“इज्ज़तदार शब्द की इज्ज़त” – सरोज माहेश्वरी

 इज्ज़त जीवन का वह आभूषण है जिसकी चमक व्यक्तित्व में चार चांद लगा देती है, परन्तु अपने आपको इज्ज़तदार कहने वाले रसूखदार भेडियों की काली अंधेरी रातों की काली कहाऩी जब उनके कुकर्मों का पर्दा खोलती है तब भेड़ के रूप में बैठे भेड़ियों का अपावन चोला उतार फेंकना आवश्यक हो जाता है ।इसी विषय पर एक कहानी….

                            विजयप्रताप गांव के रसूखदार धनी ज़मीदार था। दीनू उनके पास दहाडी मज़दूर का काम कर अपने छोटे से परिवार का पालन पोषण करता था। उसकी बारह साल की बेटी खुशबू सुंदर और प्रज्ञावान थी। हमेशा कक्षा में अब्बल आती थी ।अपने ज्ञान और सौन्दर्य की खुशबू से उसने गांव के लोगों को मोहित कर लिया था ।सभी लोग उसे बहुत प्यार करते थे।जमींदार तेजप्रताप की आंखों में उसके प्रति जो प्यार था वह सदा खुशबू को अपवित्र लगता था।कहते हैं स्त्री की छठी इन्द्रिय सदा अपावनता को पहचान लेती है। बढती उम्र की खुशबू की सुन्दरता को प्रताप जैसे वाज़ ने झपट लिया… और फिर उस रात की  काली करतूत में इज्ज़तदार विजयप्रताप खुशबू की नज़रों में भेड़िया  था…खुशबू  ने जब सारी बात अपनी माँ को बताई तब उन्होंने एक बुरा सपना समझकर भूल जाने का कहा क्योंकि गांव की कई अविवाहित लड़किय़ों की आबरू से खेलकर उन्हें अपना पाप ढोने के लिए विजयप्रताप ने मजबूर किया था….. उसके बाहुबल और धनबल और गांव वालों के अनपढ़ होने के कारण कोर्ई आवाज़ नहीं उठा पाता था।कुछ लोग तो उसे बहुत इज्जतदार समझते  थे…..खुशबू ने ऐसे भेडिय़ों को दण्ड दिलाने का निश्चय किया….




                                            खुशबू ने बारहवीं कक्षा अच्छे नम्बरों उतीर्ण कर शहर जाकर वकील बनने की चाह माता पिता को बताई ।कुशाग्रबुद्धि खुशबू को एक अच्छे कॉलेज में एडमीशन मिल गया ..माता पिता आर्थिक रूप से सक्षम न थे सो शहर में बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर उसने अपनी पढाई का खर्चा पूरा किया…. दृढसंकल्प और  कर्मठता रंग लाई ।कुछ सालों में वह पढ़ लिखकर एक अच्छी वकील बन गई और शहर में ही  एक विख्यात वकील के सानिध्य में प्रेक्टिस करने लगी…. कुछ दिन बाद माता पिता के पास गांव आई … माता पिता खुशी से झूम उठे वे बोले…बेटा! अब तुम  एक सफल वकील बन गई हो तुम अब ब्याह कर घर बसा लो ….मां बाबूजी! अभी मेरी मंजिल अधूरी है मैं अभी शादी नहीं कर सकती …मुझे अभी लोगों को इज्ज़त शब्द का अर्थ समझाना है….मुझे अपनी और अपने जैसी बहनों की जिंदगी से खिलवाड़ कर अपने आपको इज्ज़तदार का तमगा देने वाले दरिंदों क़ो उनके अन्जाम तक पहुंचाना है और मासूमों की काली रात को दिन के उजालों में बदल उन्हें इज्ज़त की ज़िंदगी देनी है….

                                             दूसरे दिन खूशबू खेत की पगडंड़ियों में चहल कदमी कर रही थी तभी एक बड़ी गाडी वहां से गुजरी…सफेद कपड़ों में काला दिल लिए विजयप्रताप अपने चमचों क़े साथ वहां से गुजरा….खुशबू को देखकर एक बार फिर से उसके मुंह में पानी आ गया…एक शाम अपने शरीफ समझने जाने वाले गुण्डों के हाथों समाचार भेजा कि वह खुश्बू को पारितोषिक देना चाहता है क्योंकि वकील बनकर उसने गांव का नाम रोशन किया है। चमचों ने कहा. … जमींदार साहब कुछ महीनों के लिए विदेश जा रहे हैं  वे खुशबू को आज शाम को ही ईनाम देना चाहते हैं .खुश्बू सब समझ गई …वह सोचने लगी …कि एकबार और अपनी इज्जत दावं पर लगा कर उसे गांव की मासूम लड़कियों  की इज्जत भेड़ के रूप में बैठे भेड़ियों से बचानी होगी…और फिर चल पड़ी खुशबू अपने हथियार लेकर …रात के अंधेरों में जब बेइज्ज़त जमींदार ने इज्ज़त का चोला  उतार फैंका तब उसकी अश्लील हरकतों और शब्दों को बड़ी चतुराई से खुशबू ने कैमरे में कैद कर लिया….




                                   दूसरे दिन बड़ी निर्भयता से खुशबू ने प्रताप सिंह पर केस किया,पहले तो पुलिस वाले भी ऐसे इज्जतदार ,रसूखदार समझे जाने वाले का केस लेने में कतराने लगी जब खुशबू ने बताया कि मैं एक वकील हूं मंत्री तक तुम्हारी शिकायत पहुँचाऊँगी तभी कहीं दबाव में एफ आई आर लिखी गई…..कोर्ट में अपना केस खुशबू ने खुद लड़ा जज के समक्ष सम्पूर्ण साक्ष्य प्रस्तुत किए….एक बार और अपनी आबरू से समझौता कर समस्त सबूत एकत्र कर भेड़ की खाल ओढे हुए समाज़ के भेडिए की खाल उतार फैंकी गांव की कई अविवाहित लड़कियां जो दरिंदे विजयप्रताप के पाप को ढो रही थी उनके भी केस लडे … उनके बच्चों का जब टीएनए टेस्ट कोर्ट ने कराया जो विजयप्रताप के टीएनए से मैच हो गया और फिर दरिंदों क़ी इज्ज़त हाथ में देकर हथकड़ी लगवाई  … विजयप्रताप को सज़ा दिलाकर खुशबू ने इज्ज़दार शब्द की इज्ज़त बचा ली ,पीडिता मासूमों को इज्ज़त की जिंदगी दे उनके जीवन के अंधेरों को मिटा दिया और स्वयं एक सफल वकील बनकर इज्ज़त पा ली…

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित रचना 

सरोज माहेश्वरी पुणे (महाराष्ट्र)

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