पाप – नन्दलाल भारती 

दंश रतन इतना बड़ा पाप करेगा, कलयुग में भी विश्वास नहीं होता।पलपल कलपती निधि के आंखों से निरन्तर झरते आंसू और नरोत्तम की असहनीय पीड़ाओं के एहसास से तो यही लगता था। दंश रतन और उसकी घरवाली निर्लजा की साज़िश का पर्दाफाश हो चुका था। नरोत्तम और निधि के बेटे आज्ञा कुमार के साथ दंशरतन की बेटी मोहिनी ने ब्याह के बाद पति आज्ञा को वश में करने के लिए झूठे प्यार का चरम प्रदर्शन कर पति को पल्लू में बांध लिया इसके बाद लोमड़ी जैसे चालाक मां -बाप की शरीर से पैलग और दिमाग से शातिर बेटी ने पति आज्ञाकुमार पर झूठे प्यार की आड़ में एक करोड़ रुपए का बीमा करवा लिया ।

यही से मोहिनी ने शुरू कर दिया पति आज्ञा के दमन और नरोत्तम के आर्थिक और सामाजिक पतन का खेल मुंशी बाबू माथा ठोकते हुए बोले इतना बड़ा पाप नरोत्तम की बहू कर रही तुलसी बोले। और आगे की दास्तां सुनोगे तो रुह कांप जायेगी। भले मानुष और सामाजिक रुप से प्रतिष्ठित नरोत्तम बाबू के साथ दंशरतन इतना बड़ा पाप कर दिया है कि बेचारे जीते जी तड़प तड़प कर मर रहे हैं। बेचारे सुलक्षणा बहू की आस में लाखों के दहेज के आफर को ठोकर मार दिये, धोखे में ब्याह लाये अमानुष मां बाप की पैलग बेटी वह भी कुलक्षणा तुलसी बोले। पैलग भले हो पर अपने मां -बाप के प्रति बहुत वफादार हैं मुंशी बोले। कैसे तुलसी पूछे ? सुना है, सीधे -साधे और सुशील स्वभाव के कमासूत आज्ञा बाबू को मोहिनी ने रोका के बाद से ब्लैकमेल करने लगी थी, कभी मां-बाप की सालगिरह, कभी उनके जन्मदिन कभी अपने आधा दर्जन भाई-बहनो के बर्थडे पर गिफ्ट के नाम पर और उच्च शिक्षित आज्ञा कुमार अपने साथ हो रही ठगी को नहीं समझ पाया।

आज्ञा कुमार अपने मां -बाप तक से कोई जिक्र नहीं किया, मोहिनी के चक्रव्यूह में फंसता चला गया। शादी के बाद तो दो नम्बरी बाप की कुसंस्कारी मोहिनी का ऐसा जादू चला कि आज्ञाकुमार ने तो मां-बाप, भाई-बहन से नाता भी तोड़ दिया मुंशी बोले। यह स्थिति तो निधि भाभी और नरोत्तम भैया के लिए मौत से बड़ी रही होगी तुलसी बोले। भैया -भाभी ने जिस आज्ञा कुमार को इंजिनियर बनाने के लिए अपने निजी सुखों का त्याग कर दिया। बेचारे भैया कभी ब्राण्डेड कम्पनी के न जूते पहने न कपड़े, मिल क्षेत्र की दुकानों से किलो में बिकने वाले कपड़े खरीद कर पहने खैर बेटा को इंजीनियर बना कर उसे खुद के पैरों पर खड़ा कर दिया।वहीं बेटा मुंह मोड़ लिया। मां रो-रोकर मर रही बाप चिंता का जहर पीकर मुंशी बोल ही रहे थे कि नरोत्तम टोकते हुए बोले मुंशी ऐसा नहीं है, आज्ञा कुमार कसूरवार तो है पर हमारे दुःख का असली मास्टरमाइंड आज्ञा कुमार के सास-ससुर,दो नम्बरी दंश रतन और निर्लजा है।

कसूरवार मैं भी कम नहीं हूं। दो नम्बरी की चिकनी -चुपड़ी बातों पर विश्वास कर लिया । दंश रतन ने भ्रम में रखकर बेटी क्या दिया परिवार के गले में फांसी का फंदा डाल दिया नरोत्तम बिन पानी की मछली की तरह तड़पते हुए बोले। भैया नरोत्तम तुम तो दूसरों को सलाह देते हो, मार्गदर्शन करते हो फिर चाईं दंश रतन के झांसे में कैसे आ गये तुलसी पूछे। दंशरतन और उसका परिवार वौद्ध धम्मानुवाई है और मन से मैं भी हूं। मैंने सोचा पंचशील के मार्ग पर चलने वाले लोग दगा नहीं कर सकते बस यही मार खा गया नरोत्तम बोल ही रहे थे कि मुंशी नरोत्तम भैया को जिस दंशरतन ने दर्द के दलदल में बेमौत मरने के लिए ढकेला है उसके खानदान में दीया जलाने वाला कोई नहीं होगा। सरल-सहज इंसान को तेज़ाब के दरिया में ढकेलने वाले को परमात्मा जरुर दंड देगा। भैया मुंशी भगवान की मंशा कौन जानता है पर हमारी चिंता तो दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। कोई उपाय नहीं सूझ रहा नरोत्तम आंसू छिपाते हुए बोले।



