प्रयासों का इंद्रधनुष – लतिका श्रीवास्तव 

..” अरे अरे ठीक से मुंह खोल कर बोलो !जोर से बोलो..!हल्ला तो बहुत जोर से करते हो अभी आवाज़ ही नहीं निकल रही है….”..आस्था कक्षा 9 के छात्र सोहन से पूछ रही थी जो प्रश्न का जवाब नहीं दे पा रहा था …मुंह बंद करके खड़ा था…!

मैडमजी मुंह में तो गुटखा है इसके …कैसे बोलेगा!!उसके बगल वाले छात्र संदीप ने धीरे से जैसे ही कहा पूरी क्लास में दबी सी हंसी की फुहार हो गई …!

ग्रामीण अंचल का विद्यालय ….अनगिनत चुनौतियां..!अव्यवस्थित परिसर ,विद्यार्थी पहनावा,अनियमित उपस्थिति,उपेक्षित पढ़ाई लिखाई,बेरौनक क्लास रूम्स और फूहड़ बोलचाल,गालियां और अपशब्दों के बिना तो कई बच्चे और उनके अभिभावकों की बात ही पूरी नहीं हो पाती…..

 

हैरान हो गई थी आस्था कैसे समझाए सबको….! जीवन जीने के तरीके ही बिसार दिए हैं!! शिक्षकों के वही पारंपरिक कारण ढाल बने थे कि क्या फायदा इन बच्चों को ठीक से पढ़ाने का …इनकी कुछ समझ में भी नहीं आता और ये कुछ समझना भी नहीं चाहते हैं…इनके अभिभावकों से भी क्या बात करना !!!कोई कुछ सुनना ही नहीं चाहता!!कहते हैं क्या करना है रोज रोज स्कूल भेजने का… ज्यादा पढ़ाने का ….जब करना यही खेती किसानी या मजदूर गिरी है..!

पढ़ाई लिखाई भी नहीं और आज ये गुटखा!!!! आस्था का दिमाग झन्ना गया!!…..”अभी तुम क्लास 9 में हो इतने छोटे से हो तुम लोग और अभी से ये गुटखा और तंबाखू की आदत पड़ गई है!जाओ थूक कर आओ,पढ़ाई लिखाई पूजा के समान होती है …साफ मुंह और साफ मन से ही ग्राह्य होगी!कल से किसी बच्चे के मुंह में ये गुटखा आदि नहीं दिखना चाहिए नहीं तो सख्त सजा मिलेगी….”आस्था ने कठोरता से कहा था।

स्टाफ से चर्चा की तो पता चला तंबाखू गुटखा तो आम बात है ये बच्चे तो शराब के आदी हैं..!पैसा कहां से लाते हैं पूछने पर बताया गया मजदूरी करके या सब्जी बेचकर पैसा कमा लेते हैं और इन्हीं सब व्यसनों में उड़ा देते हैं..!और इनके माता पिता कुछ नहीं कहते….पूछने पर पता लगा कि मां बाप या तो ध्यान ही नहीं देते हैं और अगर ध्यान देते हैं या समझाते हैं तो बच्चे उनके नियंत्रण के परे हैं…!



 

…..और आप लोग स्कूल में ऐसे बच्चों को टोकते या डांटते क्यों नहीं..!आस्था ने जोर से पूछा तो एक शिक्षक ने कहा ..मैडमजी जब उनके माता पिता का कंट्रोल नहीं है तो हम उन्हें कैसे और क्यों कंट्रोल करें..!ज्यादा डांटने पर ये ग्रामीण बच्चे हम लोगों को ही हानि पहुंचा देंगे…चाकू लाठी के साथ पिस्टल का भी पूरी निडरता से उपयोग करना आता है इन्हें….!चुपचाप नौकरी करने में ही हम सबकी भलाई है इस गांव में मैडमजी….!”अप्रत्यक्ष रूप से बच्चों के प्रति  मेरे सुधारवादी विचारों और इस दिशा में किसी भी तरह के भावी प्रयासों को दफ्न करने की उनकी  मंशा स्पष्ट उजागर हो गई थी…!आकाश में बादल और गहरे हो गए थे।

 

आस्था का मानसिक द्वंद और आत्म मंथन जारी था…कैसे नहीं मानेंगे हमारे समझाने पर …डांटने पर…!कोई भी माता पिता अपने बच्चों में बुरे व्यसन नहीं देखना चाहते!कोई भी अभिभावक अपने बच्चों को बिगाड़ना नहीं चाहते!!फिर सभी बच्चे तो ऐसे नहीं हैं…कुछ ही हैं..अगर उन कतिपय बिगड़े बच्चों को सही राह पर ले आया जाए तो बहुत सारे अन्य बच्चे गलत आदतों से बच जायेंगे..!शायद इस दिशा में किसी ने सही तरीके से प्रयास ही नहीं किया हो….!

 

गलत काम करने वाले जब बड़ी दिलेरी से गलत काम कर लेते हैं…तो फिर मैं अच्छे काम करने की दिलेरी क्यों नहीं कर सकती…!!आस्था ने सोचा।

 

बहुधा गलत आदतें और गलत आचरण विरोध ना होने की दशा में पोषित और पल्लवित होते जाते हैं.. और उनका ये निर्बाध पल्लवन समय रहते ना रोकने पर बहुतों को उकसाने और अपनाने का सहज आधार बनते चले जाते  है।

 

दूसरे दिन आस्था ने ऐसे सभी( जिनकी संख्या ज्यादा नहीं थी) बच्चों को चिन्हांकित कर उनके अभिभावकों को और गांव के कुछ वरिष्ठ समझदार नागरिकों को भी बुलवा कर एक मीटिंग की सबके सामने गुटखा तंबाखू शराब का बच्चों द्वारा सेवन किए जाने के मुद्दे पर गहराई से चर्चा की बच्चों को भी अच्छी तरह से समझाया…….!



