पराये शहर में उनका मन नही लगता – सोनिया कुशवाहा 

| यूँ तो तीन बेटे तीन मंजिला खूबसूरत घर, लेकिन रहने वाले सिर्फ दो बूढ़े | तकरीबन 70 वर्ष के शर्मा अंकल अपनी पत्नी के साथ बंगले में अकेले रहते हैं हैं, बहुएँ हैं, पोते पोतियों से भरा पूरा परिवार है लेकिन उम्र के इस पड़ाव पर भी दोनों पति पत्नी तन्हाई में जीवन बिता रहे हैं |

प्रथम दृष्टया तो यही लगता है कि जरूर शर्मा अंकल के तीनों बेटे नालायक हैं जो इस उम्र में भी माता पिता को यूँ अकेले छोड़ रखा है लेकिन कई बार जो दिखता है वो सच नहीं होता |

शर्मा जी के तीनों बेटे पढ़ने मे होशियार थे | शर्मा अंकल खुद कॉलेज में प्रोफेसर पद से रिटायर हैं, तो बच्चों को पढ़ने का सदैव बेहतर माहौल मिला | तीनों बेटों ने भी खूब मन से पढ़ाई की और ऊंचे सरकारी पदों पर नौकरी पा ली | शर्मा जी छोटे शहर में रहते हैं यहाँ पढ़ने या रोजगार के बहुत बढ़िया अवसर नहीं हैं इसलिए एक एक करके तीनों बेटों ने बड़े शहरों का रुख कर लिया | पहले पढ़ाई के लिए बाहर रहे फिर नौकरी के लिए | कुछ समय बाद शादी हुई तो बड़े दोनों बेटे बाहर ही सैटल हो गये |

सबसे छोटे बेटे का शर्मा जी ने अपनी जिद पर अड़ कर अपने शहर में ट्रांसफर करवाया लेकिन शादी के बाद छोटी बहू का यहाँ ज्यादा मन नही लगा | वो नौकरी पेशा थी और यहाँ उसे ज्यादा अच्छे ऑफ़र नहीं मिल पा रहे थे | कुछ समय बाद छोटे ने फिर से परीक्षा दी और सिविल सर्विस में उसका चयन हो गया | अंततः छोटा भी बड़े शहर की ओर ही चला गया |

 तीनों बेटों को माँ बाप के अकेले होने से खराब लगता था उन्होंने बहुत समझाया कि आप लोग हमारे साथ आकर रहें, लेकिन शर्मा अंकल को ये मंजूर नहीं था | धीरे धीरे उम्र बढ़ने लगी बेटों की चिंता भी बढ़ने लगी,  लेकिन अंकल टस से मस होने को तैयार नहीं हुये | हमेशा यही बोलते कि तुम लोग आकर यहाँ रहो | उनका तर्क है कि यहाँ उन्हे अपना लगता है | पराये शहर में उनका मन नही लगता |



अपने बच्चों के बिना जी सकते हैं लेकिन शहर के बिना नहीं | भला ये कैसा तर्क है, क्या इंट पत्थर से बने मकान का प्रेम औलाद के प्रेम पर भारी पड़ रहा है? शर्मा जी ना खुद जाते हैं ना पत्नी को जाने देते हैं | बेटे समझा समझा कर थक चुके हैं लेकिन शर्मा अंकल पर कोई असर नहीं होता | बेटे अपनी नौकरी, बच्चों के स्कूल छोड़ कर कितने दिन वहाँ रह सकते हैं? 

कोई कहीं मिल जाए या घर पर मिलने आये तो अंकल सबको यही कहते हैं कि देखो क्या फायदा तीन बेटों का, बुढ़ापे में अकेले जी रहे हैं हम दोनों |

माना कि अपने घर और शहर से लगाव होना लाज़िमी है लेकिन वो इस कीमत पर कि आप अपने बच्चों के बिना जीवन बिताएँ, यह कहाँ कि समझदारी है |

आप लोगों ने भी अपने आस पास कई सारे बुजुर्ग जोड़ों को यूँ अकेले रहते देखा होगा, उनमें से अधिकांश अपनी मर्जी से बच्चों के साथ नहीं रहना चाहते | फिर भी समाज और वो खुद भी बहू बेटों को ही दोष देते हैं | क्या सच में ऐसे बुजुर्ग लोगों की तन्हाई का कारण उनके बेटों का नालायक होना ही है? नौजवान पीढ़ी आज के युग में वहां रहना पसंद करती है जहाँ शिक्षा और रोजगार के बेहतरीन अवसर उपलब्ध हों |

अपने आने वाली पीढ़ी के भविष्य के लिए वो बड़े शहरो मे रहना पसंद करते हैं | ऐसे में गांव में उनके घर पर माता पिता खुद को अकेला पाते हैं | क्या वे स्वयं जिम्मेदार नहीं अपने अकेलेपन के लिए | जीवन के आखिरी पड़ाव पर घर मकान पैसा इत्यादि का मोह छोड़कर यदि चैन से अपने बच्चों के साथ समय बिताया जाये तो शायद ये अंतिम वर्ष अधिक प्रसन्नता के साथ बीतेंगे | बच्चों के मन को भी तसल्ली रहेगी कि माता पिता सुरक्षित ओर स्वस्थ हैं | कोई भी बेटा इस उम्र में अपने माता पिता को यूँ अकेला नहीं छोड़ना चाहेगा |

सोनिया कुशवाहा 

 

 

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