नरोत्तम भैया तुम्हारी बड़ी बहू तुम्हारे जीवन की सबसे बड़ी विपत्ति बन गई है तुलसी बोले। तुलसी बेटा की परिवार से बढ़ती दूरी को देखकर हम उसकी खुशी के लिए दूर हो गये ताकि बेटा -बहू सुखमय जीवन जीये और उन्हें ना लगे कि हम उनकी निजी जिंदगी में दखलंदाजी कर रहे हैं। हम अपनी नित होती बूढ़ी शरीर का खुद सहारा बनने की कोशिश में जुट गए थे। पांच साल का पौत्र हो गया है पर पौत्र के साथ का सुख बहू के बाप दंशरतन ने छिन लिया।यह सब दंशरतन ने साज़िश के तहत किया है। क्या कह रहे हो नरोत्तम साज़िश मुंशी पूछे ? जिस मोहिनी को खानदान की बहूरानी बना कर लाया था वहीं हमें मौत दे रही है परिवार को पतन के रास्ते पर ढकेल रही है, इतने से मन नहीं भरा तो खुद के पति के खून का प्यासी बन रही है, नरोत्तम और कुछ बोल पाते उनकी आंखें छलछला पड़ी। तुलसी बोले खुद को सम्भालो नरोत्तम। कैसे सम्भालू,बुढौती की लाठी छिन गई,उसका उतना अफसोस नहीं हुआ अब बेटा की जान खतरे में पड़ गई है।

पांच साल से जी भरकर बेटा को नहीं देख पाया। कैसे मन को मनाऊं। पहले तो यह सोच कर मन को मना लिया था कि आज्ञा अपनी पत्नी और बच्चे के साथ हंसी खुशी जीवन बिता रहा होगा जब से असलियत का पता चला है पैर के नीचे की जमीन खिसक गयी है। यह बहू तो भयंकर आपदा बन गई है,यह पाप की गठरी उसके लिए बहुत सारी पड़ेगी मुंशी बोले। मोहिनी अपने यौवन के मोहपाश में आज्ञा को घर-परिवार अलग कर ,दिल-दिमाग पर पूरी तरह कब्जा कर करोड़ रुपए का इंश्योरेंस करवाई और तो सेलरी बैंक एकाउंट को भी ज्वाइन्ट करवा कर मोबाईल काल भी शेयरिंग करवा कर राक्षसिनी बन गई है।जब से मोहिनी के भ्रम में आज्ञा फंसा है तब से उसे कभी भर पेट खाना नहीं मिला। खुद बनायेगा दो नम्बरी मां बाप की बेटी को देगा रिश्ते के प्रति बेवफा हाथी जैसी मोहिनी पलंग पर पसरी रहेगी, बीमारी का बहाना करेगी, अपने ही बच्चे को कभी छाती का दूध नहीं पीलायी न डायपर बदली सब काम आज्ञा के जिम्मे, जबसे यह सब पता चला है जीते जी मर रहा हूं।निधि का रो रोकर बुरा हाल रहता है क्या करें कुछ भी समझ में नहीं आता, पहले तो चोरी छिपे आज्ञा फोन भी कर लेता था पर अब तो उस पर भी पहरा बैठा गया है नरोत्तम गमछा से आंख रगड़ते हुए बोले। कैसी पढ़ी -लिखी नासमझ बहू है जो अपने ही पांव में कुल्हाड़ी मार रही है तुलसी बोले। नासमझ कैसे हुई करोड़ का इंश्योरेंस, ज्वाइंट बैंक एकाउंट मोबाइल पर पहरा, पति की कमाई छिन कर बाप को अमीर और उसकी ख्वाहिशों को पूरा करने की जिद मुंशी बोले ।

