“निर्जला एकादशी” – ऋतु अग्रवाल

 “अरे! ओ बहुरिया, कल निर्जला एकादशी है। कल सब का निर्जला व्रत होगा। सुन रही हो ना सब की सब?” अम्मा ने अहाते में खड़े होकर आवाज लगाई।

    “हाँ,हाँ, अम्मा जी! हमें याद है। हम सब कल निर्जला व्रत रखेंगी।” मंझली बहू ने अम्मा जी को दवाई देते हुए कहा।

   अम्मा जी का भरा पूरा मारवाड़ी परिवार था।तीन बेटे, बहुएँ और पोते पोती। अम्मा जी वैसे तो बहुत हँसमुख और मिलनसार थी पर रीति-रिवाजों का कठोरता से पालन करती थी।

   “अरे ! ओ राजेश, कल दुकान के बाहर बाँटने के लिए मीठे पानी का इंतजाम करवा लिया है कि नहीं।” अम्मा जी ने बड़े बेटे से पूछा।

   “हाँ! अम्मा,आप चिंता मत करो। सब इंतजाम हो गया है। सुबह 11:00 बजे से 1:00 बजे तक लगातार दो घंटे मीठा पानी बटेगा।” राजेश ने अम्मा को आश्वासन देते हुए कहा।

    “ठीक है और सब के बायने के लिए फल आज शाम को ही मंगवा लेना।” अम्मा जी ने हिदायत देते हुए कहा।

    “जी, अम्मा।”कहकर राजेश दुकान चला गया।

      अगले दिन बहुओं ने बायना निकालकर अम्मा जी को दे दिया और काम में लग गईं। अम्माजी बहुत खुश  थीं कि बेटे बहू रीति-रिवाजों का भली भाँति अनुसरण करते हैं।


     लगभग 10:30 बजे अम्माजी को चक्कर आने लगे। रात को खाना खाने के बाद से अब तक कुछ ना खाया था तो कमजोरी की वजह से अम्माजी बेहोश हो गई। पूरा परिवार अम्मा जी के आस पास एकत्रित हो गया। पानी का छींटा मारा तो अम्माजी को जरा सा होश आया। बाबूजी ने मीठे पानी का गिलास के होठों पर लगा दिया। ।

     “ना!ना! राजेश के बाबूजी, आज तो मेरा निर्जला एकादशी का व्रत है।मेरा व्रत टूट जाएगा।” अम्माजी ने मुँह पीछे हटाते हुए कहा।

     “अरे! पी ले  मेरी बुढ़िया, तू मर जाएगी तो मेरा जीना कौन हराम करेगा? और सुन व्रत होते हैं, इंसान की भलाई के लिए, ना कि उन्हें कष्ट पहुँचाने के लिए। हम दुनिया में मीठा पानी बांट रहे हैं और हमारे परिवार जन ही प्यासे हों  तो ये अच्छा न लगता।सेवा,भलाई सब घर से ही शुरू होते हैं।” बाबू जी ने कहा।

   “पर बहुएँ भी तो भूखी प्यासी हैं। मैं उन्हें व्रत करने को कहूँ और खुद पानी पी लूँ, यह तो अच्छा न लगता।” अम्माजी ने कहा।

      “कोई भूखा प्यासा न है। मैंने पहले ही साल से बड़ी बहू और बारी-बारी सब को समझा दिया था और पहले ही दिन उनके कमरे में खाने-पीने की चीजें रखवा देता हूँ।” बाबू जी ने कहा।

     “हें! अम्माजी की आँखें चौड़ी हो गईं।

      “हें, कुछ नहीं। तू मेरी बात नहीं मानती इसलिए किसी ने तुझसे  कुछ बताया नहीं।अब तू भी जिद छोड़ दे,मेरी जान! अगर तू मर गई तो तेरा दीवाना बनकर गली गली डोलूँगा।”  बाबूजी अम्मा को छेड़ते  हुए बोले।


    यह सुनकर सब बहुएँ और बच्चे खी खी करके हँसने लगे।

     ” हटो भी परे को!” अम्मा ने लजाते हुए गिलास में मुँह लगा दिया।

यह कहानी पूर्णतया मौलिक है।

स्वरचित

ऋतु अग्रवाल

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