पानी नहीं चाहिए – देवेंद्र कुमार Moral Stories in Hindi

गाँव में मीठे पानी के अनेक कुएँ हैं पर गाँव से कुछ दूर एक पुराना कुआँ है सूखा हुआ। लोग सदा से कुएँ को वैसा ही देखते आ रहे हैं। कुएं के पास ही एक घना पेड़ है। उस रास्ते से गुजरने वाले पथिक पेड़ की घनी छांह की सराहना करते हुए यह कहना नहीं भूलते, “काश कुएं में पानी होता तो पेड़ की घनी छाया का आनन्द दोगुना हो जाता।”
सूखे कुएँ मे पानी भले ही न था, पर उसमें अनेक परिंदो ने अपने घोंसले बना लिए थे। अंदर से परिंदों की चहचहाहट और पंखो. की फड़फड़ लगातार सुनाई दिया करती थी।
एक रात एक परी सूखे कुएँ के पास जंगल में आ उतरी। उसने जंगल के कई सूखे-मुरझाए पेड़ों को फिर से हरा-भरा बना दिया, फिर सूखे कुएँ के पास जा खड़ी हुई। उसने कहा—“सूखे कुएं, सोते हो या जाग रहे हो?”
“मैं तो जागता रहता हूँ अच्छी परी।” सूखे कुएँ की आवाज आई।
परी ने कहा—“मैं देख रही हूँ तुम न जाने कब से सूखे पड़े हो। मैं तुम्हारी सहायता करना चाहती हूँ, पर उसके लिए तुम्हारा इच्छा प्रकट करना जरूरी है। ऐसा होने के बाद ही परी किसी की इच्छा पूरी कर सकती है। अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारा सूखापन दूर कर सकती हूँ।”
कुछ देर तक खामोशी रही, फिर कुएँ ने कहा—“अच्छी परी, मुझे कुछ नहीं चाहिए, मैं जिस हाल में हूँ उसी में खुश हूँ।‘
सुनकर परी को कुछ बुरा लगा। उसने सोचा—‘शायद सूखा कुआँ घमंडी है, तभी तो एक परी का प्रस्ताव भी ठुकरा रहा है। क्योंकि हर कोई परी से अपने मन की इच्छा पूरी करवाना चाहता है। कैसा विचित्र था सूखा कुआँ। परी खामोशी से चली गई।
कुछ दिन बाद जोरों की बारिश हुई। कई दिन तक लगातार पानी बरसता रहा। दूर-दूर तक पानी फैल गया। इधर-उधर से बहकर पानी सूखे कुएँ में भर गया। अब वह सूखा नहीं था। आखिर बारिश थमी तो जमीन पर भरा पानी धीरे-धीरे उतरने लगा। सूखे कुएँ के पास से गुजरने वालों ने देखा और हैरान रह गए। सूखे कुएँ में लबालब पानी भरा था। जल्दी ही सूखे कुएँ में पानी आने की चमत्कार पूर्ण खबर सब तरफ फैल गई। सब सोच रहे थे—‘पानी तो बरसात के मौसम में हर बार बरसता है लेकिन इससे पहले तो सूखे कुएँ में कभी इतना पानी नहीं देखा गया था।‘
1
जल्दी ही कुएँ के पास भीड़ आ जुटी। हर कोई कुएँ का पानी पीना चाहता था। लेकिन यह क्या! जिसने भी कुएँ का पानी पिया वही थू थू करता हुआ पीछे हट गया। कुएँ का पानी बेहद कड़वा था। लोग अब सूखे कुएँ में भर आए कड़वे, कसैले पानी की चर्चा कर रहे थे।जब यह चर्चा रुकी तो दूसरी बात यह चल निकली
कि धीरे-धीरे पानी की कड़वाहट दूर हो जाएगी। पर समय बीतता रहा, कुएँ में भरे पानी की कड़वाहट वैसी ही रही। बल्कि अब तो उसके अंदर से जोर की बदबू भी आने लगी थी। लगता था जैसे किसी ने उस कुएँ को कड़वे पानी और बदबू का अभिशाप दे दिया था।
एक रात परी फिर से बदबूदार पानी से भरे कुएँ के पास आ उतरी, जो पहले अपने सूखेपन के लिए दूर-दूर तक बदनाम था। परी कुछ मुसकराई। वह सोच रही थी—‘घमंडी कुएँ को यह कैसी सज़ा मिल गई है। पर मैंने तो ऐसा नहीं किया।‘
कुछ देर बाद परी ने पुकारा—“ओ बदबूदार पानी वाले कुएं, सो गए या जागते हो?”