यह शादी नहीं धोखा है तुलसी बोले। हां भैया धोखा ही हुआ है । दंश रतन लड़की की इतनी खूबियां बताया कि हर कोई अपने बहू बनाने को तैयार हो जाये। मेरी चाह तो सुलक्षणा बहू की थी, दहेज लेने से पहले ही इंकार कर चुका था। दंशरतन दगाबाज ने अपनी पागल लड़की को मेरे परिवार के गले का फांसी का फंदा बना दिया था, अभी तक तो बदमाश बंदूक की नोक पर लूट रहा था, दहेज का केस कर परिवार के सभी सदस्यों को जेल भेजवाने की धमकी दे रहा था। दंशरतन और उसका परिवार आज्ञा कुमार तक सम्बन्ध रखें हुए थे, शादी के बाद तो दो नम्बरी दंश रतन ने भूलकर हम से बात नहीं किया बस दामाद को धमका धमका कर लूट कर अपनी कोठी बनवाता रहा, तिजोरी भर रहा है। मोहिनी तरह तरह के बहाने बनाकर अपने ही पति को लूटकर बाप के धन की हवश पूरी कर रही है। कैसे दुष्ट मां बाप की औलाद को ब्याह लाये नरोत्तम भैया मुंशी जी बोले । बहू नहीं मुसीबत आ गई है तुलसी बोले। नरोत्तम -हम तो खानदान की मर्यादा बनाकर ब्याहे थे पर मोहिनी ने दो नम्बरी बाप को धनवान बनाने के लिए सारी मर्यादाओं का चीरहरण कर दी है। अफसोस इस बात का है कि मोहिनी के मां -बाप ने उसे न बहू बनने दिया न पत्नी और नहीं एक मां बनने दिया ।



पागल मोहिनी मां -बाप के इशारे पर आज्ञा कुमार को कभी दहेज की केस का डर दिखाकर कभी पुलिस को फोन कर, कभी पुलिस को बुलाकर। ससुर दंशरतन सांस निर्लज्जा और महाठगिनी मोहिनी ने तो आज्ञा को मां बाप घर परिवार से बिल्कुल अलग कर दी थी। बहकावे में आकर आज्ञा ने सास-ससुर और पागल मोहिनी का एकतरफा साथ दिया. विषधर मोहिनी के अंधे प्यार में आज्ञाकुमार ने मां- बाप और परिवार का तिरस्कार तो कर दिया था।जब दंश रतन आश्वस्त हो गया कि आज्ञा अब उसके चंगुल में फंसे चुका है तो वह नई-नई चाल चलने लगा। उधर आज्ञा कुमार मोहिनी और उसके मां-बाफ की साज़िश को धीरे-धीरे समझने लगा तब इस कमीने काफिले के लोगों ने आज्ञा को काबू में रखकर उसकी कमाई पर कब्जा जमाते रखने के लिए अभेद्य चक्रव्यूह तैयार कर दिया है। कैसे महापापी लोग हैं जो दामाद को उसके मां -बाप घर-परिवार से अलग कर कामधेनु समझ कर लूट रहे हैं मुंशी बोले। नरोत्तम -आज्ञाकुमार की शादी के सात साल हो चुके हैं पर हम सात दिन भी चैन से नहीं रह सके हैं। कैसे कोई मां-बाप चैन से जी सकता है जब उसका बेटा दंशरतन जैसे लूटेरे की कैद में हो। यह तो बहुत बड़ा दुःख है। पागल मोहिनी उपर से लूटेरा बाप तुलसी पानी का घूंट निगलते हुए बोले। भैय्या मैं तो सोच रहा था समय के साथ पगली को समझ आ जायेगा पर क्या मां -बाप के प्यार में बौरायी मोहिनी और ज़ुल्म करती जा रही है।

एक बच्चा है चार साल का हो चुका है, पगली बच्चे पर भी ज़ुल्म करती हैं बच्चे के भविष्य की उसे तनिक भी फिक्र नहीं है, फिक्र है तो बस इतनी की पति और उसकी दौलत को लूटकर लूटेरे मां-बाप की ख्वाहिशें कैसे पूरी करे। नरोत्तम गीली पलकों को गमछा से पोंछते हुए बोले। हे भगवान मोहिनी पत्नी है या शातिर दुश्मन जो पति को तड़पा-तड़पा कर लूट रही है।सास-ससुर को कण्डे से आंसू पोछवा रही है। मोहिनी के इस पाप का दुष्परिणाम तो उसके मां -बाप के कुल का एक न एक दीया बुझा देगा। कैसे महापापी लोग हैं जो दामाद को रेत-रेत कर मार रहे हैं तुलसी बोले। अब तो हालात और बेकाबू हो गया है नरोत्तम बोले। अब और क्या नया जुर्म कर दी है दंशरतन की पागल लाडली मुंशी पूछे। महीनों बाद आज्ञा विदेश से आया है नरोत्तम आगे कुछ बोल पाते तब तक तुलसी बोले घर नहीं आया क्या? क्या तुलसी दबी आग को फूंक मार रहे हो। भैय्या ने पहले ही बता दिया कि सात साल से आज्ञा मोहिनी की जेल से बाहर नहीं निकल पाया मुंशी बोले। भैय्या ना जाने भगवान किस पाप के गुनाह की सजा दे रहा है। बड़े विश्वास के साथ मोहिनी को ब्याह कर लाये थे पर पैलग मोहिनी ने बांटों और राज करो की नीति अपनाई । आज्ञा को पूरी तरह वश में कर हम दोनों बूढ़ा -बूढी का अपमान आज्ञा से करवाई फिर उसे घर -परिवार से दूर ले गरीब फिर जो कुछ आज्ञा के साथ हुआ वह दास्तान सुनकर आंखों में आंसू भर जाते हैं नरोत्तम बोले। शरीफ आदमी के साथ दो नम्बरी दंशरतन ने बहुत बड़ी साज़िश रच दिया है तुलसी बोले। पिछले महीनो से आज्ञा कम्पनी के काम से विदेश गया था



