पिताजी के साथ एक मिनट भी नहीं रह सकती, चुपचाप से यहाँ से चले जाओ, और अपने पिताजी से बोल दो कि वो यहाँ से चले जाएँ, इस घर में उनके लिए कोई जगह नहीं है।

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दूसरे कमरे में मेरे पिताजी ने पलक की सारी बातें सुन ली, और वह चुपचाप बिना कुछ कहे मेरे घर से निकल कर गाँव चले गए, मैं बहुत मायूस हो गया ,मुझे बहुत दु:ख हुआ मेरा कलेजा फट गया , मेरे मन में इस बात का अफसोस हमेशा रहता है,कि मेरे पिताजी इस दरवाजे से अपमानित होकर के गए हैं। मैं पिताजी को क्या मुँह दिखाऊंगा भगवान मुझे कभी माफ नहीं करेगा ।

    मुझे तो इस औरत का चेहरा देखने में भी घिन आती है ,यह मेरी बीवी कहलाने के लायक नहीं है ,मैं इसे अब बिल्कुल भी अपने घर में बर्दाश्त नहीं कर सकता, माँ जी मैं आपका अपमान नहीं करना चाहता था ।

लेकिन मैं क्या करूं मैं बहुत ही मजबूर था। मेरे पिताजी बहुत दु:खी होकरके इस दरवाजे से गए थे । जब किसी अपने पर बीतती है तभी पता चलता है। इसलिए मैंने आपके साथ ऐसा व्यवहार किया, ताकि पलक को भी एहसास हो कि उस दिन मुझे कैसा महसूस हुआ होगा।

पलक की माँ इतनी बातें सुनते ही पलक की तरफ घूरते हुए देखी और बोली, पलक यह तुमने बहुत गलत किया तुमने समधी जी को इस तरह से अपमानित करके इस घर से भेज दिया क्या, मैंने यही परवरिश तुम्हें दी थी, मुझे तुमसे यह उम्मीद नहीं थी। तुम्हारी यह गलती तो माफ़ी के काबिल भी नहीं है। मैं अभी तुरंत यहाँ से चली जाती हूं ,और तुम यह सोच लेना कि तुम्हारी माँ अब मर चुकी, मुझे माँ कह करके कभी भी मत बुलाना।

 पलक आँखों में आँसू भरकर के बोली , माँ…. पलक की माँ ने बोला मत बोलो मुझे माँ ,मर चुकी है तुम्हारी माँ तुम्हारे लिए, पलक ने अपनी माँ के सामने गिड़गिड़ाते हुए बोला मुझे माफ कर दो माँ मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई । मैं अपनी गलती की “प्रायश्चित “करूंगी, तुम जैसा कहोगी मैं वैसा ही करूंगी। आज मुझे पता चला जब अपनों का अपमान होता है तो कितना दु:ख होता है।

पलक की माँ ने बोला अब तुम्हें अपनी गलती सुधारनी होगी ।पहले तो तुम दामाद जी से माफी मांगो ।

तभी पलक अपने दोनों हाथों को जोड़े हुए आँखों से झर -झर आँसू बहाते हुए रोमन से मांफी मांगने उसकी तरफ बढी और बोली रोमन मुझे माफ कर दो,मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। 

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तभी रोमन ने पलक की तरफ देखते हुए उसके दोनों हाथों को अपने हाथों में पकड़ लिया और बोला “प्रायश्चित” केवल आँसू बहाना नहीं रिश्तो को फिर से जीना होता है ‘पलक’।

तभी पलक की माँ ने उसकी तरफ देखते हुए बोला ,तुम्हें अपनी गलती को सुधारना होगा तुम्हें अपने ससुर को गाँव से बुलाना होगा ,और उनकी सेवा करनी होगी ,वह रोमन के पिता ही नहीं तुम्हारे ससुर भी हैं। उनका इस घर पर सबसे पहला हक है ,तुम उन्हें अपने घर बुलाओ उनकी सेवा करो उन्हें अपने पास रखो तभी मैं तुमसे बात करूंगी ।

पलक का सिर शर्म से झुक गया और उसकी आँखों से आँसू रूक ही नहीं रहे थे,अपने पति रोमन से बोली कि तुम गाँव जाओ और पिताजी को लेकर के आओ ।रोमन गाँव जाकर के पिताजी को लेकर के आया और पलक ने उनकी खूब सेवा की और बोला पिताजी मुझे मेरी गलती की माफी दे दीजिए मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई ।

रोमन के पिता ने कहा बेट माँ बाप अपने बच्चों से कभी नाराज नहीं होते है ,और तुमने तो अपनी गलती भी स्वीकार कर ली है।

 ” इंसान अपनी गलती को स्वीकार करके उसमें सुधार करले तो यही उसका सबसे बड़ा प्रायश्चित होता है “

प्रीती श्रीवास्तवा

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