अम्मा! राखी का फ़ोन आया था रात , उसके देवर की इच्छा है कि सगाई और शादी के बीच कम से कम चार – छह महीने का तो अंतर रखें । इतनी जल्दी में ना तो प्री वेडिंग शूट ढंग से हो पाते हैं और ना ही एक-दूसरे को जानने समझने का मौक़ा मिलता है । बताओ क्या कहूँ उसे ?
देख बहू … मेरी तो समझ में ये चोंचले आते नहीं फिर सगाई के बाद ब्याह में ज़्यादा देरी ठीक नहीं लगती मुझे । चल … सगाई करके छोड़ भी दें …. पर यूँ भी चैन नहीं । घंटों- घंटों फ़ोन पे लगे रहते …. हफ़्ते में दो-चार बार घूमने जा रहे, इससे तो अच्छा ब्याह कर दो फिर जो मर्ज़ी करें ।
मैं भी राखी को यही कह रही थी कि अम्मा इजाज़त नहीं देंगी ।
क्यूँ….. राखी के ससुराल वालों ने तो सब कुछ हमारे ऊपर छोड़ दिया था…. फिर अब क्या हुआ?
ये लो अम्मा….. राखी की सास का फ़ोन आ गया, आप ही बात कर लो ।
यह कहकर सुनीता ने अपनी सास विमला देवी को बड़ी बेटी राखी की सास का फ़ोन पकड़ा दिया । औपचारिक बातचीत के बाद राखी की सास ने भी बेटे की उसी इच्छा का ज़िक्र किया, जिसके बारे में सुनीता अपनी सास के साथ चर्चा कर रही थी । विमला देवी ने उस समय जान छुड़ाने के लिए कह दिया कि वे कल तक परिवार से सलाह मशविरा करने के बाद ही अपना निर्णय बताएँगी ।
सुनीता भी उलझन में थी कि आख़िर अम्मा ने ऐसी भी क्या ज़िद पकड़ ली । अरे भाई! देखे- परखे लोग करीबी रिश्तेदार हैं । बड़ी बेटी का देवर है। मात्र एक औपचारिकता ही तो है । अगर उसे छह महीने पहले ही निभा दिया तो कौन सी क़यामत आ जाएगी । उधर सुंदर का कहना था कि वह सगाई और शादी के बीच के समय को स्पेशल बनाना चाहता है ।
दोपहर के खाने के काम से निपटकर सुनीता थोड़ा सा सरसों का तेल गर्म करके सास के घुटने पर लगाने के लिए लेकर उनके कमरे में गई ।
अम्मा….. आँख लग गई क्या ? आओ …. घुटने पर मालिश कर दूँ ।
ठीक किया , तेल ले आई …. ले बेटा … लगा दे।
थोड़ी देर इधर-उधर की बातें करके सुनीता बोली —-
अम्मा, एक बात तो बताओ …. अगर रेवा की सगाई छह महीने पहले ही हो गई तो क्या फ़र्क़ पड़ेगा? सुंदर पहले भी तो राखी के देवर की हैसियत से यहाँ आता रहता था अगर दो- चार बार रेवा से मिलने आ गया या एक- दो बार उसे बाहर घुमाने ले गया तो क्या हो जाएगा? अम्मा….. अब ये आजकल के बच्चे हर चीज को इतना बढ़ा- चढ़ा कर सेलिब्रेट करने लगे कि क्या कहें ?
वो तो ठीक है पर मेरे दिमाग़ से वंदना के साथ हुए हादसे की बात निकलती ही नहीं…. बस यही सोचकर…. कोई ख़तरा मोल नहीं लेना चाहती । वैसे तो क़िस्मत का लिखा कोई नहीं मिटा सकता पर एक धुकधुकी सी लगी रहती है ।
वंदना…. अपनी वंदना जीजी ?
हाँ…. तेरी खुद की बड़ी ननद वंदना और अपनी बेटी की ही बात कर रही हूँ ।
सुनीता को यह सुनकर हैरानी हुई कि उसकी शादी को छत्तीस साल हो गए पर वंदना जीजी की शादी या सगाई को लेकर किसी बात का उसे कुछ पता नहीं ….
अम्मा…. क्या हुआ था वंदना जीजी के साथ ?
