नेहा – कंचन श्रीवास्तव

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चेहरे का नूर लोगों को कसकता है ,पर क्या ? करें ।उनके वश में नहीं कि छीन सके हालांकि की कोशिश बहुत रहती है ,पर ऐसा कर नहीं सकते ।इसलिए हाथ मल कर रह जाते हैं।

ये बात काफी दिनों से नेहा आसपास रिश्तेदार दोस्त यार सभी में नोटिस कर रही पर कह नहीं रही।

उसे अच्छे से याद है, जब वो रवि के साथ अपने जीवन की शुरुआत की थी तो हालत इतनी पतली थी कि उसके  अपनों ने भी किनारा कर लिया जिनसे खून का रिश्ता रहा। 

लोग डरते थे, घर पहुंचने पर कि कही कुछ मांग न लें और तो और  कभी कभी तो घर में होते हुए भी बच्चों से कहलवा देते कि कह दो मां पापा घर पर नहीं है।इतना ही नही रास्ते में कहीं मुलाकात हो जाए तो कन्नी काट कर निकल जाते।जो कि दिल को बहुत ठेस लगती ।

पर कुछ कर नहीं सकते, इसलिए चुप खून का घूंट पीकर रह जाते ।

इसके सिवा कोई चारा भी तो नहीं था। दो छोटे बच्चों के साथ में बीमार सास , की देखभाल की जिम्मेदारी थी।

पर हिम्मत नहीं हारी और पढ़ाई का फायदा उठाकर पहले छोटी  नौकरी कर गृहस्थी संभाला साथ ही मां की सेवा की और पढ़ाई को भी बढ़ाया।

इस बीच उसने  देखा मां ने पूरा सहयोग किया पैसे से नहीं शरीर से वो ऐसे कि जहां तक हो सकता तबियत ठीक हो तो काम में हाथ बंटाती ।जिससे हमें काफी सहयोग मिलने लगा।



और वो नौकरी के साथ साथ पढ़ाई भी करने लगी। हालांकि मिली प्राइवेट ही पर कुछ ही सालों में मेहनत रंग लाई और एक अच्छी कंपनी में नौकरी मिल गई।

धीरे धीरे हालत सुधरने लगी यहां तक की  मकान का बंटवारा हुआ तो उसने उसे भी मेनटेन कराया।

ये सब देख मां बहुत खुश होती और दिल खोलके आशीर्वाद देती।

और जैसे उनका आशीर्वाद लगता भी कि कुछ न कुछ हर रोज़ नया होता।

देखते देखते बच्चे भी बड़े हो गए, स्थिति परिस्थिति को देखते हुए समय से पहले ही वो भी समझदार हो गए।

पढ़ाई के साथ साथ कुछ न कुछ करने लगे,जिससे घर की काया ही पलट गई।

अब ये सब देख  लोगों को आश्चर्य ही नहीं हुआ बल्कि धीरे धीरे जुड़ने लगे।

यहां तक कि घर बुलाने लगे।ऐसा होते देख ये सोचने पर मजबूर हैं कि आज की दुनिया में लोग इंसान से ज्यादा उसके दौलत को महत्व देते हैं।

उसे आज लोगों के व्यवहार से ऐसा लग रहा कि जब उसके चेहरे पर बैचैनी और परेशानी थी तो लोगों के चेहरे से नूर बरसता था , आज उसके चेहरे पर नूर है तो लोगों को कसकता है। वो आखिर ये क्यों भूल जाते हैं ,कि इसके पीछे उसकी खुद की लगन मेहनत और उसका अपना खुद का आत्मविश्वास है ।जो उसके चेहरे पर नूर बनके बरस रहा है। नेहा का कहना है कि आत्मविश्वास और मेहनत से दुनिया की हर चीज पाई जा सकती है जैसे कि उसने पाया।

 

 स्वरचित

कंचन श्रीवास्तव

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