परंतु बुरी आदतें सुधारना इतना सहज और सरल भी नहीं था जितना आस्था ने सोचा था..!कुछ दिन सब ठीक चला परंतु फिर ढाक के वही तीन पात..!अब तो वो बच्चे अपनी चोरी खुल जाने से और ढीठता से गुटखा खाकर आने लगे थे!

स्टाफ भी व्यंग्यात्मक टिप्पणी करने लगा था …हमने तो पहले ही कहा था कुछ नहीं होगा..!

 

परंतु आस्था भी डटी थी शिक्षा का सर्वोपरि उद्देश्य बच्चों में अच्छे संस्कार डालना है…..सही दिशा दिखाना है……ठीक है उनके अभिभावक भी वैसे ही है नही ध्यान देते हैं!शायद उन बच्चों के घर का माहौल और माता पिता की उपेक्षा उनके दुष्प्रवृत्त आचरण की जिम्मेदार हों…!!पर हम शिक्षा के कर्णधारों को तो अपने विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास की दिशा में निरंतर सकारात्मक प्रयास करते ही रहना चाहिए…!

बाल दिवस आने वाला था ….उसे आश्चर्य हुआ ये जानकर कि किसी भी तरह का सांस्कृतिक कार्यक्रम या कोई गतिविधि का आयोजन  विद्यालय मेंअभी तक नहीं किया जाता था….

उसके दिमाग में एक उपाय आ रहा था…..दूसरे दिन ही उसने सभी बच्चों और शिक्षकों के सामने बालदिवस धूमधाम से मनाने का प्रस्ताव किया जिसे सबने हर्षध्वनी से समर्थन दिया…!सभी शिक्षकों को बच्चों के एक एक कार्यक्रम की जिम्मेदारी सौंप दी गई…आखिर ग्रामीण अंचल के उन बच्चों को अच्छी प्रस्तुति हेतु शिक्षकों का मार्गदर्शन अनिवार्य था! क्रमशः काले बादल छंटने लगे थे……!

आस्था ने स्वयं  एक  नाटक बच्चों को सिखाया जिसमें नशीले पदार्थ खासकर गुटखा तंबाकू सिगरेट शराब आदि से होने वाली बीमारियां और हानियां व्यक्त हो रही थी….. उसमें कुछ बच्चों को ही गुटखा सिगरेट शराब की ड्रेस पहना कर प्रस्तुत करवा दिया…और जो इन आदतों से पीड़ित बच्चे थे उन्हें समझाने वाले किरदार में प्रस्तुत कर दिया….

 

मुख्य अतिथि के रूप में थाना प्रभारी और महिला एवम बाल विकास अधिकारी को निमंत्रित किया गया….।

 

बाल दिवस पर पूरा विद्यालय रंग बिरंगे गुब्बारों,झंडियों,फूल मालाओं से सज्जित हो गया था सारी सजावट बच्चों ने खुद की थी…!सबके काम बांट कर ग्रुप्स बना दिए गए थे…स्वागत,मंच,व्यवस्था,फूल माला,बैठक,वंदन पूजन,पेयजल,स्वल्पाहार……हर बच्चा और हर शिक्षक किसी न किसी जिम्मेदारी में उत्साह से तत्पर था…. ।

जैसे ही वो थाना प्रभारी और पुलिस कर्मी स्कूल में आए बच्चों में खलबली मच गई….शानदार कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया नाटक ने तो सबका मन मोह लिया बहुत तारीफे मिली नाटक के सभी किरदारों को बहुत इनाम बधाई और तालियां मिली….!थाना प्रभारी ने भी आस्था के कहने पर अपने मुख्य अतिथि संबोधन में नाटक के मुख्य बिंदु नशीले पदार्थो खास कर गुटखा तंबाकू बच्चों द्वारा सेवन पर कड़ी आपत्ति जताई और स्कूल के पास स्थित ऐसी सभी दुकानों पर और गांव में शराब की अवैध बिक्री और बच्चों को की जाने वाली बिक्री पर प्रतिबंध लगाने और छापा मारने की बात भी कही।..अब तो आसमान स्वच्छ दिखने लगा था……!

उस दिन के बाद से उन बच्चों में अभूतपूर्व परिवर्तन आने लगा….अपने अभिनय की तारीफ़,कुछ सकारात्मक कर दिखाने की सफलता ने उन बच्चों की मानसिकता बदल दी।अब वो स्कूल के सबसे अनुशासित बच्चे बन गए थे । उन बच्चों के इस सुधार ने अन्य बच्चो के लिए उदाहरण का काम किया….पुलिस के कड़े रवैए से पान की खुले आम गुमटियां और चोरी छिपे शराब बिक्री पर शिकंजा कस गया था…..।

आस्था ने आज बहुत दिनों बाद बिना बादलों वाले विस्तृत साफ आकाश में खिला इंद्रधनुष देखा था…।

लतिका श्रीवास्तव 

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