कुएँ की उदास आवाज आई—“ओ अच्छी परी, मैं तो शायद अब कभी सो नहीं पाऊँगा। पता नहीं किसने मुझे शाप दे दिया है।”
परी ने कहा—“अब तो तुम लोगों की नजरों में और भी बदनाम हो गए हो। क्या तुम्हें मुझसे अब भी कुछ नहीं चाहिए? चाहो तो मैं तुम्हारे बदबूदार, कड़वे पानी को मीठा बना सकती हूँ।”
कुआँ कुछ कह पाता, इससे पहले ही कहीं पंखों की फड़फड़ाहट सुनाई दी और एक चिड़िया परी के सामने जमीन पर आ गिरी। वह छटपटा रही थी। परी का ध्यान तुरंत जमीन पर आ गिरी चिड़िया की ओर चला गया। उसने झुककर चिड़िया को हथेली पर उठा लिया और हौले से सहलाया तो चिड़िया की आँखें खुल गईं। परी के एक स्पर्श ने उसे ठीक कर दिया था। परी बोली, “चिड़िया, तुम्हारा घोंसला कहाँ है? जाओ, आराम से रहो, अब तुम्हें कोई कष्ट नहीं होगा।”
चिड़िया ने हौले से पंख फड़फड़ा दिए। उदास स्वर में बोली—“मेरा घोंसला अब कहाँ। घोंसला पानी में डूब गया। मेरे परिवार की कई चिड़ियाँ मर गईं।
परी ने अचरज से पूछा, “घोंसले तो पेड़ों पर होते हैं, वे भला पानी में कैसे डूब सकते हैं! यह कैसी बात!”
“परी रानी, हम कई चिड़ियों ने अपने घोंसले सूखे कुएँ में बनाए थे। इस बार तेज बारिश हुई तो कुएँ में ऊपर तक पानी भर गया। मैं जैसे-तैसे डूबने से बच गई, लेकिन बाकी…।”
“पर चिड़िया तथा दूसरे परिंदे तो पेड़ों पर रहते हैं, फिर तुमने सूखे कुएँ में घोंसला क्यों बनाया था?”
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चिड़िया बताने लगी—“एक बार हमारा एक झुंड सूखे कुएँ के पास आ उतरा। बाहर तेज धूप थी लेकिन कुएँ के भीतर ठंडक। मैं कुएँ में चली गई ता किसी ने कहा—“चलो कोई तो आया इतने दिनों बाद मेरे पास। मैं तो न जाने कब से सूखा, सुनसान, अकेला पड़ा हूँ।” सच बेचारा सूखा कुआँ अपने अकेलेपन से बहुत दुखी था,
हमें उस पर दया आ गई। हमारे झुंड ने सोचा कि कुछ समय के लिए हम सूखे कुएँ की दीवारों की दरारों में ही घोंसले बनाकर रहेंगी। बस, हमें कुएँ का साथ अच्छा लगा, फिर तो और भी परिंदे सूखे कुएँ में आकर रहने लगे। लेकिन…इस बारिश में एकाएक पानी इतनी तेजी से भरा कि मेरे संगी—साथी डूबकर मर गए।”
परी खामोश खड़ी सुनती रही। अब वह समझ गई थी कि सूखे कुएँ ने क्यों मीठे पानी से भर जाने की इच्छा नहीं की थी। परी को दुख हुआ कि उसने गलती से इस बात को कुएँ का घमंड समझ लिया था, जबकि सच कुछ और ही था।परी को अपनी भूल पर पछतावा हुआ,वह चिड़िया को अपनी हथेली पर लेकर, खामोशी से कड़वे पानी से भरे कुएँ के पास जा खड़ी हुई।
कुआँ पानी से लबालब हो गया था।पर पानी से दुर्गंध उठ रही थी।
इस बार परी ने कुछ नहीं पूछा। उसे पता था कि क्या करना है। परी ने हाथ हिलाया तो कुएँ में भरा पानी एकदम गायब हो गया। देखने वाला कह ही नहीं सकता था कि कुएँ में कभी एक बूंद भी पानी रहा होगा। परी ने फिर हाथ हिलाया तो कुएँ के अंदर से पंछियों का कलरव सुनाई देने लगा,
उनके पंखों की फड़फड़ाहट उभरने लगी। परी ने हथेली पर बैठी चिड़िया से कहा—“जाओ,अब सब कुछ पहले जैसा हो गया है।”
तभी आवाज आई—“परी रानी धन्यवाद।”– सूखा कुआँ बोल रहा था।
परी ने कहा—“मैं अब समझ गई हूँ कि अपने अंदर ठंडा-मीठा पानी क्यों नहीं भरवाना चाहते थे तुम।”
“परी रानी, तुमने मेरी दोस्त चिड़ियों का जीवन लौटा दिया। उनकी खुशी से मैं भी खुश हूँ।”
इसके बाद परी संतोष के भाव से वापस चली गई। वह मन ही मन सोच रही थी—“आगे से मैं किसी के इच्छा प्रकट करने पर ही इच्छा पूरी नहीं करूँगी। यह मेरा काम है कि लोगों के दुख दूर हों। सूखे कुएँ की इच्छा न समझ पाने से मुझसे कितना बड़ा अन्याय हो गया था।”
दिन निकला। सूखे कुएँ को फिर से पुरानी स्थिति में देखकर वहाँ से गुजरने वाले हैरान रह गए। जल्दी ही यह खबर दूर तक फैल गई कि रात में न जाने कुआँ फिर से सूख गया। अब उसमें से सड़ते पानी की दुर्गंध नहीं, फूलों की सुगंध आने लगी थी।
(समाप्त)

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