विदेश से आने के बाद थाने का चक्कर लगा रहा है दो नम्बरी बाप दंश रतन की बेटी मोहिनी ने आज्ञा के चरित्र पर कीचड उछाल कर पुलिस केस कर दी है। इतने बड़े बेशर्म बाप की बेटी है कि पति पर कीचड उछाल कर उसी की कमाई लूट रही है। चरित्रहीन मां -बाप की बेटी की झूठी बातों को पुलिस ने सच मान लिया है। तनख्वाह आते ही पुलिस महीना वसूलती है बाकी हिस्ट्री सिस्टर की बेटी छिन लेती है बेटा को भर पेट खाना भी नहीं मिल रहा है। चिंता ने उसे रोग के दलदल में ढकेल दिया है, दंशरतन की पागल बेटी थपोडी बजा बजा कर जश्न मना रही है। भैय्या मेरे जीवन का सुख छिन गया है नरोत्तम सिसकियां भरते हुए बोले। एक जमाना था

जब पत्नियां पति के जीवन की सुरक्षा के लिए खुद का जीवन दाव पर लगा देती थी आज की बहू देखो पति की नाक में नकेल डालने के लिए पुलिस और अंधे कानून का भरपूर लुत्फ उठा रही हैं ताकि पति को कंगाल बनाकर बाप को अमीर बना दे तुलसी बोले। तुलसी भैया हर बेटी के मां-बाप दंश रतन और निर्लजा जैसे नहीं हैं। आज भी कई मां बाप है जो बेटी के घर का पानी तक नहीं पीते दामाद की कमाई का एक नया पैसा लेना पाप मालूम पड़ता है। मोहिनी जैसी बहुयें रिश्ते के नाम पर कलंक है। कानूनी दांवपेंच ऐसे हो गये हैं जिनकी परछाई से परहेज़ होना चाहिए वहीं छाती पर पालथी मार कर मूंग दल रही हैं।सच कहूं तुलसी भैय्या मोहिनी पति का शोषण कर बूढ़े सास ससुर को रक्त के आंसू देने का पाप तो कर रही है परन्तु मोहिनी के मां बाप महापाप कर रहे हैं देखना उनके इस महापाप का दण्ड उसके परिवार के लिए प्रलयकारी होगा मुंशी बोले। दंशरतन अपने स्वार्थ के लिए दमाद का टार्चर कर और खुद अपनी बेटी से करवा कर महापाप कर रहा है तुलसी बोले। नरोत्तम भैय्या के परिवार को दर्द के दलदल में ढकेलने के महापाप का परमात्मा इतना भयावह दण्ड देगा की दंश रतन की बात पीढियां कण्डे से आंसू पोछेगी। कहते हैं ना परमात्मा की लाठी में आवाज़ नहीं होती पर पड़ती है तो सब कुछ तबाह कर देती है, ऐसा ही करेगा परमात्मा दंशरतन के साथ मुंशी बोले।

मेरी तो बस इतनी सी ख्वाहिश है कि हमारा परिवार हमारे सपने बिखरने से बच जाये। मेरे बच्चे प्रगति के पथ पर अग्रसर रहे आंखों की बाढ़ को काबू में करते हुए नरोत्तम बोले। तुलसी भैया भगवान तुम्हारी तपस्या खंडित नहीं होने देंगे। हमारी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं, बच्चो को सफल बनाने में तुमने लोहे के चने चबाये हैं ,परिणाम यकीनन अच्छे आयेंगे, दोस्त देखना एक दिन तुम्हें आंसू देने वाला दंशरतन और उसका परिवार खुद के आंसू में डूब मरेगा मुंशी बोले। नरोत्तम -बस इसी उम्मीद पर जिन्दा हूं। नरोत्तम अपना और भाभी का ख्याल रखना। भगवान के घर देर है अंधेरा नहीं आओ मुंशी हम घर चले कहते हुए तुलसी गमछा से आंख रगड़ते हुए खटिया से उठे और चल पड़े अपने घर की ओर ।

नन्दलाल भारती

समाप्त

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