वैसे तो मैंने क़सम खाई थी कि उस कड़वी बात का कभी ज़िक्र नहीं करूँगी पर आज तो उस बारे में बात करनी ही पड़ेगी । बचपन से ही वंदना बहुत सुंदर थी । जब उसने बारहवीं की परीक्षा दी तो मेरी बुआ की बेटी की बेटी के देवर का रिश्ता उसके लिए आ गया । अब उस जमाने में लड़की का खुद रिश्ता आना बड़ी बात थी । खाता- पीता बढ़िया घर था , मकान – जायदाद सब कुछ ठीक…. लड़का भी रेलवे में स्टेशन मास्टर था ।
उस समय मामा- बुआ- चाचा- ताऊ के बच्चों में सगे भाई- बहनों से भी बढ़कर प्रेम होता था । कहने को प्रेमा मेरी बुआ की बेटी थी पर हमउम्र होने के कारण तेरी शकुंतला मौसी से भी ज़्यादा हम दोनों में प्रेम था । शादी के बाद भी वो मामा के घर यानि मेरे मायके में रहने आती रहती थी । और उसकी बेटी आरती वंदना से दो साल बड़ी थी । उसकी ससुराल वालों का भी मेरे मायके में खूब आना-जाना था । आरती की शादी में ही उसकी ससुराल वालों ने वंदना को देखा होगा । बस इसकी बारहवीं की परीक्षा होते ही आरती रिश्ता लेकर आ गई । हमने तो किसी ने सोचा भी नहीं था कि यूँ बैठे बिठाए रिश्ता मिल जाएगा । और वो भी देखा- परखा । बात पक्की हो गई और सगाई भी कर दी । शादी की तारीख़ सात महीने बाद की निकली ।
सात महीने बाद की तारीख़ सुनकर हम सब बहुत खुश हुए कि चलो अच्छा… आराम से तैयारी करेंगे । हालाँकि कुटुंब के एक- दो बुजुर्ग ने कहा भी कि जब शादी का मुहूर्त अभी नहीं है तो सगाई करके ढिंढोरा पीटने की अभी क्या ज़रूरत है । एक- आध महीने पहले ही सगाई कर देना । पर शक- सुब्बे की तो बात ही नहीं थी । सगाई कर दी । अब फ़ोन- फान का तो उस समय झमेला नहीं था पर वो लड़का जब भी महीने में छुट्टी में अपने घर आता , वंदना से भी मिलने आ जाता था । मेरे सास- ससुर को बुरा तो लगता था पर मैं उन्हें समझा देती ।
सगाई को तीन महीने हो चुके थे और उसके बाद एक दिन जब वो आया तो मुझसे बोला —
आँटी जी! मेरी मम्मी ने कहा है कि वंदना को उसकी पसंद के कपड़े दिलवा दूँ…. तो एक बार हम बाज़ार तक चले जाएँ क्या? आप चाहो तो इसके भाई को भेज दो हमारे साथ ।
अब मुझे क्या पता था कि बुरा वक़्त लड़की को बाहर खींच रहा है । और कोई ग़लत बात भी नहीं थी …. कपड़े ही तो दिलवाने जा रहा था । मैंने प्रदीप से कह दिया कि बहन के साथ चला जा । ये तीनों बाइक पर चले गए पर जब कपड़े- लत्ते ख़रीद कर वापस आने लगे तो सामान ज्यादा हो गया था और तीनों को बाइक पर बैठने में परेशानी हुई । तब उस लड़के ने प्रदीप को तो सामान के साथ रिक्शे में बिठा दिया और वंदना को बाइक पर बिठा लिया ।
अभी थोड़ी दूर ही चले थे कि ट्रक के साथ ऐसी टक्कर हुई कि वो लड़का तो उछलकर दूर रेत के टीले पर जा गिरा पर वंदना ऐसी जगह गिरी जहाँ लोहे के सरिया और ईंटें पड़ी थी । इसकी एक टांग टूट गई और उसी में लोहे का सरिया घुस गया ।
लोगों ने दोनों को अस्पताल में पहुँचाया । लोग अपनी – अपनी कहानियाँ बनाकर चटकारे लेने लगे । वंदना की टाँग का आपरेशन हुआ और रॉड डाली गई । महीना भर अस्पताल में रहकर लड़की घर तो आई पर साथ में उसी शाम आरती की ससुराल वालों ने यह संदेश भी भेज दिया कि अब लड़की लँगड़ी हो गई है और ऐसी अपाहिज लड़की से देखती आँखों वे शादी नहीं करेंगे ।
हाययय…… अम्मा, उन्हें शर्म नहीं आई । अगर वंदना जीजी की जगह उनका लड़का होता तो ?
