हमें तो बस बेटी व रोटी चाहिए – डॉ उर्मिला शर्मा 

ममता जी यहां आज चहल-पहल थी। उनके एकलौते बेटे सागर का 25वां जन्मदिन के साथ उनकी रेलवे में नियुक्ति की दोहरी खुशी का अवसर था। मित्र परिचित उसे इतनी छोटी उम्र में सफलता के लिए बधाईयां दे रहे थें। आज की बुराइयों से दूर सागर बड़ा ही होनहार एवं मधुर स्वभाव का लड़का था। ममता जी व उनके पति दिलीप सिंह जी फूले न समा रहे थे।

          हर मां की तरह ममता जी भी जल्दी से एक प्यारी सी बहू ले आना चाहती थीं। उन्होंने सागर से पूछा भी क़ि उसे कोई लड़की पसन्द तो नहीं जिससे वह शादी करना चाहता हो। किन्तु उसने कहा-“अरे मां! आपकी पसंद से ही करूँगा,पर अभी नहीं…मेरी उम्र ही क्या है। चार-पांच साल रुक जाईये।”

पर निलिमा जी कहां मानने वाली थीं। रिश्तेदारों में  सबको बोल दिया लड़की तलाशने के लिए। कई रिश्ते आए। पर उनमें से एक वकील सुरेंद्र जी की बिटिया राशि उन्हें ज्यादा जँची। सुरेंद्र जी ने लेन-देन की बात पूछी तो दिलीप सिंह ने कहा-“उसकी चिंता न कीजिये। हमें तो बस बेटी व रोटी चाहिए।”

 

सुरेंद्र जी हाथ जोड़कर अभिभूत होकर बोलें-“भाई साहब!! आपके जैसा भला मानुष इस दुनिया में नहीं मिलेगा। मेरा सौभाग्य है कि आपके घर में मेरी बिटिया का रिश्ता हो रहा है।”

कुछ ही महीनों बाद धूमधाम से सागर की शादी हो गयी। एक हप्ते बाद सब रिश्तेदार चले गए। अबतक के लिए जो घर में कुक रखा गया था वह भी चला गया। सागर की छुट्टी भी खत्म हो गयी। अगले दिन से वह ऑफिस जाने लगा। इसी तरह तीन चार दिन बीत गए। निलिमा जी पहले की तरह ही घर का सारा काम सम्भाल रहीं थीं। राशि सुबह के नौ-दस बजे तक कमरे से बाहर निकलती नाश्ते के लिए। एक रोज सागर ने ही राशि से कहा-“थोड़ा मां का हाथ बटा दिया करो।”

कुछ न बोली वह। अगले दिन उठी तो झाड़ू लेकर कान में ईयरफोन लगाए इधर से उधर घूम-घूमकर लगभग पौन घण्टा तक झाड़ू लगाती रही। बीच- बीच में फोन पर बात भी करती रही। तबतक निलिमा जी नाश्ता बनाकर सागर के लिए टिफिन भी पैक कर दिया। ‘बाई’ बोलकर सागर ऑफिस के लिए निकल गया। कुछ दिनों तक ऐसा ही चलता रहा। एक दिन झाड़ू लेकर वैसे ही डोलती हुई राशि से ममता जी ने कहा-“बहू! तुम नाश्ता बना लो। तबतक मुझे कुछ और जरूरी काम है जिसे कर लेती हूँ।”



राशि तो जैसे हमले के लिए तैयार बैठी थी। बोली-“दिख नहीं रहा झाड़ू लगा रही हूं…चार हाथ हैं मेरे। एकसाथ कितना काम करूँगी।”

उस दिन के बाद से शांत स्वभाव की निलिमा जी ने उससे काम के लिए कुछ कहना छोड़ दिया। अभी डेढ़ महीने ही हुए थे कि एक दिन राशि तैयार होकर घर से बाहर यह कहते हुए निकल पड़ी-“मैं जा रही हूं… चौक पर मेरा भाई मुझे लेने आया है।”

 

हक्की-बक्की ममता जी कुछ कहने के लिए मुंह खोलती ही कि वो निकल गयी। शाम को सुरेंद्र जी ने राशि के घर पहुचने की बात बताई। कुछ ही दिनों बाद राशि ने ‘दहेज कानून’ का केस अपने ससुराल वालों पर लगा दिया। सागर के घरवालों द्वारा फोन करने पर राशि के पापा और स्वयं राशि दोनों फोन न उठातें। वो अपनी मर्जी से फोन उठाते या करतें। केस चलता रहा। तारीख पर तारीख मिलती रही। ससुरालियों को तंग करने के लिए राशि ने केस ससुराल से  800 किलोमीटर दूर शहर से किया। केस के एक बार की हियरिंग पर जाने-आने व वकील की फीस के करीब पचास हजार का खर्च आता था। बाद में पता चला कि उसने दूसरी शादी कर रखी है और उसका एक बच्चा भी है।

 वह मजे में जी रही थी और सागर के परिवारवाले सालों से मानसिक यातना झेल रहे थें। वो सोचते रहते की आखिर राशि ने ऐसा किया क्यों। उन्हें सताने की एक कसर न छोड़ी उसने। कानूनी दांव-पेंच भी वह खूब खेल रही थी क्योंकि उसके पिता स्वयं वकील थे। आखिर ये सब उनकी मर्जी से ही हो रहा होगा। राशि तलाक देने को भी तैयार न थी। कोर्ट में राशि की दूसरी शादी को सागर साबित नहीं कर पा रहा था। किसी ने उसे सलाह दी कि प्राइवेट जासूस से राशि के खिलाफ सबूत इकठ्ठा करे। यह भी किया गया। जिस शहर में उसके रहने की खबर थी वहां के नर्सिंग होम में खोजबीन की गई कि कहीं तो उसने बच्चे की डिलीवरी कराई होगी। किन्तु कोई प्रमाण न मिला।

 सम्भवतः सोची समझी योजना के तहत उसने शहर से दूर किसी छोटे से जगह डिलीवरी कराई होगी। कोर्ट सबूत मांग रही थी। सागर गम भुलाने के लिए शराब का सहारा लेने लगा। निलिमा जी से बेटे की तकलीफ न देखी जा रही थी। चिंता में घुलती जा रही थीं। एक रोज उन्हें दिल का दौरा पड़ा लेकिन समय से हॉस्पिटल पहुँचने से उन्हें बचाया जा सका। राशि से सेटलमेंट करने की काफी कोशिश सागर ने किया। डिवोर्स की एकमुश्त रकम 50 लाख तक देने का भी ऑफर की किंतु वह न मानी। सात साल होने को आ रहे हैं परन्तु केस चल रहा है और सागर अपने को और ज्यादा शराब में डुबोते जा रहा है। पता नहीं कब राशि के चंगुल से उसे मुक्ति मिलेगी…?

 डॉ उर्मिला शर्मा 

 

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