पड़ोसन – निभा राजीव “निर्वी” : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : रचना एक कामकाजी महिला थी। वह घरेलू औरतों को बिल्कुल पसंद नहीं करती थी क्योंकि उसके दृष्टिकोण से एक गृहिणी वही महिला बनती थी, जिसके अंदर बाकी कोई काबिलियत ना हो ।वह स्वयं एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत थी और उसके पति भी एक ऊंचे ओहदे पर पदस्थापित थे।

       रचना इस कॉलोनी में नई नई आई थी और एक सुबह अपनी बालकनी में वह सुबह की धूप का आनंद ले रही थी। तभी बगल वाले फ्लैट की बालकनी का दरवाजा खुला और एक घरेलू सी दिखने वाली महिला निकल कर बाहर आई। वैसे तो वह दिखने में बहुत ही सरल और सौम्य थी, पर वह रचना को वह जरा भी पसंद नहीं आई

वह महिला उसे देख कर बड़े प्यार से मुस्कुराई,पर उसने उसकी तरफ हेय दृष्टि से देख कर अपना मुंह फेर लिया। उसकी यह प्रतिक्रिया बहुत ही अप्रत्याशित और अनुचित थी परंतु उस महिला ने कुछ नहीं कहा और अपने गमलों में लगे पौधों में पानी डालकर चुपचाप अंदर चली गई।

         थोड़ी देर बाद रचना की कामवाली आ गई। कामवाली काम करते-करते बातें भी करती जा रही थी। उसी से पता चला कि बगल वाली पड़ोसन का नाम सौम्या है। उसके पति एक सरकारी कर्मचारी हैं।और वह एक सीधी साधी गृहिणी है।

रचना को सौम्या के बारे में बातें करना भी पसंद नहीं आया और उसने काम वाली को जरा कड़े शब्दों में कहा ‘- जरा बातें कम करो और काम पर ज्यादा ध्यान दो…..” कामवाली सहम कर चुपचाप काम करने लगी।

          समय अपनी गति से चलता रहा। उसकी पड़ोसन सौम्या ने कई बार रचना से बातें करने का प्रयत्न किया,पर उस हर बार उसका प्रत्युत्तर ठंडा ही रहा। उसका यह उपेक्षा पूर्ण रवैया देखकर सौम्या अब खुद में ही सिमट गई।

           इस बीच दिन रचना के पति को कुछ दिनों के लिये किसी दूसरे शहर दौरे पर जाना पड़ा। वह घर में अकेली ही रह रही थी और स्कूटी से ऑफिस आती जाती थी। जाड़ों का समय था।



        एक दिन उसे कुछ आवश्यक कार्यों के कारण कार्यालय से निकलने में बहुत देर हो गई। बाहर बहुत ठंडी हवाएं चल रही थी। जब तक वह घर पहुंची, उसे बहुत तेेज ठंड लगने लगी थी और बाद में तेज बुखार भी हो आया।

अब उससे बिल्कुल उठा नहीं जा रहा था। किसी प्रकार से दो बिस्किट खा कर उसने पेरासिटामोल खाया और सोने का प्रयास करने लगी।वह रात तो किसी प्रकार उसने ऐसे ही काटी।

सुबह से दरवाजा खुला रख कर वह कामवाली की प्रतीक्षा कर रही थी। पर आज पता नहीं क्यों, वह भी अब नहीं आई।  उसका सर दर्द से फटा जा रहा था। वह यूं ही आंखें बंद किए बिस्तर पर पता नहीं कब तक लेटी रही।

          अचानक सिर पर किसी का स्पर्श पाकर उसने आंखें खोली तो सौम्या को चाय की प्याली और नाश्ता लिए सामने खड़ा पाया। उसे देखकर वह मुस्कुराई और बोली- “आज आपको ऑफिस ना जाते देखकर मुझे लगा आप घर में ही हैं।

पर काफी देर से आपके घर में किसी हलचल की आवाज ना आई,तो मैं समझ गई कि शायद आप की तबीयत ठीक नहीं है।

इसीलिए मैं चाय और नाश्ता बना कर लाई हूँ। आप जल्दी से खाकर चाय पी लीजिए। आपको थोड़ा अच्छा लगेगा। जब मैंने देखा कि आप को बहुत तेज बुखार है तो मैंने डॉक्टर साहब को भी कॉल कर दिया, वह आते ही होंगे।”

             रचना अपने पूर्व के व्यवहारों पर लज्जित होकर थोड़ा असहज तो महसूस कर रही थी पर उसने धीरे-धीरे थोड़ा खाया और चाय पी।

तब तक डॉक्टर साहब भी आ गए। उन्होंने रचना का चेकअप किया और कुछ दवाएं लिख दी। सौम्या ने अपनी कामवाली को भेजकर पास के मेडिकल स्टोर से वह सब दवाइयाँ मंगवा ली। फिर उसने रचना को दवाई खिलाई और सोने की हिदायत देकर अपने घर चली गई।

      दो-तीन दिनों तक सौम्या ने जी जान से रचना की सेवा की और समय पर दवाइयां भी देती रही। हर रोज उसके लिए नाश्ता और खाना सब कुछ लेकर आती रही……….. रचना सौम्या से दृष्टि नहीं मिला पा रही थी।

अपने कामकाजी होने के अहंकार के मद में उसने सौम्या को हमेशा हीन समझा, पर उसी ने उसके लिए जितना किया उतना तो शायद कोई अपना भी ना कर पाता। उसका ह्रदय ग्लानि से भर गया।

अब तक उसे यह भी पता चल चुका था की सौम्या की शैक्षणिक योग्यता भी बहुत ऊंची है पर गृहिणी होना उसका अपना चुनाव था, ताकि वह अपना अधिकाधिक समय अपने घर परिवार को दे सके।



          उस दिन भी वह उसके लिए सूप लेकर आई थी। सूप पीते पीते अचानक रचना की आंखें भर आई और वह सौम्या का हाथ पकड़ कर रोने लगी। और बोली-

“बहना, मुझे माफ कर दो। मैंने सदा अपने अहंकार में तुम्हें नीचा समझा पर तुम तो बहुत ही ऊंची निकली। अब मुझे समझ में आ गया है कि हर किसी का अपना महत्व होता है। कभी ऐसे किसी को नीचा नहीं समझना चाहिए। असल में तुम तो बहुत ऊंची हो, हीन तो मैं हूं जिसकी सोच इतनी संकीर्ण है। हो सके मुझे माफ कर दो।”

और वह फूट-फूट कर रो पड़ी। सौम्या ने भी भावुक होकर उसका हाथ थाम लिया और बोली-

“रचना, मैंने तो कभी तुम्हारे बारे में ऐसा सोचा ही नहीं। तुम तो हमेशा से मुझे बहुत प्यारी लगती हो। पर मैं सोचती थी कि तुम शायद व्यस्त रहती हो इसलिए तुम्हें बातें करने का समय नहीं मिलता। कोई बात नहीं, आज से हम दोनों पक्की सहेली हैं। सारे गिले शिकवे भूलकर हम प्यार से रहेंगे और खूब सारी बातें भी करेंगे मेरी प्यारी पड़ोसन। और तुम्हारे स्वस्थ होते ही तुम्हारे ठीक होने की खुशी में मैं तुमसे एक तगड़ी वाली पार्टी लेने वाली हूं…”

  और दोनों लिपट कर खिलखिला पडीं। वह अनजानी सी पड़ोसन अब रचना की प्राणप्रिया सखी बन चुकी थी।

निभा राजीव “निर्वी”

सिन्दरी, धनबाद, झारखंड

स्वरचित और मौलिक रचना

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