पश्चाताप – प्रीती सक्सेना

आज आंखो में नींद का नामो निशान नहीं, अजीब सी बेचैनी, उत्तेजना का अनुभव हो रहा है, मन की खुशी बाहर आने को बेकाबू है, पर लोक लाज का भी तो ध्यान रखना है न, तो अपनी खुशी होंठो में ही दबा कर रखी है, कल मेरी शादी है, कल मैं अपनी ससुराल जाने वाली हूं, जिसकी तारीफ दादाजी और पापा उठते बैठते करते हैं हमारी सुधा बहुत भाग्यशाली है जो इतने नामी गिरामी जमींदार परिवार की कुल वधू बनने वाली है,

मेरे पापा बैंक मैनेजर हैं, मम्मी गृहणी, हम दो भाई दो बहन का प्यार भरा परिवार , किसी भी बात का अभाव नहीं, पूर्ण संतुष्टि  है, हमारे जीवन में.

भोर हुई, रिश्तेदारों से घर भरा हुआ, सब अपने आप में व्यस्त, और मैं अपने खयालों में खोई हुई, अरे बारात आ गई का शोर हुआ, दिल धड़कने लगा, आ ही गई वो घड़ी, जब मैं अपना घर छोड़कर किसी और घर को अपना बनाने जानें वाली हूं, वरमाला हुई, फेरे हुए, और विदाई का भी समय आ गया, पापा ने अपनी तरफ से बहुत अच्छी शादी की है मेरी,

  चार घंटे के सफर के बाद मैं अपनी ससुराल पहुंच गई, सासू मां, और जेठानी ने मुंह दिखाई की ओर अंदर ले गई, दिन भर तरह तरह की रस्में चलती रहीं, रात हुई पतिदेव से मिली अच्छे लगे मुझे, पर ज्यादातर मुझे  समझाते रहे मां के हिसाब से चलना, कुछ भी जरुरत हो उन्हीं से मांगना, मुझसे नहीं,20 साल की उमर है मेरी, मैं सिर ही हिलाती रही उनकी बात पर।

  पांच साल बीत चुके है, मैं एक बेटे की मां बन चुकी हूं, दोबारा गर्भवती हूं, हमारा ट्रांसपोर्ट का बिजनेस है, कई ट्रक्स चलते हैं, आज कोई ट्रक जरुरी सामान लेकर जाने वाला था, पर ड्राइवर नहीं आया, मेरे पाती जाने को तैयार हो गए, मेरी तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही थी, मैने इनसे कहा, आप मत जाओ, मेरा मन घबरा सा रहा है, कहीं आज ही हॉस्पिटल न जाना पड़ जाए, इन्होंने मां से कहा, सुधा की तबियत ठीक नहीं लग रही, ये बोल रही है, आप मत जाओ, तो मैं छोटे को भेज देता हूं, देवर ट्रक लेकर निकला और बुरी खबर आ गई कि बहुत भयंकर दुर्घटना हुई और मेरे देवर नहीं रहे, उस दिन से मेरे जीवन के काला अध्याय शुरु हो गया, सोते ,जागते , खाते पीते, सासू मां मुझे कोसती ही रहती, दिन भर गालियां देती, सालों बीत गए, मैं दो बेटों , और एक बेटी की मां बन गई पर उनका मुझे कोसना बंद नहीं हुआ, पति से अपेक्षा करना बेकार था, हम तीनो बहुएं, सहमे से रहते, बचा हुआ खाना मिलता, फल दूध के दर्शन तक नहीं, मेरी शक्ल से नफरत हो गई थी उन्हें, बेटे की मौत का गुनहगार पूरी तरह मुझे मान चुकी थीं वो।


   कुछ साल बीते ससुर जी नहीं रहे, उनके बिना मां भी बीमार रहने लगीं, जीवन से विरक्त, खाना पीना छोड़ दिया, बहुत कमजोर हो गई, लेटे लेटे, पीठ मे जख्म  हो गए , दर्द की अधिकता से दिन भर कराहती रहतीं, मैं छोटा सा घूंघट करके उन्हें खाना खिलाती तो थाली फेंक देती, अपने बेटे के हाथ से खा लेती।

 परिवार में शादी थी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी शादी में चले गए, हम दोनो पति पत्नी मां के कमरे में ही लेटे थे, अचानक मां ने मेरा हाथ जोर से पकड़ लिया, मैं बुरी तरह घबरा गई उन्होंने अपने दोनो हाथ जोड़े, और रोते हुए बोली, मुझे माफ कर दो, मैने दिन रात तुम्हें कोसा, बददुआ दी, बहुत अन्याय किए, मैं अपने लिए का दंड पा रहीं हूं, जब तक तुम मुझे माफ नहीं करोगी, मेरे प्राण नहीं निकलेंगे, बुरी तरह रोने लगी, गिड़गिड़ाने लगीं, मैंने रोते रोते उनके हाथ पकड़े और कहा, मां मैने आपको माफ किया, मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं, मां की आंखे स्थिर हो गईं, उन्हें शान्ति मिली और वो परलोक सिधार गईं।

ये कहानी मेरी एक पाठिका ने मैसेंजर पर भेजी, और मुझसे आग्रह किया कि मैं उनके लिए ये कहानी लिखूं, मैने पूरा न्याय किए है इसे लिखने के लिए 🙏🙏

प्रीती सक्सेना

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