संस्कारी बेटा – मीनाक्षी सिंह 

शर्मा जी ,आपके बेटे ने पिछली साल भी तो एसएससी का पेपर दिया था ,इस साल भी दे रहा हैँ ! पास नहीं हुआ था क्या ?? पड़ोसी पांडेय जी चुटकी लेते हुए शर्मा जी से बोले !

हाँ जी ,फिर से दे रहा हैँ ,दो नंबर से रह गया था !

शायद उतनी मेहनत हो नहीं रही उस पर ,मेरे बेटे ने तो पहली बार में ही नीट क्रैक कर दिया था ! खैर सब एक दिमाग के नहीं होते ! वैसे अब कुनाल (शर्मा जी का बेटा ) से कहिये ,कोई प्राईवेट नौकरी पकड़ ले ! कहीं उम्र गुजर गयी तो ये भी नहीं मिलेगी !

कुनाल कोचिंग के लिए बैग लेकर निकल ही रहा था कि पांडेय जी की बात सुनकर फिर  घर के अंदर चला गया !

कुनाल ,यहाँ आ तो सही ,शर्मा जी ने कुनाल को आवाज लगायी !

हाँ पापा ,बोलिये !

पांडेय जी ,बात तो सही कह रहे हैँ आप ! पर कुनाल मेरा बेटा हैँ ना कि आपका ! मैने तो कभी आपके बेटे पर टिप्पणी नहीं की ! वो शादी होते ही आप लोगों से लड़ाई करके अपनी बीवी को लेकर परदेश चला गया ! चार साल से तो आया नहीं ! आप और भाभी जी को दवाई य़ा किसी चीज की ज़रूरत होती हैँ तो आवाज मेरे कुनाल को ही लगाते हो ! वो पढ़ाई छोड़कर भी आपकी एक आवाज पर दौड़कर आता हैँ ! आपका बेटा जब नीट की तैयारी कर रहा था ,उसे एक ग्लास पानी भी भाभी जी टेबल पर ही देती थी ! अच्छी बात हैँ वो डॉक्टर बन गया हैँ ,पर बूढ़े  माँ बाप दूसरों पर निर्भर हैँ ! ऐसी पढ़ाई का क्या फायदा कि अंतिम संस्कार में भी बेटे के पास समय ना हो ! मेरा कुनाल जो भी करेगा हमारे पास रहकर करेगा ! आप लोगों की हालत देखकर उसने ये फैसला लिया हैँ ,और कहीं भारत में नौकरी करेगा भी तो हमें साथ  ले जायेगा !




कुनाल पांडेय  जी को नमस्ते बोल चला गया !

पांडेय जी डबडबायी आँखों से कुनाल को निहारते रहे !

 समाप्त 

अमीर कौन ?????

सरिता ,ये साड़ी तो शायद तूने  पिछली बार मोहित की शादी में भी पहनी थी ! अबकी बार नई  खरीदी नहीं क्या  ! और रिशी ने भी वहीं गरम कोट पहना हैँ ! बुरा मत मानना ,पर क्या अच्छा लगता हैँ कि दुबारा घर की शादी में वही पुरानी शादी वाले कपड़े पहन लो ! फोटो में भी तुम दोनों की वैसी ही फोटो आयेंगी ,कोई नयापन नहीं ! अबकी बार तो लगता हैँ तूने फेशीअल ,वैक्स भी नहीं करवायी ! चाची जी सरिता को चिढ़ाते हुए बोली !

वो चाची जी ,अबकी बार थोड़ा हाथ तंग था और फिर बुराई क्या हैँ ! इतने महंगे कपड़े आते हैँ ! एक बार की आधी सैलरी एक शादी में ही खर्च हो जाती हैँ ! परिवार के लोगों के अलावा कोई क्या बाहर का ज़ान रहा है कि मैने वही साड़ी पहनी हैँ ! अब आप किसी को बता दे तो भले ही कोई ज़ान जायें ! सरिता बोली !




कुछ भी कहो सरिता ,हम तो अपना स्टैंडर्ड मेंटेन करके रखते हैँ कि जिससे हमारी समाज में इज्जत बनी रहे ! अपनी बहू विनिता को 20 हजार की साड़ी दिलवायी हैँ मैने ! पार्लर से तैयार होकर आयी हैँ ! कुल मिलाकर तीस हजार रूपये तो सिर्फ विनिता  पर ही खर्च कर दिये मैने ! बाकी तो तू सोच ही सकती हैँ !

सरिता -अच्छी बात हैँ चाची ,आप लोग बड़े लोग हो ! हम कहाँ आपकी बराबरी कर पायेंगे !

चाची जी ये बात सुनकर घमंड से फूल के गुप्पा हो गयी !

तभी ज़िन ताऊ जी की बेटी की शादी के लिए सभी लोग ज़मा हुए थे ,वो दौड़ते हुए ,सरिता के पास आयें !

सरिता के दोनों हाथ पकड़कर बोलने लगे -तूने समय पर अपने ताऊ जी की इज्जत रख ली बेटा ! पूरे दो लाख रूपये तूने बस एक बार पूछते  ही भेज दिये ! नहीं तो उस दिन जब दहेज की गाड़ी लेने समधी जी के साथ जा रहा था ! उन्हे दूसरी गाड़ी पसंद आयी ! वो पहले वाली से दो लाख रूपये महंगी थी ! मेरे पास रूपयों की बिल्कुल व्यवस्था नहीं थी ! सबको फ़ोन कर लिया ! सबने अपने अपने बहाने बता दिये ! तूने और दामाद जी ने एक बाप की पगड़ी उछलने से बचा ली ! ताऊ जी भावुक होकर फफ़क पड़े !

अरे ताऊ जी ,रोईये मत ! विनु की शादी हैँ ! उसे खुश होकर विदा कीजिये ! मेरी बहन हैँ वो मेरा इतना भी हक नहीं बनता उस पर ! चलिये ,काम बताईये अब मुझे और इन्हे ! हम आ गए हैँ !




ताऊ जी आंसू पोंछकर अपनी बीटिया सरिता को लेकर पंडाल में चले गए !

चाची जी अपने हाथ में 1000 रूपये का लिफाफा पकड़े ही रह गयी !

मीनाक्षी सिंह की कलम से

आगरा

1 thought on “संस्कारी बेटा – मीनाक्षी सिंह ”

  1. वाह….. बहुत ही प्रेरक प्रसंग दिया है आपने, सच कहूं तो आधुनिकता में ढूबे हुए लोग परिवार की गरिमा और भारतीय संस्कृति से दूर होते जारहे हैं जो एक गंभीर व्याधि की तरह अपने पैर पसार रहा है!

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