फिजूलखर्ची – गीतांजलि गुप्ता

सासू माँ ने इस बार के नवरात्रि में हर हाल में ‘माता की चौंकी’ के आयोजन का पूर्ण निश्चय कर लिया। हर बार हम सब किसी न किसी कारण से इस शुभ काम में बाधक बन जाते हैं कभी बच्चों की परीक्षा तो कभी समीर की विदेश यात्रा। सासू माँ के हुक्म का पालन हम सब पूरी श्रद्धा व निष्ठा से करेंगें। कीर्तन करने वाली विशेष मंडली भी माँ की पसंद की होगी यही निर्णय लिया गया। जो मंडली माँ ने बताई वो मंडली चार घण्टे के दो लाख रुपये मांग रही थी। उसको इतना रुपया नहीं दिया जा सकता आखिर चौंकी के बाद भोज का आयोजन भी अनिवार्य था। दूसरी मंडलियाँ भी लगभग इतने ही पैसे मांग रही थीं।

सुनीति ने माँ को समझाने की बहुत कोशिश की पर वह नहीं मानी बड़ा सा स्टेज, उस पर बड़ी बड़ी मूर्तियां, बड़ा सा ऑर्केस्ट्रा और बड़ा सा पंडाल यही उनका सपना था।


इस आयोजन में लगभग चार पांच लाख तो खर्च हो ही जाएंगे। सभी दोस्तों और रिश्तेदारों को बुलाना भी अनिवार्य था।

सभी लोग रात के खाने के बाद कोई रास्ता निकालने को एक साथ बैठ कर इस विषय पर बात करने लगे। तभी माँ ने यह भी बताया कि सभी लोग नए कपड़े पहनेगें। समीर को खर्चे की सोंच कर पसीना आ गया। दिन रात मेहनत से कमाया पैसा बस दिखावे की भेंट चढ़ाना उसे अखर रहा था। बहुत बहस के बाद सासू माँ गुस्से से अपने कमरे में चली गई और कोई निर्णय नहीं हो पाया।

अब पिता जी ने सारे काम की बागडोर अपने हाथ ले ली। हालांकि वह अक्सर निष्पक्ष ही रहते सासू माँ पर सब छोड़ देते। आखिर चौंकी का काम प्रसन्नता से समापन हुआ। “लक्ष्मी की कीर्तन मंडली” ने बेहतरीन ढंग से माता की स्तुति का ऐसा समा बांधा की सासू माँ भी प्रशंसा करे बिना न रह पाई।  निराश मन से पिता जी के दवाब में वे ऐसा निम्न दर्जे का आयोजन करने को तैयार हुई थीं परंतु “अंत भला तो सब भला” सासू माँ संतुष्ट थीं।

सब काम बड़ी सादगी से सम्पन्न किया पिता जी ने। माता रानी के प्रसाद व खाने के स्वाद की सभी ने तारीफ़ की। सासू माँ लक्ष्मी की कीर्तन मंडली के भजन अभी भी गुनगुना रही थीं। पिता जी की सीमित बजट योजना से श्रद्धा भक्ति में तो कोई फर्क नहीं पड़ा हाँ फिजूल के दिखावे व फिजूलखर्ची  से परिवार बच गया।

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