पर उनके लड़के को तो खरोंच भी ना आई थी इसलिए उन्हें हमारे दुख का अहसास ही नहीं था । प्रेमा ने भी बहुत समझाने की कोशिश की पर कोई नहीं माना । इधर मेरे सास- ससुर ने मुझे ही क़सूरवार ठहराया । ऊपर से जितने मुँह उतनी बात …. बुरा समय था , क्या करती ? मेरे दोनों बेटे अभी छोटे थे … माँ के साथ खड़े होने लायक़ नहीं थे ।
अच्छा….. तभी मैं सोचती थी कि वंदना जीजी इतनी सुंदर और जीजाजी ….. मतलब दोनों की जोड़ी नहीं मिलाई थी ।
अरे बेटा …. तू जोड़ी मिलाने की बात करती है । उस समय तो ये हालत हो गई थी कि किसी तरह इज़्ज़त बच जाए । एक महीने में ही वंदना सूखकर ऐसी काँटा हो गई थी । वो तो भगवान की दया हुई और मेरे ससुर की पहचान वालों ने वंदना का रिश्ता करवाया । रुप- रंग में भले ही ना जँचे पर हरीश जी ने वंदना को मान- सम्मान देने में कभी कमी नहीं छोड़ी ।
सुनीता…. बस मेरे तो मन में यही डर है बेटा । इसलिए मैं कह रही हूँ कि सगाई के बाद शादी में ज़्यादा दिन नहीं करने चाहिए । बुरा वक़्त कहकर नहीं आता और यह समाज सिर्फ़ लड़की और उसके परिवार को ही हर बात का दोषी ठहराता है ।
पर इस तरह की कोई भी अनहोनी तो दो दिन पहले हुई सगाई में भी हो सकती है…
हाँ…. अनहोनी तो कभी भी हो सकती है पर उस स्थिति में लड़के-लड़की को ज़्यादा घूमने- फिरने का मौक़ा नहीं मिलता । शारीरिक चोट का घाव तो भर जाता है पर मानसिक चोट कभी नहीं भरती । अपनी ही चाची- ताइयों ने भी यह कहने में कसर नहीं छोड़ी थी कि क्या पता …. कहाँ गए थे और आने की जल्दी में ट्रक के नीचे बाइक घुसा दी ।
सास की बात सुनकर सुनीता निरुत्तर हो गई । वह जानती थी कि अम्मा के मन में वहम बैठ गया है । उसने रात में पति प्रदीप से इस बात का ज़िक्र किया तो उन्होंने केवल इतना कहा —
हाँ….. मैं तो उस टाइम छठी कक्षा में था पर अम्मा का दिन- रात रोना आज भी याद है । तुम ऐसा करो , कल तैयार रहना । एक बार राखी की ससुराल चलेंगे और पूरी बात खुलकर करेंगे ।
अगले दिन दोनों पति- पत्नी बेटी की ससुराल गए और अम्मा के मन के वहम को उनके सामने बताया । उसे सुनकर सुदंर बोला—-
ठीक है अंकलजी….. अगर दादी के मन में इस तरह की कोई बात है तो सगाई एक महीने पहले ही कर देना , सब मैनेज हो जाएगा….इन सब से ज़रूरी परिवार के सदस्यों की ख़ुशी और आशीर्वाद होता है ।
सुनीता और प्रदीप ने घर वापस लौट कर सुंदर की कही बात अम्मा को बताई तो उन्होंने आशीर्वाद की झड़ी लगा दी । सुनीता ने रेवा को अच्छी तरह से समझा दिया कि सुंदर से फ़ोन करने और मिलने जाने के लिए कौन- कौन सी एहतियात बरतनी है । वैसे कभी-कभी पूरे परिवार के साथ पहले की तरह सुंदर भी आता रहता था ।
इस तरह विमलाजी का दिल तोड़े बिना सुनीता और राखी ने मिलकर रेवा तथा सुदंर को एक- दूसरे को समझने का काफ़ी समय दिया ।
विवाह वाले दिन विमलाजी आरती और उसके पति को देखकर हैरान रह गई । उन्हें समझ नहीं आया कि जिस रिश्तेदारी को ख़त्म कर चुके थे उसे दुबारा ज़िंदा करने की हिम्मत किसने की ? पर दरवाज़े पर बारात खड़ी थी , किससे पूछे ? तभी प्रेमा उनके पास आकर बोली —-
विमला , कोई तेरे से मिलना चाहता है, माफ़ी माँगना चाहता है ।
अच्छा…. तो आरती और उसके पति को तूने बुलाया प्रेमा …. मेरे ज़ख़्मों पर नमक छिड़कने के लिए? मैं इनसे मिलना तो दूर , इनकी शक्ल भी देखना नहीं चाहती । इससे पहले वंदना की नज़र इन पर पड़े …. इन्हें भेज दें यहाँ से ।
तभी आरती के ससुर पीछे से आए और हाथ जोड़कर बोले—
बहनजी! असली क़सूरवार मैं हूँ । मैंने ही अपने बेटे पर दबाव बनाया था । मेरे पास तो प्रायश्चित करने का कोई रास्ता नहीं बचा । बस मुझे माफ़ कर दो… भगवान ने बहुत सजा दी है हमें , आप अपने मुँह से एक बार माफ़ कर दो , बाक़ी तो भुगत ही रहे हैं ।
शोरगुल सा सुनकर वंदना और उसके पति भी वहाँ आ गए । तभी वंदना ने कहा —-
अम्मा…. कर दो माफ़ इन्हें…. आज मुझे इनसे कोई शिकायत नहीं । भगवान ने हरीश जैसा जीवनसाथी दिया , दो बच्चे दिए … क्या पता , इनके घर में इतना सुख मिलता या नहीं ।
पर विमला जी ने मुँह फेरकर अंदर जाते हुए केवल इतना कहा—-
एक माँ अपनी बेटी के गुनाहगारों को कभी माफ़ नहीं कर सकती । इस जन्म में तो तुम्हें प्रायश्चित का मौक़ा नहीं मिलेगा ।
करुणा मलिक